मंगलवार, 10 जनवरी 2017

yadein sudan ki (2000-2011 Heglig field 1000 KM From Khartoum )


                                       


                                base camp party


Diffra base camp










local sudani 






कल वक़्त से लम्हा गिरा कहीं
                       वहां दास्ताँन थी, लम्हा कहीं नहीं
  सूडान में ज़िन्दगी का लंबा अर्सा ११ साल बिताने का इत्तेफ़ाक़ हुआ। oil field का जॉब था। nature (कुदरत ) को करीब से देखने का मौक़ा मिला। रंग बी रंगी परिंदे ,चीतेँ ,हाथी जंगल में घूमते नज़र आ जातें थे। कभी कभी लाखों अबाबीलें (छोटी चिड़ियाँ ) आसमान पर छा जाती, के सूरज भी थोड़ी देर के लिए नज़रों से छुप जाता। वहां के आदिवासी बचें  हाथों में गुलेल लिए पत्थर घूमा  कर फेंकतें, कई १०० चिड़ियाँ शहीद हो कर ज़मीन पर गिर जाती। ज़मीन लहू
लहान हो जाती ,बचें उन चिडयों को उठा कर कच्चा चबा जातें ,गड़ों में जमा पानी जानवरो की तरह पैर हांथों पर झुक कर पी लेतें, शायद इस पानी को पी कर हम शहरी लोग जान से हाथ धो बैठें । । सांप मुंगूस की बोहतात थी। एक दिन वहां के ज़हरीले सांप black mamba  भी देखने को मिला।
  सूडान को grass land भी कहा जाता है। जून जुलाई में गर्मी के मौसम के ख़त्म होते ही बंजर ज़मीन पर बारिश की
हलकी फुहारें पड़ते ही ६/७ फ़ीट की घास उग आती है। ज़मीन इतनी नरम के पंजे ६ इंच ज़मीन में गड जातें ,निकालना मुश्किल होजाता ,हम safety shoe पहने होतें तलवों पर कई कई इंच की तहँ जम जाती । ज़मीन इतनी उपजाऊ तरबूज़ खा कर बीज हम ज़मीन पर फ़ेंक देतें थे, कुछ रोज़ बाद बेल पर बड़े बड़े तरबूज़ लग जातें। इसकी वजह थी वहां के आदिवासी जिन्ह बग्गरह शायद हिंदुस्तान में हम लोग बंजारा कहतें हैं ६ महीने बारिश से बचने के लिए छोटें छोटें गांव में शिफ्ट होजातें है बारिश के ख़त्म होते ही नवम्बर/दिसम्बर में अपनी  हज़ारों बकरियों ,ऊंटों के साथ जंगलों में आजातें है,सदियों ये होता आ रहा है, जानवरों की गोबर पेशाब से ज़मीं ज़रखेज़ तो होनी ही है ,फिर वहां कोई खेती बाड़ी भी नहीं करता । एक एक बग्गरा अपने छोटे  से खानदान के साथ हज़ारों जानवर लिए घुमतें। पता नहीं वह लोग इतने जानवरों को किस तरह काबू में रख पातें हैं , यह भी एक आर्ट ही  है। सूडान से अछी नस्ल के ऊंट सुआदि अरबिया export किये जातें हैं। इन बग्गारों का रहन सहन सादा है। कही पड़ाव डालना है ज़मीन साफ़ कर ली घास की झोपडी बना ली कुछ
दिन गुज़ार कर आगे बढ़ गए। हम तहज़ीब याफ्ता लोग ज़िंदगी गुजरने के लिए बेइंतेहा ज़रूरियातें ज़िंगगी जमा कर के
भी इतने खुश इतने मुत्मइन नहीं होतें जितने यह लोग होतें हैं। शादी भी इन लोगों की इतनी ही सादगी से होती। हमारे कैंप में छोटी सी मस्जिद थी ,३/४ लड़की तरफ से और ३/४ लड़के की तरफ से लोग मस्जिद आजाते ,मौलाना निकाह पढ़ा देते ,साथ में थोड़े चॉकलेट  ला कर बाँट देते ,निकाह हो जाता।
ख्वाब था जो आँखों ने देखा था
        जंगल की चांदनी रात का मंज़र ,चाँद आस्मां पर रोशन गोले की मानिंद, खुनक रातों में चांदनी में नहा कर वह मंज़र आँखों में  जज़्ब हो कर रह गएँ हैं। जाड़े की वह कुहरे से मामूर सुबहें ,बरसातों के वह मौसम जब बिजली की कड़क से माहौल झनझना उठता था।खुशनुमा शामें।
        भला किसीने कभी राग व बू को पकड़ा है
        शफ़क़ को क़ैद में रखा हवा को बंद किया

        हर एक लम्हा जैसे गुरेज़ां हैं जैसे दुश्मन है
      9 साल होगये सुडान को अलविदा कहे। राख को कुरेदने से जिस तरह कुछ चिंगारियां निकल पड़ती है। कभी कभी
 आदमी past  में जीना चाहता है । लेकिन क्या करें वक़्त रुकता नहीं कहीं टिक कर .लम्हों के ढेर तले present माज़ी होजाता ,यादें बाक़ी रह जाती हैं।
वहां दास्ताँ थी लम्हा कहीं नहीं।

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