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मरहूम हाजी क़मरुद्दीन मुंशी |
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मरहूम हाजी क़मरुद्दीन अवार्ड लेते हुवे |
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हज को जाते हाजी क़मरुद्दीन मुंशी और हज्जन अहलिया रज़िया बेगम |
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मरहूम क़मरुद्दीन अपने पोते पोती नवासे नवासी के दरमियान |
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सुहिला ,मरहूमा रज़िया बेगम,तारिक़ ,मरहूम क़मरुद्दीन मुंशी ,समीना |
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मरहूम हाजी क़मरुद्दीन मुंशी |
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मरहूम हाजी क़मरुद्दीन अवार्ड लेते हुवे |
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हज को जाते हाजी क़मरुद्दीन मुंशी और हज्जन अहलिया रज़िया बेगम |
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मरहूम क़मरुद्दीन अपने पोते पोती नवासे नवासी के दरमियान |
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सुहिला ,मरहूमा रज़िया बेगम,तारिक़ ,मरहूम क़मरुद्दीन मुंशी ,समीना |
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अपनी अहलिया शाहिना बेगम के साथ |
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मरहूम शकील अहमद सैय्यद |
मरहूम शकील अहमद तारीखे पैदाइश :22nd Feb 1960 वफ़ात :27 March 2021 (13 शाबान 1442 ) नवापुर के शहरे ख़मोशा (बड़े कबरस्तान ) में नया इज़ाफ़ा हुवा ,शकील अहमद भी हम सब को छोड़ कर अपने चाचाओं ,बड़े अब्बा बड़ी अम्मी और अपने अब्बा ,अम्मी के दरमियाँ पहुँच गए।
तुम्हारे चले जाने से एक ख़ला (vacuum ) होगया है जिस का अज़ाला भरपाई नामुमकिन है।
निक़हत के से साथ ३५ साला लम्बा अरसा गुज़ार कर तुम उसे तन्हा छोड़ गए ,फैज़ान की खुशिया चली गयी ,नवासे पोतो के सर से शफ़क़त उठ गयी ,सादिया व नौशीन ने अज़ीज़ वालिद खोया ,नाहिद ,नाज़ेरा ,ज़ाकिर ,ज़की ,शफ़ीक़ ने अपने हरदिलअजीज भाई शकील दादा की क़ुरबते रफ़ाक़ते खोयी। ईमान वाले को रज़ाए इलाही के सामने तस्लीम ख़म करना वाजिब है। हम अल्लाह की तरफ से आये हैं उसी की तरफ़ लौटने वाले हैं। अगर जन्नत मिल जाये तो ये सब से बड़ी कामयाबी है। अजीब इत्तेफ़ाक़ मग़रिब की अज़ान के वक़्त मरहूम शकील अहमद की रूह क़ज़ा हुवी। गवाहों ने शहादत दी है जिस वेहिकल से उनेह हॉस्पिटल पुह्चाया जा रहा था मरहूम की ज़बान पर तीनो इब्तेदाई कलमों का विरद ज़ोर शोर से जारी था। हॉस्पिटल पहुंचने पर डॉक्टर को सलाम किया ,वहां बैठे मरीज़ों की खैरियत पूँछी ,बाद में अपने अपनी जेबे तलाशने लगे। किसी ने पूछा क्या तलाश कर रहे हो कहा" तस्बीह"। फिर किसी साथी ने लकड़ी की तस्बीह हदिया की तो मरहूम मसरूर हुवे , तब्बसुम के साथ दुआ दी।पहली निशानी मरहूम शकील की जन्नती/शहीद होने की हमेशा ज़बान अल्लाह की याद से भीगी रहती है। माशाल्लाह मरहूम आखरी वक़्त तक अल्लाह के ज़िक्र में मसरूफ रहे ,मुस्कुराते रूह कब्ज़ हुवी।
जान दी,दी हुवी उसी की थी
हक़ तो ये है के हक़ अदा न हुवा
मरहूम शकील ने सौरूप सिंह नायक कॉलेज नवापुर से B.A तक तालीम हासिल की थी ,मगर पेशा अपनाया (नबी S.A.S का ) यानि कारोबार (business ) , मरहूम ने अपने वालिद ज़ियावोद्दीन के ज़ेरे साया झामंजर ,भड़भूँजा में ईमानदारी,लगन और मेहनत से दुकानदारी सीखी । फिर अपने हौसले और हिम्मत से नवापुर के सुनसान /बंजर इलाक़े ,देवल फली में अपना कारोबार शुरू किया। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का वादा है ईमानदार ताजिर का अंजाम औलियाओ नेक नामो के साथ होगा। मरहूम ने ज़िन्दगी भर ईमानदारी से तिजारत की ,घर भी मस्जिद के करीब बनाया।
जन्नती होने की दूसरी निशानी।
हमने हर गाम पे सजदों के जलाये हैं चराग़
अब तेरी राह गुज़र राह गुज़र लगती है
इस्लामपुरा की मस्जिद में मरहूम शकील अहमद नमाज़ अदा करते थे। अज़ान होते ही मरहूम घर से वज़ू कर के दुकान अल्लाह के हवाले कर मस्जिद रवाना होजाते ,इस्लामपुरा मस्जिद का हर गोशा (कोना ) हश्र में मरहूम के सजदों की इंशाल्लाह गवाही देंगा। अल्लाह रअबुलइज़्ज़त का वादा है ,एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ के इंतज़ार में रहने वाले मोमिन को क़यामत में अर्शे के साये में पनाह मिलेंगी।
मरहूम शकील अहमद की खुश मिज़ाजी की गवाही तमाम नवापुर शहर देता है। चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट सजी होती। मुस्कराहट भी इस्लाम में सदक़ा होती है ,बहुत कम लोगों को ये खुश नसीबी हासिल होती है। मरहूम क्रिकेट के शौक़ीन थे ,मैंने उनेह खेलते देखा हूँ।
मरहूम ने दोनों बेटियों की शादी मारूफ घराने में कराई। अपने फ़रज़न्द फैज़ान की भी शादी करवाई, कारोबार की ABACD सिखाई किसे पता था इतनी जल्द उस मासूम के कन्धों पर ये ज़िम्मेदारी मुन्तक़िल होजाएंगी।
उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे कल जिस के मुस्कुराने से
मौत बरहक़ है "आज वो कल हमारी बारी है " नवापुर में रिश्तेदारों के बच्चों के तक़सीम इनामात के प्रोग्राम में उनसे आखरी मुलाक़ात हुवी थी। बहुत नसीहत अमेज़ तक़रीर की थी। इनामात उनके हाथों से तक़सीम किये जाने पर ख़ुशी का इज़हार भी किया था।
यु तो हर एक को जाना है इस ज़माने से
मौत तो वो है जिस पे ज़माना करे अफ़सोस
अल्लाह मरहूम शकील अहमद की मग़फ़िरत करे ,जन्नत में आला मुक़ाम आता करे ,घर के तमाम अफ़राद को सब्र जमील आता करे ,आमीन सुम्मा