शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

2013/2014 hamne kya khoya hum ne kya paya

वक़्त तेज़ी से गुज़रता है ,वक़्त की आह्ट महसूस नहीं होती। लम्हों के  ढेर से हम दिन महीनो और सालों की गिनती करते हैं। कैलेंडर के पन्ने पलटते पलटते १२ दिसंबर  २०१३ पर नज़रें ठहर गयी। आँखें नाम होगयी। एक साल का लम्बा अरसा मानो पलक झपकते गुज़र गया। सादिक़ अहमद मेरे बड़े भाई मेरे दोस्त मेरे रहबर हम से जुदा हो मालिके हकीकी से जा मिले। जुमेरत की रात उनोह्न ने आँखें मुंदी, जुमे की  दोपहर बाद नमाज़े जुमा इन्हे नेरुल के कब्रस्तान में सुपुर्दे खाक किया गया। ४००० लोगों ने नमाज़े जनाज़ा में शिरकत की। अल्लाह के रसूल की पेशनगोई है के जिस शख्स  के जनाज़े में १०० लोग शरीक हों उस की मग़फ़ेरत की अल्लाह की तरफ से ज़मानत है। 
मौत से किस को रसतगारी है  
आज वह ,कल हमारी बारी है 
    एक साल के वक्फे में हमारे दोस्तों ने और में ने उनेह हमेशा याद किया। शायद ही कोई जुम्मा गुज़रा हो में ने कब्रस्तान जाकर उनकी क़ब्र पर फातेहा न पड़ी हो। शायद ही कोई दिन ऐसा गुज़रा हो में ने उन्हें याद न किया हो। कोई मुश्किल हो।,कोई मसअला हो हर चीज़ का जवाब उन के पास था। एक साल में कई ऐसे मरहले आये में तिश्ना लब रहा उन की कमी शिदत से खिली। उन की सोच का असर हम सब पर साया फगन है। उन की यादें उन की बातें हमारी ज़िन्दगी का सरमाया है। लुबना ,समीरा। नायला ,उज़्मा की ज़हन साज़ी ,तालीम तरबियत अजब अंदाज़ में की। यही वज़ह रही के लुबना ,समीरा और नयेला ने अपने खानदान और औलाद की परवरिश के लिए अपने  करियर की क़ुरबानी दे दी। 
     पिछले एक साल के दौरान खानदान के तीन और करीबी बुज़र्गान् ने हम से नाता तोडा और मालिके हकीकी से जा मिले, अलहाज रज़ीउद्दीन रिश्ते में वह हमारे हक़ीक़ी खालू होने के बावजूद हम से दोस्ताना रस्म व राह के कायल थे। उन के साथ एक तहज़ीब ने दम तोड़ दिया ,सईद मॉमू जिनेह हम गोर मॉमू कह कर मुखातिब करते थे ,उनोह् ने हम चारों भाइयों की तालीम,किरदार साज़ी और हमारे मुस्तकबिल को रोशन बनाने में माइन व मददगार रहे ,उन के अहसान हम ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकते। भैया मॉमू जो मुझ से ४ साल बड़े थे,ज़िन्दगी जीने का फन उन से सीखा जा सकता है। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त सब की मग़फ़रत करे अपने जवारे रहमत जगह अता फमायें।  आमीन सुम्मा आमीन। 

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