गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

ढूंढ उजड़े हुवे लोगों में वफ़ा के मोती

दाएं से बाएं जोए अंसारी ,ऐजाज़ सिद्दीकी ,कृष्णा चंद्र ,जान निसार अख्तर 


मरहूम अल्हाज ज़ैनुलआबेदीन की एक यादगार तस्वीर 

                                             
ब्रूक बांड के स्टार सेल्समैन ऑफ़ द इयर १ किलो की सिल्वर ट्रॉफी इनाम 
नाम : अलहाज ज़ैनुलआबेदीन सैय्यद 
तारीख़े पैदाइश :११/०३/१९३५ (नवापुर ) , वफ़ात :०७/०४ २०१५ (नवापुर ) ,तालीम :  १९५५ में एंग्लो उर्दू स्कूल जलगांव से मेट्रिक पास किया था 
वालिद का नाम : मोहियुद्दीन सय्यद 
वालिदा का नाम : मुनीरा मोहियुद्दीन सैय्यद (उर्फ़ मुन्ना फुफु )
भाइयों के नाम :ज़ियाउद्दीन सैय्यद ,शरीफोद्दिन सैय्यद ,शहाबुद्दीन सैय्यद ,साजोद्दीन सैय्यद ,ख़ालिकोद्दिन सैय्यद 
बहनो के नाम :रज़िया क़मरुद्दीन मुंशी ,आसिया अफ्ज़लोदिन सैय्यद ,खालिदा शाफियूद्दीन शेख़ ,नसीम शराफ़त अली सैय्यद ,फरीदा गयासुद्दीन शेख़ 
सब कहां कुछ लाला व गुल में नुमायां होगयी 
ख़ाक में क्या सूरते होंगी के पिन्हा होगयी 
              ग़ालिब 
मरने के बाद कुछ लोग फूलों की शक्ल में नमूदार होजाते हैं। ये शेअर मरहूम ज़ैनुलआबेदीन पर सादिक़ आता है। 
ख़ूबरू ,६ फ़ीट क़द (HEIGHT ), झील सी गहरी नीली ऑंखें ,शफ़्फ़ाफ़ रंग ,मरऊब कर देने वाली आवाज़ ,उर्दू ज़बान माद्री ज़बान थी ,हिंदी ,मराठी ,ऐरानी ,गुजरती , आदिवासी (भील ) ज़बाने भी अहले ज़बान की तरह बोलते थे।
कितने वीरानो से गुज़रे हैं तो जन्नत पायी है 
सैंकड़ों कुर्बानिया दे कर ये नेमत पायी  है 
 भरे पुरे खानदान से belong करते थे। भाइयों में सब से बड़े थे। मिस्बाह अंजुम के बनाये शिजरे से पता चलता है के  वालिदा की जानिब से मरहूम का सिलसिला वाजिहुद्दीन गुजराती रह.अलैह तक पहुँचता था।  
मरहूम ज़ैनुलआबेदीन अपनी बड़ी बहन रज़िया मुंशी के साथ जलगांव में मेट्रिक करने  के लिए रहा करते। रिहाइश काटया फ़ैल में   मिर्ज़ा पान वाले के बग़ल में खानदेश साइकिल वाले के मकान में थी ।  जलगांव की मारूफ हस्ती ज़ाहिद देशमुख और मरहूम ज़ैनुलआबेदीन हम जमात (class mate ) थे। ज़ाहिद साहिब जब भी मरहूम का ज़िक्र करते ,कहा करते "ज़ैन बड़ा चुलबुला,खलंडरा ,स्टाइलिश  हुवा करता था , बेहतरीन आल राउंडर तो था ही क्रिकेट टीम की कैप्टनशिप भी किया करता था " उस ज़माने में मेट्रिक इम्तेहान के लिए बॉम्बे जाना पड़ता था ,दोनों ने साथ जाकर मेट्रिक का इम्तेहान पास किया  । मेट्रिक पास करने के बाद मरहूम ने कुछ अरसा अंजुमन इ खैरुल इस्लाम कुर्ला में टीचर का job भी किया। 
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं 
ब्रूक बांड कंपनी में जब मरहूम को सेल्स Department में इंटरव्यू के लिए बुलाया गया तो उनसे दो सवाल पूछे गए थे "ताज महल की तारीख और रूस के उस समय के president Khrushchev के नाम की स्पेलिंग ,उन के जवाब से ज़ियादा उनके confidence और उनके appearance से interview panel मातासिर हुवे थे। उनकी personality उनके language command देख कर उनेह शहादा Depot manager की पोस्ट ऑफर की गयी थी। उस समय multinational  company में जॉब मिलना Importance  रखता था। मरहूम को ब्रूक बांड कंपनी की चाय ((प्रोडक्ट्स ) को खेतीया ,प्रकाशा  ,धडगाव और सात पुड़ा के इलाक़े में प्रमोट करना था। कई सालो तक बैल गाड़ी ,जीप ,बस और ट्रक से गाँव गाँव घूम कर कंपनी के प्रो डक्ट्स रेड लेबल ,दो गुलाब CTC ,crushed चाय चप्पे चप्पे पर  मरहूम ने पहुंचा दी। sales promotion पर कई ट्रॉफीज उनेह इनाम में मिली। स्टार सेल्समेन ऑफ़ द ईयर  Award कई बार उनोहने अपने नाम किया।brook bond कंपनी ने bond motor cycle introduce की थी मेरे शौक़ को देखते हुवे मुझे गिफ्ट की थी।  एक बार उनेह Bangkok  जाने का मौका भी मिला था वो  किसी वजह से जा नहीं पाए। मरहूम को कंपनी की AGM में खास तोर पर बुलाया जाता  और felicitate किया जाता। मैं ने उनका नाम brook bond कंपनी की AGM report  मेंकई बार देखा है। 
