गुरुवार, 28 मई 2015

local train



                                                                         لوکل ٹرین      
  1950 کی پرانی  ہندی فلمیں دیکھ آہ نکل پڑتی  ہے ، ممبیئ کی‎ لوکل کیا خالی خالی اور صاف ستھری ہوا کرتی- بھیک مانگنا بھی کتنا آسان ہوا کرتا تھا-فقیر ساز ہاتھوں میں لیے خوبصورت دھنیں بجاتے اطمنان سے مسافروں بیچ سے گزرتے داد وصول کرتے-کیئ تو ترقی کرتے کرتے اپنے زمانے کے مشہور گویئے،میوزک ڈایرکٹر بن گیے-اب تو لوکل ٹرین کو دیکھ کر ہوا سے بھرے اس غبارے کا تصور ہوتا ہے جسے پھٹنے کی حد تک پھونک دیا گیا ہو-ٹرین کے کمپارٹمنٹ میں لوگ کھچا کھچ بھرے ہوتے ہین،بچے کچھے لوگ چھت پر چڑھ جاتے ہیں- کچھ دروازے کھڑکیوں پر لٹک جاتے ہیں،باقی بوگیوں کے بیچ ،اگر فی مربع فیٹ لوگوں کی تعداد نکالی جایے تو ہوا کا گزر بھی ٹرین کی بوگی سے مشکل نظر آتا ہے-محسوس ہوتا ہے آپ کے سانس سے نکالی ہوا    آپ کے سامنے کا مسافر  استعمال کر رہا ہو-ہلنے کے لیے جگہ نہیں ہوتی اس کا فایدہ یہ ہوتا کے ، اکژ مسافروں میں تو تو میں میں تو ہوجاتی  ہاتا پایئ نہیں ہو پاتی-ٹرین میں لگے پنکھے کبھی کبھی سویچ بند کرنے پر چل پڑتے ہیں لیکن ہوا پھینکنے کی بجایے اکزاسٹ فین کا کام کرتے نظر آتے ہیں-لوکل ٹرین کی بوگیوں میں ضرورت زندگی کا ہر سامان خریدہ جا سکتا ہے-کنگھی سے لیکر پھل پھروٹ،نیل کٹر ،سبزیاں،ریڈی میڈ ڈریس،میک اپ کا سامان وغیرہ-ٹرین میں دل بہلانے کے کیئ سامان ہوتے ہیں ،ہارمونیم ،ڈھول گلے میں لٹکایے ،ہاتھوں میں منجیرے لیے بے ڈھب بلند  ، آواز میں گاتے فقیر،بچی کچھی کمی بھجن گاتے مسافر پوری کر دیتے ہیں-
       آپ کی تمام پرشانیوں کا حل ٹرین میں لگے اشتہارات میں مل جایے گا-پسندیدہ نوکری ،اولاد،پریشانی سے نجات،جادو ٹونے سے علاج بابو بنگالی کر دینگے-نامردگی،کینسر اور ایڈس کا شرطیہ علاج  بغیر آپریشن کے ،جو کسی ڈاکٹر یا ساینٹسٹ کے پاس نہیں  ان اشتہارات میں تلاش کر لیجیے-محبوبہ کو گرویدہ کرنا ہو یا اسقاط حمل