शनिवार, 29 मार्च 2014

PROGRESSIVE SUPERNATURAL PALSY

                                                                सादिक़ साहब
उन्हें दुनिया से जा कर ३,५ महीने का वक़्त होगया है। भूलते नहीं भूलते। क्या शख्सियत थी ,क्या इंसान थे। अल्लाह उन्हे जन्नत नसीब करे। आर्ट ,अदब ,मज़हब ,फलसफा ,बहस मुबाहसे में  माहिर।सामने वाले  को अपनी दलीलों  से कायल करना कोई उन से सीखें। 
      ग़रीब घर में जन्म लिया था। बाप कोर्ट से रिटायर्ड क्लेर्क,५५ रपये माहना पेंशन ,चार बचे घर में पड़ने वाले। घर में सबसे बड़े थे , बड़ी महनत् से स्कूल में टॉप किया। छोटा से गाव चोपड़ा से स्कूली  तालिम खत्म करने के बाद इस्माइल युसूफ कोल्लेज मुंबई  से इंटरमीडिएट का एग्जाम टॉप रैंकिंग में पास किया। IIT में दाखला मिल सकता था। मजबूरी VJTI मुम्बई से मेकनिकल इंजीनियरिंग में GRADUATION किया। पूरी तालीम स्कॉलरशिप मिला कर हासिल कि ,१९६७ कि बात है। फिर कुछ साल मेटल बॉक्स कम्पनी में MAITENANCE ENGINEERING के अहदे पर काम किया। ३० साल कुवैत में प्लस्टिक पैकजिंग कम्पनी में मैनेजर के फ़रायज़ अंजाम दिए। चार लड़कियों को इंजीनियर बनाया अमेरिका ,दुबई में लड़कियां अपने शौहरों का साथ खशहाल रहती है।  हिंदुस्तान लौटने के बाद अपनी कम्पनी शुरू कि ५ साल खशस्लूबी से चलायी ,कहानी यही ख़त्म होजाती तो बहतर था। अल्लाह को कुछ और मंज़ूर था। पाबंद सौम व सलात तहज़ूद गूजर आदमी को अल्लअह कि जानिब से इम्तेहान लेना था। लाखों में एक आदमी को इस तरह कि बीमारी होती है।  PSP डॉ ने हाथ टेक दिए। अमेरिका तक डाकटरों को दिखाया नतीजा वही ढाक के तीन पात।   मर्ज़ बढ़ता गया जुजु दवाई कि। क्या अजीब बीमारी है। इंसान कि तमाम चीजें एक एक कर साथ छोड़ देती है। पहले याद दाश्त कमज़ोर हो गयी। पुरानी बचपन कि बातें जैसी कि तैसी याद थी। लेकिन ताज़ा ताज़ा वाक़ेआत भूलने लगे। मोबाइल फ़ोन पानी में गिरा देते। कितनि बार नए मोबाइल दिलाना पड़े। फिर ज़बान लड़खड़ाने लगी। बार बार गिरने लगे,बैलेंस ही न रहा। व्हील चैर पर बिठा दिया गया। TV चलना भूल गए। आँखों से साथ छोड़ दिया। आखिर में खाना निगलने में परेशानी होगयी तो हलक़ में TUBE  डाल कर खाना खिलान पड़ता। आखिर के ६ महीने तो बिस्तर पकड़ लिया। पलक भी न झपकते थे।                          
                                         कुछ दिन यूं भी रंग रहा इंतज़ार का
                                          आँख उठ गयी जिधर को उधर देखते रहें
           जीवन साथी बीवी ने वोह खिदमत् कि के तमाम फ़र्ज़ अदा कर दिया। १२ दिसंबर २०१३ रात ८. बजे आखरी साँस ली तकलीफों ,परेशानियों से नजात पायी। 

