सादिक़ साहब
उन्हें दुनिया से जा कर ३,५ महीने का वक़्त होगया है। भूलते नहीं भूलते। क्या शख्सियत थी ,क्या इंसान थे। अल्लाह उन्हे जन्नत नसीब करे। आर्ट ,अदब ,मज़हब ,फलसफा ,बहस मुबाहसे में माहिर।सामने वाले को अपनी दलीलों से कायल करना कोई उन से सीखें।
ग़रीब घर में जन्म लिया था। बाप कोर्ट से रिटायर्ड क्लेर्क,५५ रपये माहना पेंशन ,चार बचे घर में पड़ने वाले। घर में सबसे बड़े थे , बड़ी महनत् से स्कूल में टॉप किया। छोटा से गाव चोपड़ा से स्कूली तालिम खत्म करने के बाद इस्माइल युसूफ कोल्लेज मुंबई से इंटरमीडिएट का एग्जाम टॉप रैंकिंग में पास किया। IIT में दाखला मिल सकता था। मजबूरी VJTI मुम्बई से मेकनिकल इंजीनियरिंग में GRADUATION किया। पूरी तालीम स्कॉलरशिप मिला कर हासिल कि ,१९६७ कि बात है। फिर कुछ साल मेटल बॉक्स कम्पनी में MAITENANCE ENGINEERING के अहदे पर काम किया। ३० साल कुवैत में प्लस्टिक पैकजिंग कम्पनी में मैनेजर के फ़रायज़ अंजाम दिए। चार लड़कियों को इंजीनियर बनाया अमेरिका ,दुबई में लड़कियां अपने शौहरों का साथ खशहाल रहती है। हिंदुस्तान लौटने के बाद अपनी कम्पनी शुरू कि ५ साल खशस्लूबी से चलायी ,कहानी यही ख़त्म होजाती तो बहतर था। अल्लाह को कुछ और मंज़ूर था। पाबंद सौम व सलात तहज़ूद गूजर आदमी को अल्लअह कि जानिब से इम्तेहान लेना था। लाखों में एक आदमी को इस तरह कि बीमारी होती है। PSP डॉ ने हाथ टेक दिए। अमेरिका तक डाकटरों को दिखाया नतीजा वही ढाक के तीन पात। मर्ज़ बढ़ता गया जुजु दवाई कि। क्या अजीब बीमारी है। इंसान कि तमाम चीजें एक एक कर साथ छोड़ देती है। पहले याद दाश्त कमज़ोर हो गयी। पुरानी बचपन कि बातें जैसी कि तैसी याद थी। लेकिन ताज़ा ताज़ा वाक़ेआत भूलने लगे। मोबाइल फ़ोन पानी में गिरा देते। कितनि बार नए मोबाइल दिलाना पड़े। फिर ज़बान लड़खड़ाने लगी। बार बार गिरने लगे,बैलेंस ही न रहा। व्हील चैर पर बिठा दिया गया। TV चलना भूल गए। आँखों से साथ छोड़ दिया। आखिर में खाना निगलने में परेशानी होगयी तो हलक़ में TUBE डाल कर खाना खिलान पड़ता। आखिर के ६ महीने तो बिस्तर पकड़ लिया। पलक भी न झपकते थे।
कुछ दिन यूं भी रंग रहा इंतज़ार का
आँख उठ गयी जिधर को उधर देखते रहें
जीवन साथी बीवी ने वोह खिदमत् कि के तमाम फ़र्ज़ अदा कर दिया। १२ दिसंबर २०१३ रात ८. बजे आखरी साँस ली तकलीफों ,परेशानियों से नजात पायी।
उन्हें दुनिया से जा कर ३,५ महीने का वक़्त होगया है। भूलते नहीं भूलते। क्या शख्सियत थी ,क्या इंसान थे। अल्लाह उन्हे जन्नत नसीब करे। आर्ट ,अदब ,मज़हब ,फलसफा ,बहस मुबाहसे में माहिर।सामने वाले को अपनी दलीलों से कायल करना कोई उन से सीखें।
ग़रीब घर में जन्म लिया था। बाप कोर्ट से रिटायर्ड क्लेर्क,५५ रपये माहना पेंशन ,चार बचे घर में पड़ने वाले। घर में सबसे बड़े थे , बड़ी महनत् से स्कूल में टॉप किया। छोटा से गाव चोपड़ा से स्कूली तालिम खत्म करने के बाद इस्माइल युसूफ कोल्लेज मुंबई से इंटरमीडिएट का एग्जाम टॉप रैंकिंग में पास किया। IIT में दाखला मिल सकता था। मजबूरी VJTI मुम्बई से मेकनिकल इंजीनियरिंग में GRADUATION किया। पूरी तालीम स्कॉलरशिप मिला कर हासिल कि ,१९६७ कि बात है। फिर कुछ साल मेटल बॉक्स कम्पनी में MAITENANCE ENGINEERING के अहदे पर काम किया। ३० साल कुवैत में प्लस्टिक पैकजिंग कम्पनी में मैनेजर के फ़रायज़ अंजाम दिए। चार लड़कियों को इंजीनियर बनाया अमेरिका ,दुबई में लड़कियां अपने शौहरों का साथ खशहाल रहती है। हिंदुस्तान लौटने के बाद अपनी कम्पनी शुरू कि ५ साल खशस्लूबी से चलायी ,कहानी यही ख़त्म होजाती तो बहतर था। अल्लाह को कुछ और मंज़ूर था। पाबंद सौम व सलात तहज़ूद गूजर आदमी को अल्लअह कि जानिब से इम्तेहान लेना था। लाखों में एक आदमी को इस तरह कि बीमारी होती है। PSP डॉ ने हाथ टेक दिए। अमेरिका तक डाकटरों को दिखाया नतीजा वही ढाक के तीन पात। मर्ज़ बढ़ता गया जुजु दवाई कि। क्या अजीब बीमारी है। इंसान कि तमाम चीजें एक एक कर साथ छोड़ देती है। पहले याद दाश्त कमज़ोर हो गयी। पुरानी बचपन कि बातें जैसी कि तैसी याद थी। लेकिन ताज़ा ताज़ा वाक़ेआत भूलने लगे। मोबाइल फ़ोन पानी में गिरा देते। कितनि बार नए मोबाइल दिलाना पड़े। फिर ज़बान लड़खड़ाने लगी। बार बार गिरने लगे,बैलेंस ही न रहा। व्हील चैर पर बिठा दिया गया। TV चलना भूल गए। आँखों से साथ छोड़ दिया। आखिर में खाना निगलने में परेशानी होगयी तो हलक़ में TUBE डाल कर खाना खिलान पड़ता। आखिर के ६ महीने तो बिस्तर पकड़ लिया। पलक भी न झपकते थे।
कुछ दिन यूं भी रंग रहा इंतज़ार का
आँख उठ गयी जिधर को उधर देखते रहें
जीवन साथी बीवी ने वोह खिदमत् कि के तमाम फ़र्ज़ अदा कर दिया। १२ दिसंबर २०१३ रात ८. बजे आखरी साँस ली तकलीफों ,परेशानियों से नजात पायी।