lockdown -4 day-2 (19th May -2020 )
लग रहा है लम्बी चौड़ी क़ैद में ज़िन्दगी गुज़र रही है। तीन ताले खुल चुके हैं। 18th may से 31st may तक चौथीं duration के लियें फिर से क़ैद की तारीखेँ बढ़ा दी गयी हैं। हमारी क़ैद तो और भी सख़्त है ,विघ्नहर सोसाइटी में covid का मरीज़ क्वारेंटीने किया गया। APMC में बिज़नेस था। 6th floor पर अपनी family के साथ १४ दिनों के लिए। हमें भी NMMC और पुलिस की तरफ से नोटिस मिली और पूरी A -6 wing को seal कर दिया गया है। हर दिन NMMC की team सोसाइटी को visit करती है। आज एक हफ्ता पूरा होजायेंगा। ७ दिन सख्त जेल की सज़ा काटनी बाक़ी है। खिड़की से झांक कर ठँडी आहेँ भर लेते है। भला हो सोसाइटी कमीटी का चार जवानो को volunteer बनाया गया है जो ज़रुरत का सामान घर बैठें पहुंचा देते हैं।
इतनी अरज़ां तो न थी दर्द की दौलत पहले (अरज़ां मतलब सस्ती ,बेहिसाब )
जिस तरफ़ जाइये ज़ख्मों के लगे हैँ अंबार (अम्बार मतलब ढ़ेर )
वतन लौटने वाले मज़दूरों की बे बसी देखी नहीं जाती। मुंबई ,गुजरात ,कर्नाटक से हज़ारों मज़दूर UP ,झारखंड ,बिहार ,बंगाल ,राजस्थान और उड़ीसा की जानिब क़ाफ़िलों की शक्ल में कूच कर रहे हैं। सर पर गठड़ी रखे ,माएँ बच्चों को घसीटते हुये। अजीब अजीब मंज़र देखने को मिल रहे है। ऑंखें नम होजाती है। मजबूर माँ ,मासूम बच्चें को wheel bag पर लिटा कर मीलों घसीटने पर मजबूर है। बाप दो नन्हे बच्चों को डंडे पर दो basket में उठाये श्रवण कुमार की तरह किलोमीटर पैदल चला जा रहा है। पैर में जूते नहीं ,भूक से बेहाल ,जेब में पैसे नहीं। पुलिस की मार भी खा रहे है। states की सरहद (boundries ) पर इन्हें रोका जा रहा है। औरतें रस्ते ,फोट्पाथ पर बच्चोँ को जन्म दे रही हैं। कुछ मज़दूरों ने घर पहुंचने से थोड़ी देर पहले ही सफर की सख्ती ,भूक ,और परेशानी से रस्ते में ही दम तोड़ दिया।
क़िस्मत तो देखिये जाकर टूटी कहाँ कमन्द
दो चार हाथ जब के लबे बाम रह गये
truck पर खड़े होकर जानवरों की तरह ७० मज़दूर हज़ारों मील का सफर करने पर मजबूर। घर गांव पहुंचने पर १४ दिनों तक क़ैद ,घर पर आकर घर से दूरी। ज़बरदस्ती COVID टेस्ट करने के लियें मजबूर होना पड़ा।
मोहबत के लिए कुछ खास दिल मख़सूस क्यों होंगें।
इसे अँधेरे में कई ऐसी कहानियां सुनने को मिल रही है ,लगता है इंसानियत ज़िंदा हैं। लोगों के दिलों में ईश्वर अल्लाह का नूर बाक़ी है। लोगों ने इन मजबूर लाचार मज़दूरों पर फूलों की बारिश तो नहीं की लेकिन highway पर जहाँ जहाँ से मजदूर गुज़रे स्थानिय आबादि ने उनेह पेट भर खाना खिलाया ,कुछ देर के लिए उन के आराम का बंदोबस्त किया। दवाएं ज़रूरी सामान देकर उनेह रुखसत किया। उन से दुवाएं ली ,उन को दुवाएं दी ,उनेह खुश खुश रुखसत किया। वो क्या अपनापन ,खुलूस था एक हिन्दू भाई अमॄत अपने प्यारे दोस्त याकूब की गोद में आखरी साथ साँस लेता है। क्या दोस्ती निभाई लोग तो selfi लेते रहे लेकिन याकूब इंसानियत के लिए मिसाल क़ायम कर गया। अनिरूध ३५० किलो मीटर
अपाहिज घयूर अहमद की wheel chair को push करके उसके घर पहुंचाता हूँ। क्या दुनिया में ऐसा example (मिसाल