उन से ज़रूर मिलना सलीक़े के लोग है 
मरहूम ज़ैनुलआबेदीन सैय्यद आला मिज़ाज रखते थे। लायंस क्लब के मेंबर हुवा करते थे। इक़बाल ,उर्दू शायरी, उर्दू अदब ,क़ौम में तालीम  और रोज़गार ,इन चीज़ों से उनेह बे इंतिहा लगाव था। मरहूम ने अपने दोस्तों प्रोफेसर खान सर, मेहमूद  साहेब Auditor  , इस्माइल साहेब ,गोरे मिया काज़ी के साथ मिल बज़्मे नौ की बुनियाद डाली। मुशायरे ,अदबी महफिलें मुनअक़िद किये  ,काज़ी चौक शहदा में लायबररि की बुनियाद डाली ,ढेर सारी शायरी और अदबी उर्दू किताबें फ्री पड़ने के लिए दी जाती थी। सर सैय्यद एजुकेशन सोसाइटी बना कर शाहदे में गर्ल स्कूल शुरू की गयी जो अब तक जारी है। मरहूम इस स्कूल कमिटी के खजांची थे ,कई दफा स्टाफ को अपने जेब से salary अदा करते। दूसरा अहम कदम जो शाहदे में उठाया था वो था सर सय्यद क्रेडिट क़ो ऑप सोसाइटी का क़याम ,क़ौम  में गरीबो को खुद कफील बनाने के लिए छोटे छोटे क़र्ज़ दे कर बिज़नेस शुरू करवाना ,अब भी सोसाइटी क़ायम है और लोग फायदा उठा रहे है। अपनी तीनो औलादो परवेज़ ,सुहैल और ऐजाज़ की भी मरहूम ने बेहतरीन तरबियत की तीनोको  graduation करवाया।  अपनी बेटी शगुफ्ता की दोनों बेटियों  (सना ,हिना )ने MBA किया तो मरहूम ख़ुशी से फूले नहीं समाये ,हर किसी से फख्र से इस बात का ज़िक्र करते थे। जीवन साथी अनीस खातून भी माशाल्लाह खुश अख़लाक़, मोह्ज़िब  ,बावफा,बाहया हर फन मौला थी। घर को जन्नत निशान बना रखा था। घर में इंग्लिश ,उर्दू अख़बार बाकायदगी से आते थे। शमा ,बीसवीं सदी ,खिलौना हर महीने बाकायदगी से खरीदा करते। 
 मरहूम की शाहदे में बड़ी इज़्ज़त थी ,सैय्यद साहेब चाय वाले के नाम से पुरे डिस्ट्रिक्ट में मशहूर थे। 
२००९ में  मरहूम ने अपनी अहलिया अनीस खातून  ,बेटे ऐजाज़ और साली साहेबा अदीबुनिस्सा के साथ हज का फ़रीज़ा भी अदा किया। 
नाशिमन पर नाशिमन इस तरह तामीर करता जा। 
अपने रिटायरमेंट की प्लानिंग भी मरहूम ज़ैनुलआबेदीन साहेब ने बड़ी खश उस्लूबी से की थी। धुलिये में  आशियाना कॉलोनी में अपने क़रीबी दोस्त मेहमूद Auditor  के मश्वरे पर घर भी बुक किया था बाद में फरोख्त कर दिया। जलगांव में brook bond colony में भी उनेह घर ऑफर किया गया था उनोहने नहीं खरीदा। शाहदे में भी मकान बनाने के लिए प्लाट खरीदा था फिर बेच दिया। 
पहुंची वही पे खाक जहाँ का खमीर था 
नवापुर में खेत भी खरीदा ,खूबसूरत अलग थलग मक़ाम पर अपना बांग्ला भी तामीर किया ,अपनी पसंद का आशियाना  नाम रखा और retirement के बाद पुरसुकूंन जिंदिगी गुज़ारी। हालाँकि नवापुर जैसे कारोबारी शहर को अपनी तबियत के मुनासिब नहीं पाया। बहुत  कोशिश की शहर में अदबी माहौल पैदा करने की लेकिन अंधों के शहर में शीशे का कारोबार मुमकिन ही नहीं। खुशकिस्म रहे  मौत के बाद अपने वालेदैन ,अहलिया ,भाइयों के दरमियान नवापुर के बड़े क़ब्रस्तान में आराम फरमा है ,शायद नवापुर में रिहाइश इख़्तियार करने का उनका यही मक़सद था। अल्लाह  मरहूम को जन्नतुल फिरदोस में आला मक़ाम आता करे। 
ज़र्रा समझ के यु न मिला खाक में मुझे 
ऐ आसमान मै भी कभी आफ़ताब था 

