दाएं से बाएं जोए अंसारी ,ऐजाज़ सिद्दीकी ,कृष्णा चंद्र ,जान निसार अख्तर |
मरहूम अल्हाज ज़ैनुलआबेदीन की एक यादगार तस्वीर |
ब्रूक बांड के स्टार सेल्समैन ऑफ़ द इयर १ किलो की सिल्वर ट्रॉफी इनाम |
सब कहां कुछ लाला व गुल में नुमायां होगयी
ग़ालिब
दाएं से बाएं जोए अंसारी ,ऐजाज़ सिद्दीकी ,कृष्णा चंद्र ,जान निसार अख्तर |
मरहूम अल्हाज ज़ैनुलआबेदीन की एक यादगार तस्वीर |
ब्रूक बांड के स्टार सेल्समैन ऑफ़ द इयर १ किलो की सिल्वर ट्रॉफी इनाम |
इंदिरा गाँधी का इस्तकबाल करते मरहूम अफ्ज़लोद्दीन |
मरहूम वसीम और अफ़ज़लोद्दीन सय्यद मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी की गुल पोशी करते हुवे |
आसिया बेगम ,सईद अहमद ,अफ्ज़लोद्दीन,ग़ुलाम मोहियुद्दीन |
वालिद का नाम :इकरामुद्दीन सैय्यद ,वालिदा का नाम :मुमताज़ बी
बीवी का नाम : आसिया बेगम
भाइयों के नाम : ग़ुलाम मोहियुद्दीन सैय्यद ,मोहम्मद युसूफ सैय्यद ,सईद अहमद सैय्यद
बहनो के नाम : बिस्मिल्ला बी ,जीलानी बी ,अकीला बी
दुआ देती है राहें आज तक मुझ आबला पॉ को
मेरी पैरों की गुलकारी बियाबां से चमन तक है
हिंदुस्तान में आज़ादी की जंग उरूज पर थी १९४२/१९४३ में मरहूम अफ्ज़लोद्दीन ने नंदुरबार से मेट्रिक का इम्तेहान पास किया। बिस्मिल्ला सर जो अंजुमन इस्लाम मुंबई में टीचर रिटायर हुए ,कई साल हॉस्टल SUPRINTENDENT का काम भी अंजाम दिया , नंदुरबार से belong करते है बताते है के मरहूम अफ़ज़लुद्दीन सय्यद नंदुरबार की अली साहेब मोहल्ले की छोटी खानकाह की मस्जिद में बैठ कर मैट्रिक की पढ़ाई किया करते थे। मरहूम ने मैट्रिक के बाद prohibition department से अपने career की शुरुवात की। कई दिन तक मरहूम की शाहदे में पोस्टिंग भी रही।
जिस दिन चला हु मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा ।
गवर्नमेंट की नौकरी छोड़ कर मरहूम ने भड़भूँजा में छोटी सी चंद झोपडो पर आबाद आदिवासियों की बस्ती जो चारों तरफ से से जंगल से घिरी थी ,रातों को शेर दहाड़ते, अपनी शरीक हयात आसिया बी जो पचास साल मरहूम के दुःख सुख में शरीक रही ,छोटा सा घर बनाकर , पड़ोस में दुकान की बुनियाद डाली। भड़भूँजा रेलवे स्टेशन ४० मीटर घर से दुरी पर था। सूरत भुसावल कुल चार पैसेंजर ट्रैनस का halt था। रेलवे के लिए टिकटिंग एजेंट बने। बीज दाल कर दरख्त की आबयारी करने लगे। भाइयों की सूरत में दो ( ग़ुलाम मोहियद्दिन ,सईद अहमद )सिपहसालार मयस्सर हुवे।
में अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर
लोग आते गए और कारवां बनता गया
मरहूम अफ्ज़लोद्दीन उर्फ़ लाला मिया कई ख़ूबीयों को अपने किरदार में समेटे हुवे थे। ख़ूबरू , संग मर मर की तरह सफ़ेद रंग ,कद भी निकलता ,नीली आँखों में शफ़क़त झलकती। आवाज़ में बला का जादू था। ज़िन्दगी भर कॉंग्रेसी रहे। पार्टी की जड़े निज़र ,उछल ,व्यारा सुरत ज़िले में मज़बूत की। एक सिपाही की तरह अपने आप को पार्टी के लिए वक़्फ़ कर दिया था। कांग्रेस पार्टी के उस वक़्त के गुजरात पार्टी के प्रेजिडेंट जीना भाई दर्ज़ी से उनका याराना था। MLA /MP इलेक्शन के लिए टिकट की तक़सीम के वक़्त उनेह खास तौर पर बुलाया जाता। इलेकशन के लिए बड़ी बड़ी RALLIES में उनेह इंदिरा गाँधी ,मुख्यमंत्री के साथ स्टेज पर बिठाया जाता ,लोग बड़े ग़ौर से उनको सुनते। सारे गुजरात में वह तापी के गाँधी के नाम से जाने जाते। उस समय की प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ,मुख्या मंत्री चिमन भाई पटेल ,माधव सिंह सोलंकी ,अमर सिंह चौधरी ,बाबू भाई पटेल उनेह नाम से जानते थे। उनकी इन खिदमात पर उनेह पार्टी ने नवाज़ा भी बहुत। उनपर बिना मांगे ओहदों की बरसात होती रही जैसे।
१) तालुका पंचायत प्रमुख
२)वाईस प्रेजिडेंट कांग्रेस गुजरात स्टेट
