रविवार, 31 मई 2020

हामिद खाँज़ादा उर्फ़ हमारा शाहरुख़

बहुत लगता है जी सोहबत में उनकी
वो अपनी ज़ात में एक अंज़ूमन है
जैसे जैसे हम अपनी तारीख़ें पैदाईश से दूर और तारीख़ मौत से क़रीब होते ज़ारहे है ,अजीब अजीब ख़्वाहिशें दिल में जन्म लेने लगी है ।सोचते थे किसी ख़ानदानी शहज़ादे से जान पहचान होनी चाहिए ।लो साहब बग़ल में छुरी गाँव में ढँढोरा।हामिद खानजाँदाँ से मुलाक़ात हुयी ,मुलाक़ातें बढ़ी, उनके ख़ानदानी पसे मंज़र का पता चला तो मालूम हुवाँ साहेब नवाब ज़ंजीरा के ख़ानदान से निस्बत रखते है ।
  हामिद भाई की शख़्सियत में नफ़ासत है ,हमेशा बेहतरीन कपड़े पहने होते है।कुर्ता पजामा ,अरबी झबा,पैंट पर अक्सर t shirt बसा औक़ात shirt भी पहने होते है ।चेहरे पर french cut दाढ़ी जो हमेशा ख़ूबसूरती से तराशी होती है। ख़ुशबू का शौक़ है ,दोस्तों को भी अपनी तरफ़ से gift करते रहते है। उनकी एक ख़ासियत जो उन्हें सब से मुमताज़ करती है ,उनकी मेहमान नवाजी ।दोस्तों की दावते करना और सब को शौक़ से खिलाना पिलाना, और इस बात से जो मुस्सरत का एहसास  उन्हें होता है उनके चेहरे से झलक पड़ता है।बहुत ही ख़ुश खूराक है लेकिन उनका खाना चंद लुक्मों  से जियादा नहीं होता ।इसीलिए लोग दावतों मैं उनके साथ बैठ कर खाना पसंद करते है ।सिगरेट के शौक़ीन हैं और सिगरेट पीने का अपना अन्दाज़ है ।
सुना है उसको सुख़न के उसूल आते हैं 
करे कलाम तो बातों से फूल आते हैं 
हामिद भाई अच्छे शायर तो है ही वरना भुसावल के all India मुशायरा जो सारी दुनिया में मशहूर है , उनको सदारत (president) के फ़रायज अंजाम देने की दावत क्यों दी जाती ।उनकी लिखी तहरीरे  (articles) भी दिलचस्प (interesting)होती है ।
कहानी मेरी रुदादे जहाँ मालूम होती है
हामिद भाई ने ज़िंदगी में कामयाब leather articles का कारोबार किया ।अपनी औलाद को बहरीन education दिलाया ।सब अपनी ज़िंदगी मैं ख़ुश हैं ।बड़े बेटे के पास अक्सर saudi जाते हैं ।कई बार उम्रें और हज करने का मौक़ा भी मिला ।
ज़िंदगी का ज़्यादा समय Bombay में belasis road के पुराने मकान पर गुज़रा।मुम्बई की गली गली से वाक़िफ़ है ।जवानी  में नारायण भकिया, हाजी मस्तान जैसे नामी लोगों से साथ उठते बैठते थे ।इसलिए आप के कुछ ऐसे शौक भी है जो रंगीन मिज़ाजी की दहलीज़ को छू लेते हैं। देहली में भी हामिद भाई की पहचान नामी लोगों से है ।पुरानी देहली में उनके साथ घुमने का मौक़ा मिला था ।कई लोगों से मिलाया जमिया मिलिया की सैर करायी ।दिल्ली की कुछ ऐसी मालूमत दी जो बहुत कम लोग जानते हैं ।दिल्ली के लिए हामिद भाई हमारे लिए बहरत्रीन  guide साबित हुए ।हामिद भाई के साथ ज़ंजीरा का सफ़र भी  किया ।उनका आबायी (ancestral) मकान देखने को मिला ।उनके भाई और रिश्तेदारों से मुलाक़ात की ।वहाँ नर्गिस फ़ार्म पे शाहाना दावत भी उड़ायी ।साथ साथ ज़ंजीरा की history से भी जानकारी हुयी ।
हामिद भाई नेरुल मे अरसे से मुक़ीम है ।social work खुलूस से करते रहते हैं ।सियासी हल्क़ों मे उनका रसूख़ है ।विभाग कमेटी के मेंबेर रह चुके हैं ।नेरुल के चप्पे चप्पे को हाथ की लकीरों की तरह वाक़िफ़ है ।दोस्तों जानने वालों का हलका लम्बा चौड़ा है ।
दोस्तों में अक्सर ये बात discuss होती है की शाहरुख़ खान बुढ़ापे मे हमारे हामिद भाई के जैसा दिखायी देंगा ।मशाल्लह हामिद भाई अब भी बग़ैर makeup के शाह रुख़ से ज़ियादाँ हसीन व ख़ूबसूरत दिखयी देते हैं ।
अल्लाह से दुआगो हुँ हामिद भाई इसी तरह लोगों की ख़िदमत मे लगे रहे ।दोस्तों की दावतों का ज़रिया बने ,ख़ुश्बू बाँटते रहे ।
कहीं रहे वो ख़ैरियत के साथ रहे 
उठाए हाथ तो याद एक दुआ आयी 






