गुरुवार, 23 जुलाई 2015

Sameera India me

समीरा  का रमज़ान से दो रेज़ पहले अपने बच्चों हिबा ,  फैज़ और भांजी रिदा के साथ इंडिया में आना हुवा।  देड  महीने का टाइम मानो पल में गुज़र गया। सूरत ,पूना में रिश्तेदारों से मिलना मिलाना ,बच्चों का बिस्मिल्लाह ख़त्म क़ुरआन का छोटा मोटा प्रोग्राम ,रोज़ा इफ्तार , ईद की नमाज़ में शिरकत और आखिर में अपने पुराने स्कूल और कॉलेज के दोस्तों से मुलाक़ातें ,बरसों पुराने गर्द ग़ुबार को हटा कर रिश्तों को फिर से ताज़्ज़ा करने का फ़न बहुत कम लोग जानतें हैं। हम अक्क्सर अपनी ज़िन्दगी अकेले अकेले जीने के आदि होते हैं। अपने ग़म से परे हमें कुछ नज़र नहीं आता। बहुत कम ऐसा होता है हम दूसरों के ग़म में शरीक होते हैं , दूसरों की खुशयाँ  अपनी महसूस होती हैं। दूसरों की दी छोटी छोटी परेशानियां ,दुःख ,दर्द  और ग़म हम भुला नहीं पातें। समीरा के साथ ज़िन्दगी के चंद पल बिता कर मैं ने उससे बहुत कुछ सीखा है। दूसरों को खुशयां बांटो ,लोगो की दी हुवी छोटीमोटिं लघज़िशों को नज़र अंदाज़ करो।
   कल यकायक तमाम फ़ौज के साथ केक मोम बत्ती लेकर हमारे घर पहुँच गयी शगुफ्ता का जनम दिन मानाने। फोटोग्राफी की वीडियो बनाया खूब हंगामा किया।जन्म दिन मानना कोई इस्लामी रस्म  नहीं शिर्क भी नहीं। ज़िन्दगी में छोटी मोटी खुशियां बड़े मानी रखती हैं। वक़्त पल पल गुज़र रहा है कल का किसे पता।माज़ी का ग़म , मुस्तकबिल की फ़िक्र ही इंसान को तोड देती है ,इसलिए क्यों न आज में जी ले !



रविवार, 19 जुलाई 2015

Rasme bismillah ,takmile Quran



نحمدہ نصلی الی رسولہ الکریم اما بعد
 हाज़रीन   अस्सलाम अलैकुम 
योगी मिडटाउन होटल के खूबसरत हॉल में , फैज़ शेख की रस्म बिस्मिल्ला ,हिबा का तक्मीले क़ुरान और रिदा और हिबा का रमजान के पुरे रोज़े रखने की ख़ुशी में रखा गया यह प्रोग्राम काबिले  मुबारकबाद है। अक्सर लोग खतमे क़ुरान भी कहते हैं लेकिन क़ुरान  ता क़यामत इंशाल्लाह कभी ख़त्म नहीं होगा। समीरा कबीले तहसीन है के उस ने इस रस्म को ज़िंदा कर दिया। हालांकि यह न सुन्नत है न किसी हदीस से साबित है लेकिन  बमुक़ाबला इसके के ,लोग हज़ारों रुपैये जन्म दिन मानाने में फूँक देते हैं जिस का हासिल कुछ नहीं होता हज़ार दर्जे बेहतर है।
  इंसान के सब आमाल उस की मौत के साथ ख़त्म होजाते हैं , अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया तीन ऐसे अमल हैं जिन का अजर ता क़यामत इंसान को मिलता रहता हैं।  नेक आमाल ,नेक औलाद और अछा इल्म या अछे काम जो उस ने किये थे। अल्हम्दोलीलाः फैज़,रिदा,हिबा को क़ुरान पड़ते देखता हूँ तो तबीअत खुश होजाती है। क़ुरआन  अरबों के अंदाज़ में पढ़ते हैं। ऐन ,घैंन ,काफ़ ,शीन की अदायगी बहुत सही होती है। बच्चों से नसीहत  हैं के क़ुरान हमेशा पढ़ते रहें। अगर MEANING से पढ़े तो और बेहतर होंगा। Practical life में भी क़ुरान पर अमल करें तो सोने पे सुहागा।क्यूंकि क़ुरआन पड़ कर भुलना बहुत बड़ा गुनाह है। हिबा,रिदा,फैज़ और उन के वालिदैन ज़ाहिद ,समीरा ,लुबना और हैदर को हम सब की जानिब से मुबारकबाद के अमेरिका में रहते हुवे ,जहा फैशन की चकचोँद है ,तहज़ीब दम तोड़ रही है ,नंगापन अपनी इन्तहा को पहुंचा है बच्चों को क़ुरानी तालीम दिलाई और सही अंदाज़ में दिलवाई। बच्चोँ को बड़ों की इज़्ज़त ,अदब ,तहज़ीब ,संजीदापन ,वक़ार सिखाया और जमीन से जुड़ा रहने का फन सिखाया जो उन से मिलने बाद दिखाई देता हैं। 

        आज तुम याद बे हिसाब आये। 
  आखिर में उस अज़ीम हस्ती मरहूम सादिक़ अहमद को खिराज अक़ीदत पेश करता हूँ, जो हमारे तमाम ख़ानदान के रूहे रवां थें,राहबर थे । हम सब को भले बुरे की तमीज सिखाई ,अपनी औलाद को बेहतरीन तालीम दिलवाई।  मोहतरमा भाभी साहेबा ज़ुबेदा भी मुबारकबाद की मुस्तहक हैं जिनोः ने हर कदम पर भाई साहब का भर पुर साथ दिया। जिस का नतीजा है के उन की नेक औलाद अछि तालीम हासिल कर अमेरिका ,दुबई में रहने के बावजूद नमाज़ ,रोज़ा ,ज़कात ,हज के पाबंद हैं। और आने वाली नस्ल को भी इन चीज़ों से रुशनास करवा  रहें  है। 
       सादिक़ भाई के लिए इतना ही कह सकता हूँ 
मनों मिटटी के नीचे दब गया वह 
हमारे दिल से लेकिन कब गया वह 

बिछड़ा कुछ इस अदा से के रुत ही बदल गयी 
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर कर गया

صدق اللہ العظیم و صدق رسول الکریم