गुरुवार, 23 जनवरी 2025

Khiraje Aqeedat

                                                                       खिराजे अक़ीदत 
Late Sayed Zakir Hussain

                                              अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोये 

                                               शजर गिरा तो परिंदे तमाम शब् रोये 

१९ जनवरी 2025 सैय्यद ज़ाकिर की अलालत की खबर सब ग्रुप्स में वायरल हो गयी थी और उसी शब् इंतेक़ाल की खबर भी रिश्तेदारों के सभी ग्रुप्स में देखने को मिली। ताज़ियत के मेसेजेस का एक सैलाब हर ग्रुप में उमड़ आया। जनाब हसींन और JGShaikh ने भी मरहूम को अपने खूबसूरत अंदाज़ में  खिराजे अक़ीदत (Obituary ) पेश किया।  २० जनवरी २०२५ बामुतबिक १९ रज्जब १४४६ तद्फीन  एरंडोल के उसी क़ब्रस्तान में कई सौ लोगों की मौजूदगी में अमल में आयी , जिस क़बरसतन को रजिस्टर करवाने और बॉउंड्री की दीवार बनाने के लिए एरंडोल क़ब्रस्तान कमिटी के साथ मिलकर ज़ाकिर सैय्यद ने अनथक मेंहनत की थी , खुश किस्मत रहे उनेह  हमारे  बुलंद अख़लाक़ बुज़र्गों के दरमियान जगह मिली। 

                                                    फैला के पाँव सोयेंगे तुर्बत में आज हम 

                                                     लो अब सफर तमाम हुवा घर क़रीब है 

  बचपन से सैय्यद ज़ाकिर को किताबों से अदब से दिलचस्पी रही। उन की पहली कहानी बहुत कम उम्र में छपी थी। ये कहानी एक सच्चे हादसे पर मर्कूज़ थी। में ये कहानी पढ़ चूका हूँ। उनकी सभी कहानियां ज़िन्दगी से क़रीब हादसात ,वाक़ेयात पर लिखी गयी। "रासतें बंद हैं "ये किताब जब छपी मुझे भी एक कॉपी रवाना की थी और मुझ से कहा था अपने तस्सुवरात ज़रूर बयान करना। क़रीबी रिश्तेदारों ,बुज़र्गों पर जब कालम लिखना शुरू किया उस का उन्वान भी ज़ाकिर सय्यद ने तजवीज़ किया था जो बहुत खूबसूरत "खुशबु जैसे लोग लोग मिले " था। लगातार कई बुज़र्गों के हालते ज़िन्दगी हमारे सामने लाने में वह कामयाब हुए। काश के हम एक किताबी शक्ल में छाप सकते। मेरी ये आरज़ू रह गयी के खुशबु जैसे लोग मिले में उन पर लिख पाता। खैर उन के लिए खिराजे अक़ीदत ही सही। एरंडोल की हिस्ट्री पर उनेह ऊबूर  (Mastery   ) हासिल थी। सदियों पहले सिपह सालार मालिक काफूर की अपने लश्कर के साथ एरंडोल में रहियिश यहाँ जामे मस्जिद का बनवाना ,छावनी कायम करना मरहूम सैय्यद ज़ाकिर ही से मालुम हुवा था । हज़रात ख्वाजा खुर्रम खत्ताल चिस्ती की ज़िन्दगी पर एक तवील मज़मून भी सय्यद ज़ाकिर ने लिखा था। सय्यद ज़ाकिर फिरोज हाश्मी (क़लमी नाम ) के नवासे और क़ाज़ी मुश्ताक़ के क़रीबी हैं।  क़ाज़ी मुश्ताक़ तो आज के दौर के मारूफ मुससनीफ़ (Writer ) माने जाते है। उनके लिखे ड्रामे साने गुरूजी ,ग़ालिब की हवेली ,अबुलकलाम आज़ाद हिन्दुस्तान भर में मशहूर हुए हैं। ऐसे खानदान के सपूत को यक़ीनान लिखना वाजिब होता है। हम तो ज़िन्दगी गुज़ार कर गुज़र जाते हैं सय्यद ज़ाकिर जैसे लोग ज़िन्दगी के साथ गुज़रते है ,महसूस करते है और लफ़्ज़ों में बयान भी करते हैं। 

