समीरा का रमज़ान से दो रेज़ पहले अपने बच्चों हिबा , फैज़ और भांजी रिदा के साथ इंडिया में आना हुवा। देड महीने का टाइम मानो पल में गुज़र गया। सूरत ,पूना में रिश्तेदारों से मिलना मिलाना ,बच्चों का बिस्मिल्लाह ख़त्म क़ुरआन का छोटा मोटा प्रोग्राम ,रोज़ा इफ्तार , ईद की नमाज़ में शिरकत और आखिर में अपने पुराने स्कूल और कॉलेज के दोस्तों से मुलाक़ातें ,बरसों पुराने गर्द ग़ुबार को हटा कर रिश्तों को फिर से ताज़्ज़ा करने का फ़न बहुत कम लोग जानतें हैं। हम अक्क्सर अपनी ज़िन्दगी अकेले अकेले जीने के आदि होते हैं। अपने ग़म से परे हमें कुछ नज़र नहीं आता। बहुत कम ऐसा होता है हम दूसरों के ग़म में शरीक होते हैं , दूसरों की खुशयाँ अपनी महसूस होती हैं। दूसरों की दी छोटी छोटी परेशानियां ,दुःख ,दर्द और ग़म हम भुला नहीं पातें। समीरा के साथ ज़िन्दगी के चंद पल बिता कर मैं ने उससे बहुत कुछ सीखा है। दूसरों को खुशयां बांटो ,लोगो की दी हुवी छोटीमोटिं लघज़िशों को नज़र अंदाज़ करो।
कल यकायक तमाम फ़ौज के साथ केक मोम बत्ती लेकर हमारे घर पहुँच गयी शगुफ्ता का जनम दिन मानाने। फोटोग्राफी की वीडियो बनाया खूब हंगामा किया।जन्म दिन मानना कोई इस्लामी रस्म नहीं शिर्क भी नहीं। ज़िन्दगी में छोटी मोटी खुशियां बड़े मानी रखती हैं। वक़्त पल पल गुज़र रहा है कल का किसे पता।माज़ी का ग़म , मुस्तकबिल की फ़िक्र ही इंसान को तोड देती है ,इसलिए क्यों न आज में जी ले !
कल यकायक तमाम फ़ौज के साथ केक मोम बत्ती लेकर हमारे घर पहुँच गयी शगुफ्ता का जनम दिन मानाने। फोटोग्राफी की वीडियो बनाया खूब हंगामा किया।जन्म दिन मानना कोई इस्लामी रस्म नहीं शिर्क भी नहीं। ज़िन्दगी में छोटी मोटी खुशियां बड़े मानी रखती हैं। वक़्त पल पल गुज़र रहा है कल का किसे पता।माज़ी का ग़म , मुस्तकबिल की फ़िक्र ही इंसान को तोड देती है ,इसलिए क्यों न आज में जी ले !