गुरुवार, 4 मई 2017

कोई लौटादे मेरे बीते हुवे दिन

जब भी चाहा है उसे शिद्दत से चाहा है फ़राज़
सिलसिला टूटा नहीं है दर्द की ज़ंजीर का
कल प्रदीप खूबचंदानी  को ३० साल बाद सालगिरह की मुबारकबाद  पेश की। जवाब में उस ने कहा "thank you शेख जी "  आदमी का दिमाग़ (brain ) ९५% प्रतिशद liquid से बना है। कितनी यादों का खज़ाना छुपाये हुवे हैं। एक trigger की ज़रुरत होती है यादें हकीकत बन आँखों के सामने रक़्स करने लगती है। प्रदीप के एक जुमले ने मुझे १९८०/१९८७ के ज़माने में धकेल दिया। रात करवटें बदलते गुज़री।
 लोग हमराह लिए फिरते हैं यादों के हुजूम
ढूंढने पर भी कोई शख्स न तन्हा निकला
 ज़िन्दगी के १८ साल बंजारों की तरह सूडान ,सीरिया में गुज़ारे लेकिन वह अपनापन ,वह मोहब्बत , वह अपनाययात ,वह खुलूस सिर्फ और सिर्फ UNITED CARBON के साथियों से मिला नहीं भूल सकता। शाह ,पटेल ने मुझे share market की ऊंच नीच सिखाई। मल्होत्रा ने सिंगापुर की सैर कराई। सुधाकर पाटिल ने मुझ से उर्दू सीखी ,मराठी नाटक की समझ दी। अशोक जुरिआनी ने पापर दही से दावत की। प्रदीप खूबचंदानी ने जिंदिगी जीने का फ़न सिखाया। Joscelin Almeria के जैसा यार ढूंढने पर न मिला। दांगट ,अरुण ,पागड़ ,कुलकर्णी ,खंबायते ,होशमत,मोहन  हर एक के साथ कुछ न कुछ खट्टी मिठ्ठी यादें जुडी हैं।
दोस्तों की महेरबानी चाहिए
  हम सब Graduation करने के बाद practicle life की शुरवात कर रहे थे। सब कुवारें ,बेफिक्रे थे। factory में हम सब का खाना पीना CARBON BLACK था। हम सब boiler suit, helmet ,safety shoe पहन कर उड़ते हुवे कार्बन पाउडर के बीच सख्त ड्यूटी करते। mixture की ड्यूटी क़यामत से काम न थी।फिर भी खुश रहते कहकहे लगाते। ड्यूटी के बाद सब हमाम में १ घंटा मल मल कर life buoy से नहाते। लेकिन  आँखों से काजल छूट न पाता। लोग पूछते "आप औरतों की तरह काजल क्यूँ पहनते हो। "में क्या जवाब देता।साथियों में  कोई सिंधी था ,कोई पंजाबी ,कोई महाराष्ट्रियन ,कोई catholic और में मुस्लिम, लेकिन हम सब के सुख दुःख एक थे। मज़हब की दीवार अब हमारे बीच नहीं आयी। सुधाकर के घर गणपति ,मेरे घर ईद ,Almeria के घर Christmas,  लेकिन होली हम कंपनी में carbon  black से ही खेलते।एक एक करके हम घर बसाया ,जश्न भी मनाया।
   मुझे  उस ज़माने का एक इंसिडेंट याद आरहा है। अरुण के डैडी की डेथ पर अशोक ,प्रदीप ,अल्मेडा ,सुधाकर और में मिल  कर बांद्रा उसके घर शोक प्रस्तुत करने जा रहे थे। में उन दिनों बात बात पर कहकहे लगाया करता था ,अरुण के घर entry से पहले प्रदीप मेरे सामने हाथ जोड़ कर खड़ा होगया "शैख़ जी मौक़ा भी देखा करो  यार ,घर में दाखिल होने के बाद  प्लीज मत हसना  कचरा हो जाएगा "  ,में ने आते हुवे कहकहे पर ब्र्रेक लगा दिया।
 १९८६/१९८७ में कंपनी में स्ट्राइक ने हम सब को तोड़ कर रख दिया बिखेर दिया। वरना कौन इतनी अच्छी कंपनी और  प्यारे दोस्तों को छोड़ता।
कल वक़्त से
लम्हा गिरा कहीं
वहां दास्ताँ थी लम्हा कही नहीं
united carbon बिक गयी है। मशीने निकाल ली गयी है। थाना बेलापुर रोड से गुज़रता हूँ तो हसरत भरी निगाह से उस मुक़ाम पर नज़र दाल लेता हूँ ,जहाँ कंपनी हुवा करती थी  और अब चटियल मैदान है। आहें भर कर अशोक जुरिआनी को याद कर लेता हूँ जो हम सब को छोड़ क्षितिज के उस पार चला गया, कुछ खूबसूरत यादें ,कुछ तस्वीरें जिनेह देख कर उदासी के लम्हों में जिंदिगी जीने का हौसला मिलता रहेगा।
ख्वाब तो कांच से भी नाज़ुक है टूटने से इन्हे  बचाना है








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