हाजी मलंग बचपन की यादें |
कभी कभी ये होता है इंसान का नाम उसकी शख्सियत से बिलकुल मैच नहीं होता। नाम है हसीना इतनी खौफनाक के बच्चे डर जाये। नाज़िम के नाम के लफ़्ज़ी मानि होते होते है organizer, आपा और दुलेह भाई ने क्या सोच कर नाम रखा था। दाद देनी पड़ती है। नाज़िम के नाम से उस की शख्सियत मेल खाति है।मेहनती ,ईमानदार ,जिस महफ़िल में बैठ जाये गुल व गुलज़ार होजाती है। मज़ाक भी ऐसा के तहज़ीब के दायरे से बाहर नहीं होता। हिना ने अपनी शादी का दावत नाम whatsup पे रवाना किया "nazim & fly "पढ़ कर अपनी अहलिया से मज़ाकन कहने लगा "जल्दी तैयार होजाओ मॉमू ने फ्लाइट का टिकेट भेजा है। उस का डील डौल हमारे दूल्हे भाई यानी उसके वालिद से मिलता जुलता है। निकलता कद , दूध की तरह शफाफ रंग, नीली ऑंखें। अल्लाह नज़र बाद से बचाये।
ये फूल मुझे कोई विरवसत में मिले हैं
तुम ने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा
नाज़िम का खाका लिखते लिखते हमारी बड़ी बहन अदीबुन्निसा यानि उस की वालिदा की यादें ताज़ा होगयी।
दुलह भाई की कलिल आमदनी चार बच्चों का साथ।, आपा ने अपनी दुःख की पर्छयोन में बच्चों का रोशन मुस्तक़बिल महसूस कर लिया था। सिलाई मशीन चला चला कर पैर सूज जाते। मर्ग़ियाँ पालना ,अण्डे बेचना,आमदनी के नए नए ज़राये तलाश करना। वह थी ही ऐसी,अपने दुखों का किसी से गिला शिकवा न किया , न किसी तारीफ की तमन्ना की। ख़ुलूस की ज़िंदा मिसाल थी वह। अल्लाह उसे करवट करवट जन्नत नसीब करे आमीन सुम्मा आमीन।
आज आपा के आँगन की फुलवारी नवासों ,नवासियों ,पोतो ,पोतियों से महक रही है , हलाल रिज़्क़ की फरवानी है क्या इस में आपा की दुआ शामिल हाल नहीं। यक़ीनन है लेकिन एक खलिश एक बेचैनी है और एक सरगोशी सी सुनाई पड़ती है।1
दुआ बहार की मांगी तो इतने फूल खिले.
कहीं जगह न मिली मेरे आशियाने को
अलाह की मसलेहत के बच्चों के अछे दिन न देख पायी। आख़िरत में अजर की मुस्तहक़ तो होगयी।
तालीमी दौर में नाज़िम खलंड्रा ,बे फिकरा सा था। साबू सिद्दीक़ में इंजीनियरिंग कि पढाई के दौरान एक ऐसा वक़्त भी आया के उस पर नाउम्मीदी के बादल छा गए थे अगर मॉमू मियां(सादिक़ अहमद) की रहनुमाई न मिलती। लेकिन तालीम पूरी करने के बाद उस की ज़िन्दगी का रुख बदल गया। नीचे बैठना उस ने सीखा ही नहीं। बचपन में वह सीरत तुन नब्बी के जलसों से बड़ी बड़ी ट्राफियां जीत कर लता था। में पूना छुट्टियों में आया था। नाज़िम ऐसे किसी जलसे में शिरकत के लिए गया था। आपा हयात थी। रात २ बजे के क़रीब आँख खटके से खुल गयी ,आपा को बेचैनी से टहलते देखा। पूछने पर पता चला नाज़िम सीरत के जलसे से अभी तक नहीं लौटा।हम दोनों नाज़िम का इंतज़ार रहे। नाज़िम के लोटने पर में ने उसे बहुत डांट पिलाई वह चुप चाप सुनता रहा। मुझे क्या पता था उनिह महफ़िलों की बरकत और मौलाना यूनुस मरहूम की दुवायें और रहबरी उस के रोशन मुस्तकबिल के लिए मश अले रह बन जाएगी।
अलाह ने उसे निकहत के रूप में एक ख़ूबसूरत हमसफ़र और ३ प्यारे प्यारे बच्चों से नवाज़ दिया। अल्लाह के रसूल का क़ौल है जिसे खूबसूरत घर ,अच्छी सवारी और बेहतर बीवी नसीब होगयी उस की दुनयावी ज़िन्दगी कामयाब होगयी।
शगुफ्ता के साथ में ने दो मर्तबा दुबई का सफर किया और नाज़िम की मेहमान नवाज़ी का लुत्फ़ उठाया। मेहमान की राह में पलकें बिछा देना इस मुहावरें को उस ने सच कर दिखया। उस का घर,आफिस ,कार से UAE की सैर ,महफ़िलें।,दावतें। दुबई में वह मिक़नातीस की मिसाल है के रिश्तेदार दोस्त व अह बाब उस के खलूस से फ़ैज़याब होते रहतें हैं।
AUGAST -२०१२ में अपनी नयी बिल्डिंग की तामीर मुकम्मल होने पर उस ने हम सब की पूना बुला कर दावत की थी। उस की ख्वाहिश थी के सादिक़ मामू भी इस दावत में शरीक हो। इत्तेफ़ाक़ से हमें स्कूल की बस मिली थी। जावेद,मेरी और सादिक़ भाई के खानदान ने इस प्रोग्राम में शिरकत कर बहुत मज़ा किया था। दावत भी शानदार होई थी। नाज़िम ही ने हमारी ट्रिप का खर्च उठाया था। पूना से लौटते हुवे शगुफ्ता ने कहा था स्कूल ट्रिप बहुत शानदार रही सब से बड़ा स्टूडेंट दादा भाई ६४ साल के और सब से छोटा स्टूडेंट आलिया ३ महीने की। दादा भाई ने बहत हंसा था और इंतेक़ाल से पहले यह उनकी आखरी ट्रिप थी।
आपा के बाद परवीन उस खानदान के लिए anchor बन गयी है। दूलह भाई ने भी तमाम उम्र ईमानदारी की मिसाल कायम की है। अब इत मेंनान की रिटायर्ड ज़िन्दगी गुज़ार रहे है। नासिर भी एक तल्ख़ तजर्बे के बाद सुकून भरी ज़नदगी अपने खानदान के साथ बसर कर रहा है। फहीम अपने तौर पे कोशिशों में मसरूफ है।
अल्लाह से दुआ गो हूँ के खानदान पर उस की नज़रे इनायत रहे ,नयी नस्ल बहुत तरक़्क़ी के मनज़िल तै करे अछि मिसालें कायम करे। आमीन सुम्मा आमीन।
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