सोमवार, 25 मई 2020

विनोद कुमार माथुर

                                                                   विनोद कुमार माथुर
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार
नज़रों में जज़्ब होगये दिल में उतर गएँ
पिछले दो तीन सालों से वंडर पार्क नेरुल में वाकिंग के लिए एक मेला लग जाता है। डेली कई  रेगुलर आने लोगों से मुलाक़ात होजाती है। नमस्ते ,सलाम आदाब होजाता है। कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जिन की ऒर मिकनातिस (magnet ) की तरह तबियत मायल होजाती है।
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
जनाब विनोद कुमार माथुर से भी पहचान सलाम नमस्ते से हुयी थी। फिर छोटी छोटी मुलाक़ातें गहरी मोहबत में बदल गयी।
माथुर  साहेब bullet की तरह तेज़ी से चलते है। हमारा मुंगी की चाल से १ किलोमीटर की दूरी  पूरी होती है तब तक माथुर साहेब ३ किलोमीटर की दुरी चल लेते हैं। फिर हमें देख कर अपनी speed कम कर देते और फिर हमारे साथ दुनिया भर के टॉपिक्स पर हमारे नॉलेज को बढ़ाने में जुट जाते। religion ,philosophy ,litrature ,film ,ghzal ,music हर subject पर हमसे शेयर करते। आप का टोन (लहजा) बड़ा मद्धम होता है। नपे तुले अंदाज़ में अपनी बातों से लोगों को convince करने में माहिर है।
उम्र की ७० बहारें देख चुके हैं। लेकिन सेहत माशाल्लाह है। सफ़ेद रंगत ,बोलती आंखें ,खनक दार लहजा। में उनसे कहता हूँ।
आप का साथ साथ फूलों का
आपकी बात बात फूलों की
हर बात में रख रखाव है। उनका बांग्ला भी harbour view society  में उनकी शख्सियत की अक्कासी (reflect his personality ) अहाते में खूबसूरत  फूल ,ऑर्नामेंटल प्लांट्स और सब्ज़ियों का garden लगा रखा है। उन की वाइफ भी उनकी हम मिज़ाज है ,ड्रामों में काम कर चुकी है। उनकी औलाद भी उनकी तरह नरम मिज़ाज और तहज़ीब याफ्ता है। पिछली दीवाली मुझे और वाइफ को उनके घर विजिट करने का मौक़ा मिला। अपना  घर भी माथुर साहेब ने उसी सादगी हुस्न और नफासत से सजाया है ,बेसाख्ता कहना पड़ा ”उनसे ज़रूर मिलना सलीके के लोग हैं।
माथुर साहेब के पूर्वज बहादुर शाह ज़फर के दरबार में दीवान की position पर काम करते थे। जनाब माथुर साहेब ने  भी M.Sc ,MBA किया है। 1960 में जब MBA डिग्री को इम्पोर्टेंस थी। आपके डैडी भी All India Radio में technical dept से जुड़े थे। माथुर साहेब बड़ी educated फॅमिली से belong करते हैं। आपके भाई भी mining engineer है।
दुनिया ने तजुर्बात व हवादिस की शक्ल में
जो कुछ दिया है वो लौटा रहा हु मैं
मथुर साहेब ने अपने career की शुरुवात Birla group से की। फिर क्या सूझी के nigeria का रुख किया। कई साल
 वहां की खाक छानी। कई साल बाद हुन्दुस्तान वापिस आये तो अपनी खून पसीने की कमाई से MPIL कंपनी शुरू की। लेकिन Nigeria को भुला नहीं ,वहीं से अपना raw material import करते हैं। Tantalum ,Niobium और Tungstun जैसे innovative product manufacture करते है। जो electronic इंडस्ट्रीज में use होते हैं। उनके product जापान ,germany और Europian countries को एक्सपोर्ट किये जाते हैं।
जुस्तजु जिस की थी उसको तो न पाया हम ने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
माथुर साहेब अपने hard work ,ईमानदारी और नेक नियति से एक मक़ाम बनाया है। दुनिया का शायद कोई country
जहां आपने विजिट न किया हो। अब भी अपनी company के प्रोडक्ट को improve करने के लिए कोशिश में लगे रहते है। में बड़ा खुशकिस्मत हूँ उनकी factory को विजिट करने का शर्फ हासिल कर चूका हूँ।