دنیا کی کونسی مشکل ہے جو آپ ان اشتہارات کی مدد سے حل نہیں کر سکتے-لوکل میں سفر کے دوران آپ کا بٹوہ  پاکٹ  ماروں کے زریعہ چوری ہونا لازمی ہے،جو ایک ٹولی کی شکل میں  ہر کمپارٹمنٹ میں موجود ہوتے ہیں-اگر آپ نے احتجاج کرنے کی کوشش کی تو  آپ کو پیٹ بھی دیا جاتا ہے،شرافت اسی میں ہے کے بٹوے کا غم نا کیا جایے،ویسے بھی آج کل لوگ بٹوے میں عشقیہ خطوط زیادہ اور پیسہ کم رکھتے ہیں-
   لوکل ٹرین کی رفتار چینوٹی کی رفتار سے کم و بیش  زیادہ ہوتی ہے-ریلوے کی زمین پر پٹری کے متوازی جھوپڑیاں بنانے کی کھلی اجازت ہے-اس میں یہ سہولت ہوتی ہے کے ٹرین سے اتریے اور اپنے گھر میں داخل ہوجایے-گھر صاف کر ،کوڑا کرکٹ اور غلاظت پٹریوں پر پھینکنےمیں آسانی-بیت الخلا کے لیے بھی گھر سے دور جانے کی ضرورت نہیں-کچھ عرصے میں لایٹ پانی مفت دستیاب ہوجاتا ہے-ہینگ لگے نہ فٹکری
  پٹریوں پر باقاعدہ کرکٹ کھیلا جاتا ہے مقابلے منعقد ہوتے ہیں-اگر موٹر مین کی غلطی سے (کھلاڑی کی غلطی ہو ہی نہیں سکتی)کویئ حادثہ کا شکار ہو جاتا ہے تو موٹر مین کو بھاگ کر جان بچانی پڑتی ہےاور مسافروں پر پتھروں کی بوچھار-اکثر و بیشتر بچوں کی نشانہ بازی کی مشق میں مسافر اپنی آنکھیں کھو بیٹھتے ہیں-اب پٹریوں کے کنارے رہنے والے باسیوں نے مانگ کی ہے کہ دو ٹرینوں کے بیچ کا وقفہ بڑدا دیا جایے تاکہ ان لوگوں کے سونے کھیلنے اور بچوں کی پڑھایئ میں خلل نہ پڑھے-سرکار بھی اس معاملے پر سنجیدگی سے غور کر رہی ہے-
    برسات کے موسم میں لوکل ٹرین کی رفتار بڑھ جاتی ہے-پٹریاں پانی میں ڈوبنے کی وجہ سے ٹرینیں تیرنے لگ جاتی ہے-لیکن سامنے آنے والی ٹرین سے ٹکرانے کا خدشہ بڑھ جاتا ہے اس لیے ٹرین سروس روک دی جاتی ہے-
پرانے زمانے میں نیے پل تعمیر ہوتے تھے تو بچوں کی بلی چڑھایئ جاتی تھی -50 لاکھ لوگوں کو  روزانہ لیکر چلنے  والی یہ
ٹرینیں بھی روزانہ کیئ لوگوں کی بلی  لیتی ہیں-لیکن جسطرح ممبیئ کے شہریوں کو کھانا،پینا،سونا ضروی ہے چھ بج کر بیس منٹ کی ٹرین کا سفر بھی لازمی ہے-

