मंगलवार, 24 जनवरी 2017

न जाने मेरे बाद उन पे क्या गज़री में सीरिया में चन्द ख्वाब छोड़ आया था ( सीरिया कल और आज)

   
दुनिया ने तजुर्बात व हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है वह लौटा रहा हूँ में
     ३१ दिसम्बर १९९९ का दिन ख़त्म होरहा था. में सीरिया में ओमर ऑइल फील्ड जो Damacus से ६०० /७०० किलो मीटर की दूरी पर है , shell कंपनी के लिए काम कर रहा था। रूम बॉय कमरे की सफाई कर के चला गया था ,night  shift  के  इंतज़ार में ,अपने रूम में उदास बैठा था। पड़ोस में प्रदीप गुप्ता मेरे जिगरी दोस्त ,बग़ैर रूम का दरवाज़ा खटखटायें आंधी तूफ़ान की तरह दाखल हुवे। "दोस्त राग़िब  सदी ख़त्म हो रही है क्यों उदास बैठें हो ,चलो डूबते  सूरज का नज़ारा करें ,ऐसे मौकें  क़ुदरत बार बार नहीं देती"। दोनों दोस्त सूरज के सुर्ख गोले को उफ़क़ में दम तोड़ते देखते रहें ,यहाँ तक के सूरज डूब गया, २० वी सदी का खात्मा ,आक्कीसवीं सदी की शुरुवात हम लोगों ने इस तरह की ।
   ज़हन माज़ी के धुंदलकों में  उलझ जाता है
   और कुछ नक़्श तस्स्वुर में उभर आते हैं
   Graduation के बाद २० साल इंडिया में नौकरी करने के बाद ,शादी हुयी दो बच्चे हुवे। bank balance देखा तो ठन ठन गोपाल। किराये का घर ,दो बच्चीयों की पढ़ाई ,उन की शादी। दिल में एक हुक सी उठती थी जिगर जलता था। सीरिया में oil field operation का जॉब ,अल्लाह देता है तो छप्पर फाड़ के। पहली बार घर ,बाल बच्चों से दूरी हो रही थी। Gulf  Air   ३१ अक्टूबर १९९२ मुम्बई बहरीन डमस्कस  flight से रवानगी हुयी। नयी ज़िन्दगी की शुरुवात हो रही थी। बहरीन में २ घँटे transit था। जगमगाते मनामा airport को देख कर तबियत खुश होगयी। बहरीन से Damascus  तक कुछ हिंदुस्तानी साथियोँ से मुलाक़ात हुयी जो मेरे साथ ही काम करने वाले थे। मेरा हौसला बढ़ाया।सेहरा में नखलिस्तान का अहसास हुआ। इन्ही लोगों के दरमियान ज़िन्दगी के लंबे ८ साल गुज़ारे।
  मुझ से भी उड़ते हुवे लम्हे न पकडे जा सके
  में भी दुनिया की तरह हालात के चक्कर में हूँ।
  उन दिनों Omar on  shore oil field पर एक वक़्त में १५० से ज़्यादा Indians काम कर रहे थ , alfurat petroleum company , फ़ुरात  नदी के किनारे , Iraqi सरहद १० किलो मीटर दूरी पर थी। फील्ड क्या mini India जहाँ हिंदुस्तान की हर state के लोग काम कर रहे थे। केरल,तमिल नाडु,महाराष्ट्र , दिल्ली ,UP , ओरिसा, ,उत्तराखंड,पंजाब। घर से दूरी का अहसास इन यारों ने किसी हद काम कर दिया था। ड्यूटी भी एक महीना होती थी। एक महीने बाद हिंदुस्तान लौट कर १ महीना छुट्टी। ड्यूटी पर पहुँचते ही उलटी गिनती शुरू कर देते। उन दिनों टेलीफोन की इतनी सहूलत नहीं थी। हफ्ते में एक दिन ५ मिनिट के लिए घर से बात करने की इजाज़त थी। इन ५ मिनिट के इंतज़ार में हफ्ता बिताना सदिया गुजरने के बराबर होता। मौसम बड़े सख्त होते ६ महीने कड़ाके की सर्दी Temperature zero से भी काम ,कभी कभी बर्फ बारी भी होजाती थी। उस वक़्त रात की ड्यूटी क़यामत से कम न थी। गर्म कपड़ों में लिपटे होने बावजूद सर्दी हड्डियों तक पहुँच जाती थी। गर्मियां  ६ महीने ,५० डिग्री Temperature लिए आती। कभी कभी १५ दिनों तक (अजाज ) धुल मिटटी के तूफान ज़िन्दगी तंग कर देते। नाक कान बालों में मिटटी ही मिट्टी । १ मीटर दूर की चीज़ भी दिखाई नहीं पड़ती थी।