गुरुवार, 27 मार्च 2014

SADIQ BHAI

                                                       لا علا ج بیماری 
صادق  صاحب ماشااللہ   ذہین شخص تہے –مذہبی معلومات ،فلصفہ ،سا ءنس ،شاعری،بہس و مباحثہ مین ان سے کویء جیت نہین سکتا تہا-ماشااللہ انہون نے ۱۹۶۷ مین  VGTI-MUMBAI۰ سے مکینکل انحنیرنگ مین ٹاپ رینکینگ مین ڈگری حاصل کی تہی اور تقربا ۳۰  سال کوءیت مین مینجر کی پوسٹ پر جاب کرنے کے بعد ہندوستان لوٹے –اٹگاون کسارا کے قریب اپنی ذاتی کمپنی شروع کی-۵ سال کامیابی سے چلانے کے بعد یکا یک ان کے برتاو مین تبدیلی آنی شروع ہو گیء-نظرین ملا کر کسی سے بات نہی کر پاتے –اپنا  توازن کہیونے لگے-چلتے چلتے کہین بہی گر پڑتے-ان کے لکہنے پر اژ پڑنے لگا-جملہ لکہتے آخر مین چہوٹا ہو جاتا-چونٹی کی طرح حروف ہوگےء-پتا چلا انہین پی   ایس پی نام کی بیماری ہے- ۲ سال کے اندر اندر وہ بستر سے لگ گےء-اپنی یاداشت بہی کہو دی-PSP دو بیماریون کا مرکب ہے-PARKINSANاور ALZAMER  سب سے پہلے انسان کی زبان مین لکنت آنے لگتی ہے-پلکین جہپکنہ بند ہوجاتی ہے-انسان کسی سے نظر ملا کر بات نہی کر سکتا-رفتا رفتا یادداشت پر اثر ہونے لگتا ہے-پنج وقتہ تہجد گزارآدمی ۲ سال کے وقفے مین بستر سے لگ گیا-آخر کے چار ماہ بستر پر ہی نہ پلک جہپکتے نہ کسی چیز کا احساس-ٹیوب سے غذا پہنچای ء جاتی-بچون کی طرح  PAMPERS باند کر کام چلایا جاتا-
                    کچ دن یون بہی رنگ رہا انتظار کا
   آنک اٹ گیء جدہر کو ءادہر دیکہتے رہے
۱۳ دسمبر جمع کے روز وفات پای-زندگی کی ۶۷ بہارین دیکہی –آخر کے ۲ سال کسمپرسی کے حال مین گزرے- انا للہےوانا الیہے راجعون




