शुक्रवार, 12 जून 2020

किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते है

                                              
     आज फिर याद का तूफ़ान उठा है दिल में
     आज फिर दर्द के सेहरा से गुज़रना होंगा
  १२ डिसेम्बर १९१३ जूमेरात  मगरिब  नमाज़ के बाद ,उस दिन  भाभी  जूबेदा  दादा भाई  के साथ अकेली थी ।उजमा जिसने ददाभाई की ख़िदमत में दिन रात एक कर दिया ,था दुबई में थी ।उसी रोज़ अल्लाह ने मलकुल मौत को ददाभाई की रूह क़ब्ज़ करने का हुक्म दिया । शगूफता ,हिना और मैं ख़ुशक़िस्मत थे उनके इनतेकाल के चंद लमहों के बाद उन तक पहुँच सके।आख़िर के दो साल दादाभाई ने बड़ी करब  व बला में गुज़ारे थे और भाभी जान उनसे साये कि तरह चिमटी रही, बेलूस ख़िदमत अंजाम दी ।दादाभाई उस समय तमाम जज़्बात से परे पहुँच चुके थे।टिकटिकि बांधे पड़े रहते ।
कुछ दिन यूँ भी रंग रहा इंतज़ार का 
आँख उठ गयी जिधर को उधर देखते रहे 
१० नोवेम्बर-२०१३ को जो रिश्ता क़ायम हूवाँ था ४० साल पूरे होने से पहले एक झटके में टूट गया 
मौत से किस को रस्तगारी है 
आज वो कल हमारी बारी है 
ज़ुबैदा के कई मतलब होते है ।ऐक मतलब होता है अच्छे संस्कार या अख़लाक़ वाली ।आप डॉक्टर क़ादरी की नूरे नज़र थी ।
M.A करने के पश्चात नंदुरबार में हिंदी उस्तानी के फ़रायज अंजाम दे रही थी ।
इनिह पथरो पे चल कर अगर हो सके तो आओ
मेरे घर के रास्ते में कोयी कहकाशान नहीं हैं
शादी के बाद ददाभाई भाभिजान को तिलक नगर चेंबुर वाले घर में ले आए ।में  B.Sc कर रहा था ।छोटा सा घर एक कमरा, छोटा सा किचन। bathroomऔर toilet common था । नंदुरबार के बंगलानुमा घर के सामने क्या हैसियत रखता था । दादाभाई के लिए adjust कर  लिया ।शायद दादाभाई की सलाहियतों (talent)पे यक़ीन कॉमील था । दादाभाई का struggling period था ।Metal Box company में maitenanace engineer थे ।भाभीजान को मराठी पर ऊबूर (command) था ।आस पास पड़ोसियों से पहचान करली।लगता नहीं था इतने बड़े घर से आयी है ।
तुम याद आये और तुम्हारे साथ गुज़रे ज़माने याद आये
डॉक्टर क़ादरी भाभी जान के अब्बू नंदुरबार की मशहूर शख़्सियत थे ।कभी कभी मुंबई आजाते ।बड़े ज़िंदा दिल, सादगी पसंद थे।hurryup slowly उनका तकयाए कलाम था ।मुझे एक joke सुनाते थे ।रागिब पता है कलकत्ता शहर का नाम कैसे पड़ा ।मैं कहता जी मुझे पता नहीं । कहते “एक अंग्रेज़  officer अपने साथियों के साथ जंगल से गुज़र रहा था ।एक आदमी लकड़ियाँ काट रहा था उस अंग्रेज़ ने उस आदमी से पूछा। “ well what is the name of this place “वो आदमी समझा लकड़ियों के मुताबिक़ पूछ रहा है ।उस आदमी ने जवाब दिया “कल काटा “।    अंग्रेज़ कहता “ok this place is culcutta “।  और डॉक्टर साहेब ज़ोर से कहकहा लगाते। भाभी जान  की अम्मा भी बहुत मोहब्बत करने वाली खातूँन थी ।मुझे हमेशा rocket कह कर पुकारती ,एक अपनेपन का अहसास होता था ।
मुझे सहल होगायीं मंज़िलें वो हवा के रूख भी बदल गए 
तेरा हाथ हाथ में आगया के चिराग़ राह में जल गयें 
ये शेर दादाभायी ने मुझे पहली बार सुनाया था ।भाभीजान दादाभाई पर सादिक़ आता था ।शादी के एक साल के अंदर अंदर lubnaa की पैदायिश हुवि ,दादाभाई को कुवैत में job मिल गया।ददाभाई कुवैत shift होगये भाभी जान और lubna को अपने पास कुवैत बुला लिया।समीरा ,नाएला,उजमा  की पैदायिश कुवैत में हुयी ।