बुधवार, 21 अक्टूबर 2020

बिछड़े सभी बारी बारी





इंदिरा गाँधी का इस्तकबाल करते मरहूम अफ्ज़लोद्दीन 

मरहूम वसीम और अफ़ज़लोद्दीन  सय्यद मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी की गुल पोशी करते हुवे 
आसिया बेगम ,सईद अहमद ,अफ्ज़लोद्दीन,ग़ुलाम मोहियुद्दीन 

नाम :  हाजीअफ्ज़लोद्दीन सैय्यद  (उर्फ़ लाला मिया ,बापू ,सैय्यद साहेब भड़भूँजा वाले ,तापी के गाँधी )
तारीखे पैदाईश : १९२५ , तारीखे वफ़ात :  १४ -११-२००१  (नवापुर ) 

वालिद का नाम :इकरामुद्दीन सैय्यद ,वालिदा का नाम :मुमताज़ बी 

बीवी का नाम : आसिया बेगम 

भाइयों के नाम : ग़ुलाम मोहियुद्दीन सैय्यद ,मोहम्मद युसूफ सैय्यद ,सईद अहमद सैय्यद 

बहनो के नाम : बिस्मिल्ला बी ,जीलानी बी ,अकीला बी 

दुआ देती है राहें आज तक मुझ आबला पॉ को  

मेरी पैरों की गुलकारी बियाबां से चमन तक है 

हिंदुस्तान में आज़ादी की जंग उरूज पर थी १९४२/१९४३ में  मरहूम अफ्ज़लोद्दीन ने नंदुरबार से मेट्रिक  का इम्तेहान पास किया। बिस्मिल्ला सर जो अंजुमन इस्लाम मुंबई में टीचर रिटायर हुए ,कई साल हॉस्टल SUPRINTENDENT का काम भी अंजाम दिया , नंदुरबार से belong करते है बताते है के मरहूम अफ़ज़लुद्दीन सय्यद नंदुरबार की अली साहेब मोहल्ले की छोटी खानकाह की मस्जिद में बैठ कर मैट्रिक की पढ़ाई किया करते थे। मरहूम ने मैट्रिक के बाद prohibition department से अपने career की शुरुवात की। कई दिन तक मरहूम की शाहदे में पोस्टिंग  भी रही। 

जिस दिन चला हु मेरी मंज़िल पे नज़र है 

आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा  । 

गवर्नमेंट की नौकरी छोड़ कर मरहूम ने भड़भूँजा में छोटी सी चंद झोपडो पर आबाद आदिवासियों की बस्ती जो चारों तरफ से से जंगल से घिरी थी ,रातों को शेर दहाड़ते, अपनी शरीक हयात आसिया बी जो पचास साल मरहूम के दुःख सुख में शरीक रही ,छोटा सा घर बनाकर , पड़ोस में दुकान की बुनियाद डाली। भड़भूँजा रेलवे स्टेशन ४० मीटर घर से दुरी पर था। सूरत भुसावल कुल चार पैसेंजर ट्रैनस का halt था।  रेलवे के लिए टिकटिंग एजेंट बने। बीज दाल कर दरख्त की आबयारी करने लगे। भाइयों  की सूरत में दो ( ग़ुलाम मोहियद्दिन ,सईद अहमद )सिपहसालार मयस्सर हुवे।

में अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर 

लोग आते गए और कारवां बनता गया 

मरहूम अफ्ज़लोद्दीन उर्फ़ लाला मिया कई ख़ूबीयों  को अपने किरदार में समेटे हुवे थे। ख़ूबरू , संग मर मर की तरह  सफ़ेद रंग ,कद भी निकलता ,नीली आँखों में शफ़क़त झलकती। आवाज़ में बला का जादू था। ज़िन्दगी भर कॉंग्रेसी रहे। पार्टी की जड़े  निज़र ,उछल ,व्यारा सुरत ज़िले में मज़बूत की। एक सिपाही की तरह अपने आप को पार्टी के लिए वक़्फ़ कर दिया था। कांग्रेस पार्टी के उस वक़्त के  गुजरात पार्टी के प्रेजिडेंट जीना भाई दर्ज़ी से उनका याराना था। MLA /MP इलेक्शन के लिए टिकट की तक़सीम के वक़्त उनेह खास तौर पर बुलाया जाता। इलेकशन के लिए बड़ी बड़ी RALLIES में उनेह इंदिरा गाँधी ,मुख्यमंत्री के साथ स्टेज पर बिठाया जाता ,लोग बड़े ग़ौर से उनको सुनते। सारे गुजरात में वह तापी के गाँधी के नाम से जाने जाते। उस समय की प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ,मुख्या मंत्री चिमन भाई पटेल ,माधव सिंह सोलंकी ,अमर सिंह चौधरी ,बाबू भाई पटेल उनेह नाम से जानते थे। उनकी  इन खिदमात पर उनेह पार्टी ने नवाज़ा भी बहुत। उनपर बिना मांगे ओहदों की बरसात होती रही जैसे। 

१) तालुका पंचायत प्रमुख 

२)वाईस प्रेजिडेंट कांग्रेस गुजरात स्टेट 

३ )मेंबर हज कमेटी गुजरात

४)सरपंच भड़भूँजा 

उनकी सिफारिश पर कई लोगों को सरकारी नौकरी मिली। उनकी एक चिठ्ठी पर लोगोके ट्रांसफर ,तरक़्क़ी  होजाया करती थी। भड़भूँजे में इलेक्ट्रिसिटी उन्ही की बदौलत आयी। सूरत भुसावल फ़ास्ट उनके recommendation पर भड़भूँजे में halt करने लगा। अनंतपुर ,खेकड़ा ,जमकी आश्रम स्कूल्ज में फण्ड उनकी  कोशिशों से आता था। आज आदिवासियों के बच्चें इनिह आश्रम शालाओं से पढ़ कर एयर इंडिया ,और गवर्नमेंट में सेक्रेटरी ,अंडर सेक्रेटरी की पोस्ट पर काम कर रहे है। 

मरहूम की कोई औलाद न थी पर अपने भतीजो भांजो पर अपनी सारी मोहब्बत नौछावर कर दी। १९६४ में अपने छोटे भाई सईद  अहमद और भांजे सादिक़ अहमद को बॉम्बे के इस्माइल युसूफ  कॉलेज में ,इंटर में admission के लिए उनके साथ बॉम्बे गए एडमिशन करवाया ,हॉस्टल में भी दाखला कराके  लौटे। डॉ वासिफ को वर्धा मेडिकल में एडमिशन मिलने पर कदम कदम पर उनकी मदद की ,माली इम्दाद करते रहे। डॉ राजेंद्र भंडारकर को भड़भूँजा में  dispensary चलाने के लिए जगह provide की और  उनकी हर मुमकिन मदद की।  डॉ साहेब ने भी आखरी उम्र में मरहूम की बेटे की तरह खिदमत की। 

मरहूम अफ्ज़लोद्दीन की ज़िन्दगी बड़ी disciplined थी। सुबह उठकर फजर के बाद वाकिंग करते। सुबह नौकर कुवें से ताज़ा ताज़ा पानी ले आता, उसे पीकर दिन की शुरुवात करते। नाश्ते के  बाद अपनी डायरी खोल कर दिन के प्रोग्राम देख लेते। घर ही में एक कमरे को ऑफिस बना रखा था ,मुलाक़ातियोय का सिलसिला शुरू होजाता।गाँव  के झगडे चुकाते । लोगो की परेशानी सुन कर उसका हल बताते । लोगो के लिए सिफरेशात की चिट्टिया बना कर देते। लंच तक ये सिलसिला चलता रहता। इलेक्शन के मौसम में जो सिलसिला कभी थमता नहीं था। कई सौ तादाद में लोग मिलने आते। घर में खाना बनता ,न कोई होटल था घर में आसिया बेगम नौकरों की फ़ौज के साथ खाने के इंतेज़ाम में लगी रहती। कई कई चूलहो पर बड़ी बड़ी देगों ,तपेलो में खाना बनता। सौ लोगो के लिए खाना बनता अक्सर १५० लोग खा कर जाते। गुरदवारे की तरह हर दम  लंगर जारी रहता ,चुलाह गर्म रहता। 

उनके रुसूख़ जान पहचान से घर का कारोबार भी दिन ब दिन चमकता रहा। वैगन  भर बाम्बू  से भरे टट्टे अहमदाबाद रोज़ाना रवाना किये जाते। उकाई डैम से टनो मछी आती बास्केट में पैक कर कलकत्ता हावड़ा ट्रैन से रवाना की जाती। एक मेला सा लगा रहता, गहमा गहमी का आलम रहता। कई सौ लोगो को रोज़ी रोटी इस बदौलत मिलती। 