मिल सकत्ता है। नफरतों के फैलाने वालों के मुँ पर तमाचा है। पानी पर लकड़ी मारने पर थोङी देर के लियें पानी फ़टतो जाता है फिर मिल जाता है।
जब इस दौर की तारीख (history ) लिखी जाएँगी किताब में ये दौर सियाह वर्क की तरह मौजूद रहेग़ा। ये वही मज़दूर है जिनोह ने बड़ी इमारतें ,बिल्डिगें बनायीं जिन में हम रह रहे हैं। बड़ी बड़ी factories ,malls ,highways इन्ही मज़दूरों ने तामीर किये। इन की औरतें हमारे घरों में काम करती थी। यही मज़दूर हमारे कपडे धो कर इस्री करते थे। यही मज़दूर हमारी cars साफ़ करते थे। यही मज़दूर texis और rickshaw चला कर हमें हमारी मंज़िले मक़सूद तक पहूँचाते थे। यही मज़दूर होटलों से हमारे घरों तक गर्म गर्म खाना पहुंचाते थे।हम ने उनेह पटरी पर कट्ने के लिए ,रास्तों पर दम तोड़ने के लिए लावारिस छोड़ दिया। हम सुपर पावर बनने के सपने तो देख रहे है। लेकिन समाज के ज़रूरी अंग को अपाहिज समझ कर छोड़ रहे है। सारी दुनिया की नज़र हम पर है। हमारी बेहिसी को खुली आँखों से देख कर हैरान है।
किश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं।
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का खुदा होता है। (नाख़ुदा -मल्लाह, नाँव चलने वाला )
अल्लाह जिसे रखे उसे कौन चखें।ये समय भी गुज़र जायेंगा लेकिन इन मज़दूरों के दिलों व दिमाग़ में ये तल्खियां ये मुसीबत भरी यादें किसी ख्वाबे परेशां (खौफनाक सपनें ) की तरह ज़हन में हमेशा मेहफ़ूज़ रहेँगी।
लग रहा है लम्बी चौड़ी क़ैद में ज़िन्दगी गुज़र रही है। तीन ताले खुल चुके हैं। 18th may से 31st may तक चौथीं duration के लियें फिर से क़ैद की तारीखेँ बढ़ा दी गयी हैं। हमारी क़ैद तो और भी सख़्त है ,विघ्नहर सोसाइटी में covid का मरीज़ क्वारेंटीने किया गया। APMC में बिज़नेस था। 6th floor पर अपनी family के साथ १४ दिनों के लिए। हमें भी NMMC और पुलिस की तरफ से नोटिस मिली और पूरी A -6 wing को seal कर दिया गया है। हर दिन NMMC की team सोसाइटी को visit करती है। आज एक हफ्ता पूरा होजायेंगा। ७ दिन सख्त जेल की सज़ा काटनी बाक़ी है। खिड़की से झांक कर ठँडी आहेँ भर लेते है। भला हो सोसाइटी कमीटी का चार जवानो को volunteer बनाया गया है जो ज़रुरत का सामान घर बैठें पहुंचा देते हैं।
इतनी अरज़ां तो न थी दर्द की दौलत पहले (अरज़ां मतलब सस्ती ,बेहिसाब )
जिस तरफ़ जाइये ज़ख्मों के लगे हैँ अंबार (अम्बार मतलब ढ़ेर )
वतन लौटने वाले मज़दूरों की बे बसी देखी नहीं जाती। मुंबई ,गुजरात ,कर्नाटक से हज़ारों मज़दूर UP ,झारखंड ,बिहार ,बंगाल ,राजस्थान और उड़ीसा की जानिब क़ाफ़िलों की शक्ल में कूच कर रहे हैं। सर पर गठड़ी रखे ,माएँ बच्चों को घसीटते हुये। अजीब अजीब मंज़र देखने को मिल रहे है। ऑंखें नम होजाती है। मजबूर माँ ,मासूम बच्चें को wheel bag पर लिटा कर मीलों घसीटने पर मजबूर है। बाप दो नन्हे बच्चों को डंडे पर दो basket में उठाये श्रवण कुमार की तरह किलोमीटर पैदल चला जा रहा है। पैर में जूते नहीं ,भूक से बेहाल ,जेब में पैसे नहीं। पुलिस की मार भी खा रहे है। states की सरहद (boundries ) पर इन्हें रोका जा रहा है। औरतें रस्ते ,फोट्पाथ पर बच्चोँ को जन्म दे रही हैं। कुछ मज़दूरों ने घर पहुंचने से थोड़ी देर पहले ही सफर की सख्ती ,भूक ,और परेशानी से रस्ते में ही दम तोड़ दिया।
