शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

मुसाफ़िर हूँ यारों (dedicated to Ausaf Uamani)

२४ जुलाई २०२०
हमारे ग्रूप को अतरंगी इस लिए कहा जाता है क्यूँकि इसने दुनिया भर के नमूने भरे हैं ।क्या आपने कभी सुना है के किसी को शैतान कहा जाता हो और वो ख़ुश होता हो ।उसके सामने आने पर लोग लाहौल पढ़ते हो और वो कहकहे लगाता हो ।lockdown के दरमियान लोग घरों में दुबक के बैठते है ,इनकी activities दोगुना होगायी है ।हाँ जनाब ऐसी अजीब व  ग़रीब शख़्सियत को लोग औसफ उसमनी के नाम से जानते है ।इत्तफ़ाक़न आज उनकी सालगिरह भी है ।इस ख़ूबसूरत मौक़े पर हम सब  की जानिब से दिल की गहराइयों से मुबारकबाद ।
२२ साल के लम्बे अरसे से में उन्हें जानता हूँ ।उनकी उम्र में अज़ाफ़ा तो हुआ है , अलहमदोलिलह हज  के बाद चहरें पर नूरानी दाढ़ी भी  निकल आयी है ।सर के बाल खिचड़ी होगाए है ,बालों में  चाँदी उतार आयी है ।उनके बचें जवान होगाए है ।लेकिन मिज़ाज दिन ब दिन बचपन की तरफ़ लौट रहा है ।
  मियाना क़द आँखों पर हमेशा क़ीमती चश्मा लगाये रखते हैं ।मोबाइल सालों से एक ही use  में है ,स्क्रीन पर खराशें पड़ चुकी है ,शायद तोहफ़े में भाभी या girl friend से मिला हो इसलिए इतना उनह अज़ीज़ है ।कपड़े मशल्लाह हमेशा branded पहनते है ।उर्दू दान ख़ानदान में जन्मे है ,उनके वॉलीद ,उर्दू दान पेशे से उस्ताद (teacher) थे ।शायद इसी मनासेबत से नाम  औसफ रखा गया हो।गाँव में उर्दू स्कूल से education की शुरुआत  की मुंबई आकर graduation तक मुकम्मिल  किया।
मंज़िल की है तलाश तो दामन जुनूँ का थाम
अपने career की शुरुआत FAB TECH से की ,कम्पनी को अपने ख़ूने जिगर से सींचा ।अब उनकी organisation छःतनावर दरखत बन चुकी है ।अब भी इसी मुस्तदी से कम्पनी की ज़ुल्फ़ें सवारने में मसरूफ है ।पहले बस ,train से सफ़र किया करते थे ,कभी कभी  नेरुल में नज़र आजाते थे ।अब माशल्लाह flght से सफ़र करने लगे है ।कभी दिल्ली तो कभी चंडीगढ़,कलकत्ता ,अहमदाबाद ,नेपाल ,भोपाल ,पूना सारा India जनाब के लिए घर आँगन हो गया है  ।सफ़र से लौट्ते ही head office या उमर गाम फ़ैक्टरी की दौड़ लगा आते है ।पता नहीं किस तरह इन मसरूफ़ियात के बावजूद भी दोस्तों के साथ मटर गश्ती का वक़्त  निकाल पाते है ।
हमें पता है हवा का मिज़ाज रखते हो 
उन की ज़िंदगी में एक चौकोर भाभी ,आमान ,अजमांन और अलीना जो उनकी ज़िंदगी का  मरकज़ है ।सभी से उन्हें बे पनाह 
मोहब्बत है लेकिन बकोल इश्तियाक़ खान “ पतेले में लगी खुरचन बहुत लज़ीज़ होती है “ की मिसाल अपनी अखरी औलाद अजमांन से ख़ास उंसियत है ।इसके अलावा भी उनोहने ज़िंदगी को कई खानोंमे बाँट रखा है ।बकायदगी से ahmed bhai होटेल के बहेर कुर्सियाँ बिछा कर दोस्तों की महफ़िलें सजाना ,यारों की बारात को कभी मोहम्मद अली रोड ,कभी भिवंडी ढाबा ,कभी माथेरान तो कभी डोंबिवली ढाबा लेजाकर चट पटे ख़ाने खिलाना ।social media पर video clips,शायरी ,jokes share करना ।सोशल कामों में शामिल होना ।बकोल Mansoor भाईं महाशय घरेलू अति क्रमण के लिए भी जाने जाते है ।सबसे छेड़ छाद करते रहते है ।लेकिन इश्तियाक़ भाई से पंगा नहीं लेते ।मान्सूर जेथाम ईंट का जवाब पथर से देते है।हामिद भाई थोड़े दब जाते है क्यूँकि उनकी जवानी बाँकपन में गुज़री है ।हरीश क़ुर्बानी का बकरा लेकिन वो भी अब चिकना घड़ा होगाया है ।एक बार अफ़सर इमाम ने घर नाश्ते की दावत पर बुला कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली ।अब तो आलम ये है जिस रास्ते से औसफ गुज़रते है उनकी परछाइbhi नहीं दिखयी देती।
एक चेहरे पे कई चहरे लगा लेते हैं लोग 
औसफ मैं तुम्हें बहुरूपिया तो नहीं कहूँगा ।आज के दौर में दोस्ती ,वफ़ा ,प्यार मोहब्बत लोंग इलायची की तरह नायाब होते जारहे हैं ।हँसी और मुस्कुराहट लोगों के होंटों से ग़ायब होती जारही है ।बिलावजह हर जगह टेन्शन का माहोल है ।आप अपनी मसरूफ़ियत के बावजूद लोगों के दुःख दर्द कम करके दोस्तों की जिंदगियों में इंद्र धनुष के रंग बिखेरने की कोशिश में लगे हो ।में तुम्हारी इन कोशिशों क़द्र करता हूँ सलाम करता हूँ ।
दुआ करता हूँ रब आपको सलामत रखे ।आख़िर में एक शेर नज़र है ।
जहाँ रहेंगा वहाँ रोशनी लुटाएँगा
किसी चिराग़ का अपना मकाँ नहीं होता 


