सोमवार, 21 जनवरी 2019

sharifuddin sayed urf (bachu Bahi)

                                   शरीफुद्दीन सय्यद उर्फ़ (बच्चू भाई )
ढूंढ उजड़े हुवे लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे शायद के खरबों में मिले
नवापुर की मशहूर हस्ती किसी तआरुफ़ (introduction ) की मुहताज नहीं ,माशाल्लाह उन के  नाम से  ही शराफत टपकती है। उम्र की ८० बहारें देख चुके हैं। अब भी लगता है, मानो उनेह समय के थरमस (thermos ) में क़ैद कर दिया गया हो। बक़ौल हमारे बड़े भाई डॉक्टर वासिफ  अहमद "बच्चू मॉमू अब भी वैसे ही दिखाई देते हैं जैसे पहले थे"। बच्चू मॉमू  बहुत हाज़िर जवाब ,कहते  देते हैं "चलो डॉक्टर से भी मुझे  अल्हम्दोलीलाह fitness certificate मिल गया "
        ६ फिट का कद (height ),दूध के जैसा सफ़ेद रंग ,चेहरे पर सब्ज़ नीलगूँ ऑंखें ,गूंजदार आवाज़ एक्टिंग line में गये  होते तो दिलीप कुमार को नहीं, अमिताभ बच्चन को शुहरत में ज़रूर पीछे छोड़ दिया होता। शाह वाजिहुद्दीन अहमदाबादी  के खान्दान से ताल्लुक़ रखते हैं। ज़िन्दा  दिल खुश मिज़ाज ,हलीम तबियत कभी उनेह ग़ुस्सा होते नहीं देखा। तालीम (education ) ज़ियादा हासिल नहीं कर पाये ,दुनिया के तजुर्बात ने  बहुत कुछ सीखा दिया । बच्चू  मॉमू से एक दिन मैं ने  सवाल किया था उनेह बच्चू की उर्फियत कैसे मिली, उनोह ने जवाब दिया "मरहूम हाजी मियां उनेह प्यार से बच्चा कहा करते थे "शायद लोगों ने बिगाड़ कर बच्चू कर दिया और अब सारी दुनिया में इसी नाम से जाने जाते हैं।
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
      बच्चू मॉमू ने मशाअल्लाह जिस काम में हाथ डाला कामयाब रहे।   भड़भूँजा,झामंजर ,साकरदा में दुकानें  खोली ,कामयाबी से चलायी। politics में कदम रखा तो लगतकर २० साल तक झामंजर के सरपंच रहे। ८ साल पंचायत समिति के मेंबर रहे और  उस area ,में जहा आदिवासियों का बोल बाला (वर्चस्व ) है। गवर्नमेंट से contract ले कर रोड्स बनायें ,हॉस्पिटल तामीर किये ,खेती बाड़ी की ,लकड़ों का business किया।
मुझे सहल हो गयी मंज़िलें वो हवा के रुख भी बदल गये
तेरा हाथ हाथ में आ गया के चिराग़ रह में जल गये
      १९६१ में हमारी मुमानी शमशाद बेगम से उन की जुगल बंदी माफ़ करना शादी हुवी २ साल बाद इंशाल्लाह उनकी कामयाब शादी शुदा ज़िन्दगी के ६० साल पुरे हो जायेंगे। दोनों ने मिल कर बच्चों की बेहतरीन तरबियत (training )  की। अच्छे खानदानों में शादियां करवाई ,इरफ़ान ,नुमान को अछि तरह बिज़नेस में सेट  करवा दिया। अब भी मॉमू मियां अपने आप को खेती बाड़ी में ,अच्छी किताबें पढ़ने में मसरुफ़ रखते है। दोस्तों का बहुत बड़ा ग्रुप है उन के साथ बैठ कर बचा कुचा वक़्त खुश गप्पियों  और पाबन्दी से वाकिंग करके गुजारते हैं। कई अरसा पहले आप के पर लग गये यानी पर नाना बन गये थे । उनेह उड़ते देखों तो ताज्जुब (आश्चर्य ) न करना।
   अपने बड़े भाई मरहूम ज़ैनुलआबेदीन उर्फ़ ( छोटू ) से उनेह बहुत मोहब्बत थी ,नवापुर में खेत ,बंगला छोटू मॉमूउन्ही की सलाह से खरीदा था।  शगुफ्ता और मुझसे  बच्चू मॉमू को  गहरी उनसियत है हमारे रिश्ते में  उनोहने ज़बरदस्त role play किया था जिस के लिए में हमेशा उन का शुक्र गुज़ार रहूँगा ।
क्या पता कल वो ज़माने के निसाबों में मिले
    इस ज़वाल पज़ीर दौर में लोग social media ,whatsup पर इतने busy है के बुज़र्गों के पास बैठने की फुर्सत नहीं ,न उनके तजुर्बात (experience ) से सीखने का शौक़ ,माशाल्लाह बच्चू मॉमू के अपने खानदान में आज भी उन का दबदबा वैसे ही क़ायम है। कोई भी काम उन के मश्वरे के बिना नहीं होता। और वो खुद भी अपनी तहज़ीब ,अपने बुज़र्गो अपनी रिवायतों के इतने पाबंद है के अपने पोते का नाम अपने दादा अब्दुल वाहिद के नाम  पर रखा ,मेडिकल स्टोर खोला उसे भी जमादार के नाम से मंसूब किया ।
    बच्चू मॉमू  सियासत( politics )से retire होगये हैं लेकिन अब भी स्वरुप सिंह नाईक  ,माणिक राव जैसे मारूफ लोग उन के मश्वरे के बिना कोई काम नहीं करते ,अब भी उनकी वैसी ही इज़्ज़त की जाती है। इरफ़ान ,नुमान के बाद अब वो उन की औलाद की तरबियत लगे हैं।
   अल्लाह से दुआ है के बच्चू मॉमू को तंदुरस्ती के साथ लम्बी उम्र मिले ,हमेशा खुश व खुर्रम रहे ,अपनी मुस्कराहटों ,खुश गोयी ,खुश अख़लाक़ी ,शफ़ाक़तों ,इनायतों ,महबतों  से दुनिया को गुल व गुलज़ार करते रहे आमीन  सुम्मा आमीन।





