रविवार, 25 सितंबर 2022

IQRA KHANDESH FOUNDATION DHULIA PROGARAMME

इक़रा खानदेश फाउंडेशन धूलया तक़सीम इनामात प्रोग्राम (तास्सुरात )

क़ौमों की की हयात उनके तख़य्युल पे है मौक़ूफ़ (डॉ इक़बाल )

25th सितम्बर 2022 बरोज़ इतवार हाजी हाकम हाल धूलिया में  IKF  द्वारा आयोजित prize distribution program ने  एक बेहतरीन  मिसाल क़ायम की। ये प्रोग्राम  रिश्तेदारों के  लिए था ,रिश्तेदारों द्वारा आयोजित किया गया था और रिश्तेदारों के बुज़ुर्ग ,स्टूडेंट्स ,टीचर्स और हाजी साहबान के इस्तक़बाल के लिए था। 

उनसे ज़रूर मिलना सलीक़े के लोग हैं 

 प्रोग्राम में रोटरी क्लब के Deputy Governor जनाब कमर शेख़ कडुमिया का discipline  हर जगह नज़र आया ,जनाब नियाज़ अहमद का निज़ामत का बरसों के तजर्बे का निचोड़ दिखाई दिया। मुख्लिस ज़मीनी सतह पर काम करने वाले साथियों का जलवा हर क़दम पर उजागर हुवा। 

 साबित हुवा हमारे दरमियान रागिब जहागिरदार ,अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ वकील ,डॉ प्रोफेसर साजिदा 

बुधवार, 21 सितंबर 2022

Hafiz Qari Mauzzin Javid Hanif Shaikh

                         Dr Bu Abdulla and Hafiz Javid Hanif Shaikh    Hafiz Javid Hanif Shaikh


 Hafiz Mohammed Javid Shaikh


हाफिज मोहम्मद जावीद हनीफ शेख नवसारी

पैदाइश : १५ जनवरी १९८५ (नवसारी)


ज़िंदगी से यहीं गिला है मुझे,

तू बहुत देर से मिला है मुझे।


मोहम्मद जावीद रिश्ते में हमारे पोते है। हमारे फुफीज़ाद हबीब मियां दादाभाई के, बड़े फरजंद हनीफ मियां के, सबसे छोटे फरजंद है। 

इत्तेफाक से मैंने २० साल का लंबा अरसा शाम और सूडान में गुजारा और हाफिज जावीद भी १२ साल ७मार्च २००८ से १५ नवम्बर २०१९ दुबई में रहे।


हम दोनो ही वतन से दूर रहे तो हमारी मुलाकात कैसे होती ?

हमारी पहचान भी हूवी तो व्हाट्स एप ग्रुप पर, तब पता चला हम दोनो में कितनी कुर्बत हैं।

फिर अल्हमदुलिल्लाह अक्सर फ़ोन पर हमारी बातचीत हो जाती हैं।


एक हाफिज अपने खानदान के ७० लोगों की लोगों की शिफाअत कर सकेगा और अल्लाह की जात से उम्मीद है हाफिज जावीद अपने दादाजान यानी मेरी शिफाअत का हकदार जरूर बनेंगे इंशा अल्लाह ।


कोशिश भी कर, उम्मीद भी रख, रास्ता भी चुन,

फिर उसके बाद थोड़ा मुकद्दर तलाश कर।


जावीद मियां ने मदरसा ए तहफीजुल कुरान फैजे सुलेमानी नवसारी से २००५ में हिफ्ज़ ए कुरान मुकम्मल कर लिया साथ साथ गुजराती माध्यम  से १२ का इम्तिहान भी पास किया, B Com. करना चाहते थे मगर मदरसे से इजाजत नहीं मिली।

अपनी नाकामियों को कामयाबी में बदलने के फन से हाफिज जावीद बखूबी वाकीफ है।

जनाब ने अपनी कोशिशें जारी रखी। कंप्यूटर ऑपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट में आई टी आई किया, अपनी काबिलियत बढ़ा ने के लिए कंप्यूटर अकाउंटिंग एंड ऑफिस ऑटोमेशन में डिप्लोमा किया।