मंगलवार, 21 जुलाई 2020

ज़िंदगी धूप तुम घना साया

२२ जुलाई २०२० 
सालगिरह के हसीन ख़ूबसूरत अवसर पर दिल की गहराइयों से मुबारकबाद । मोहतरमा शगूफता में जनता हूँ के औरत से उसकी उम्र और आदमी से उसकी salary कभी नहीं पूछनी चाहिए ।अल्लाह की मेहरबानी है हम दोनो maturity की age से आगे बढ़ चुके हैं लेकिन अब भी दिमाग़ जवानो की तरह active है ।
   तुम मेरे पास होते हो गोया 
   जब कोयी दूसरा नहीं होता 
   उर्दू के माशहूर poet (शायर) मोमिन खान मोमिन ने १५० साल पहले ये बात कही थी ।lock down के इस period में ये बात कितनी सच साबित होती है ।चार महीनो से हम एक दूसरे की शक्लें देखते रहे है लेकिन अलहमदोलिलह bore (बेज़ार) नहीं हुवे ।४ महीनो से तुम होटेल से भी जियादा लज़ीज़ खाने मुझे खिला रही हो ।काम वाली की ग़ैर हाजरी बड़ा बोझ  था ,बर्तन घर की सफ़ायी हम दोनो ने बाँट कर करली । hall का A/C परेशान कर रहा था ,fan की speed काम होगायी थी , में ने जुगाड़ कर ठीक कर लिया ,लेकिन घर में किसी को enter होने नहीं दिया।हमारी पूरी बिल्डिंग COVID Patient की वजह से रमज़ान के आख़री १५ रोज़ lock रही , यहाँ तक के सीढ़ियों और lift को भी municipal ने बामबू बाँध कर बंद कर दिया था ,ना सीड़ियों  से कोयी उतर सकता था न लिफ़्ट से , एक वहशत हू का आलम था , लेकिन अलहमदोलिलह हम घबरायें नहीं ।अब तो हमारे पड़ोस में  COVID का मरीज़ पाया गया है ।अल्लाह का क़दम क़दम पर साथ रहा , और ये भी सच है कि ,इंसान की सोच मज़बूत तो किसी भी तूफ़ान का सामना किया जा सकता है ।सोच कमज़ोर तो ,इंसान एक पुरानी बोसीदा (खंडर) इमारत की तरह ताश के पत्तों की तरह टूट कर बिखर जाता है ।   
ये कहके ज़िंदगी ने मेरे हौसले बढ़ाये हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साये है 
  ये दौर बहुत सख़्त है ।कहा जाता है ये महामारी १०० साल में एक बार आती है और अल्लाह दुनिया के लोगों का इम्तिहान लेता है ।lock down की बिना पर लोगों की कमायी ख़त्म होगायी है ।छोटे छोटे घरों में लोग बड़े बड़े ख़ानदान के साथ रहते हुवे लोग साँस लेने के लिए तरस गए है ।बचों का शोर ,उनकी पढ़ायीं ,बुज़र्गों की परेशनियाँ, बीमार होने पर ना available है न hospital, COVID ने तहलका मचाया है ,मौत की हैबतनाक ख़बरें, मंदिर ,मस्जिद ,गुरदवारें बंद ,mall और theatres पर lock, stadium में खेलों पर पाबंदी ।
जिस तरफ़ जाएएँ ज़ख़्मों के लगे है अंबार 
  ऐसे में रिश्तों में तल्खियाँ बढ़ रही है ,महोबतों के बीच दाराडे पद रही है ।उम्र रसीदाँ लोगों को torture किया जा रहा है ।wife husband के बीच कड़वाहट बढ़ रही है ।इस बीच ,help line पर लोगों के ज़ख़्मों पर मरहम लगाने की कोशिश सराही जानी चाहिये ।COVID के इस तूफ़ान से निकलने के पश्चात् बिगड़ी दुनिया को सवारने के लिए हम सब को तय्यार सतर्क रहने की ज़रूरत है ।