जीते है शान से 

मरहूम को अच्छी नस्ल के कुत्ते पलने का बहुत शौक़ था। घर में हमेश ब्लड होंड ,अल्सेशियन कुत्ता ज़रूर पाया जाता। घर के बाहेर राजदूत , बुलेट और हौंडा इम्पोर्टेड मोटर साइकिल पायी जाती 

न सताइश की तमन्ना न सिले की परवाह 

मरहूम की जिंदिगी उनके पहने खादी के बेदाग़ क़मीज़ो की तरह शफ़फ़ रही। तमाम उम्र खुलूस से लोगो की खिदमत करते रहे। १९८३ में अपनी अहलिया के साथ हज भी किया। आखरी उम्र में सियासत से किनारा कशी (रिटायरमेंट )कर ली थी। १९९५ तक भड़भूँजे में क़याम रहा। आदिवासियों को पानी दम कर के देते ,सांप बिछु के काटे का इलाज जानते थे। अपनी अहलिया आसिया बेगम की सेहत की खराबी की वजह से नवापुर में शिफ्ट होगये थे। १९९९ में अहलिया  आसिया बेगम का इंतेक़ाल हुवा। २००१ में खुद ने भी इस जहाने फानी को अलविदा कहा ,नवापुर के बड़े क़ब्रस्तान में आराम फरमा है। अल्लाह  मरहूम को जन्नत नसीब करे। 

में ज़माने में चंद  ख्वाब छोड़ आया था  

उनके नक़्शे क़दम पर मोहसिन सईद अहमद सैय्यद मरहूम का भतीजा , सोनगढ़ में पत्रकार है और गुजरात में कांग्रेस पार्टी से जुड़ कर पार्टी को ज़िंदा करने की कोशिशों में लगा है। अल्लाह कामयाबी अता करे। 


हज से वापसी पर रागिब अहमद इस्तिक़बाल करते हुवे 

शनिवार, 17 अक्टूबर 2020

khuda bakhshe bahut see khubiya thi marne wale me

                                                              खुदा बख्शे बहुत सी खूबियां थी मरने वाले में



मरहूम सैयद मोहम्मद अब्बास 
नाम : सैयद मोहम्मद अब्बास 
तारीखे पैदाइश : ३०/१०/१९४७ (सीतामढ़ी बिहार ) 
तारीखे वफ़ात :०९/१०/२०२० (२१ सफर १४४२) (नेरुल ) 