कहा जाता हैं हाफिज ए कुरान के लिए अल्लाह हर चीज आसान कर देता है।


 उनके वालिद साहब (हमारे भतीजे हनीफ मियां) का १२ मई २००८ को इंतकाल हुवा था, तब हाफिज जावीद को दुबई जा कर सिर्फ २ महीने हुवे थे। अल्लाह ने उसी रोज उनके हिंदुस्तान आने का इंतजाम कर दिया था तो उन्हें वालिद साहब का चेहरा आखरी बार देखना नसीब भी हुवा ।


२२ मई २००८ को वालिद साहब के इंतकाल के सिर्फ १० दिनों के बाद हाफिज जावीद अपने दिल पर पत्थर रख कर अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने फिर से दुबई रवाना हो गए।


२००८ से २०१९ दुबई में वेयरहाउस ऑपरेशन मैनेजर के फराईज अंजाम दिए। दुबई की मारूफ शख्शियत Dr. Bu Abdullah से हाफिज जावीद के करीबी ताल्लुकात रहे हैं।

दुबई में गोल्ड सूक की मस्जिद में हर जुम्मा अज़ान भी दी , मस्जिद में इमामत(वालींटियर) भी की, तरावीह की नमाज भी दो साल पढ़ाई।


कहा बच कर चली ए फसल गुल मुझ आबला से,

मेरे कदमों की गुलकारी बियाबान से चमन तक हैं।


हिंदुस्तान लौट कर हाफिज जावीद की जद्दो जहद का सिलसिला रुका नहीं, पूना में २ साल फजलानी ग्रुप में और १ साल अक्कलकुवा मदरसे में अपने वेयरहाउस के तजुर्बे का फायदा उठा कर दोनो जगहों पर वेयरहाउस की बुनियाद रखी।


अब अल्हमदुलिल्लाह नवसारी में अपने माज़ी के तजुर्बात का फायदा उठा कर (Amazon Easy Store) एमेजॉन इजी स्टोर की शाख और (Super Market) सुपर मार्केट का अपना ज़ाति बिज़नेस कर रहे हैं।


हाफिज जावीद अरबी एहले ज़बान की तरह बोलते हैं, इंग्लिश भी ब्रिटिशर्स के लहजे में बोलते हैं, गुजराती में तो तालीम हासिल की ही है, उर्दू की भी शुदबुद हैं।

और क्रिकेट में तो कमाल हासिल है.

हाफिज साहिब जानते हैं कंपीटीशन के इस दौर में किस तरह अपने आपको काबिल बना ना चाहिए।

नवसारी में अपनी वालिदा मुमताज बेगम, अहलिया नाजनीन और अपनी दो नन्ही मुन्नी बेटियां नाफिआ और फातिमा के साथ मुकीम है।


मुझ को जाना है बहुत आगे हदे परवाज से।


इतनी कम उम्र में इतनी काम्याबिया हाफिज जावीद जैसी काबिल सख्शियत को मिली काबिल ए सताईश हैं।

रिश्तेदारों के बच्चों के लिए हाफिज जावीद की सवाने हयात यानी (life History) एक बेहतरीन सबक है।

किस तरह जिंदगी में मुश्किलात का सामना किया जाता हैं, और कामयाब जिंदगी गुजारी जाती हैं.

मंगलवार, 20 सितंबर 2022

ye phool mujhe koyi wirasat me mile hain

 ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं 

तुम ने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं मिलता 

इक़रा खानदेश फाउंडेशन के मारेफ़त जिन रिश्तेदरारों के स्टूडेंट्स को स्कालरशिप दी जा  रही हैं हक़दार तो है ही कुछ बच्चों की काविशें ,मेहनतें देख कर हमारे struggles के दिनों की यादें ताज़ा हो जाती हैं। ३ किलोमीटर दूर पैदल बगैर चप्पल जूतों के स्कूल जाना। कभी नाश्ता नहीं मिलता था ,और कभी खाना नहीं  मिलता था। फी गवर्नमेंट की EBC स्कीम से मिलती थी। डॉ वासिफ ,मखदूम ,सलाहुद्दीन मलिक ,ताजुद्दीन ,ज़ाकिर अहमदाबाद वाले  ,  मरहूम सादिक़ इंजीनियर ,  हाफिज जावेद ,(इन  साहेबान से मेरी क़ुरबत रही है इन के हालत जनता हु )हमारी जनरेशन ने जिस मुसीबत से तालीम हासिल की। नौकरी के लिए दर बी  दर ठोकरे खायी और आज इस मुक़ाम तक पहुंचे ,जी चाहता हर किसी के हालत ज़िन्दगी लिखूं बहुत लोगों  को मुतर्रीफ़ (introduction )दे चूका हु और इंशाल्लाह वक़्त मिलने पर सब के बारे में अपना ब्लॉग ज़रूर लिखूंगा। 