हयात नाम हैं यादों का तल्ख़ और शीरिन 
२५ ,३० साल लम्बी मुद्दत भाभी जान ,दादा भाई ने बच्चों के साथ कुवैत में गुज़ारी ।दरमियान में वकफ़े वकफ़े से India के चक्कर लगते थे ।अब्बआ और जावेद भी मुंबई शिफ़्ट होगाए थे ।डॉक्टर वासिफ M.B.B.S. करने के बाद गुजरात में medical officer का job कर रहे थे ।जावेद और में ने भी graduationकिया ।हमारे education पर दादा भाई ,भाभी जान ने बहुत दिलचस्पी ली ,वाशी में row house उसी ज़माने की यादगार है ,ताके हमें किसी क़िस्म की परेशानी न हो ।उन यादगार लमहात,उन दिनों कि ,खट्टी मिट्टी यादों की महक जब दादा भाई family छुट्टियाँ  गुज़रने इंडिया आकर हमारे साथ वक़्त गुज़रते थे ,मिटाने से नहीं मिटते, भुलायें से नहीं भूलती।carrem , ludo ,ताश की बाज़ियाँ, बम्बई की चौपटी,marine drive, hanging garden, fish emporium ,  जहु, की वो मटर गशतियाँ, metro theatre में छोटा चेतन ३D में देखना ,बदलापुर नदी में ली गयी डुबकियाँ, तस्वीरें जो उस duration में खीचीं जाती कुवैत से develope होकर न आजाती बेचैनी से इंतज़ार रहता ।Lubna,समीरा ईद कॉर्ड कुवैत से  रवाना करते, अपनी प्यारी प्यारी तस्वीरें पोस्ट से भेजते हम सब को शिद्दत से इंतेज़ार रहता (आज भी वो पुरानीतस्वीरें शगूफताऔर मेंने ख़ज़ाने  की तरह संभाल कर रखीहैं) ।डॉक्टर  साहेब,मेरी और जावेद की शादियों में दादा भाई,भाभी जान बचों ने जश्न का माहौल पैदा किया , बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया ।ज़िंदगी का बहतरींन सरमाया है ।यूँ तस्सवर पे बरसती हैं पुरानी यादें, दिल भर आता है, आँख नम होजती है ।
मुझे याद है दादा भाई  ने ABBA को कुवैत बुला कर हज करवाया था इंडिया वापिस लौट कर अरसे तक ABBA भाभी जान की ख़िदमात का ऐतराफ करते रहे । कहा करते वो लोग नवाब के जैसे ज़िंदगी गुज़ारते हैं ।भाभी जान के शाही दस्तरख़ान का हमेशा ज़िक्र करते ।lubna की परवरिश जो भाभी जान के जेरे साया होरही थी ,ख़ुशी इत्मिनान का इजहार करते ।lubna,नवेद और सना के रौशन मुस्तकबिल की हमेशा पेशांगोयी करते ।तीनो  अपने अपने  घर की पहली औलाद थे ,और उनके साथ abba ने बहुत वक़्त गुज़ारा था ।
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं 
बच्चियों की higher education के लिये भाभीजान को India लौटना पड़ा ।दादाभाई भाभी जान में अजीब जहनी हम आहँगी(tuning) थी ।लड़कियों को ऊँची तालीम दिलवाना उस ज़माने में खसुसन मुस्लिम घरानो में ना के बराबर था ।वजे शायद ,शादी के लिए पढ़े लिखे लड़कों का मिलना मुश्किल मरहला था ।अब भी यही हाल है लेकिन  उस दौर में पढ़े लिखे मुस्लिम बचें आटे में नमक के बराबर हवा करते थे ।दोनो ने  बच्चियों को बेहतरीन education दिलवाकर ,अख़लाक़ से सवार कर , मारूफ ख़ानदान में रिश्ते करवाके ,खानदान क्या मुस्लिम समाज में मिसाल क़ायम कर दी ।ये मिसाल हम तीनो भाईयों के लिए भी मशआले राह साबित हुवि ।
हिकायते  ग़म ए दुनिया तवील थी कह दी 
हिकायते ग़म ए दिल मुख़्तसर है क्या कहिए 
ख़ुशी के लम्हे पलक झपकते गुज़र जाते हैं ।इम्तिहान का वक़्त जान लेवा होता है ।पल सदियों की मनिंद महसूस होते हैं ।
