शोर बरपा है ख़ानए दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी
28 ऑगस्ट २०१६ ,२४ ज़िलक़द १४३७ इतवार के दिन दुल्हन मुमानी इस दारे फानी से कूच कर गयी।
मनो मिटटी के निचे दब गया वह
हमारे दिल से लेकिन कब गया वह
छोटा कद ,दूध की तरह सफ़ेद रंग ,गोल चेहरा ,चेहरे पर सब से ज़ियादा नुमाया उनकी खूबसूरत आँखें थीं ,छुइ मुई सी ,रहन सहन में उनके एक रख रखाव था ,उनकी एक नयी खूबी मोहतरमा भाभी नीलोफर से सुनी ,क़ुरान बड़ी तेज़ी से ख़त्म कर लिया करती थी। सुना था दूल्हे मॉमू ने बहुत काम उम्र में उनसे निकाह किया था। पचास साल से ज़ियादा ,दोनों ने साथ बिताया ,दूल्हे मॉमू के दिल का दर्द में महसूस कर सकता हूँ।
जाने वाले कभी नहीं आते
जाने वालों की याद आती है
आँखों से ५४ साल पुरानी मोटी सी धुंध की चादर हट रही है। अपने आप को परियों के महल में बैठा महसूस कर रहा हूँ। करीब से गुज़रती ट्रैन की सीटी को सुन सकता हूँ। सफ़ीद बुर्राक़ लिबास में बैठी नानी अम्मा पान कुटती नज़र आ रही है।दूल्हे मामूं दूकान में गिराहकों से निपट रहे हैं। दजिया ,रेवा ,जमादार जिन्नों की तरह हुक्म की तामील में लगे हैं। मुमानी अम्मा ,दुल्हन मुमानी ,गोरी मुमानी किचेन में खाना बनानेँ में मसरूफ हैं। में ९ साल का छोटा राग़िब दौड़ते हुवे किचन कि झुकीं छत से टकरा कर चिल्लाने लगता हूँ। तीनों मुमनियां बेकल हो उठती है। कोई मरहम लेने दौड़ पङती है ,कोई सर को मालिश कर मुझे आराम देने कोशिश कर रही है। में नींद से जाग पड़ता हूँ।
कभी किसी ने कहीं रंग व बू को पकड़ा है
शफ़क़ को क़ैद में रख्खा हवा को बंद किया
सगीर जनाब और मेरी परवरिश में दुल्हन मुमानी का बड़ा मक़ाम रहा है। माशाअल्लाह अज़हर/अतहर /रईस /सबीना/
रुबीना/राफेआ ,बहुवें ,नवासे , नवासियां ,पोते,पोतियां खानदान की गिनती ४० तक ,लेकिन दूल्हे मॉमू,दुल्हन मुमानी ने
वोह तालीम दी है के ,मैं ने सख्त मुश्किल दौर में भी उन लोगों को ईमानदारी ,दयानत मे उसूलों से समझौता करते नहीं देखा। अल्हम्दोलिलाह अल्लाह ने फिर उनेह नवाज़ा है। दुल्हन मुमानी ने आखरी वक़्त में औलाद को खुश हाली में देख
कर अपनी आँखें ठंडी कर ली. उनकी तमाम औलाद और बहुओं ,पोतों ,पोतियों , नवासे , नवासियों ने किस हद बेलौस खिदमत
कर उनका कुछ क़र्ज़ अदा कर दिया। अल्लाह सब को जज़ाए खैर दें। दुल्हन मुमानी को कर्वट कर्वट जन्नत नसीब करें। आमीन सुम्मा आमीन !
कोई दीवार सी गिरी है अभी
28 ऑगस्ट २०१६ ,२४ ज़िलक़द १४३७ इतवार के दिन दुल्हन मुमानी इस दारे फानी से कूच कर गयी।
मनो मिटटी के निचे दब गया वह
हमारे दिल से लेकिन कब गया वह
छोटा कद ,दूध की तरह सफ़ेद रंग ,गोल चेहरा ,चेहरे पर सब से ज़ियादा नुमाया उनकी खूबसूरत आँखें थीं ,छुइ मुई सी ,रहन सहन में उनके एक रख रखाव था ,उनकी एक नयी खूबी मोहतरमा भाभी नीलोफर से सुनी ,क़ुरान बड़ी तेज़ी से ख़त्म कर लिया करती थी। सुना था दूल्हे मॉमू ने बहुत काम उम्र में उनसे निकाह किया था। पचास साल से ज़ियादा ,दोनों ने साथ बिताया ,दूल्हे मॉमू के दिल का दर्द में महसूस कर सकता हूँ।
जाने वाले कभी नहीं आते
जाने वालों की याद आती है
आँखों से ५४ साल पुरानी मोटी सी धुंध की चादर हट रही है। अपने आप को परियों के महल में बैठा महसूस कर रहा हूँ। करीब से गुज़रती ट्रैन की सीटी को सुन सकता हूँ। सफ़ीद बुर्राक़ लिबास में बैठी नानी अम्मा पान कुटती नज़र आ रही है।दूल्हे मामूं दूकान में गिराहकों से निपट रहे हैं। दजिया ,रेवा ,जमादार जिन्नों की तरह हुक्म की तामील में लगे हैं। मुमानी अम्मा ,दुल्हन मुमानी ,गोरी मुमानी किचेन में खाना बनानेँ में मसरूफ हैं। में ९ साल का छोटा राग़िब दौड़ते हुवे किचन कि झुकीं छत से टकरा कर चिल्लाने लगता हूँ। तीनों मुमनियां बेकल हो उठती है। कोई मरहम लेने दौड़ पङती है ,कोई सर को मालिश कर मुझे आराम देने कोशिश कर रही है। में नींद से जाग पड़ता हूँ।
कभी किसी ने कहीं रंग व बू को पकड़ा है
शफ़क़ को क़ैद में रख्खा हवा को बंद किया
सगीर जनाब और मेरी परवरिश में दुल्हन मुमानी का बड़ा मक़ाम रहा है। माशाअल्लाह अज़हर/अतहर /रईस /सबीना/
रुबीना/राफेआ ,बहुवें ,नवासे , नवासियां ,पोते,पोतियां खानदान की गिनती ४० तक ,लेकिन दूल्हे मॉमू,दुल्हन मुमानी ने
वोह तालीम दी है के ,मैं ने सख्त मुश्किल दौर में भी उन लोगों को ईमानदारी ,दयानत मे उसूलों से समझौता करते नहीं देखा। अल्हम्दोलिलाह अल्लाह ने फिर उनेह नवाज़ा है। दुल्हन मुमानी ने आखरी वक़्त में औलाद को खुश हाली में देख
कर अपनी आँखें ठंडी कर ली. उनकी तमाम औलाद और बहुओं ,पोतों ,पोतियों , नवासे , नवासियों ने किस हद बेलौस खिदमत
कर उनका कुछ क़र्ज़ अदा कर दिया। अल्लाह सब को जज़ाए खैर दें। दुल्हन मुमानी को कर्वट कर्वट जन्नत नसीब करें। आमीन सुम्मा आमीन !
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