मंगलवार, 19 मई 2020

जिनके होंठों पे हसीं पॉव में छाले होंगे

                                              lockdown -4 day-2 (19th May -2020 )
लग रहा है लम्बी चौड़ी क़ैद में ज़िन्दगी गुज़र रही है। तीन ताले खुल चुके हैं। 18th may से 31st may तक चौथीं duration के लियें फिर से क़ैद की तारीखेँ बढ़ा दी गयी हैं। हमारी क़ैद तो और भी सख़्त है ,विघ्नहर सोसाइटी में covid का मरीज़ क्वारेंटीने किया गया। APMC में बिज़नेस था। 6th floor पर अपनी family के साथ १४ दिनों के लिए। हमें भी NMMC और पुलिस की तरफ से नोटिस मिली और पूरी A -6 wing को seal कर दिया गया है। हर दिन NMMC की team सोसाइटी को visit करती है।  आज एक हफ्ता पूरा होजायेंगा। ७ दिन सख्त जेल की सज़ा काटनी बाक़ी है। खिड़की से झांक कर ठँडी आहेँ भर लेते है। भला हो सोसाइटी कमीटी का चार जवानो को volunteer बनाया गया है जो ज़रुरत का सामान घर बैठें पहुंचा देते हैं।
इतनी अरज़ां तो न थी दर्द की दौलत पहले (अरज़ां मतलब सस्ती ,बेहिसाब )
जिस तरफ़ जाइये ज़ख्मों के लगे हैँ अंबार   (अम्बार मतलब ढ़ेर )
वतन लौटने वाले मज़दूरों की बे बसी देखी नहीं जाती। मुंबई ,गुजरात ,कर्नाटक से हज़ारों मज़दूर UP ,झारखंड ,बिहार ,बंगाल ,राजस्थान और उड़ीसा की जानिब क़ाफ़िलों की शक्ल में कूच कर रहे हैं। सर पर गठड़ी रखे ,माएँ बच्चों को घसीटते हुये। अजीब अजीब मंज़र देखने को मिल रहे है। ऑंखें नम होजाती है। मजबूर माँ ,मासूम बच्चें को wheel bag पर लिटा कर मीलों घसीटने पर मजबूर है। बाप दो नन्हे बच्चों को डंडे पर दो basket में उठाये श्रवण कुमार की  तरह किलोमीटर पैदल चला जा रहा है। पैर में जूते नहीं ,भूक से बेहाल ,जेब में पैसे नहीं। पुलिस की  मार भी खा रहे है। states की सरहद (boundries ) पर इन्हें रोका जा रहा है। औरतें रस्ते ,फोट्पाथ पर बच्चोँ को जन्म दे रही हैं। कुछ मज़दूरों ने  घर पहुंचने से थोड़ी देर पहले ही सफर की सख्ती ,भूक ,और परेशानी से रस्ते में ही दम तोड़ दिया।
क़िस्मत तो देखिये जाकर टूटी कहाँ कमन्द
दो चार हाथ जब के लबे बाम रह गये
truck पर खड़े होकर जानवरों की तरह ७० मज़दूर हज़ारों मील का सफर करने पर मजबूर। घर गांव पहुंचने पर १४ दिनों तक क़ैद ,घर पर आकर घर से दूरी। ज़बरदस्ती COVID टेस्ट करने के लियें मजबूर होना पड़ा।
 मोहबत के लिए कुछ खास दिल मख़सूस क्यों होंगें।