क़िस्मत तो देखिये जाकर टूटी कहाँ कमन्द
दो चार हाथ जब के लबे बाम रह गये
truck पर खड़े होकर जानवरों की तरह ७० मज़दूर हज़ारों मील का सफर करने पर मजबूर। घर गांव पहुंचने पर १४ दिनों तक क़ैद ,घर पर आकर घर से दूरी। ज़बरदस्ती COVID टेस्ट करने के लियें मजबूर होना पड़ा।
मोहबत के लिए कुछ खास दिल मख़सूस क्यों होंगें।
इसे अँधेरे में कई ऐसी कहानियां सुनने को मिल रही है ,लगता है इंसानियत ज़िंदा हैं। लोगों के दिलों में ईश्वर अल्लाह का नूर बाक़ी है। लोगों ने इन मजबूर लाचार मज़दूरों पर फूलों की बारिश तो नहीं की लेकिन highway पर जहाँ जहाँ से मजदूर गुज़रे स्थानिय आबादि ने उनेह पेट भर खाना खिलाया ,कुछ देर के लिए उन के आराम का बंदोबस्त किया। दवाएं ज़रूरी सामान देकर उनेह रुखसत किया। उन से दुवाएं ली ,उन को दुवाएं दी ,उनेह खुश खुश रुखसत किया। वो क्या अपनापन ,खुलूस था एक हिन्दू भाई अमॄत अपने प्यारे दोस्त याकूब की गोद में आखरी साथ साँस लेता है। क्या दोस्ती निभाई लोग तो selfi लेते रहे लेकिन याकूब इंसानियत के लिए मिसाल क़ायम कर गया। अनिरूध ३५० किलो मीटर
अपाहिज घयूर अहमद की wheel chair को push करके उसके घर पहुंचाता हूँ। क्या दुनिया में ऐसा example (मिसाल
मिल सकत्ता है। नफरतों के फैलाने वालों के मुँ पर तमाचा है। पानी पर लकड़ी मारने पर थोङी देर के लियें पानी फ़टतो जाता है फिर मिल जाता है।
जब इस दौर की तारीख (history ) लिखी जाएँगी किताब में ये दौर सियाह वर्क की तरह मौजूद रहेग़ा। ये वही मज़दूर है जिनोह ने बड़ी इमारतें ,बिल्डिगें बनायीं जिन में हम रह रहे हैं। बड़ी बड़ी factories ,malls ,highways इन्ही मज़दूरों ने तामीर किये। इन की औरतें हमारे घरों में काम करती थी। यही मज़दूर हमारे कपडे धो कर इस्री करते थे। यही मज़दूर हमारी cars साफ़ करते थे। यही मज़दूर texis और rickshaw चला कर हमें हमारी मंज़िले मक़सूद तक पहूँचाते थे। यही मज़दूर होटलों से हमारे घरों तक गर्म गर्म खाना पहुंचाते थे।हम ने उनेह पटरी पर कट्ने के लिए ,रास्तों पर दम तोड़ने के लिए लावारिस छोड़ दिया। हम सुपर पावर बनने के सपने तो देख रहे है। लेकिन समाज के ज़रूरी अंग को अपाहिज समझ कर छोड़ रहे है। सारी दुनिया की नज़र हम पर है। हमारी बेहिसी को खुली आँखों से देख कर हैरान है।
किश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं।
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का खुदा होता है। (नाख़ुदा -मल्लाह, नाँव चलने वाला )
अल्लाह जिसे रखे उसे कौन चखें।ये समय भी गुज़र जायेंगा लेकिन इन मज़दूरों के दिलों व दिमाग़ में ये तल्खियां ये मुसीबत भरी यादें किसी ख्वाबे परेशां (खौफनाक सपनें ) की तरह ज़हन में हमेशा मेहफ़ूज़ रहेँगी।
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