३ )मेंबर हज कमेटी गुजरात
४)सरपंच भड़भूँजा
उनकी सिफारिश पर कई लोगों को सरकारी नौकरी मिली। उनकी एक चिठ्ठी पर लोगोके ट्रांसफर ,तरक़्क़ी होजाया करती थी। भड़भूँजे में इलेक्ट्रिसिटी उन्ही की बदौलत आयी। सूरत भुसावल फ़ास्ट उनके recommendation पर भड़भूँजे में halt करने लगा। अनंतपुर ,खेकड़ा ,जमकी आश्रम स्कूल्ज में फण्ड उनकी कोशिशों से आता था। आज आदिवासियों के बच्चें इनिह आश्रम शालाओं से पढ़ कर एयर इंडिया ,और गवर्नमेंट में सेक्रेटरी ,अंडर सेक्रेटरी की पोस्ट पर काम कर रहे है।
मरहूम की कोई औलाद न थी पर अपने भतीजो भांजो पर अपनी सारी मोहब्बत नौछावर कर दी। १९६४ में अपने छोटे भाई सईद अहमद और भांजे सादिक़ अहमद को बॉम्बे के इस्माइल युसूफ कॉलेज में ,इंटर में admission के लिए उनके साथ बॉम्बे गए एडमिशन करवाया ,हॉस्टल में भी दाखला कराके लौटे। डॉ वासिफ को वर्धा मेडिकल में एडमिशन मिलने पर कदम कदम पर उनकी मदद की ,माली इम्दाद करते रहे। डॉ राजेंद्र भंडारकर को भड़भूँजा में dispensary चलाने के लिए जगह provide की और उनकी हर मुमकिन मदद की। डॉ साहेब ने भी आखरी उम्र में मरहूम की बेटे की तरह खिदमत की।
मरहूम अफ्ज़लोद्दीन की ज़िन्दगी बड़ी disciplined थी। सुबह उठकर फजर के बाद वाकिंग करते। सुबह नौकर कुवें से ताज़ा ताज़ा पानी ले आता, उसे पीकर दिन की शुरुवात करते। नाश्ते के बाद अपनी डायरी खोल कर दिन के प्रोग्राम देख लेते। घर ही में एक कमरे को ऑफिस बना रखा था ,मुलाक़ातियोय का सिलसिला शुरू होजाता।गाँव के झगडे चुकाते । लोगो की परेशानी सुन कर उसका हल बताते । लोगो के लिए सिफरेशात की चिट्टिया बना कर देते। लंच तक ये सिलसिला चलता रहता। इलेक्शन के मौसम में जो सिलसिला कभी थमता नहीं था। कई सौ तादाद में लोग मिलने आते। घर में खाना बनता ,न कोई होटल था घर में आसिया बेगम नौकरों की फ़ौज के साथ खाने के इंतेज़ाम में लगी रहती। कई कई चूलहो पर बड़ी बड़ी देगों ,तपेलो में खाना बनता। सौ लोगो के लिए खाना बनता अक्सर १५० लोग खा कर जाते। गुरदवारे की तरह हर दम लंगर जारी रहता ,चुलाह गर्म रहता।
उनके रुसूख़ जान पहचान से घर का कारोबार भी दिन ब दिन चमकता रहा। वैगन भर बाम्बू से भरे टट्टे अहमदाबाद रोज़ाना रवाना किये जाते। उकाई डैम से टनो मछी आती बास्केट में पैक कर कलकत्ता हावड़ा ट्रैन से रवाना की जाती। एक मेला सा लगा रहता, गहमा गहमी का आलम रहता। कई सौ लोगो को रोज़ी रोटी इस बदौलत मिलती।
जीते है शान से
मरहूम को अच्छी नस्ल के कुत्ते पलने का बहुत शौक़ था। घर में हमेश ब्लड होंड ,अल्सेशियन कुत्ता ज़रूर पाया जाता। घर के बाहेर राजदूत , बुलेट और हौंडा इम्पोर्टेड मोटर साइकिल पायी जाती
न सताइश की तमन्ना न सिले की परवाह
मरहूम की जिंदिगी उनके पहने खादी के बेदाग़ क़मीज़ो की तरह शफ़फ़ रही। तमाम उम्र खुलूस से लोगो की खिदमत करते रहे। १९८३ में अपनी अहलिया के साथ हज भी किया। आखरी उम्र में सियासत से किनारा कशी (रिटायरमेंट )कर ली थी। १९९५ तक भड़भूँजे में क़याम रहा। आदिवासियों को पानी दम कर के देते ,सांप बिछु के काटे का इलाज जानते थे। अपनी अहलिया आसिया बेगम की सेहत की खराबी की वजह से नवापुर में शिफ्ट होगये थे। १९९९ में अहलिया आसिया बेगम का इंतेक़ाल हुवा। २००१ में खुद ने भी इस जहाने फानी को अलविदा कहा ,नवापुर के बड़े क़ब्रस्तान में आराम फरमा है। अल्लाह मरहूम को जन्नत नसीब करे।
में ज़माने में चंद ख्वाब छोड़ आया था
उनके नक़्शे क़दम पर मोहसिन सईद अहमद सैय्यद मरहूम का भतीजा , सोनगढ़ में पत्रकार है और गुजरात में कांग्रेस पार्टी से जुड़ कर पार्टी को ज़िंदा करने की कोशिशों में लगा है। अल्लाह कामयाबी अता करे।
खुदा बख्शे बहुत सी खूबियां थी मरने वाले में
मरहूम सैयद मोहम्मद अब्बास |