रविवार, 12 जुलाई 2020

ज़िन्दगी क्या है किताबों से निकल कर देखो

आज फिर दर्द के सेहरा (रेगिस्तान) से गुज़रना होंगा 
तारीख़ पे तारीख़ किसी ज़माने में कोर्ट की ज़बान हुवाँ करती थी ।आज जिसे देखो lock down की शिकायत कर रहा है ।कल क्या होंगा किसे ख़बर नहीं ।lockdown ७ के पश्चात क्या ,एक सवालिया निशान (question mark) है ।घर में बैठ कर हर कोयी बेज़ार , दिल शिकंन  ,उकता गया है ।
    क्या कभी हमने अपने अत्राफ (आस पास ) की चीज़ों ,माहोल पर ग़ौर व फ़िक्र किया ।कभी नहीं ज़िंदगी की भाग दौड़ ,मसरूफ़ियत ने इन बातों का मौक़ा हि कब दिया था।
सुबह होती थी शाम होती थी 
उम्र यू ही तमाम होती थी 
   Lockdown में पता चला सुबह (morning) की सुरूवात कोयल की कूक ,पपीहे की हुक से होती है ।फिर चिड़िया चहचहाना शुरू करती है ।फिर सोसाययटी में  कूछः लोग अपनी खिड़कियों से आनज के दाने ज़मीन पर बिखेर देते है ।कहाँ से एक कबूतरों का झुंड आकर इन पर टूट पड़ता है और मिनटों में सफ़ा चट कर जाते है ।फिर शुरू होती है कवों की काँय काँय ,बीच बीच में मीना की सुरीली आवाज़ ,wood picker की  तेज़ चींखें और कभी कभी तोतों का झुंड अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाते है ।सोसाययटी के काम्पाउंड में लगे जंगली फली के पेड़ पर उलटा लटक ,ख़ूबसूरती ,नफ़ासत से फली के दाने अलग करके अपनी भूँक मिटा कर रफ़ू चक्कर होजाते हैं ।आज तक मसरूफ शब व रोज़ ने ये मौक़ा ही नहीं फ़राहम किया ।चौधवीं का चाँद आसमान हर महीने आता था lock down में खिड़की से नज़ारा किया तो लगा इस ख़ामोशी इस चाँदनी को रूह में उतार लू।इसमें शराबोर हो कर इसे अपनी नस नस में उतार कर जज़्ब कर लू ।अंग्रेज़ों को sun bath करते देख ,हँसते थे तंज करते थे ।बेचारे सर्दी ,बर्फ़बारी से इतने बेज़ार होजाते है के मौक़ा मिलते ही सूरज की रोशनी को अपने जिस्म में जज़्ब करने के लिए बेताब हो उठते है ।lock down में अरसे बाद सूरज की रोशनी में नहाया तो महसूस हुवाँ की हम किन किन नेमतों को नज़र अन्दाज़ करते रहे है ।
धूप में निकलों घटावों में नहा कर देखों
ज़िंदगी क्या है किताबों से निकल कर देखों