सोमवार, 17 मार्च 2014

Sameera Zahid Shaikh

Lubna ,Naved,Sameera,Sana,Nayela
Mere Jahez ke sang
Sameera Do deviyon ke sath
Badlapur ki Yaden
Bevde ko to photographer ne hat diya hota (Haji malang Dargah) Naved,Fahim,Nazim,Nayela,Lubna,Sameera
Bachpan ki Yaden
Apne bachpan ki writing pehchan sakti ho Sameers
                                                                      समीरा  ज़ाहिद शेख़
Mahve Hairat hoon ke duniya kya se kya hojayenngi
समीरा को अमेरिका कि शहरियत (citizenship ) मिली।  उसकी तस्वीर देख दिल मुबारकबाद देने बेताब होगया । अल्लाह उसे अछा रखे। बहुत बहुत तरक्की मिले। उस कि तमाम खवाहिशें पूरी हो। आज उसके बचपन कि यादें ताज़ा हो गईं। बचपन से वोह कम सुखन और संजीदा वाक़ेय  हुयी है।
             समीरा का मतलब होता है कहानी सुनाने वालि। तीन साल की थी जब वोह छुट्टियों में हिंदुस्तान आयी थी। उस दौरान मेरी शादी भी थी। परी के लिबास में जहेज़ के सामान के साथ आज भी उस कि तसववीर हमारें पास महफूज़ है। ज़यादा वक़्त उसका कुवैत में गुज़रा। स्कूल कि पढ़ाई वहीँ से पूरी हुयी। लेकिन वहाँ से ईद कार्ड और खूबसूरत तस्वीरें हमेशा भेजती रहती,अपनी शगुफ्ता अंटी से बे हद उन्स था । बचपन में छुट्टियों के दौरान जब भी वोह हिंदुस्तान आती हमारी ईद होजाती। साथ साथ जुहू,हैंगिंग गार्डन ,गेट वैय ऑफ़ इंडिया ,म्यूजियम ,घूमतें।गेम्स खेले जाते। हम लोगों  ने छोटा चेतन (3D ) और MR .India फ़िल्म साथ साथ देखि थी। मुझे आज भी वोह बात याद है बहुत छोटी थी खूबसूरत नया  फ्रिल का फ्रॉक पहन कर उसे हैंगिंग गार्डन लेजाया गया था। स्लाइड पर उतरते हुए उस का फ्रॉक फट गया था।  तब मम्मी ने उस कि खूब पिटाई कि थी। दूसरा वाक़या मई के महीने में वोह छुट्टी के दौरान रात भर दर्द से तड़पती रही। मुझे याद है वोह चिल्लाती थी "मम्मी हमारा पेट " हम सब को लगा शायद आम ज़यादा खाने से दर्द है।  सुबह डाक्टर  को बताने पर पता चला उसे अलसर का दर्द था।  emergency में ऑपरेशन कारवन पड़ा था।
             फिर कुवैत से लौटने के बाद FR Agnel में higher secondary में एडमिशन मिला। ज़हानत तो अपनी जगह थी। तेज़ी से तरक्की करने लगी। यहाँ भी छुट्टियों  में घूमने निकल जाते दादाभाई कि छोटी फियट हुवा करती खचा खच भर जाती तो में और समीरा स्कूटर पर पीछे पीछे चलते। मुझे आज भी वोह बात याद है जब समीरा मेरी स्कूटर पर उलटे रुख किये बैठी थी और हम लोग माथेरान गए थे। रास्ते भर तमाम लोग हमें देख  कर लुत्फ़ लेते रहे (दादाभाई के इंतेक़ाल से कुछ रोज़ पहले में ने यह वाक़या उन्हें सुनाया तो सुन कर मुस्करा पड़े थे )। बदला पूर कि नदी कि वोह ट्रिप भूलते नहीं भूलती। सब ने जम का नहाया था। वोह तस्वीरें आज भी उस वाक़ये कि याद ताज़ा कर देती है।
              वक़्त तेज़ी से गुज़रता रहा उस ने  अपने वालिद के नक़्श कदम पर engineering में दाखला लिया। मुझे एक वाक़िया याद आ रहा है जब वोह बहुत खौफ ज़दा हो गयी थी। कोलेज कि ट्रिप किसी झरने पर गयी थी तो वहाँ दो साथियों कि हादसे में मौत होगयी थी। उस वक़्त में ने उसे बहुत अपसेट देखा।
               इंजीनियरिंग के बाद उस ने कुछ वक़्त BSE में जॉब किया उस से में ,वहाँ मिला भी था। उस कि शादी में मैं शामिल न हो पाया था चूंके सूडान का नया नया जॉब था और शेडूल adjust करना मुश्किल था। लेकिन शादी से पहले उस ने मेरे घर पहला कंप्यूटर ज़रूर लगवा दिया था।
               बचपन से संजीदा मतीन थी। उम्र के साथ साथ उस कि संजीदगी में इज़ाफ़ा होता गया। शायद ही उस ने किसी के साथ बाद तमीजी या तल्ख़ कलामी कि हो। अमेरिका में उस ने अपनी ज़हानत के झंडे गाड़ दिए।  दादाभाई (अपने वालिद ) के ख्वाब में उस ने रंग  भर दिया। हिबा  कि पैदाईश के बाद बड़ी महन्तों से MS किया।समीरा की स्ट्रगल पर ये शेर सादिक़ आता है।
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
                अपने वालिद की मौत से ८ महीने पहले एक महीना साथ रह कर जिस खलुस से उस ने उन की खिदमत की में समझता हूँ उस ने बेटी होने का हक़ बहुत  हद तक अदा कर दिया और एक बड़े अजर की मुस्तहक़ हो गयी।
                आज जब वोह अपने दो बच्चों और शोहर के साथ, american शहरियत मिलने के बाद भी वोही सादगी और शराफत के साथ ज़िन्दगी गुज़ार  रही है शायद इसी को down to earth कहा जाता हो।
                अल्लाह से फिर एक बार दुआ गो हूँ उसे सहत के साथ लम्बी उम्र मिले ,ज़िन्दगी कि तमाम खुशियां नसीब हो और औलाद का सुख देखने को मिले। और वोह तमाम उम्र खुशहाल रहे, आमीन  सुमा आमीन।