   सैय्यद ज़ाकिर  बचपन ही से बुज़र्गों की बहुत इज़्ज़त किया करते थे। उनके साथ बैठने वक़्त गुजरने में उनेह लुत्फ़ महसूस होता था।  उनकी नसीहतों पर अमल करने में फख्र महसूस करते। हमारे वालिद मरहूम हाजी क़मरुद्दीन से वह रब्त में रहते थे और बड़े खूबसूरत खत लिखा करते थे। काश हमने पुराने खुतूत के ख़ज़ाने को मेहफ़ूज़ कर लिया होता। मैं ने भी अपने वालिद मरहूम क़मरुद्दीन ,मरहूम हाजी सादिक़ अहमद के खत पढ़ कर बहुत कुछ सीखा है। और डॉक्टर वासिफ अहमद के खुतूत का कोई जवाब नहीं  होता था। आज के दौर में सोशल मीडिया ने इस फन  को दफ़न ही कर दिया है। 

                             कौन मुझसे पूछता है रोज़ इतने प्यार से 

                             काम कितना होगया, है वक़्त कितना रह गया 

  मरहूम सैय्यद ज़ाकिर को खानदान के शिजरे की ज़बरदस्त मालूमात थी। औलिआ अल्लाह से भी उनेह ज़बरदस्त अक़ीदत थी। होता ये है के रिटायरमेंट के बाद लोग अपने आप को समेट लेते हैं ,मरहूम ज़ाकिर के साथ कुछ अलग ही  हुवा। एंग्लो उर्दू स्कूल एरंडोल ,मस्जिद और क़ब्रस्तान ट्रस्ट एरंडोल के साथ जुड़े रहना। अपनी अदबी मसरूफियत ,सुना है मरहूम रोटरी क्लब के मेंबर भी थे। मराठी साहित्य सम्मलेन में भी एक्टिव थे। ये तमाम काम सताइश की तम्मना सिले की परवाह से बेनियाज़ होकर मरहूम ने किया। जो भी किया अपनी तस्कीन के लिए किया। शायद इसी लिए उनके वक़्त में इतनी बरकत होगयी ,और इतने काम कर सके। 

                                 कितने अच्छे लोग थे ,क्या रौनकें थीं उनके साथ 

                                 जिनकी रुखसत ने हमारा शहर सूना कर दिया 

  जन्नती होने की जितनी बशारतेँ  अल्लाह के रसूल ने दी थी , वो सब मरहूम सैय्यद ज़ाकिर में मौजूद थी।  तीन लड़किया जिन की बेहतरीन तरबियत कर ,मारूफ घरानों में उनके रिश्ते  मरहूम ने करवाए। मरहूम के जनाज़े में एक जम्मे ग़फ़ीर (भीड़ ) ने शिरकत की। सुना है एरंडोल का वाटर सप्लाई का मसला मरहूम सय्यद ज़ाकिर ने हल (solve ) करवाया।  "रास्ते बंद हैं "मरहूम की किताब का उन्वान (title ) है ,दुनिया में आने के वो तमाम रास्ते बंद कर गए ,लेकिन अपने लिए जन्नत का रास्ता खोल कर गए। 

                                  बहुत सी खूबियां थी मरने वाले में 

अल्लाह मरहूम सय्यद सय्यद को जन्नत में आला दरजात आता करें अमीन सुम्मा अमीन। 


  

  