India वापसी के बाद महरूम ददाभाई के कूछः फ़ैसले ,अंदाज़े  की ग़लती, शायद वो हिन्दुस्तान के माहोल से पूरी तरह वाक़िफ़ नहीं थे ,कूछः लोगों के ग़लत मशवरों पर आँख बंद करके यक़ीन कर लिया ।आख़िर  ,क़िस्मत का लिखा ही कह सकते है। ददाभाई  का उरज के बाद जवाल का  वो करब आमेज दौर भुलाए नहीं भूलता ।भाभीजान ने उस जाफ़िशान दौर में क़दम क़दम पर ददाभाईका साथ  दिया ।उनके ज़ख़्मों पर मसीहा  बन फ़ाहे रखती रही ।तमाम मुसीबतों में सीसा पिलायी दीवार की तरह सीना सपर होती रही ।लेकिन सैलाब था के रुकने  का नाम नहीं लेता था ।तमाम नेक नामी, इज़्ज़त ,दौलत तीनको की तरह बिखर गयी ।दादाभाई हालात के सामने बेबस होगाए ।में उसवक्त उनकी आँखों  की बेबसी को ताहयात नहीं भूल सकता ।हालाँकि मौत  से पहले उनोहने सब जिम्मेदारियाँ पूरी की तमाम क़र्ज़ अदा किये ।लेकिन हिस्सास शख़्स ऐसे हालात को बर्दाश्त नहीं कर सकता ।
दुआ देती हैं राहें आज तक मुझ आबला पाँ को
मेरे पैरों की गलकारी बियाँबान से चमन तक है
ददाभाई से बिछड़ने के बाद भाभी जान ने अपने आप को समेटा और ख़ूब समेटा ।उजड़ी इमारत को तीनका तीनका जोड़ कर अज सरे नौ तामीर किया ।फिर चारों बच्चियों  ने भी जिस तरह उनकी दिलजोयी  की  अमेरिका, दुबई ,लंदन अपने पास बुला कर रखा,आज के दौर में ख़्वाब की बातें मालूम होती हैं ।अल्लाह ऐसी नेक औलाद सब को अतः करें ,अल्लाह इस फ़ेल के बदले उन सबको जजाए ख़ैर अतः करें ।
 पिछले ६ महीने से भाभी जान lock down में है ।पहले उनका हाथ fracture हुवाँ फिर करोंना का कहेर ।लेकिन उनकी ख़ुश मिज़ाजी में कोयी फ़र्क़ नहीं आया ।जो शख़्स तूफ़ान का मुक़ाबला कर चुका है उसे छोटे मोटे हादसत से डर नहीं लगता ।अल्लाह रबूल इज़्ज़त उनह इसी तरह ख़ुश ख़ुर्राम रखे । शायर ने शायद उनिह के लिए कहा है ।
चला जाता हूँ हँसता खेलता मौजे हवादिस से
अगर आसानियाँ हो ज़िंदगी दुशवार होजाए






सोमवार, 8 जून 2020

Diamond jubilee की ओर एक क़दम

                                                       Diamond jubilee की ओर एक क़दम
भला किसीने कभी रंग व बू को पकड़ा है 
शफ़क को क़ैद मे रखा 
हवा को बंद किया
Covid १९ ने दस्तक दी तो अहसास हूवॉ की “न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम होजाए “ सोचा  कुछ भुली बिसरी यादों को ,दिल से क़रीब लोगों के हालात लिखे जाए ,काग़ज़ पे उतार कर लोगों तक पहुँचाया जाए ।वरना आजकल पढ़ने वालों से जियादा लिखने वाले होगयें हैं ।whatsup पर दूसरों से मिले messages को बग़ैर पड़े ,दूसरों तक भेजने की होड़ लगी है ।किस के पास पढ़ने और समझने का समय है ।
Dr वासिफ अहमद , वासिफ  अहमद का मतलब होता है अल्लाह के रसूल जिन का नाम अहमेद भी था ,की तारीफ़ बयान करने वाला ।हमारे बीच एक कड़ी ,वाक़िफ़ अहमद भी था जो टूट गयी है ।हमारे अबआ ने  हमारे नाम बड़ी सोच कर रखे थे। और सब की birth date का record भी रखा था । वरना हमारे स्कूल में  mere साथ वाले सब students की  birth date १ जून  थी ।वालीद साहेब का पुराना क़ुरान था जिस में आख़िरी page पर अपनी तमाम औलाद की ,place of birth ,time of birth, date of birth लिख रखा था ।बदक़िस्मती से वो गुम होगाया है ।