मंगलवार, 26 मई 2015

Kashif ki shadi par likhee Gayee tahreer

बाबर्कत शाबान अल मौजम की ६ तारिख ,रमज़ान अल मुकर्रम के बाद अल्लाह के रसूल का पसंदीदा महीना।  काशीफ और शिफ़ा अल्लाह की सिफात हैं।  काशिफ परेशानियों को दूर करने वाला ,रहमत के दरवाजें खोलने वाला। शिफ़ा बिमारियों और दुःख आलाम  से नजात देने वाला अल्लाह ही तो है। आज सलाबत पूर यानि मज़बूत मुक़ाम पर दोनों एक पाक रिश्तें में  बंधने जा रहें हैं। अल्लाह इस रिश्ते को कामयाब कामरान करे। इसकी रहमतें इस नए शादी शुदा जोड़े पर ता अबद कायम रहे आमीन सुम्मा आमीन।
    काशिफ उस सय्यद खानदान से ताल्लुक़ रखता है जिस का सिलसिला शाह वजिहोद्दीन अहमदाबादी से जुड़ता है ,बड़ी अज़ीम व बाबर्कत शख्सियत थी। उन की दुआओं का फैज़ था के खानदान में अफ़ज़लोद्दीन सय्यद ,ग़ुलाम मोहियौद्दीन सय्यद और सईद अहमद सय्यद जैसी शख्सियतों ने जनम लिया। अफ़ज़लोद्दीन सय्यद जिनेह लोग लाला मियां के नाम से जानतें थे बड़ी बारसुख शख्सियत थी। रियासत गुजरात में उन का दबदबा था। भड़भूँजा उन का वतन था। में ने खुद अपनी आँखों से देखा है के जब उनेह सफर करना होता भड़भूँजा स्टेशन मास्टर से कह रखते उन के पहुचने तक ट्रैन भड़भूँजा स्टेशन पर रुकी रहती ,गार्ड ,टी सी उनेह फर्स्ट क्लास में बैठाते तब ट्रैन रवाना होती। आदिवासियों में उन का बड़ा अहतराम था ,गाँव के सरपंच थे ,गाँव में निकलना होता लोग बड़ी इज़्ज़त से उन से मिलते ,उन के पैरों पर गिरतें ,वह भी उन के दुःख सुख में बराबर शरीक होतें। खुदा झूट न बुलवाएं झाड फूँक कर लोगों का इलाज करते देखा हूँ। बिछउँ के काटने पर कईं बार दम किया पानी दिया लोगों को आराम होगया। अल्लाह उन की मग़फ़िरत करें।
ख़्वाब था जो कुछ के आँखों ने देखा था ,अफ़साना था जो कुछ के सुना था
     ग़ुलाम मोहियौद्दीन सय्यद अल्हम्दोलीलाः हयात हैं। बड़ी ही संजीदा तबियत पाई है शाइर ने शायद उन के लिए कहा है
ढूंढ उजड़ें हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये खज़ानें तुझे शायद के खरबों में मिलें
     सईद अहमद उर्फ़ बना भाई ,हमारे गोर मामूँ ,काशिफ के वालिद मोहतरम B.A ,LLB थे। उस ज़माने में प्लेन से सफर करते थे ,जो के उस ज़माने में एक ख्वाब हुवा करता था। मैं ने उनेह दोधारी बन्दूक से शिकार करते देखा हूँ ,होल्स्टर में कारतूस भरी राइफल अपनी हिफाज़त के लिए चलते देखा हूँ। चालीस साल पहले उन के पास जापान की हौंडा मोटर साइकिल हुवा करती थी। जो भी किया बड़ी शान से किया ,चाहे बिस्निस्स हो ,दोस्ती हो ,मोहब्बत या दुश्मनी हो। आखरी उम्र तक ज़िन्दगी से जंग नहीं हारी। जदोजहद का सिलसिला कभी नहीं रुका। हाल ही में ख्वाजा के शहर में उनोह्न ने आखरी सांस ली। उन की ज़िन्दगी की दास्ताँ इस शेर से बयां की जा सकती है।
चला जाता हूँ हँसता खेलता मौजे हवादिस से
अगर हो ज़िन्दगी आसान जीना दुश्वार होजाएं
   काशिफ को देखा हूँ अब्बा के साथ दूकान  संभालता था ,और साथ साथ MBA भी कर रहा था। अब उस की ज़िन्दगी में ठहराव आगया है ,तालीम पूरी होगयी है अछा जॉब भी मिल गया है। उस में गोरे  मामूँ की तमाम खूबियां पाई जाती हैं। अल्लाह से उम्मीद है वह उस   मक़ाम को पा लेंगा जहां गोरे मामूँ  पहुंचें थे। आमीन
   मुहसिन लफ़्ज़ी माने अहसान करने वाला उस की मेहनत जदों  जहद को देख कर इंशाल्लाह मुस्तकबिल की पेहनगोई कर रहा हूँ ,वह future के CM  के साथ गुजरात का दौरा करेंगा।
   आज में , और हमेशा से इस बात का एतराफ़ करता रहा हूँ क़े हमारे खानदान ,हमारे भाईयों पर हमारे मॉमू ,मुमनियां
,खाला ,नाना ,नानी  और बहनों की खास नज़रे इनायत रही ,जिस की बिना पर हम अम्मा की कमी को महसूस न कर सके। इतनी तरक़्क़ी कर सके इस मुक़ाम तक पहुँच सके।
    अल्लाह मरहूम अम्माँ ,गोरी मुमानी, मुमानी अम्मा ,नानि अम्मा ,नाना मियां ,गौरे मामूँ ,मामूँ मियां, खालूं जान,खालूं मियाँ ,अम्माँ बीबी को जन्नत नसीब करें। खाला जान ,दुलेह मामूँ ,दुल्हन मुमानी को सेहत और हयात अब्दी आता करे ,आमीन सुम्मा आमीन !!!!!
 





