जी चाहता है नक़्शे क़दम चूमते चले "
सूरा इब्राहिम आयात २५
क्या तू ने न देखा अल्लाह ने कैसी मिसाल बयांन फ़रमाई पाकीज़ा बात की जैसे पाकीज़ा दरख्त जिस की जड़ क़ायम और शाखें आसमान पर हो हर वक़्त अपना फल देता है अपने रब के हुक्म से और अल्लाह लोगो के लिए मिसालें बयांन फरमाता है के वह समझे।
माशाल्लाह इस क़ुरानी आयात को पढ़ कर मरहूम दादा भाई (सादिक़ अहमद ) की यादें ताज़ा होजाती हैं। अल्लाह उनेह जन्नत में ऊँचा मक़ाम अता करे। आज क़ुरान द ट्रुथ फाउंडेशन के प्रेजिडेंट डॉक्टर के पी शरीफ के लिखे लेटर को पढ़ कर आँखें नम (गीली ) होगयी। दादा भाई के क़ुरान के तफ़्सीर के अंदाज़ की यादें ताज़ा होगयी। २००८ में जब क़ुरान की तफ़्सीर शुरू की गयी थी लोगों को अजीब लगता था। तफ़्सीर तो सिर्फ आलिम ही कर सकते हैं। लेकिन धीरे धीरे लोग जुड़ते गए और आज तक क़ुरान की तफ़्सीर का सिलसिला उसी अंदाज़ में शुरू है। १७ साल से इतवार की सुबह ये तफ़्सीर बाक़ायदा "online " होती है और कई लोग इस से जुड़ते भी हैं ,इंशाल्लाह अल्लाह से उम्मीद है ये सिलसिला चलता रहेंगा और दादा भाई के हिस्से में नेकियाँ जुड़ती रहेंगी।
अल्लाह दादा भाई के जन्नत में दरजात बुलंद करते रहे आमीन सुम्मा आमीन।