Dr वासिफ मुझे ७० साल से जानते है और में भी उनसे ६६ साल से वाक़िफ़ हुँ ।में इतने confidence से इस लिए कह सकता हूँ की  वो मेरे बड़े भाई है और वो मुझसे ४ साल बड़े है ।बड़ा इत्तिफ़ाक़ है  की हम चारों भाइयों के दरमियान ४ साल का फ़र्क़ है ।
कूछः इस तरह से मुझे हादसाते मुहिम मिलते हैं ।
  १९६७ में dr वासिफ ऐंग्लो उर्दू हाई स्कूल जलगाँव में पढ़ते थे । ९th standard में थे एक दिन स्कूल से लौटते हुवे नटराज cinema के पास बिजली के pole से टकरा कर गिर पड़े थे ।कई घंटों की बेहोशी के बाद जागे थे । अब्बू हम
सब परेशान थे। 
बचपन से  dr साहब ज़हीन तो थे ही ,इस हादसे के  बाद ज़हानत में और चार चाँद लग गए ।एस॰एस॰सी॰ exam top rankingमें पास किया ,J,J, college जलगाँव से intermediate। sewagram medical college में admission मिला ।आज भी जलगांव की आंग्लो उर्दू स्कूल की top ranking students के लगे बोर्ड पर उनका नाम लिखा है ।
जब तक jalgaon में रहे हम सब राशिद,जाहिद, जावेद और मुझ नाचीज़ पर बेताज बादशाह की तरह हुकूमत करते रहे ।जब जी में आता हम को पीट कर रख देते ।उन की वजह से घर में discipline क़ायम था । चार आने में सुकालल मामा से हमारे बाल कटवाते और ख़ुद सलून में जा कर stylish cutting बनवाते ।धोबन से कही सालों तक एक ही rate में कपड़े धुलाते रहे । छोटी आपा ने भी उन का बड़ा ख़याल रखा ।Dr साहेब  की उस ज़माने में  दोस्तों की मंडली थी ।मुनाफ़ ,ज़फ़र ,रहीम ,anees सभी बेहद शरीर ,खेल और पढ़ायी में तेज़ ।महल्ले के मिया चाचा से उनकी कभी नहीं बनी ।
    M.B.B.S. करने के बाद गुजरात में मेडिकल ऑफ़िसर के अहदे पर join किया । बालपुर,व्यरा, मियागाम कर्ज़न अपनी duty की ।DHO की पोस्ट तक तरक़्क़ी की अब retire हो कर ज़्यादा वक़्त दुबई में नवेद और अपने पोतों के साथ बिताते है ।
   डॉक्टर वासिफ को हम सब की शादियों की बड़ी फ़िक्र थी । अपनी ख़ुद की शादी की तफ़सील में तो नहीं जानता क्यूँकि इसे चालीस साल का लम्बा अरसा होगाया है ।  ददाभाई की शादी के लिए बहुत कोशिश की लेकिन बात कुछ जमी नहीं ।मेरी और जावेद की शादी में बड़ी मुस्तैदी दिखायी ।नवेद और इरम की शादियाँ करवायी ।अलहमदोलीलाह हम सब ख़ुशहाल ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं ।मुझे यक़ीन है वो marriage bureau की ऑफ़िस खोल सकते है ।
जसतजु जिस की थी उस को पाया हम ने 
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने 
डॉक्टर साहेब हज कर चुके है ।अमेरिका का हाल चाल भी जान आये है ।दुबई की ख़ाक छानते रहते है ।नवेद और इरम अपनी जिंदगियों में ख़ुश है ।रावी चैन लिखता है ।कहा जाता है बनिए ,मारवाड़ी अपने नक़द से ज़्यादा सूद की amount से ख़ुश रहते हैं ।dr वासिफ अहमेद भी निवासियों और पोतों को देख कर निहाल होते रहते है ।
    आज ८ जून डॉक्टर साहेब ने ७१ वे बरस में क़दम रखा है । diamon jubilee सिर्फ़ चार क़दम पर है ।”फ़ासला चंद क़दम का है मनाले  चल कर “
कहीं रहे वो ख़ैरियत के साथ रहे 
उठाए हाथ तो दुआ एक याद आयी 
तुम्हारी ज़िंदगी मे इस क़दर भीड़ रहे ख़ुशियों की
के ग़म गुज़रना भी चाहे तो रास्ता न मिले 
आज इस ख़ुशी के मौक़े पर शगूफता मेरी जानिब से dr वासिफ साहेब को ढेर सारी दुआएँ और नेक खवाहिशात ।आमीन