आज government के declare किये कर्फू का 4th दिन है। हर तरफ ख़ामोशी छायीं है। सीर्फ परिंदों के चहचहाने का शोर सुनाई पढ रहा है। अब लग रहा है क्या हम कभी आज़ादी से घूमे फिरे भी थे? न बच्चों के खेलने का शोर सुनाई देता है न दुकाने खुली हैं न कारों ,रिक्शा ,बसों और ट्रैनो का शोर है। आज ये बात साबित (prove )होगयी के ज़िन्दगी इन चीज़ों के बग़ैर भी गुज़र सकती है। अगर फ़ोन internet की सेवाएं भी बंद कर दी जाये तो क्या हम ज़िंदा नहीं रह पायेँगे? काश्मीरी लोगों ने इन्ही सख्त हालत में ७ महीने गुज़ारें हैं। इंसान वक़्त और हालात के मुताबिक़ अपने आप हो ढाल लेता है। तरक़्क़ी करते करते हम २१ वि शताब्दी में पहुँच चुके हैं। लेकिन कुदरत (nature ) की एक मार ने हमें फिर हज़ारों साल पहले की ज़िंदगी में धकेल दिया है, जब इंसान जंगलों में ज़िन्दगी गुज़रता था और सब से करीब उसकी बीवी बच्चें ख़ानदान हुवा करता था। हवा।,पानी ,खाने पीने के सिवा उसे किसी चीज़ की ज़रुरत नहीं थी और वो इन बातों से पूरी तरह संतुष्ट भी था।
कल से carfew की वजह से एक बड़ी समस्या कड़ी हो गयी है हज़ारों लोग शहर से गाँव की तरफ लौट रहें हैं। कर्फू में शहेर में न खाना पीना मिल रहा हैं न काम। मुश्किल ये है के transport न होने की बिना पर ये लोग पैदल ही कई कई सौ किलोमीटर का सफर (journey )कर रहे है। ये करोना की रोक थाम में मुश्किलें खड़ी कर सकता हैं। लेकिन ये इन लोगों की मजबूरी है। एक तरफ खायी है दूसरी तरफ कुआं।
कल से carfew की वजह से एक बड़ी समस्या कड़ी हो गयी है हज़ारों लोग शहर से गाँव की तरफ लौट रहें हैं। कर्फू में शहेर में न खाना पीना मिल रहा हैं न काम। मुश्किल ये है के transport न होने की बिना पर ये लोग पैदल ही कई कई सौ किलोमीटर का सफर (journey )कर रहे है। ये करोना की रोक थाम में मुश्किलें खड़ी कर सकता हैं। लेकिन ये इन लोगों की मजबूरी है। एक तरफ खायी है दूसरी तरफ कुआं।
Bahot khub bhaijaan.badi acchie akkasi khinchi hai.
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