बुधवार, 20 मई 2015

Ruhi

रूही का अरबी में मतलब होता है "खुशबु फैलानी वाली" या "खुशबु लेकर चलने वाली " अब्बा का इंन्तेक़ाल रूही की पैदाइश से कुछ महीने पहले होगया था।  लेकिन उन्हें रूही की खुशखबरी मिली थी और मुझे याद है उनोह ने बहुत दुआएं भी की थी।
    मुस्लिम समाज में तालीम के तालुक से जो बेपरवाही बरती जाती है अल्हम्दोलीलाः रूहिं ने  साबित कर दिया के लड़कियां भी कुछ काम नहीं होती। उस ने जिस जाँफ़िशानी से B.Commerce और फिर M.Commerce किया और वह भी नवी मुंबई की बहेतरीन कॉलेज से। survey  से पता चलता है के मुस्लिम मआशरे में हिंदुस्तान में १% से भी काम लड़कियां post gradute हो पाती है। अल्हम्दोलीलाः हमारे खानदान के लिए रूही का इक़दाम संग मील (mile stone ) की हैसियत रखता है।

            कुछ इस तरह से तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
             गिर पड़े गिर के उठे उठ के चलें
    ख़्वाब तो सब ही देखतें है ख्वाबों में रंग भरना सब को नहीं आता। जावेद और यास्मीन ने जिस तरह बच्चों की परवरिश की काबले तहसीन है। जावेद का सालों घर से दूर रहना सिर्फ इस लिए ,के हलाल रोज़ी का हुसूल हो सके। यास्मीन का जावेद की ग़ैर हाज़री में बच्चों की तरबियत ,अखलाक़ की निगहदाश्त और बेहतरीन अदारों में बच्चियों की तालीम ,घरेलू मामलों में बच्चियों  की तरबियत का सहरा यास्मीन के सर जाता है। रूही का post graduate होना,सदफ का pillai कॉलेज से MBA होना,इस शादी की तैयारियों में पूरी तौर पर उस ने अपनी डिग्री का सबूत पेश कर दिया। ईशा भी उसके  नाम की तरह (दिन की आखरी नमाज़ ) माशाअल्लाह  नवी मुंबई की बेहतरीन स्कूल Father Agnel से  10th का Exam appear कर चुकी है और अब pilot बनने के सपने देख रही है और इंशाल्लाह आज के तरक्क़ी याफ्ता दौर में कोई मुश्किल बात नहीं। अल्लाह उस के तमाम सपनों में हकीकत का रंग भर दे आमीन।
     अल्लाह के रसूल की सच्ची हदीस है के जिस ने तीन लड़कियों की पैदाइश पर ख़ुशी मनाई ,उन की अछि तरबियत की और उनेह अछे खानदान में बियाह दिया वह जन्नत का मुस्तहक़ हो गया। और ग़ालिबन आप SAS   कहा था की मेरे
और उन वालिदैन के दरमियान दो उँगलियों की क़ुरबत का फासला होंगा। यक़ीनन जावेद और यास्मीन जन्नत के
मुस्तहक़ हो गए।
     माशाअल्लाह रूही को शुएब की सूरत में बेहतरीन शरीक हयात मिला है जो BE /MBA है और बेहतरीन पोजीशन में
जॉब कर रहा है। और अच्छे खानदान का चश्म चिराग़ है। अल्लाह से दुआ गो हूँ के रूही के तमाम ख़्वाब हकीकत का रंग लेले ,मुस्तक़बिल रोशन हो और शादी शुदा ज़नदगी रश्के मालयक हो ,आमीन सुम्मा आमीन।