 इसे अँधेरे में कई ऐसी कहानियां सुनने को मिल रही है ,लगता है इंसानियत ज़िंदा हैं। लोगों के दिलों में ईश्वर अल्लाह का नूर बाक़ी है। लोगों ने इन मजबूर लाचार मज़दूरों पर फूलों की बारिश तो नहीं की लेकिन highway पर जहाँ जहाँ से मजदूर गुज़रे स्थानिय आबादि  ने उनेह पेट भर खाना खिलाया ,कुछ देर के लिए उन के आराम का बंदोबस्त किया। दवाएं ज़रूरी सामान देकर उनेह रुखसत किया। उन से दुवाएं ली ,उन को दुवाएं दी ,उनेह खुश खुश रुखसत किया। वो क्या अपनापन ,खुलूस था एक हिन्दू भाई अमॄत अपने  प्यारे दोस्त याकूब की गोद में आखरी साथ साँस लेता है। क्या दोस्ती निभाई लोग तो selfi लेते रहे लेकिन याकूब इंसानियत के लिए मिसाल क़ायम कर गया। अनिरूध ३५० किलो मीटर
अपाहिज घयूर अहमद की wheel chair को push करके उसके घर पहुंचाता हूँ। क्या दुनिया में ऐसा example (मिसाल
 मिल सकत्ता  है। नफरतों के फैलाने वालों के मुँ पर तमाचा है। पानी पर लकड़ी मारने पर थोङी देर के लियें पानी फ़टतो जाता है फिर मिल जाता है।
जब इस दौर की तारीख (history ) लिखी जाएँगी किताब में ये दौर सियाह वर्क की तरह मौजूद रहेग़ा।  ये वही मज़दूर है जिनोह ने बड़ी इमारतें ,बिल्डिगें बनायीं जिन में हम रह रहे हैं। बड़ी बड़ी factories ,malls ,highways इन्ही मज़दूरों ने तामीर किये। इन की औरतें हमारे घरों में काम करती थी। यही मज़दूर हमारे कपडे धो कर इस्री करते थे। यही मज़दूर हमारी  cars साफ़ करते थे। यही मज़दूर texis और rickshaw चला कर हमें हमारी मंज़िले मक़सूद तक पहूँचाते थे। यही मज़दूर होटलों से हमारे घरों तक गर्म गर्म खाना पहुंचाते थे।हम ने उनेह पटरी पर कट्ने के लिए ,रास्तों पर दम तोड़ने के लिए लावारिस छोड़ दिया।  हम सुपर पावर बनने के सपने तो देख  रहे है। लेकिन समाज के ज़रूरी अंग को अपाहिज समझ कर छोड़ रहे है। सारी दुनिया की नज़र हम पर है। हमारी बेहिसी को खुली आँखों से देख कर हैरान है।
किश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं।
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का खुदा होता है।  (नाख़ुदा -मल्लाह, नाँव चलने वाला )
अल्लाह जिसे रखे उसे कौन चखें।ये समय भी गुज़र जायेंगा लेकिन इन मज़दूरों के दिलों व दिमाग़ में ये तल्खियां ये मुसीबत भरी यादें किसी ख्वाबे परेशां (खौफनाक सपनें ) की तरह ज़हन में  हमेशा मेहफ़ूज़ रहेँगी।






