कार्ला केव्स -तारीख के पन्नो पे लिखी दास्तान
हिंदुस्तान का चप्पा चप्पा तारीखी इमारतों ,खंडरों ,गुफाओं से भरा पड़ा है। बद नसीबी, हम हिंदुस्तानी नयी तहज़ीब से इतने मुतास्सिर हैं के यूरोप ,अमेरिका ,रोम की सैर करेंगें लेकिन इतनी तौफीक नहीं होती कभी आस पास ही नज़र दौड़ा लेते। एलफेंटा केव्स ,अजंता ,एल्लोरा कितने लोगों ने देखा होंगा , हालांके पूरी दुनिया के टूरिस्ट इन मक़ामात की सैर लाज़मी समझतें है। वे जब ऐसे मुक़ाम पर पहुचतें हैं तो पूरी मालूमात के साथ पहुंचतें हैं। हमारें लोकल गाइड्स से ज़ियादा उनेह पता होता है।
पिछले महीने १३ फ़रवरी-२०१७ पूना से लौटतें हुवे कार्ला केव्स देखने का इत्तेफ़ाक़ हुवा। लोनावाला से ५ किलो मीटर दूरी पर पुराने मुम्बई पूना रोड के करीब ,इंद्रायणी हिल्स पर इन केव्स को पहाड़ काट काट कर बनाया गया है। १०० मीटर उचाई पर १६ केव्स बनाये गएँ हैं। जिन में से एक चैतनग्रह और बाकी १५ विहारस कहलातें हैं। चैतनग्रह प्रेयर करने की जगह है जो एक स्तूपा एक बड़े हाल के किनारे ,दोनों जानिब बड़े बड़े सत्मभों से सजाया गया है।स्तम्भ भी ख़ूबसूरत मूर्तियों से सजे हैं। हॉल में इंट्री पर खूबसूरत दालान हैं जो ख़ूबसूरत मेहराबों से सजे हैं , बड़े बड़े हाथियों को दालान की दोनों जानिब सलीके से पत्थरों में तराश के बनाया गया है। ये हीनयान ,महायान सेक्ट बुद्धिस्ट की यादगार हैं। १५ विहारस केव्स भक्तों और बाहर से आने वालों के लिए छोटे छोटे रूम्स की शक्ल में बने हैं। पत्थर से बने बेड्स , जिन पर लेट कर लोग आराम करतें होंगे। ये १५ केव्स काफी ऊंचाई २ मंज़िल इमारत की शक्ल में बने हैं। पहुचने के लिए पत्थरों की सीढ़ियां भी बनी हैं। Archeological Survey Of India की दी मालूमात से पता चलता है के ये केव्स 1st और 6 AD के दरमियान बनाये गएँ हैं। और इन केव्स को बनाने में बनारस ,नालासोपारा , मराठी प्रिन्स और monks की माली मदद और कोशिश शामिल हैं।
पत्थर सुलग रहें थे कोई नक़्श पा (पैर का निशान ) न था
६ सदियों तक लगातार काम करने वाले ,कई generations इस काम को करते करते ख़त्म होगयी होंगी। न मॉडर्न ज़माने के क्रेन थे ने मशीने , छीनी हथोड़ों से पत्थरों की चटानों को काट कर उन में दिल धड़काने वाले ये आर्टिसंस ये मेमार कितनी मुशक्त ,जाफिशानी से उन लोगों ने काम किया होंगा । क्या पाकीज़ा माहौल बनता होंगा ,जब बुद्ध भिकशू इन मोहबत ,मेहनत ,जिगर का लहू करने वालों की प्रेयर रूम में स्तुपा के इर्द गिर्द खुश्बूं से महकते माहौल में ऊपर वाले की याद में डूब जाते होंगें। यकीनकन उनेह उस रब ,God ,प्रमेश्वर की कुर्बत ,नज़दीकी हासिल होंगी।
कुछ इस तरह तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे ,उठ के चले
आज के मॉडर्न ज़माने के हम लोग कार्ला केव्स तक पहुचने का आधा सफर कर से पूरा किया। ५० मीटर १५० सीढ़ियां चढ़ते चढ़ते पसीना निकल गया। हर कदम पर cold drinks ,छाछ ,मिठाई और ठंडे पानी की दुकाने थी। चंद कदम चल दुकान वालों से पूँछतें "कितनी सीढ़ियां और बाकी है " गिरते पड़ते ऊपर पहुंचें। कुछ नवजवान केव्स देख मायूस हुवे। हवा में जुमला उछाल दिया " खोदा पहाड़ निकला चूहा " साहब ,बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद। हम एयर कंडीशनों में रहने और सफर करने वाले ,नर्म गद्दों पर सोने वाले क्या उन लोगों की तकलीफ का अहसास कर सकतें हैं , पूर्वज जो पथरों पर सोतें ,मौसमों की सख्त सर्दियाँ ,गर्मियां और बारिशें झेल कर ६ सदियाँ पहाड़ों का सीना चीर कर आने वाली नस्ल के लिए अनमिट यादगारें,निशाँ छोड़ गएँ।
