कडु मिया बुढ़न साहेब
पैदाइश :१९३२ इन्तेक़ाल : 23rd March 2023
क्या लोग थे जो राहे वफ़ा से गुज़र गए
जी चाहता है नक़्शे क़दम चूमते चले
चाँद रात को कडु मिया दादाभाई का इंतेक़ाल हुवा ,गल्फ और अमेरिका में रमजान की शुरवात हो चुकी थी
९० साल की तवील उम्र पायी। एक भीड़ उमड़ पड़ी थी जनाज़े में ,और ददफीन के वक़्त। जो उनके हर दिल अज़ीज़ और जन्नती होने की बशारत थी। परवेज़ /ऐजाज़ सैयद जनाज़े में शरीक थे। उनोहने बताया तद्फीन के बाद मौलाना ने मरहूम कडु मिया दादा भाई की सवानेह,किरदार पर रौशनी डाली उनके हुसन सुलूक की तारीफ़ बयां की। उनको लोगों /रिश्तेदारों को जोड़ने वाला बताया।
अल्लाह के रसूल (SA ) ने ऐसे शख्स को जन्नत की बशारत दी ,जो अपने दिल में किसी के लिए बुग़ज़ ,कीना नहीं रखता। मरहूम कडु मिया दादाभाई में ये खूबी कूट कूट कर भरी थी। हर किसी की खूबियों पर नज़र रखते थे और कमज़ोरियों और ग़लतियों को नज़र अंदाज़ करते थे
हमारे वालिद मरहूम हाजी क़मरुद्दीन से मरहूम दादाभाई को वालेहाना अक़ीदत थी। हम सब भाइयों पर तालीम के उन्वान पर शफ़क़त रखते थे। जलगांव डेपो जब भी उनकी ड्यूटी एस टी पर लगती ,वक़्त निकाल कर ज़रूर मरहूम वालिद साहेब से मिलने कटियाफाईल जलगांव के मकान पर तशरीफ़ लाते ,अब्बा को मामूजान कह कर मुखातिब किया करते।
हमारे ससुर मरहूम ज़ैनुलआबेदीन साहेब से बहुत कुर्बत थी। शहादा में उनका ट्रांसफर हुवा उस्वक़्त दोनों खानदानो का करीबी ताल्लुक़ रहा। हमारी सास (खुश दामन ) मरहूमा अनीस खातून से ,मरहूम कडु मियां दादाभाई बहन का रिश्ता लगाते थे। इत्तेफ़ाक़ की बात है मेरी ज़ौजा (wife ) शगुफ्ता का उर्दू स्कूल शहादा में , दाखला मरहूम कडु मिया दादा भाई ने करवाया था।
बस्ती बसना खेल नहीं है बस्ती बस्ते बस्ती है
अपनी कामयाब ज़िन्दगी में मरहूम कडु मियां दादाभाई ने बेशुमार नेकियां की। सब से बड़ा कारनमा लोगो को कम क़ीमत में सर पर छत मुहैया करना । मरहूम ने कामगार हाउसिंग सोसाइटी के नाम से धुलिया के ग़रीब मुसलमानों के लिए कॉलोनी की बुनियाद रखी ,अब ये हज़ार खोली के नाम से जानी जाती है। इस सोसाइटी के मरहूम २५ साल, माशाल्लाह डायरेक्टर भी रहे। तकरीबन १५ से २० रिश्तेदारों को कम क़ीमत पर इस सोसाइटी में घर भी दिलवाया। हमारे ससुर मरहूम ज़ैनुलआबेदीन साहेब को भी इस सोसाइटी में मकान दिलवाया था।
उस शख्स की तर्कियों का सबब जान जायेंगा
उस आदमी के पाँव के छाले तलाश कर
२६ सितम्बर २०२१ इक़रा खानदेश फाउंडेशन की जानिब से ,स्कूल /कॉलेज में नुमाया कामयाबी हासिल करने वालो स्टूडेंट्स के लिए तहनियति प्रोग्राम, हकम हॉल धुलिया में रखा गया था। मरहूम कडु मियां दादा भाई को पहले "Life Time Achievement Award " से नवाज़ा गया ,ट्रॉफी ,शाल और गुलदस्ता दिया गया था । मेरी खुश नसीबी ,मैं भी इस प्रोग्रम में नफ़्स ब नफीस मौजूद था और उनेह शॉल तोहफे में दी थी। मरहूम बहुत जज़्बाती हो गए थे। प्रोग्राम के कन्वेयर नियाज़ अहमद ने बताया ,मैं ने अब्बा से पूछा "प्रोग्राम में कितना वक़्त बोलेंगे " अब्बा ने जवाब दिया "कितना वक़्त देंगा " तमाम महफ़िल गुलो गुलज़ार होगयी थी। ८८ साल की उम्र में हाफ़िज़ा सही था,लहजा दमदार था । अपनी बात और दुआ से महफ़िल को अश्क ज़ार कर दिया था । उनका नाम कडु मिया क्यों रखा गया हालिंके वो इतने मीठे है। उनोहने कहा उस ज़माने का trend था। वही पता चला किस तरह मरहूम बहादरपुर से पैदल चल कर धुलिया आते थे। अपनी मेहनत और कोशिशों से उन्हने trainer और फिर controller की पोस्ट तक तरक़्की हासिल की। तास्सुरात में लोगो ने बताया के मरहूम कडु मियां दादाभाई की बदौलत कई लोगों,रिश्तेदारों को एस.टी में जॉब मिल था। मरहूम अरसे तक S.T यूनियन के प्रेजिडेंट भी रहे। आखिर में मरहूम ने रिक़्क़त अमेज़ दुआ मांगी। खास कर इक़रा खानदेश फाउंडेशन के के लिए रो रो कर दुआ मांगी।
बिछड़ा कुछ इस अदा से के रुत ही बदल गयी
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया
कामयाबी ये नहीं है के आप ने कितनी दौलत छोड़ी। कामयाबी ये है के आप के बाद भी लोग आप को कैसे याद करते हैं। आप की औलाद कैसी है? माशाल्लाह मरहूम कडु मियां दादा भाई भरपूर ज़िन्दगी गुज़ार कर कर गए। तीन नेक बेटे ,चार बेटियां और पोते ,नवासे ,निवासियों को बेहतरीन तरबीयत दे कर दुनिया से रुखसत हुए।
अल्लाह मरहूम कडु मियां दादाभाई को जन्नत फिरदौस में आला मक़ाम अता करे आमीन ,सुम्मा आमीन।