रविवार, 5 जुलाई 2020

विल्लीयन के अड्डे

aaj un फ़िल्मों की यादें ताज़ा कर दी जिम में  ख़तरनाक शक्ल वाले Villians अपने ख़ूबसूरत den बनाकर ऐश में रहा करते थे ।शराब से सजी अलमरियाँ ,उमदाँ क़िस्म की शराब पिलाने के लिए ख़ूबसूरत लड़कियाँ जो साक़ी के फ़रायज अंजाम देती थी ।ताली बजाते ही रक़्स व सरूर की महफ़िल शुरू होजाती । automatic दरवाज़े जो remote से ऑपरेट हूवॉ करते ।फाँसी के फंदे ,बड़े बड़े cranes ।लपकते शोले ,आग से भरे दहकते अलाव ।फ़िल्म के आख़िर में सिर्फ़ एक बार इस den का use किया जाता ।फ़िल्म के हीरो की बहन ,heroin और माँ को अगवा (kidnap) करके villian के den पर , रस्सियों से खम्बों पर  बाँधा जाता ।हीरो को den पर बुलाया जाता ।शोलों आग से भरे गढ़े में उसे लटकाया जाता ।किसी तरह हीरो अपने आप को बचाता ,माँ ,बहन heroin को आज़ाद करवा कर इस den की मटी पलीद ,धज्जियाँ उड़ादी जाती ।
      बचपन में आलीबाबा चालीस चोर ,हातम ताई और अल्लाउद्दीन के जादुई चिराग़ पर बेशुमार फ़िल्मे देखी ।इन फ़िल्मों में heroin को den कि बजाय जादुई महेल में  जिन के द्वारा क़ैद  किया जाता था ।फ़िल्म का हीरो जान पर खेल कर heroin को आज़ाद करता था और तोता जिसमें जिन की जान क़ैद होती थी मार कर जिन का ख़ात्मा करता और audience की तालियाँ बटोरता ।
     फिर डाकुओं की फ़िल्मों का दौर (time) आया ।उजाड़ खंडरो , सुनसान रेगिस्तान, चट्टान के बीचोंबीच ,सुनसान इमारतों में डाकुओं के अड्डे होते ।मुझे जीने दो ,जिस देश में गंगा बहती है ,मेरा गाँव मेरा देश जैसी कई फ़िल्मे हमारी यादों में अब तक बसी हैं ।डाकू की ख़ौफ़नाक मूँछ होती ,दमदार आवाज़ लेकिन दिल मोम से ज़ियादाँ नर्म ।अमीरों की दौलत लूट कर ग़रीबों बाँट देना जिस की hobby होती ।खोटा सिक्का ,शोले के जैसे ज़ालिम गब्बर सिंग ख़ून के प्यासे डाकू जिन का बुरा अंजाम हीरो के हाथ होता ।बहुत बड़ा ड्रामा होता heroin को डाकुओं के सामने नाचना पड़ता ,बंदूके चलती , लाशें गिरती ,डाकू की लाश ख़ून में तर ब तर होती ,पोलिस भी वहाँ पहुँचती लेकिन डाकू के मरने के प्रति ।
   James Bond की फ़िल्मों ने हॉलीवुड में हंगामा बरपा कर दिया ।ख़ूबसूरत औरतों से घिरा villian अपने high tech den में बैठ कर दुनिया की तबाही के नक़्शे बनाता है ।उन फ़िल्मों को देख  कर अक़्ल हैरान परेशान होजाती थी ।ख़ूबसूरत beach ,swimming pool, helicopter chase, उड़ती कारें ।आख़िर में hero, villion के den को ढूँढ कर परखच्चे उड़ा देता है उसके ख़तरनाक मंसूबों को ख़ाक में मिल देता है ।Bollywood भी Hollywood से पीछे तो नहीं रह सकता था ।फ़र्ज़ फ़िल्म का वो ख़तरनाक villain जिस के फ़ौलादी हाथों से चिनगारियाँ निकलती थी ।जितेंद्र के हाथों उसिके den में मारा जाता ।शाकाल,Mogambo,dr Dang और उनके ख़ौफ़नाक इरादे , उनके latest gadgets से सजे den हीरो के हाथ से तबाही बर्बादी सरंजाम पाते हैं ।Mr India ,शान , शालिमार फ़िल्मे उनके लाजवाब villain के किरदारों के सबब उन्मित नकूश दिल पर छोड़ गए हैं ।