बुधवार, 24 मार्च 2021

khushbu jaise log mile

खुशबू जैसे लोग मिले 

अल्हाज सय्यद मखदूम अली 


तारीखे पैदाइश : ३० मई १९५४
मखदूम अली ने रमजान अली के घर जन्म लिया था।  लेकिन  उनकी परवरिश उनके मामू जनाब मुरकोबोद्दीन शैख़ के घर जलगाओं में हुयी। 
"If you are born poor, it is not your mistake ,but if you die poor ,its your fault " ( Bill Gates )
जनाब मखदूम अली पर ये कहावत  १०० % सुच साबित होती  है। 
अल्हाज मखदूम अली ने १९६७ में फाइनल का इम्तेहान जिल्ला परिषद् स्कूल नंबर १० जलगांव  से पास किया । उनकी  स्कूल में चरखा कातना  सिखाया  जाता था। चरखा चलाना मुश्किल होता है। यही से मुश्किलात का सामना करने  की आदत हो गयी। 
एंग्लो उर्दू स्कूल जलगाँव से मेट्रिक का इम्तेहान १९७१ में फर्स्ट डिवीज़न में पास किया। जलगांव में अपने मामू  मुराकोबोद्दिन के साथ रहा करते थे ,जो पेशे से auditor हुवा करते।  बचपन में  अम्मी का इंतेक़ाल हो गया था , मुमानी( मुबा )की शफ़्क़तें साथ थी ,दोनों ( मामू  और मुमानी ) ने ,कभी भी माँ बाप की कमी महसूस नहीं होने दी। नाना रियासुद्दीन मशहूर हक़ीम नसीराबाद से मेडिकल अफसर की पोस्ट से रिटायर हुवे थे मखदूम साहब की  ज़हनी तरबियत में , आपने अहम् रोले अदा किया। मेट्रिक में "सेकंड लैंग्वेज सभी साथियों ने पर्शियन ली थी। जनाब  मखदूम  साहेब ने ,दूर अंदेशी दिखाई , रियासती ज़बान मराठी को फौकियत दी। शायद मरहूम इस्माइल सर और मामू मुराकोबद्दीन  ने इस तरफ तवज्जो /रग़बत दिलाई हो। उसी ज़माने से मखदूम अली को मराठी पर उबूर हासिल था जो आज भी है ,और शायद MPSC एग्जाम पास करने में मराठी जानने पर सहूलत भी हुयी।  आज भी क़ौम के बच्चों को मराठी लैंग्वेज की अहमियत का एहसास  दिलाने ,मराठी को आसान बना कर सीखाने ,समझाने का बेडा उठा रखा है ,रिटायरमेंट के बाद भी  दिलों जान से  मौसूफ़ मसरूफ़ है। 
एम्. जे कॉलेज जलगांव से B.COM  करने के बाद पाचोरा में Teaching  की साथ साथ M. COM का 
exam भी पास किया। 
 मेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा 
ग्रेजुएशन के बाद कुछ अरसा टीचिंग का पेशा इख़्तियार किया। 
MPSC का exam बग़ैर किसी guidance के  पास  करना जुवे शीर निकलने से कम  नहीं मौसूफ़ ने वो  भी कर दिखाया। फिर  महाराष्ट्र गवर्नमेंट से Accounts Officer के ओहदे तक तररकी पा कर जनाब मखदूम अली  रिटायर हुवे। 
हम अपने पैरों में न जाने कितने भॅवर लपेटे हुवे पड़े हैं 
रिटायरमेंट के  बाद लोग चैन की बांसुरी बचाते है।  मखदूम अली साहब ने मुंबई  यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म में डिप्लोमा  किया जो उनका  देरीना ख़्वाब  था। 
मौत क्या है थकन ख्यालों की 
ज़िन्दगी क्या है दम ब दम चलना 
रिश्तेदारी में बच्चों की तालीम की  ग़र्ज़ से इक़रा खानदेश ट्रस्ट की बुनियाद डाली गयी,मखदूम अली को उनकी अहलियत देखते हुए treasurer का ओहदा दिया गया । आप ,आप के फ़रज़न्द इमरान, भाभी यास्मीन ,बहु रुखसार  भी ट्रस्ट के कामों में जान व तन से लगे हैं। अल्लाह जज़ाए खैर आता करे। 
अतनी मसरूफियत के आलावा,आप अपनी हाउसिंग सोसाइटी के सेक्रेटरी भी है। 
कोई बतलादे के एक उम्र का बिछड़ा मेहबूब 
इत्तेफ़ाक़न कही मिल जाये तो क्या कहते हैं ?
१९७१ साल में मीट्रिक का इम्तेहान पास  करने वाली बैच का reunion एंग्लो उर्दू स्कूल जलगांव में २५ दिसंबर २०२१ को जनाब मखदूम अली साहेब की काविशों का नतीजा था । ५० साल  पुराने साथियों को मिलाने का सेहरा उनिहि को जाता है। 
४ सितम्बर २०२२ को जलगांव में  prize distribution Program  जो इक़रा खानदेश फाउंडेशन की जानिब से organize किया गया है ,हाजी मखदूम अली साहब की सदारत में होने जा रहा है। 
अल्लाह ने  फ़रमा बरदार औलाद से नवाज़ा हैं। सीमा बेटी MBA है , बेटा इमरान इंजीनियर है। दोनों आला ओहदों पर फ़ाइज़ हैं। भाभी यास्मीन स्कूल की मुलाज़मत से सुबाकदोष होगयी है। 
 मखदूम अली खानदानी सैयद थे ही ,अल्लाह ने हज की सआदत नसीब करदी ,रुतबा और बुलुंद होगया। 