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

Azhar Min Ashams

                                                     علی  ایم  شمسی
عربون سے جب پوچھا جاتا، تم کھاتے کیا ہو ؟ جواب ملتا اونٹ، پہنتے کیا ہو؟جواب ملتا  اونٹ، رہتے کہان ہو ؟جواب ملے گا اونٹ، سواری کس پر کرتے ہو؟ جواب ملے گا اونٹ ، مطلب یہ کے اونٹ کا گوشت کہھاتا ہون ،اونٹ کے چمڑے سے بنے کپڑے پہنتا ہون،چمڑے سے بنے خیمے مین رہتا  ہون –اونٹ کو صحرا کا شہپ کہا جاتا ہےسواری کرتا ہون–اسی مثال سے مجھے یاد آرہا ہے جب کویء سوال کرتا ہے نیرول مین مرکز فلاح کی بنیاد کس نے ڈالی جواب ملے گا جناب علی ایم شمسی نے،عیدین کی نماز کھلے میدان مین کس نے شروع کروای جواب ملے گا جناب علی ایم شمسی نے،میڈکل سینٹر ہو کے، صدقے باکس  تقصیم کروانے کی بات ہو، ہر جگہ جناب علی ایم شمسی کا ذکر ہوگا-اب تو یہ حال ہو گیا ہے کے مجھے پوچھا جاتا ہے کے آپ نیرول میں رہتے ہو ،مرکزفلاح کے ممبر ہو ،مین کہتا ہون ہان،کہا جاتا ہے وہ مرکز جس کے صدر جناب علی ایم شمسی ہے مین کہتا ہون ہا ن  بھہیء ہان –چونکے ۲۰ سال فارن جاب کرنے کے بعد جب ہندوستان لوٹا ہمین کوی ء نہی پہچانتا تھا –لوگ شمسی صاحب اور مرکز کی بنا پر ہمین پہچاننے لگے-اس موقعے پر گلزار کا ایک شعر صادق آتا ہے –
تمہارا نور ہے جو پڑ  رہا ہے چہرے پر
وگرنا کون مجھے دیکھتا اندھہیروںمیں
اکژ مین ان سے کہتا ہوں
تمہارے لہجے مین جو گرمی و حلاوت ہے
اسے بھلا سا کویء نام دو وفا کی جگہے
غنیم نور کا حملہ کہو اندہیرون مین
دیار درد میں آمد کہو بہاروں کی
شمسی صاحب کا مدہم لہجہ ہزارون کے مجموعے کو سحر زدہ کر دیتا ہے-بات  مین بات پیدہ کرنا کویء ان سے سیکھے –فی البدیح شعر پڑھنا اور سامنے والے کو لاجواب کر دینا –زندگی کی ڈایمنڈ جبلی پوری کر چکے ہین لیکن آج بہی حافظہ نوجوانون کو مات کر دیتا ہے-کییءسال پرانے واقعات سناتے وقت  یے محسوس ہوتا ہےمانو کل کا واقع  ہو-چال مین آج بہی وہی بانکپن ہے-ھات مین بزرگون کی طرح لاٹہھی لیکر چلنے کی بجاےءہزارون کے لےء مشعل راہ بنے ہوےء ہے-وہ مرکز فلاح کی میٹنگس ہو کے تنظیم والدین کے جلوس،کے افطار کے پروگرام،کے سیاسی اسٹیج پر ہزارون لوگون کے درمیان، اپنی بات  اوروں تک  پہچانے کا فن ان سے سیکھا جا سکتا ہے-کوی ء مشکل سے مشکل مسعلہ ہو ان کے مشورے سے چٹکیوں میں حل ہوتے دیکھا ہے-جو لوگ وقت کی تنگی کا رونا روتے ہین انہین وہ مشورہ دیتے ہیں کے "نیک کامون میں وقت لگانے سے وقت میں برکت ہوجاتی ہے-"اور اس قول کو اپنے عمل سے سچ کر دکھایا-آج دلی مین تو کبھی احمدابادمین تو کل پونا میں، اور ممبی مین تو آےدن انہیں سیمنارون،جلوسون،مشاعروں میں  صدر جلسہ کی کرسی پر دیکھا جا سکتا ہے-کبھی وقت کا رونا نہیں روتے-تندہی سے اپنے آپ کو سماجی کامون مین تن من دھن سے وقف کر دیا ہے-کوکن والے انہہے اپنی میراث بتاتے میرے نظر مین وہ ہندوستان کی جاگیر ہے-
           انہے ۳ سال کے وقفے مین اپنی کار بدلتے دیکھا ہے-شمسی صاحب کار بھلا کہان آپ کا  ساتھ دے سکتی ہے-پرودگار سے دعا ہے کے,آپ بےتکان قوم کی خدمت مین لگے رہے-شمسی شمس سے بنا ہے اور سورج کبھی  نہیں تھکتا-