जान कर ख़ुशी हुयी  के कुछ बच्चे हम से भी ज़ियादा जदो  जहद रहे हैं 

इक़रा खानदेश फाउंडेशन की जानिब से जिन बच्चों को स्कालरशिप दी गयी उन में से कुछ सख़्त हालात का मुक़ाबला करके अपनी तालीम मुक़्क़मिल कर रहे हैं और  साथ साथ फॅमिली को भी  support कर रहे हैं bravo 

कुछ मिसालें 

इंजीनियरिंग करने वाले कुछ बच्चे शाम को कॉलेज के बाद पार्ट टाइम जॉब करके अपने कॉलेज का खर्च (ट्रवेलिंग्+नोटबुक+टेक्सटबुक्स ) खुद अपनी कमाई से  ख़रीदते हैं। और फॅमिली की भी मदद करते हैं 

ITI  करने वाले कुछ बच्चें सुबह रिक्शा चलाने के बाद कॉलेज अटेंड करते हैं। 

कुछ पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाले बच्चें   पार्ट टाइम रिसेप्शनिस्ट का काम करते हैं कॉलेज के साथ साथ अपनी  फॅमिली को भी सपोर्ट कर रहे हैं 

बहुत से बच्चों का फी न भरने की  बिना पर रिजल्ट रोक लिया गया था IKF ने तुरंत स्कॉलरशिप मंज़ूर की रिजल्ट मिलाने के पश्चात् बच्चों ने अगले कोर्स में एडमिशन लिया। वरना साल बर्बाद होजाता शायद कुछ बच्चे तो  तालीम ही छोड़  बैठते। 

एक स्टूडेंट पैसों की कमी की बिना पर अपना ग्रेजुएशन सर्टिफिकेट यूनिवर्सिटी से ले नहीं प् रहा था IKF ने  मदद की उसका सर्टिफिकट दिलवाया। 

खुलूस हो तो निकलती हैं ग़ैब से राहें 

मरहूम मिस्बाह अंजुम ने रहनुमाई की। इक़रा खानदेश फाउंडेशन की बुनियाद रखी गयी।  काम को एक साल से कम वक़्फ़े में रिश्तेदारों में पज़ीराई मिली। हमारी लब्बैक पर ११० लाइफ मेंबर्स ५०० रुपये दे कर IKF से जुड़े। मखदूम अली रिटायर्ड एकाउंट्स अफसर ,अल्हाज हिसामुद्दीन बैंक से रिटायर्ड केशियर ने IKF अकाउंटेंट के फ़रायज़ बिना salary के अंजाम देने का बेडा उठाया। न कोई IKF का  एम्प्लोयी  है ,न ऑफिस का  खर्च है न  लाइट पानी का बिल। चार लाख रूपये जमा हुए डायरेक्ट  ५० रिश्तेदारों के बच्चों के स्कूल /कॉलेज के अकाउंट में जमा होगये। हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा। रहबरी के लिए अल्हाज सलाहुद्दीन नूरी ,ज़ाहिद शैख़ { अबू धाबी },फैसल शैख़ (मैंचेस्टर ), रागिब अहमद शैख़  (नवी मुंबई ),हमीदुद्दीन (नासिक ) डॉ वासिफ अहमद (दुबई ) ,एडवोकेट रज़ीउद्दीन  बुज़र्ग और काबिल लोगों  की रहनुमाई ,कयादत  मिली। रिज़वान जहागिरदार ,कमर शैख़ जैसे नौजवान और जोश भरे लोगों का साथ। बच्चों की स्कॉलरशिप भी डोनेशन से अदा की जाती है ,ज़कात की रक़म बिलकुल इस्तेमाल में नहीं लायी जाती। 

आज वक़्त न फ़ुज़ूल बहस मुबाहसे का है का है , न दूसरों पर कीचड  उछलने का। दो साल के लॉक डाउन के दौर ने अच्छे अच्छों की हिम्मतें तोड़ दी है। हालात सख़्त हैं। इक़रा खानदेश फाउंडेशन के अकाउंट में सिर्फ ४० हज़ार रूपये बैलेंस है।  १० से ज़ियादा एप्लीकेशन आये हैं और IKF किसी को मायूस नहीं करना चाहता है। आप सभी IKF मेंबर्स से मौदेबाना गुज़ारिश है के IKF की मदद के लिए आगे बढे। रिश्तेदारों के बच्चों के मुस्तक़बिल के लिए दिल खोल कर IKF केअकाउंट में डोनेशन जमा कराये । 