   Syrian locals मिज़ाज के नर्म होतें हैं। ८ साल वहां लोगों के बीच काम करते कभी किसी  को आपस में लड़तें नहीं देखा। Dera El Zor फील्ड से करीबी क़स्बा पड़ता था ,अक्सर लोग हमें घरों पर बुलाते। हमारे लिए बिछे जातें थे। उन लोगों  में खूबसूरती बहुत थी, सभी का रंग गोरा थे लेकिन फिर भी इंडिया से हम से Fair and lovely की  कई कई creams की tubes मँगवातें।
   साथ में काम करने वालों में मुझ से सब ज़ियादा नज़दीकी प्रदीपः गुप्ता से थी। इतने  Org anise खुश  मिज़ाज आदमी में ने बहुत काम देखेँ हैं। उन का रूम हमेशा जगमगाता होता। धुले कपडे बाक़ायदा इसत्री करके वार्डरोब में रखे होते। किताबें पढ़ने का शौक था तरतीब से साइड टेबल पर जमी होती। में उन से मज़ाकन कहा करता "जनाब गुप्ता साहब घर पर आपके होते हुए भाभी को कुछ काम न करना पड़ता होंगा"। हँसके कहतें "ज़र्रा नवाज़ी आपकी" ,गुप्ताजी Arabic  भी काफी समझ लेते थे और काम चलाऊ बोल भी लेते थे।
एक दिन local Syrian से कहा ५  किलो ज़ैतून का तेल ले आना। वह आदमी ५ किलो  ज़ैतून ( olives)  ले आया। में ने कहा "गुप्ताजी हम ने मंगाई सुरमा दानी ले आया ज़ालिम बनारस का ज़र्दा " बहुत हँसें। अलमेडा मुम्बई से था १५७ किलो वज़न लेकिन दिल सोने जैसा। हमेशा पार्टियां करता हम सब Indians को दावत खिला कर खुश होता।j p Singhथे हम सब को हँसा हँसा के बेहाल कर दे थे। सैयद नूरुद्दीन जिन के बारे में इतना ही कह सकता हूँ    
        तुम्हरी याद के जब ज़ख्म भरने लागतें हैं
        किसी बहाने तुम्ह याद करने लगते है।
 २००० में जब syria छोड़ा तो लगा, अपनी family से दूर जा रहा हूँ।  field से Damascus लौटेंते हुवे Palmyra में कुछ देर ठहरते थे। हज़ारों साल पुराने खंडर पर अलविदाई नज़र डालतें हुवे कभी खवाब में भी नहीं सोचा था के इन खंडरों को कोई तोड़ सकता है। आज १७ साल बाद सीरिया का हुलिया (shape ) ही बदल गया है। पूरा मुल्क खंडरात में बदल गया है।  जंग से तंग आकर Syrian पैदल हज़रों मील का सफर कर तुर्की ,यूरोप ,रशिया में पनाह लेना चाहते हैं। hospital ,school ,civilian areas को bombarding कर तबाह किया जा रहा है। में सोचता हूँ कहाँ होंगें मेरे साथ काम करने वाले लोकल सिरिअन्स (ग़स्सान ,ईसा ,अदनान ) . दिल खून के आंसू रोने लगता है। अपनी खुश नसीबी पर अल्लाह का शुक्र अदा करता हूँ।  हम इतने पुर सूकून (peaceful )माहौल में ज़िन्दगी गुज़ार रहें हैं। अल्लाह इस मुल्क को बुरी नज़र से बचाएं।  आमीन 

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