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With shahid Aslam,Mobinuddin Malik Hamidoddin |
Shazeb waleema at salman hall
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With Mobinuddin Malik and Hamidoddin at Waleema |
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
भागती दौड़ती दुनिया में ,रूटीन से हट कर कुछ लम्हे अपने नाम भी करना ज़रूरी होजाता है। ५ दिन औरंगाबाद में गुज़ार कर यु लगा जैसे किसी रेगिस्तान से गुज़रते कुछ लम्हे कुछ पल नखलिस्तान (oasis ) में गुज़ार कर ताज़ा दम होगया हूँ। मौक़ा था इरफ़ान मुंशी के घर उनके फ़रज़न्द अबुज़र और अक़्सा ज़मानी का वलीमा उनकी दुख्तर ज़ारा और शाजेब का निकाह और रिसेप्शन। हमें (शगुफ्ता और मुझे) बड़े इसरार से बुलाया गया था। अब्दुल रहीम साहेब (शाजेब के वालेदैन ) ने एक साल क़ब्ल नासिक की शादी में हमें न्योता दे दिया था। अबुज़र का निकाह नंदुरबार में होचुका था। और ५ फेब्रुअरी २०२५ को वलीमा था। ५ फेब्रुअरी २०२५ को ज़ारा का निकाह शाजेब के हमराह आयेशा मस्जिद हिमायत नगर /चाउश कॉलोनी में बाद नमाज़े असर हुवा।
ख़ुशी है सब को रोज़ ईद की यां
हुए हैं मिल के बाहम आशना खुश
रात बाद मग़रिब बाद कोहेनूर लॉन (आज़ाद कॉलेज के नज़्द ) असराना ( रिसेप्शन ) में , दोनों नए शादी शुदा जोड़ों की ख़ुशी में हम सब शरीक थे। धुले ,नंदुरबार ,कल्याण ,मुंबई, नासिक ,नवसारी से मेहमान तशरीफ़ लाये थे। मौसम भी खुशगवार था। खाना भी मज़ेदार था सब ने लुत्फ़ उठाया। औरतों के लिए परदे का इंतेज़ाम था। बड़ी ख़ुशी हुयी ,न म्यूजिक न डांस बड़ी सादगी से वलीमे की रस्म अदा हो रही थी। आज कल जो नुमाईश और चकाचौंद शादियों में हो रही है कही न कही अल्लाह की नाराज़गी का सबब बन रही है।
ऐसे मौके पर लोगों से मिलने मिलाने का सिलसिला दिलचस्पी की वजह बन जाता है। हमिद शैख़ मेरा भतीजा होता है लेकिन हम हमेशा दोस्तों की तरह रहे हैं। मिलते हैं तो लगता है दुनिया जहां की नेमतें मिल गयी बातों का सिलसिला ख़त्म नहीं होता। सलीम सय्यद (नवसारी ) ,परवेज़ और इक़रा खानदेश की पूरी टीम मौजूद थी फर्दन फर्दन सब से मुलाक़ात और गप शप हुयी , रागिब अहमद (Motivator ) साहब से सैर अमेज़ गुफ़्तत्गु हुयी बहुत कुछ नया जानने का मौक़ा मिला। मुबीनुद्दीन मालिक से गड़बड़ी में शायरी नहीं सुन पाए क़लक रहा। सोने पे सुहागा जनाब हसींन मुंशी से अरसे बाद मिल कर तबियत बाग़ बाग़ होगयी।
दूसरे दिन ६ फेबरवरी २०२५ जनाब अब्दुल अब्दुल रहीम शैख़ साहेब की जानिब से सलमान हॉल नज़्द दिल्ली गेट औरंगाबाद में वलीमे का इंतेज़ाम किया गया था। अब्दुल रहीम शैख़ साहेब बड़े खुश मिज़ाज तबियत रखते हैं। बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक से रिटायर हुए है अपनी तीनो औलादों की बेहतरीन तरबियत की है। नौशे मिया ( शाजेब )माशाल्लाह UPSC के लिए appear होने वाले हैं। उनके रोशन मुस्तकबिल के लिए नेक ख्वाहिशात। मुनाफ मंज़ूर अली सय्यद साहब से फ़ोन पर गुफ्तगू हुयी तो अकदा खुला के कडु मिया शैख़ से उनकी क़रीब की रिश्तेदारी है। इसी मौके पर पहली बार औरंगाबाद की नामवर डिश नान खलिया खाने को मिली बहुत मज़ा आया।
वो फूल सर चढ़ा जो चमन से निकल गया
इज़्ज़त उसे मिली जो वतन से निकल गया
खान्देशियों ने जिस जगह भी हिजरत करके उस मुक़ाम को अपना वतन बनाया। बे-इन्तहा तर्रकी हासिल की। खान्देशियों की खासियत है हर माहौल में बखूबी ढल जाते है, जिस तरह शकर नमक पानी में घुल जाते हैं। इरफ़ान मुंशी ने हिमायत नगर (चाउश कॉलोनी ) में अर्फी मंज़िल तामीर की। कल्याण को अलविदा कह कर एक नयी दुनिया आबाद की। अपने बच्चों के साथ मिल कर रेडी मेड कपड़ों की तिजारत शुरू की और कामयाब भी हुए माशाल्लाह क़ाबिले सताइश है। उनके दो सपूत दुबई में जॉब कर रहे हैं। अपने उम्र रसीदा वालिदैन की खिदमत भी आरिफा इरफ़ान दिलो जान से कर रहे हैं , सताइश के क़ाबिल है। अल्लाह उनके कामों में और बरकत आता करे।
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार
नज़रों में जज़्ब होगये दिल में उतर गए
रहीमुद्दीन शैख़ से मिल कर कुछ ऐसा ही लगा। आप बहादर पुर से बिलोंग करते हैं। मुझे भी एरंडोल बहदर पुर से निस्बत रही है। बचपन में बहादरपुरी होने पर कुछ adverse comments (तन्ज़िया कलमात ) सुनने को मिलते थे। ये लोगों के ज़हन की उपज थी। आज बहादरपुरियों की मिसाल पेश की जा सकती है। रहीमुद्दीन शैख़ साहेब बड़े disciplined ,वक़्त के पाबंद वाक़े हुए है। अल्लाह उनकी और इज़्ज़त बढ़ाये।
ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे शायद के खराबों में मिले
नसीम खाला ,मेरी खाला और शगुफ्ता की फूफी होती है जब भी मिलता हु , मोहबत का मतलब समझ में आता है। खाला अम्मा से मिलकर मरहूम शराफत अली जनाब की यादें यादें ताज़ा होगयी। अपने नाम की तरह उनमे शराफत कूट कूट कर भरी थी। अल्लाह जन्नत के आला दरजात आता करे आमीन । रईस ,इल्मान ,ज़ीनत से भी मिल कर बे इन्तहा ख़ुशी हुयी,रोशन गेट सादात मस्जिद के क़रीब, उनके घर जा कर मुलाक़ात की । इस खानदान ने भी माशाल्लाह बहुत तर्रकी की है। अल्लाह मज़ीद तर्रकी आता करे आमीन।
सैरे हासिलऔरंगाबाद की रिहाइश पुर लुत्फ़ रही।