सोमवार, 12 सितंबर 2022

JALGAON PROGRAME

 शकिलोद्दिन  सर ,मोहमद जहांगीर ,साकिब अली ,कफील अहमद 

कुछ गुमनाम सिपाही ऐसे होते हैं जिन का खून फ़तेह में शामिल होता है मगर मफ़्तूह (जीता हुवे  ) किले की दीवारों पर जिन का नाम नहीं आ पता। 

जलगाव्  यूनिट के सिपाह सालार जनाब रिज़वान जहागिरदार की क़यादत में ११ सितम्बर को जलगाव प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम जिस खुश असलूबी से Organize किया गया ,दिल की गहराईओं से वाह  निकल पड़ी। मुंबई में इतने पप्रोग्राम Organize किये ,attend किये उन सब से बढ़ कर इस प्रोग्राम को पाया। 

उन से ज़रूर मिलना सलीक़े के लोग हैं 

किसी भी प्रोग्राम की कामयाबी उस organization के foot soldiers (ज़मीनी सतह ) पर काम करने वालों की अरक रेज़ी ,जाँफ़िषानी ,और dedication का नतीजा, होती है। हम सब सलाम करते हैं कफील अहमद ,शकिलोद्दिन सर ,मोहमद जहांगीर ,साकिब अली और जनाब रिज़वान जहाँगीरदार की काविशों को ,इन साहबान की दिन रात की मेहनतों का नतीजा है  ,जलगाव्  prize distribution प्रोग्राम इस कामयाबी से ऑर्गेनिसे किया गया। 

घर को जाने वाले रस्ते अच्छे लगते हैं 

दिल को दर्द पुराने अच्छे लगते हैं 

फूल नगर में रहने वालों आकर देखो 

अपने घर के कांटे अच्छे लगते हैं 

अपने वतन में आयी तबदीली को देख कर ख़ुशी हुयी। बच्चे ,बच्चियां तालीम में तर्कियों की बुलंदियों को छू रहे हैं। 

हम भी अब किसी समाज से डिसिप्लिन में काम नहीं। तर्रकी की यही रफ़्तार रही तो रिश्तेदारी इंशाअल्लाह आसमान को छू लेंगी। 

क्या हम सब ख़ानदान वाले हज़रत शाह वाजिहुद्दीन गुजरती और बाजन शाह बूरहानपूरी  के शिजरे से नहीं जुड़े हैं ? काश हम अपने बुज़र्गों के हलाते ज़िन्दगी से वाक़िफ़ होते। 

शाह वाजिहुद्दीन २३ साल की उम्र से दरस व तदरीस (teaching ) पेशे से जुड़े थे। अपनी आखरी साँस तक इल्म की रौशनी फैलते रहें। आपके मदरसे में  तमाम हिंदुस्तान के इलावा यमन ,सऊदी,बहरीन और middle east से students पढ़ने के लिए आते और इल्म की दौलत से माला माल होकर लौटते । कहा जाता है आज भी मदरसों में उनका syllabus मामूली तब्दीलियों के साथ पढ़ाया जा रहा है। काश हमारे इन अजदाद की किताब हर घर में छाप कर तक़सीम की जाती, जिन का सिलसिलये नसब हज़रात अली तक पहुँचता है। 

हमारे एक दोस्त ने मुंबई यूनिवर्सिटी से हज़रात बाजन  शाह पर थीसिस लिख कर डॉक्ट्रेट भी मिलायी है। 

आये, हम ९००० (family tree  latest figure ) से जुड़े  ख़ानदान के अफ़राद एक प्लेटफार्म पे जमा होकर खुलूस ,नेक नियति से एक दूसरे के ग़म ख़ुशी में शरीक हो। बच्चों की तालीम ,मुलाज़मत ,कारोबार ,रिश्तों के लिए जरिया बने। आमीन सुम्मा आमीन। 

जलगाव् तक़सीमे इनामात प्रोग्राम की कामयाबी पर लिखा गया ब्लॉग ( ब्लॉग लिंक ragibahme.blogspot.com )