रात की झील में कंकर सा कोई फ़ेंक गया 
 दायरे दर्द के बनने लगे तन्हाई में 
 मरहूम सैय्यद अब्बास को अली एम शम्सी अब्बास अलमदार (torch bearer ) के नाम से पुकारते थे। १९९८/१९९९ में हमारे राब्ते (touch ) में आये और हमारे बड़े भाई की तरह कुर्बत हासिल करली। हमारे ख़ानदान का वो हिस्सा बन गये,हमारे चार भाइयों में पाँचवें की जगह ले ली। हमारे तमाम बच्चों के  हरदिल अज़ीज़ (favorite) अब्बास अंकल हो गये। शुरवात में मस्जिद के करीब NL -२/३ में किराये पर रहते थे। फिर हालिया मकान NL -६ को  खरीद कर मुस्तक़िल रिहाइश (permanent residence )  इख़्तियार कर ली। हमेशा रहे मस्जिद के आस पा ही। 
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार 
नज़रों में जज़्ब हो गये दिल में उतर गये 
 मरहूम अब्बास भाई मियाना क़द (average height),चेहरे पर मंद मंद मुस्कराहट उनकी शख़्सियत का हिस्सा थी ,चाल में विकार ,हमेशा धीमे लहजे में गफ्तगु करते ,नरम मिज़ाज , बात चीत में बहुत कम लफ़्ज खर्च करते। मरहूम का तकिया कलाम "बाबू "हुवा करता था।  पान खाने के बे हद शौक़ीन थे। 
कुछ इस तरह से तै की है हम ने अपनी मज़िलें 
गिर पड़े, गिर के उठे ,उठ के चले भाभी से 
 मरहूम सैय्यद अब्बास ने सीतामढ़ी बिहार से schooling पूरी करने के बाद इराक का रुख किया। Civil Construction Supervisor की हैसियत से कई साल बग़दाद इराक में गुज़ारे। इराक से लौटने के बाद ९० की दहाई में नेरुल की सरज़मींन को अपनी कर्म भूमि बनाया और यही की खाक में पैवस्त हुवे। शुरू शुरू में B.G Shirke कंपनी के साथ जुड़े NRI Complex नेरुल की कंस्ट्रक्शन में बहैसियत supervisor काम किया। फिर B.G Shirke कंपनी को  कई साल कंस्ट्रक्शन मटेरियल सप्लाई का काम किया। खुद की प्लाई की दूकान शिरोने गाव में चलायी। साथ साथ अपनी दोनों औलादो तनवीर और रिज़वान को MBA की education दिलवाई। दस साल पहले छोटे बेटे रिज़वान की अचानक हादसे में मौत होगयी थी, मरहूम अब्बास भाई कुछ अरसा सोगवार रहे। रिज़वान के इंतेक़ाल के कुछ रोज़ बाद उसका  MBA का declare हुवा था मुझ से मिलकर बड़े जज़्बाती अंदाज़ में रोते हुवे कहा था "बाबू रिज़वान MBA पास होगया"। उनकी ऑंखें छलकी हुवी थी सर फख्र से ऊँचा होगया था। ज़िन्दगी से हार नहीं मानी फिर उठ खड़े हुवे थे, हावरे माल में ऑफिस किराये पर ले कर प्लाट खरीद फरोख्त का काम शुरू किया था । 
मरहूम  अब्बास भाई को भाबी से बेइंतिहा मोहब्बत थी। अपनी बहु सबा को बेटी की तरह चाहा और उसने भी बेटी से बढ़ कर खिदमत की। अपने पोते अयान और पोती आफ़िया को स्कूल छोड़ने और लाने की ज़िमेदारी अपने सर ले रखी थी। तीन साल पहले बच्चों को स्कूल छोड़ कर घर लौटते हुवे उनका स्कूल बस से मस्जिद के करीब एक्सीडेंट भी होगया था।  