1 टिप्पणी:

  1. आज मोहतरम रागीब अहमद साहब के ब्लॉग को विजिट करने का शर्फ हासिल हुआ। उनके ब्लॉग के कंटेंट्स पढ़ते वक्त ऐसे महसूस हो रहा था जैसे वह खुद हमसे मुखातिब होकर बात कर रहे हो । उन्होंने ब्लॉग के जरिए रिश्तो को जिंदा और कायम करने का अहम रोल अदा किया है । उनके ताल्लुकात के जिन लोगों की शख्सियत पर उन्होंने रोशनी डाली है वह इस लिटरेरी अंदाज में डाली है कि वह शख्सियत वीडियोग्राफी की तरह पढ़ने वाले के सामने हाजिर हो जाती है रागीब अहमद साहब एक बहुत जिंदादिल और फराग दिल इंसान हैं जो हमेशा हर किसी की मदद के लिए तैयार रहते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ जब 2016 में मैं नये मकान की तलाश मे था के दरमियान मे एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस अटेंड करने के लिए अमेरिका होकर मैक्सिको जाना हुआ । वहां से आने के चंद महीने बाद इत्तफाकन एक मकान का सौदा लेकिन उसके बाद वर्ल्ड बैंक के इस्लामिक फाइनेंस से संबंधित एक सेमिनार में मुझे बहरीन बुलाया गया । मैंने आने जाने की टिकट तो बुक कर ली लेकिन मनामा में कोई सस्ती होटल मौजूद ना होने की वजह से मुझे दिक्कत पेश आ रही थी तो मैंने मेरे बुजुर्ग दोस्त अनीस सफदर साहब से बात की जो रागीब अहमद साहब के दोस्त हैं उन्होंने रागीब साहब से जब यह मामला कहां तो रागीब साहब ने जनाब तनवीर अहमद साहब से बात की और उनका नंबर और पता रवाना कर दिया तनवीर साहब ने एयरपोर्ट पर रिसीव करने के लिए गाड़ी का इंतजाम किया मुकाम तो उनके बंगले पर था ही लेकिन कॉन्फ्रेंस की जगह जाने के लिए तक उन्होंने कार का इंतजाम कर दिया उनके साथी एजाज साहब के साथ दूर किसी अच्छे होटल में ले जाकर मेरी मेहमान नी की और दूसरे दिन एयरपोर्ट पर पहुंचाने के लिए भी कार का इंतजाम किया इस तरह मेरी बहरीन ट्रिप के लिए अनीस साहब और उनकी बदौलत रागीब साहब ने बहुत आसानी या फराहम की इस कारे खैर के लिए मैं उन सभी लोगों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं अल्लाह तआला उन सब की तमाम तर जाईज मुरादो को पूरा फरमाए और दोनो जहानो की नेअमतो से नवाजे आमीन ।
    डॉ काझी रफीक राही

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