मंगलवार, 12 मई 2020

Sampooran Singh Kalra urf Gulzar

असली नाम : सम्पूर्ण सिंह कालरा
कलमी नाम : गुलज़ार
जन्म तारीख : १८ ऑगस्ट १९३४
जन्म स्थान :जेहलम डिस्ट्रिक्ट पाकिस्तान
अवार्ड्स :नेशनल अवार्ड्स :५
फिल्म फेयर अवार्ड्स : २१
ग्रैमी अवार्ड
साहित्य अकादमी अवार्ड
दादा साहेब फाल्के अवार्ड
पद्म भूषन
बहुत लोग गुलज़ार साहेब के असल नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा , सुन कर चौंक पड़ेंगे जी हाँ यही उनका असल नाम है। गुलज़ार साहब ने बॉम्बे आकर अपने career की शुरुवात विचारे गैरेज जो बेलसिस रोड पर हुवा करता था dainted कारों की पेंटिंग से शरू की। फिर progressive writer assocition में शामिल होने से उनेह फिल्म इंडस्ट्री की तरफ रुझहान हुवा। शरू में असिस्टेंट डायरेक्टर रहे, फिर lyricist , डायलॉग राइटर ,script writer और director बने। हर profession में अपनी छाप छोड़ी। शुरुवात बंदिनी फिल्म के गाने ”मोरा गोरा रंग “
हुवी। इस गीत की कामयाबी से  गुलज़ार साहब कई ऑफर मिलने लगे। गुलज़ार ने फिल्म के मकालमे (डायलॉग )भी लिखने शरू कर दिए। आशीर्वाद ,नमक हराम और आनंद के डायलॉग उन के ही लिखे है। १९७३ से मेरे अपने फिल्म से direction के प्रोफेशन में कदम रखा। यहाँ उनसे मीना कुमारी से दोस्ती हुवी। अपनी शायरी की diary मीना कुमारी ने गुलज़ार साहब के हवाले कर दी थी जो उनके मरने के बाद किताबी शक्ल में publish की गयी। हर बार गुलज़ार साहबने  हर बार नए टॉपिक पर फिल्म बनायीं।
आंधी,,कोशिश ,परिचय ,इजाज़त ,लिबास ,माचिस , नमकीन ,अंगूर ,हु तू तू। हर फिल्म में अपनी अलग राह बनायीं।
उनकी partition के subject पर “जेहलम पार “ किताब दिल को छु लेती है। उनेह  मकबूलियत उनकी शायरी की बिनापर है उनका मजमुए कलाम जानम आम फेहम सलीस language में लिखा गया है। उनकी एक नज़्म
नज़्म उलझी हुवी हे सीने में
शेर अटके हुवे हैं होंठों पर
उडते फिरते है तितलियों की तरह
लफ्ज़ कागज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हुवा हूँ में जानम

सादा कागज़ पे लिख के नाम तेरा

एक तेरा नाम ही मुक्कमिल है
इस से बेहतर भी क्या नज़्म होंगी
गुलज़ार साहब की फिल्मों के टाइटल खूबसरत रोमानी होते है ही ,उनकी फिल्मे देखते देखते  आदमी Emotionaly फिल्म से इतना जुड़ जाता है के उनके किरदारों (charecters ) के साथ हँसता है रोता है उनिह के बीच सांस लेता महसूस होता है। आंधी ,कोशिश ,अचानक भुलाये नहीं भूलती। किताब फिल्म का राजू ,बचपन की भूली शरारतों की यादें ताज़ा कर देताहै। आनंद ,आखरी लम्हात में बाबू मुशाई की नज़्म ,मौत का मंज़र खेंच देती है। कौन पत्थर दिल है जो न पिघले
मौत तू एक कविता है
मुझ से एक कविता का वादा है मिलेगी मुझ को

डूबती नब्ज़ में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिए चाँद उफ़क़ तक पुहंचे
दिन अभी पानी में हो और रात किनारे के करीब
न अँधेरा न उजाला न अभी रात न दिन
जिस्म जब खत्म हो और रूह को साँस आजाये
आंधी में जज़्बाती नाज़ुक रिश्ते। मौसम फिल्म की तवाइफ़ (वैश्या ). मेरे अपने की बूढी नानी जो अपनी मोहब्बत अपनायत से सब का दिल जीत लेती है। अचानक में अपनी बीवी को टूट कर चाहने वाले फौजी शोहर का बीवी की बेवफाई से ज़ख्म खुरदा होकर टूटना। मिर्ज़ा ग़ालिब पर सीरियल बना कर ग़ालिब के किरदार और उनकी ग़ज़लों को नयी ज़िन्दगी
कर दी.
गुलज़ार के फ़िल्मी नग़मे भी खूबसूरत शायरी है। ख़ामशी में आवाज़ें सुनेंका फन महकती
 आँखों की खुशबू ,इश्क़ को रूह से महसूस करना ,सायों का साँस लेना। बच्चों के लिए जो कुछ लिखा अमर कर दिया
,चड्डी पहन के फूल खिला है। हम को मन की शक्ति देना हर स्कूल का एंथम बन गया
नए ज़माने की नब्ज़ पर भी उन का हाथ है जभी तो जय हो, बीड़ी जलाए लो,इब्ने बतूता बग़ल में जूता जैसे बेमिसाल नग़मे अब भी लिख रहे है। फिल्म तलवार और राज़ी में भी उनका फ़न नुमाया है।