अल्लाह तमाम खानदाने मखदूम अली पर अपनी  इनायत रखे आमीन सुम्मा आमीन। 


बशीर सैयद  ,रागिब अहमद ,मखदूम अली (धुले तक़सीम इनामात प्रोग्राम )

रविवार, 21 मार्च 2021

रज़ीउद्दीन (खालू जान )


                                       मरहूम अल्हाज रज़ीउद्दीन और अहलिया अकीला बी 

 
L to R मरहूम ग़ुलाम मोहियुद्दीन ,मरहूम अल्हाज रज़ीउद्दीन , जनाब साबिर अली ,मरहूम सईद अहमद ,Adv नियाज़ 
                                                            एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया 
६ दिसंबर २०१३ को  सुबह होलनाक खबर से दोचार हुवा अल्हाज रज़ीउद्दीन इंतेक़ाल कर गए । १३ दिसंबर २०१३ को अल्हाज सादिक़ अहमद इस दुनिया से रुखसत हुवे। २०१४ में अल्हाज सईद अहमद का इन्तेक़ाल  हुवा। अजीब इत्तेफ़ाक़ था तीनो एक दूसरे के बहुत करीब हुवा करते थे। मेरी ज़िन्दगी में इन क़रीबी बुज़र्गों के एक साथ रुखसत होने से एक ख़ला होगया 
                                                    मंज़िल की हो तलाश तो दामन जुनू का थाम 
मरहूम रज़ीउद्दीन रिश्ते में मेरे सगे खालू  थे ,लेकिन में ने कभी बुज़र्ग नहीं समझा। १९७१ में हम दोनों ने एक साथ मेट्रिक का एग्जाम पास किया था। हम दोनों की उम्र में काफी फ़र्क़ था। में हमेशा उनेह अपना क्लास मेट कह कर लोगों से तार्रुफ़  करावाता। वो मुस्करा कर कहते "क्या ग़ज़ब रागिब मिया "  
मरहूम रज़ीउद्दीन इतनी उम्र में भी हमारे वालिद हाजी क़मरुद्दीन से मैथ्स के मुश्किल सवालात समझने एरंडोल से जलगाव आते ,  हालाँकि खुद टीचर थे। अब्बा ट्यूशन पढ़ाते थे। हम बच्चों के साथ बैठ कर सीखने में उनोहने कभी छोटापन महसूस नहीं किया ।  हम दोनों का एक ही सेंटर पर मेट्रिक एग्जाम का नंबर आया।,दोनों ने साथ साथ एग्जाम पास किया ,मुझे अपने से ज़ियादा ,उनके पास होने की ख़ुशी थी, क्यूंकि अक्सर ये होता है ,एक उम्र के बाद जिंदिगी ठहर जाती है ,आदमी ज़द्दो जहद से जी चुराता है।   मरहूम ने एक उम्र के बाद  तालीम का सिलसिला शुरू किया ,तर्रकी हासिल करनी थी, हेड मास्टर बनना था,अपनी लगन ,महनत से मेट्रिक भी पास किया और  अपने हदफ़ ,हेड मास्टर बनने को सच कर दिखया । 
वो इत्र दान सा लेहजा हमारे बुज़र्गों का 
मरहूम को उर्दू पर उबूर (command ) हासिल था। लफ़्ज़ों के तलफ़्फ़ुज़ ,जुमलों की बंदिश दिल चाहता था "वो कहा करे में सुना करू " जब मुंबई से जलगांव आना होता ,उनसे मुलाक़ात करने ज़रूर एरंडोल जाता। बहुत खुश होते।   तरह तरह की dishes तैयार करवा के मेहमान नवाज़ी करते। अजब दिलनवाज़ बातें हुवा करती थी उनकी। 
दिल चाहता था बातों का ये सिलसिला कभी खत्म न हो। 
उनसे जुदा होते वक़्त महसूस होता था। 
तेरी कुर्बत के लम्हे फूल जैसे 
मगर फूलों की उमरें मुख़्तसर हैं 
मरहूम के मिज़ाज में सादगी थी। एक  मर्तबा में ने उनसे कहा घर में टेलीफोन क्यों नहीं लगवा लेते ,फरमाने लगे "एरंडोल में एक मारवड़ी ने घर में टेलीफोन लगवाया उसकी इनकम टैक्स इन्क्वायरी आ गयी। 
मरहूम ने टीचरी के साथ साथ कारोबार भी किया। बड़े बड़े फलों के बाग़ात मियाद पर खरीद लिया करते मुंबई ,नागपुर और राजस्थान तक उनके फ्रूट सप्लाई होते थे। खालिद मिया को अपने साथ रख कर माहिर कारोबारी बना दिया। 
खाला जान अकीला माशाल्लाह हयात है ,अल्लाह सेहत तंदुरुस्ती के साथ लम्बी उम्र अता करे। अल्लाह ने उनेह नर्म दिल अता किया है। जब भी उनसे मुलाक़ात होती है  ,जज़्बाती होजाती है। ढेरों दुवाओं से नवाज़ती है।  नीलोफर भाभी जान ,खालिद ,साजिद ,शाबान सबीना ने ,सग्गे भाई बहनों की तरह उन्सियत ,अपना पन दिया । अल्लाह इसी तरह इन रिश्तों में क़ुरबत ,मोहब्बत बाक़ी रखे। आमीन सुम्मा आमीन।