मरहूम मरकज़े फलाह नेरुल की बुनियाद से इंतेक़ाल से २ साल पहले तक  मरकज़े फलाह कमिटी  के मेंबर रहे। मरकज़ के कामो में वह दिलो जान से शामिल होते। ईदुल फ़ित्र ,ईदुल दुहा नमाज़ों का एहतेमाम मरकज़ की जानिब से यशवंत राव ओपन ग्राउंड में कई सालों से किया जाता रहा है। मरहूम अब्बास भाई ईद से ८ या १० दिन पहले, मज़दूरों  की फ़ौज लेकर ग्राउंड में पहुँच जाते ,मैदान की सफाई ,गड्डों का भरना ,मंडप के लिए बाम्बू लकड़ों का इंतेज़ाम अपने ज़िम्मे ले रखा था। फिर कुर्बानी का इंतेज़ाम ,ज़रूरतमंदो में क़ुर्बानी गोश्त तक़सीम करने की ज़िम्मेदारी भी अपने सर ले रखी थी। अपनी कुर्बानी सब से आखिर में करवाते। रोज़ा इफ्तार के प्रोग्राम में बाद चढ़ के हिस्सा लेते। मरकज़े फलाह की AGM में खाने का इंतज़ाम मरहूम करते।  लोगों को खाना अपने हातों से परोसने में उनेह दिली ख़ुशी मिलती। खुद sugar की शिकायत थी ,फिर भी सब से आखिर में खाना खाते  थे। मरकज़े फलाह की Identified Families को बीस साल  पहले ढूंढ निकल कर उनकी लिस्ट बनाने में मरहूम सादिक़ भाई ,मरहूम अब्बास भाई ,फिरोज चौगले और डॉ फ़ारुक़ उल जमा ने बड़ी मेहनत  की थी। आज बीस साल बाद क़ौम के २०० बच्चे  मरकज़े फलाह की मदद से ऊँची तालीम हासिल करके बड़ी बड़ी पोस्ट पर काम कर  वह क़ौम का क़ीमती सरमाया बन गए हैं ,बरसरे रोज़गार होगये है। यक़ीनन ये मारहुम अब्बास भाई की खुलूस भरी कोशिशों का नतीजा है। अल्लाह इस कारे खैर की बरकत से उम्मीद है उनके दरजात इंशाल्लाह बुलुंद करेंगा   ,जन्नते फिरदौस में आला मुक़ाम आता करेंगा। मरहूम तफ़्सीर क़ुरान की बा बरकत महफिलों में भी बाकायदगी से शरीक होते थे ,नाश्ते का इंतेज़ाम उजाला होटल से करते। खुशकिस्मत है अपने उन तफ़्सीरे क़ुरान के साथीयो  मरहूम सादिक़ भाई ,मरहूम शेह्ज़ाद खान ,मरहूम रफ़ीक अहमद मोदक के साथ नेरुल के सेक्टर २ के क़ब्रस्तान मेंआराम फरमा है ,पांचों वक़्त मस्जिद से अज़ान और नमाज़ों की आवाज़े रूह को सुकून बख्शती होगी ।
 मरहूम अब्बास भाई को पिछले तीन चार सालों से हिचकी का मर्ज़ होगया था। कई कई दिन लगातार हिचकी रुकने का नाम नहीं लेती थी। कई मर्तबा D .Y .Patil हॉस्पिटल में भी एडमिट हुए मर्ज़ लाइलाज रहा। कुछ दिन बाद हिचकी अपने आप बंद होजाती थी। आराम होजाता था। पिछले साल २०१९ ऑगस्ट में तीन चार रोज़ कोमा में रह कर  pacemaker लगा कर उठ खड़े हुवे। lock out के ६ महीने मरहूम के बड़े इत्मीनान से गुज़रे। अक्टूबर की शुरवात में मरहूम पर बे होशी तारी हुवी जुई नगर में Mangal Prabhu Hospital हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। जान बर न होसके। जुमे के मुबारक दिन इंतेक़ाल हुवा। खुशकिस्मत रहे अपने छोटे भाई इल्यास ,अपने फ़रज़न्द तनवीर जो इंतेक़ाल से एक दिन पहले बहरीन से इंडिया पहुंचे थे और अपने पोते अयान ने जनाज़े को कन्धा दिया। बाद नमाज़े असर नमाज़े जनाज़ ,तद्फीन सेक्टर २ नेरुल के क़ब्रस्तान में अमल में आयी। lock down के बावजूद १०० लोगों जनाज़े में शरीक रहे। अल्लाह मरहूम अब्बास भाई की मग़फ़ेरत करे घर वालों को सबरे जमील अता करे। 
मुठियों में खाक लेकर दोस्त आये वक़्त दफन 
ज़िंदगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे 

सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

sher Ali Sayed



मुझको मेरे बाद ज़माना ढूंढेगा 

मरहूम इंस्पेक्टट शेर अली सैय्यद 


British Delegation ke sath Marhum Inspector Sher Ali




नाम : शेर अली शौकत अली सय्यद 
जन्म तारीख : २९ ऑगस्ट १९५४ जलगांव 
वफ़ात (मौत) :१७ मोहर्रम १४२२ , २३ अप्रैल २००० (कुर्ला ,मुंबई )
वालिद का नाम : शौकत अली इज़्ज़त अली सैय्यद 
वालेदा का नाम  इलायत बी शौकत अली सैय्यद 
बीवी का नाम : रौशन शेर अली सैय्यद 
बच्चोँ के नाम : शहबाज़ शेरअली सैय्यद  ,साजिद अली शेर अली सैय्यद  , शाहीन समीर शेख़ (जलगांव )
भाई का नाम : लियाक़त अली शौकत अली सैय्यद 
बहने :१) शहज़ादी करीमुद्दीन शेख २) नियाज़ बेगम वजियोद्दीन सैयद  ३)हाजरा बी ख़ुश मुहम्मद शेख ४)लतीफा ज़हीरोद्दीन शेख़  ५)मैराज मेहफ़ूज़ अली सैय्यद ६) बिल्किस अहमदुद्दिन क़ाज़ी  ७)नाज़नीन मेहमूद अली सैय्यद ८) शबाना ज़ाकिर हुसैन सैय्यद 
शौकत और इज़्ज़त वाले घराने में शेर अली ही जन्म ले सकता है। बहुत लोग चांदी का चमचा मुँ में लिए पैदा होते हैं लेकिन बहुत लोगों को  अपना रास्ता खुद बनाना पड़ता है ,अपनी मंज़िल खुद तलाशनी पड़ती है। शेर अली भी उनमे का एक था। 
दुआ देती हैं राहें आज तक मुझ आबला पा को 
मेरे पैरों की गुलकारी बियाबान से चमन तक है 
 पूत के पाँव पालने  में ज़ज़र आजाते है ,शेर अली को स्कूल ही से उसकी लियाक़त देखते हुवे  पुलिस  वेलफेयर  फण्ड से स्कॉलरशिप मिलती थी। जलगांव से १९७१  में नूतन मराठी स्कूल से ,मेट्रिक में जलगांव ज़िले में टॉप करने के बाद ,एम्.जे जलगांव से कॉलेज में, बी.कॉम में टॉप करने पर लोकल पेपरों  में ये ख़बर भी छपी थी। पेपर में ये भी लिखा था के शेर अली सैय्यद ने  M.B .A  करने की ख्वाहिश ज़ाहिर की थी। लेकिन हालात मजबूरिया इंसान को बहुत से ख्वाब मुकम्मिल करने से रोक देते हैं। दिल्ली में  अपने NCC यूनिट के साथ आज़ादी  की परेड में शामिल होना उसके लिए एक नयी मंज़िल की तरफ इशारा कर रहा था। वालिद  हेड कांस्टेबल शौकत अली भी यही चाहते थे के वो पुलिस अफसर बने। बग़ैर किसी वसीले या रिश्वत के शेर अली काऑफिसर  पोस्ट के लिए सिलेक्शन होता  है और फिर, हर किसी  का नसीब कहाँ होता है के बॉम्बे जैसे शहर में पोस्टिंग मिले, लेकिन उनेह शुरू से बॉम्बे में पोस्टिंग मिली। 
मुलुंड ,तिलक नगर चेम्बूर ,कुर्ला , VT ,घाटकोपर पुलिस स्टेशन में अपनी उम्दा कारगरदागी दिखाई। उस ज़माने में शेर अली के पास खुद का कम्प्यूटर था। उनकी की FIR और रिपोर्ट राइटिंग पर सब अचरज किया करते। उस ज़माने में उनके सीनियर ऑफिसर्स उनका मशवरा लिया करते। ब्रिटिश गवर्नमेंट की तरफ से delegation आया था उनोहने investigation and surveillance techniques पर सेमिनार किया था शेर अली को मुंबई पुलिस की तरफ से शरीक होने का मौक़ा मिला था। 
अपने पर्सनल रिफरेन्स से शेर अली ने अपने क़रीबी दोस्त रागिब अहमद को अमेरिकन कंपनी यूनाइटेड कार्बन ठाणे  बेलापुर रोड पर  पहली नौकरी दिलवाई थी। ऐसी कई मिसाल हैं। लोगो की मदद करना उनके के खून में शामिल था। बी एम् पागड़ नाम के व्यक्ति को एक औरत ने रेप  के झूठे केस में उलझा दिया था ,उसको अपनी तरफ से वकील करके निर्दोष साबित करवाया था। गणेश नाम का एक व्यक्ति शेर अली की मौत के ४ साल बाद उनेह तलाश कर उनके घर जाकर उनकी मौत पर दुःख ज़ाहिर करता है और कहता है "मेरे घर में गौतम बुध और आंबेडकर के साथ साथ सैय्यद साहब की तस्वीर भी लगी है जिस की मैं रोज़ाना पूजा करता हूँ। जुर्म की दुनिया से उस आदमी गणेश को निकाल कर शेर अली ने समाज में इज़्ज़त का मुक़ाम दिलाया था । 
बहनों  की शादियां ,बच्चों की बिस्मिल्ला ,शेर अली ने बड़ी शान शौकत से की। कुछ लोगों की sixth sense बड़ा मज़बूत होता है ,कही न कही उनेह अहसास होगया था के वो मुख़्तसर (छोटी) ज़िन्दगी लेकर आये है और उनेह जल्दी जल्दी काम निपटानें है। 
 माँ बाप की खिदमत शेर अली ने बड़े खुलूस से की। अपने छोटे भाई लियाक़त को ज़िन्दगी भर अपने साथ रखा। उसके दोनों बच्चोँ से उनेह बेपनाह उनसियत थी। जब अपने बड़े बेटे शाहबाज़ का  12th का रिजल्ट आया था और उसे सोमैया कॉलेज में Admission  मिला था तब शेर अली को मानो  दुनिया भर की खुशियां मिली थी। 
हमेशा शेर अली का घर रिश्तेदारों से भरा होता। अपने दोस्तों की घर आमद पर खास खानदेशी खानो की दावत मरहूम करते । आखरी पोस्टिंग चेम्बूर स्टेशन में  सीनियर इंस्पेक्टर इंचार्ज की थी ,रहने के लिए कुर्ला  पुलिस स्टेशन के ऊपर ब्रिटिश क्वार्टर में लम्बा चौड़े मकान में रिहाइश थी। शायद अपने घर में आने वाले मेहमानो की सहूलत के लिए उनोहने ये मकान पसंद किया था। 
२३ अप्रैल २००० के रोज़  serious हादसे के बाद  शेर अली ने आखरी साँस ली (इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन )उसी रोज़ कुर्ला कसाई  वाड़ा कब्रस्तान में २१  रायफलों की सलामी बॉम्बे पुलिस की तरफ से दी गयी और इज़्ज़त से  (सुपर्दे खाक )दफ़न किया गया। 
उदास छोड़ गया वो हर एक  मौसम को 
गुलाब खिलते थे कल जिसके मुस्कुराने से 
वही अख़लाक़ वही आदते  शेर अली अपनी औलाद को विरासत में माशाल्लाह दे गया। शहबाज़  (बड़े बेटे )ने कड़ी मेहनत से merchant navy में  तरक़्की कर के captain के ओहदे तक अपने आप को पुहचाया। अपनी माँ  को हज करवाया ,साथ  साथ अपने अब्बा का हज्जे बदल भी अदा किया। दोनों अवलादो (शाहबाज़ और साजिद ) ने बड़ी सख़ी  तबियत पायी है। रिश्तेदारों का खास ख्याल रखते हैं। बीवी बच्चों के नेक अख़लाक़ सख़ावत दरयादिली का सिला ज़रूर अल्लाह ताला शेर अली के नामा -ए -आमाल में लिखेगा और उनकी  मग़फ़िरत का सबब इंशाल्लाह बनेगा। आमीन सुमा आमीन 
जाने वाले कभी नहीं आते 
जाने वालों की याद आती है