Dr Bu Abdulla and Hafiz Javid Hanif Shaikh Hafiz Javid Hanif Shaikh
Hafiz Mohammed Javid Shaikh
हाफिज मोहम्मद जावीद हनीफ शेख नवसारी
पैदाइश : १५ जनवरी १९८५ (नवसारी)
ज़िंदगी से यहीं गिला है मुझे,
तू बहुत देर से मिला है मुझे।
मोहम्मद जावीद रिश्ते में हमारे पोते है। हमारे फुफीज़ाद हबीब मियां दादाभाई के, बड़े फरजंद हनीफ मियां के, सबसे छोटे फरजंद है।
इत्तेफाक से मैंने २० साल का लंबा अरसा शाम और सूडान में गुजारा और हाफिज जावीद भी १२ साल ७मार्च २००८ से १५ नवम्बर २०१९ दुबई में रहे।
हम दोनो ही वतन से दूर रहे तो हमारी मुलाकात कैसे होती ?
हमारी पहचान भी हूवी तो व्हाट्स एप ग्रुप पर, तब पता चला हम दोनो में कितनी कुर्बत हैं।
फिर अल्हमदुलिल्लाह अक्सर फ़ोन पर हमारी बातचीत हो जाती हैं।
एक हाफिज अपने खानदान के ७० लोगों की लोगों की शिफाअत कर सकेगा और अल्लाह की जात से उम्मीद है हाफिज जावीद अपने दादाजान यानी मेरी शिफाअत का हकदार जरूर बनेंगे इंशा अल्लाह ।
कोशिश भी कर, उम्मीद भी रख, रास्ता भी चुन,
फिर उसके बाद थोड़ा मुकद्दर तलाश कर।
जावीद मियां ने मदरसा ए तहफीजुल कुरान फैजे सुलेमानी नवसारी से २००५ में हिफ्ज़ ए कुरान मुकम्मल कर लिया साथ साथ गुजराती माध्यम से १२ का इम्तिहान भी पास किया, B Com. करना चाहते थे मगर मदरसे से इजाजत नहीं मिली।
अपनी नाकामियों को कामयाबी में बदलने के फन से हाफिज जावीद बखूबी वाकीफ है।
जनाब ने अपनी कोशिशें जारी रखी। कंप्यूटर ऑपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट में आई टी आई किया, अपनी काबिलियत बढ़ा ने के लिए कंप्यूटर अकाउंटिंग एंड ऑफिस ऑटोमेशन में डिप्लोमा किया।
कहा जाता हैं हाफिज ए कुरान के लिए अल्लाह हर चीज आसान कर देता है।
उनके वालिद साहब (हमारे भतीजे हनीफ मियां) का १२ मई २००८ को इंतकाल हुवा था, तब हाफिज जावीद को दुबई जा कर सिर्फ २ महीने हुवे थे। अल्लाह ने उसी रोज उनके हिंदुस्तान आने का इंतजाम कर दिया था तो उन्हें वालिद साहब का चेहरा आखरी बार देखना नसीब भी हुवा ।
२२ मई २००८ को वालिद साहब के इंतकाल के सिर्फ १० दिनों के बाद हाफिज जावीद अपने दिल पर पत्थर रख कर अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने फिर से दुबई रवाना हो गए।
२००८ से २०१९ दुबई में वेयरहाउस ऑपरेशन मैनेजर के फराईज अंजाम दिए। दुबई की मारूफ शख्शियत Dr. Bu Abdullah से हाफिज जावीद के करीबी ताल्लुकात रहे हैं।
दुबई में गोल्ड सूक की मस्जिद में हर जुम्मा अज़ान भी दी , मस्जिद में इमामत(वालींटियर) भी की, तरावीह की नमाज भी दो साल पढ़ाई।
कहा बच कर चली ए फसल गुल मुझ आबला से,
मेरे कदमों की गुलकारी बियाबान से चमन तक हैं।
हिंदुस्तान लौट कर हाफिज जावीद की जद्दो जहद का सिलसिला रुका नहीं, पूना में २ साल फजलानी ग्रुप में और १ साल अक्कलकुवा मदरसे में अपने वेयरहाउस के तजुर्बे का फायदा उठा कर दोनो जगहों पर वेयरहाउस की बुनियाद रखी।
अब अल्हमदुलिल्लाह नवसारी में अपने माज़ी के तजुर्बात का फायदा उठा कर (Amazon Easy Store) एमेजॉन इजी स्टोर की शाख और (Super Market) सुपर मार्केट का अपना ज़ाति बिज़नेस कर रहे हैं।
हाफिज जावीद अरबी एहले ज़बान की तरह बोलते हैं, इंग्लिश भी ब्रिटिशर्स के लहजे में बोलते हैं, गुजराती में तो तालीम हासिल की ही है, उर्दू की भी शुदबुद हैं।
और क्रिकेट में तो कमाल हासिल है.
हाफिज साहिब जानते हैं कंपीटीशन के इस दौर में किस तरह अपने आपको काबिल बना ना चाहिए।
नवसारी में अपनी वालिदा मुमताज बेगम, अहलिया नाजनीन और अपनी दो नन्ही मुन्नी बेटियां नाफिआ और फातिमा के साथ मुकीम है।
मुझ को जाना है बहुत आगे हदे परवाज से।
इतनी कम उम्र में इतनी काम्याबिया हाफिज जावीद जैसी काबिल सख्शियत को मिली काबिल ए सताईश हैं।
रिश्तेदारों के बच्चों के लिए हाफिज जावीद की सवाने हयात यानी (life History) एक बेहतरीन सबक है।
किस तरह जिंदगी में मुश्किलात का सामना किया जाता हैं, और कामयाब जिंदगी गुजारी जाती हैं.