Marhum wajoohoddin aur Marhuma Shameem akhtar ki yadgaar tasweer |
Marhum wajihoddin Munshi (Shaikh) |
एक सूरज था सितारों के घराने से उठा
आँख हैरान है क्या शख्स ज़माने से उठा
नाम : वजीहुद्दीन मुंशी (शैख़) तारीख़े पैदाइश : ०१/०६/१९१७ (ब्यावल ) वफात : १६/०४/१९९५ (चोपड़ा )
वालिद का नाम : मोजोद्दिन , वालिदा का नाम : बादशाह बी , बीवी का नाम :शमीम अख्तर
भाई : कमरूदीन ,हसिनोददीन ,शफीउद्दीन ,मोइनुद्दीन (गामा )
बहने :ख़ुर्शीद (पाकिस्तान), इफरा (मुलुंड मुंबई ), नज्मा (मुंबई), शाकिरा (मुंबई),मेहरुन्निसा (नवापुर )
औलाद : खालिदा अदीब कमर अली सैयद (धुले),अनीस खातून ज़ैनुलआबेदीन सैयद (नवापुर ),शाइस्ता बेगम युसूफ अली (चोपड़ा ),शहनाज़ बेगम मुशिरोद्दीन (नंदुरबार)
तालीम (Education ):
१. सातवीं (१९३३ ) जिल्ला परिषद् उर्दू स्कूल (ब्यावल )
२. मेट्रिक (१९३६ ) धुले
शादी : १९३९ शमीम अख्तर से
नौकरी /Service :
१. १९४२ : दहानू :सब इंस्पेक्टर (Prohibition and excise )
२. तिलक नगर : इंस्पेक्टर (P & E )
३.पालघर : इंस्पेक्टर (P &E )
४. मुंबई : सर्किल इंस्पेक्टर (P & E )
५. परभणी : डिप्टी सुप्रिंटेंडेंट (P & E )
६. नांदेड़ : सुप्रिंटेंडेंट (P & E )
७.रिटायरमेंट : 6th मई १९७६। रिटायरमेंट के बाद इंतेक़ाल तक मरहूम का क़याम चोपड़े में रहा।
मरहूम वाजिहुद्दीन मुंशी ,नाम की तरह उनकी शख्सियत (personality ) भी वजीह (impressive )थी। ६ फ़ीट से निकलता कद ,उनकी आवाज़ सुन कर लोग मरऊब ( impress )होजाते थे। क़े इन सिंघ ,उस ज़माने के मशहूर फिल्म स्टार से किसी कदर उनकी मुशाबिहत (similarity ) थी। अंग्रेज़ों के साथ काम कर चुके थे इसलिए उनकी drafting माशाल्लाह नमूने की हैसियत रखती थी। मरहूम ने जिंदिगी के भरपुर लुत्फ़ उठाये ,उस ज़माने में ऊनके पास Ambassador कार थी खुद का ड्राइवर था। घर में type writer था। तानपुरा ,तबला , Projector , Record player ,और फोन भी था। उस दौर में ये तमाम सामान जो ख्वाब में भी देखे नहीं जा सकते थे ,उनके खुद की मिलकियत के थे। कई अंग्रेजी रोज़नामा का मुतालेआ (Reading ) मरहूम रोज़ किया करते थे। उस ज़माने में उनके घर चपरासियों का एक हुजूम घर के कामों में लगा रहता था। रोज़ सुबह अपने ऑफिस।,जो घर से करीब था मरहूम अपने स्टाफ की parade लिया करते थे। मरहूम ने अपनी मेहनत , ईमानदारी से अपने रिटायरमेंट तक सुप्रिंटेंडेंट पोस्ट तक तरक़्क़ी की जो बहुत काम लोगों को नसीब होता है। उनसे सुना है के बॉम्बे में मीनाकुमारी, कई ५ स्टार होटल्स के मैनेजर ,बड़े बड़े मैनेजर ,उद्योग पति उनसे contact में रहा करते थे।
मुंबई की रिहाइश के दौरान हमेशा अपने दामादों ,बेटियों ,नवासे और निवासियों को कार से बॉम्बे की सैर कराते और ५ स्टार होटल में दावत करते थे।
मरहूम वाजिहुद्दीन साहेब ने जो काम ज़रीन लफ़्ज़ों से लिखने का किया, वो था करीबी रिश्तेदारों और जान पहचान वालों को Multi natioal कम्पनीज और गवर्नमेंट में अपने रुसूख़ से जॉब दिलवाया। ब्रूक बांड ,लिप्टन और hoechst Pharma में कुछ लोगों को नौकरी दिलवाई और उनोह ने बेहद तरक़्क़ी की। मुबीन दादा बरोडे वाले जब यादों की गठरी खोलते है तो ये बात ज़रूर बताते हैं के किस तरह मरहूम वाजिहुद्दीन ने उनेह बॉम्बे बुलवाकर Navy में radio operator का जॉब दिलवाया था। बदकिस्मती से उनके वालिदैन की इजाज़त न मिलने पर वो जॉब ज्वाइन नहीं कर सके। इंशाल्लाह इन लोगों की दुवाओं की बदौलत अल्लाह ज़रूर उनेह जन्नत में ऊँचा मक़ाम अता करेंगा आखरी उम्र में मरहूम ने अपनी अहलिया के साथ, १९९० में अपनी बड़ी बहन से मुलाक़ात के लिए पाकिस्तान का सफर भी किया था।
क्या लोग थे ,जो राहे वफ़ा से गुज़र गए
दिल चाहता है नक़्शे क़दम चूमते चले
चोपड़े में रिटायरमेंट के बाद भी उनके फलाह (भलाई ) के कामों का सिलसिला जारी रहा। मरहूम हर साल ग़रीब बच्चों में स्कूल यूनिफार्म तक़सीम किया करते थे। उनके नवासे परवेज़ (नवापुर ) और नवासी शगुफ्ता रागिब ने आँखों से देखा है और यूनिफार्म की तक़सीम में हिस्सा भी लिया है। दोनों ईद पर उनके घर बेवाओं ,यतीमों और फ़क़ीरों की भीड़ जमा होजाती थी और वो अपने हातों से इन ज़रुरत मंदों में अतियत तक़सीम करके खुश होते थे।
अल्लाह से उम्मीद है उनके नेक कामों के बदले उनेह जन्नत फिरदोस में आला मुक़ाम हासिल होगा (इंशाल्लाह )
अल्लाह मरहूम वाजिहुद्दीन की मग़फ़िरत करे दरजात बुलंद करें।