हिंदुस्तान का चप्पा चप्पा तारीखी इमारतों ,खंडरों ,गुफाओं से भरा पड़ा है। बद नसीबी, हम हिंदुस्तानी नयी तहज़ीब से इतने मुतास्सिर हैं के यूरोप ,अमेरिका ,रोम की सैर करेंगें लेकिन इतनी तौफीक नहीं होती कभी आस पास ही नज़र दौड़ा लेते। एलफेंटा केव्स ,अजंता ,एल्लोरा कितने लोगों ने देखा होंगा , हालांके पूरी दुनिया के टूरिस्ट इन मक़ामात की सैर लाज़मी समझतें है। वे जब ऐसे मुक़ाम पर पहुचतें हैं तो पूरी मालूमात के साथ पहुंचतें हैं। हमारें लोकल गाइड्स से ज़ियादा उनेह पता होता है।
पिछले महीने १३ फ़रवरी-२०१७ पूना से लौटतें हुवे कार्ला केव्स देखने का इत्तेफ़ाक़ हुवा। लोनावाला से ५ किलो मीटर दूरी पर पुराने मुम्बई पूना रोड के करीब ,इंद्रायणी हिल्स पर इन केव्स को पहाड़ काट काट कर बनाया गया है। १०० मीटर उचाई पर १६ केव्स बनाये गएँ हैं। जिन में से एक चैतनग्रह और बाकी १५ विहारस कहलातें हैं। चैतनग्रह प्रेयर करने की जगह है जो एक स्तूपा एक बड़े हाल के किनारे ,दोनों जानिब बड़े बड़े सत्मभों से सजाया गया है।स्तम्भ भी ख़ूबसूरत मूर्तियों से सजे हैं। हॉल में इंट्री पर खूबसूरत दालान हैं जो ख़ूबसूरत मेहराबों से सजे हैं , बड़े बड़े हाथियों को दालान की दोनों जानिब सलीके से पत्थरों में तराश के बनाया गया है। ये हीनयान ,महायान सेक्ट बुद्धिस्ट की यादगार हैं। १५ विहारस केव्स भक्तों और बाहर से आने वालों के लिए छोटे छोटे रूम्स की शक्ल में बने हैं। पत्थर से बने बेड्स , जिन पर लेट कर लोग आराम करतें होंगे। ये १५ केव्स काफी ऊंचाई २ मंज़िल इमारत की शक्ल में बने हैं। पहुचने के लिए पत्थरों की सीढ़ियां भी बनी हैं। Archeological Survey Of India की दी मालूमात से पता चलता है के ये केव्स 1st और 6 AD के दरमियान बनाये गएँ हैं। और इन केव्स को बनाने में बनारस ,नालासोपारा , मराठी प्रिन्स और monks की माली मदद और कोशिश शामिल हैं।
पत्थर सुलग रहें थे कोई नक़्श पा (पैर का निशान ) न था
६ सदियों तक लगातार काम करने वाले ,कई generations इस काम को करते करते ख़त्म होगयी होंगी। न मॉडर्न ज़माने के क्रेन थे ने मशीने , छीनी हथोड़ों से पत्थरों की चटानों को काट कर उन में दिल धड़काने वाले ये आर्टिसंस ये मेमार कितनी मुशक्त ,जाफिशानी से उन लोगों ने काम किया होंगा । क्या पाकीज़ा माहौल बनता होंगा ,जब बुद्ध भिकशू इन मोहबत ,मेहनत ,जिगर का लहू करने वालों की प्रेयर रूम में स्तुपा के इर्द गिर्द खुश्बूं से महकते माहौल में ऊपर वाले की याद में डूब जाते होंगें। यकीनकन उनेह उस रब ,God ,प्रमेश्वर की कुर्बत ,नज़दीकी हासिल होंगी।
कुछ इस तरह तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे ,उठ के चले
आज के मॉडर्न ज़माने के हम लोग कार्ला केव्स तक पहुचने का आधा सफर कर से पूरा किया। ५० मीटर १५० सीढ़ियां चढ़ते चढ़ते पसीना निकल गया। हर कदम पर cold drinks ,छाछ ,मिठाई और ठंडे पानी की दुकाने थी। चंद कदम चल दुकान वालों से पूँछतें "कितनी सीढ़ियां और बाकी है " गिरते पड़ते ऊपर पहुंचें। कुछ नवजवान केव्स देख मायूस हुवे। हवा में जुमला उछाल दिया " खोदा पहाड़ निकला चूहा " साहब ,बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद। हम एयर कंडीशनों में रहने और सफर करने वाले ,नर्म गद्दों पर सोने वाले क्या उन लोगों की तकलीफ का अहसास कर सकतें हैं , पूर्वज जो पथरों पर सोतें ,मौसमों की सख्त सर्दियाँ ,गर्मियां और बारिशें झेल कर ६ सदियाँ पहाड़ों का सीना चीर कर आने वाली नस्ल के लिए अनमिट यादगारें,निशाँ छोड़ गएँ।
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