गुरुवार, 9 जनवरी 2025

Khushbu jaise log mile-2


Fareeda (Tena khala ) with shagufta



                                           शादी की तक़रीब में रागिब अहमद ,ग़यासोददीन शैख़ साहब 
                                                     सुनी हिकायतें हस्ती तो दरमियान से सुनी 
जनाब ग़यासोददीन शैख़ साहब अपनी उम्र के ८० बहार व ख़िज़ाँ देख चुके हैं। और अब भी माशाल्लाह सेहतमंद और चाक व चौबंद हैं। वालिद सदरुद्दीन शैख़ नसीराबाद से बिलोंग करते थे। पुलिस में जॉब था। आप की ११ औलादें थी ६ बेटे ५ बेटियां। ग़यासुद्दीन साहब जब २ साल के थे वालिद का  इंतेक़ाल हो गया था। चाचाओं ने उनेह अपने पास बॉम्बे बुला लिया। 
                                                      मेहनत से वो तक़दीर बना लेते हैं अपनी 
                                                      विरसे में जिन्हे कोई खज़ाना नहीं मिलता 
   ग़यासोददीन खालू ज़ियादा तालीम हासिल न करने का उनेह हमेशा अफ़सोस रहा है। रिश्ते में वो हमारे खालू और हमारी मिसेस के फूफा लगते है। हमारी खाला फरीदा उर्फ़ टेना और खालू   ने ८ साल जब १९७७ से १९८४ तक ठाणे बेलापुर रोड पर यूनाइटेड कार्बन कंपनी में जॉब करता था मेरा बहुत ख्याल रखा। अक्सर छुट्टी के दिन थाना धोबी आड़ी चला जाता था। कभी कभी तो दोस्तों की एक फ़ौज के साथ उनके घर पहुँच जाता और वो खंदा पेशानी से हमारा इस्तक़बाल करते।  १९८२ में पहली बार कलर टेलीविज़न उन्ही के घर हम दोनों मियां बीवी ने देखा था। 
   जनाब ग़यासुद्दीन ने टेक्सन कंपनी ठाणे से  शुरुआत की जो  ब्रास अल्लुमिनिम रेडिएटर्स और आयल कूलर्स बनाने वाली मशहूर कंपनी है ।
                                                     इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने 
 वो एक बेहतरीन वेल्डर /फैब्रिकेटर्स रहे हैं। जब पासपोर्ट बनाना जुए शीर (दूध की नहर ) निकलने जैसा था किस मेहनत जान फिशनी से अपना और अपनी फॅमिली का पासपोर्ट बनाया होंगा  ग़यासोददीन शैख़ ने 2.5 साल (1971 -1973) अपनी फॅमिली के साथ  रह कर सिंगापुर में काम किया। 
   मुल्क मुल्क की visit  करके उनोहने अपनी skill दुनिया को दिखाई । दुबई ,जॉर्डन ,यमन ,सऊदी अरबिया में जद्दा एयरपोर्ट के इलावा जनाब ने थाई लैंड में भी काम किया। अपनी ज़हानत ,हार्ड वर्क से ग़यासुद्दीन साहब ने प्रोडक्शन इंजीनियर पोस्ट तक तर्रकी की। 
                                                      अदब से देखना लोगों ये मेरा हलाल रिज़्क़ 
                                                      ये कम लगे भी तो तासीर में ज़ियाद है 
   हलाल रिज़्क़ हासिल करके तीनो औलादों की तरबियत भी ग़यासोददीन शैख़ साहब और उनकी अहलिया फरीदा ने खुश असलोबी से की। माशाल्लाह ज़हीर शैख़  (मुकंद ) में जॉब तो करते ही है कराटे में ब्लैक बेल्ट याफ्ता है। लोगो को कराटे  सिखाते हैं दीन से भी जुड़े है। ज़ाहिद शैख़ अबुधाबी में आयल इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं। आरिफ शैख़ का खुद का कारोबार है। इनकी औलादों में भी अल्लाह  ने माँ बाप की दुवाओं की बदौलत ज़हानत ,तरक़्की अता की है। 
    अपनी मेंहनत ,ईमानदारी से इंसान कितनी तरक़्की कर सकता है ग़यासोददीन शैख़ साहब इस की ज़िंदा मिसाल है। अल्लाह मौसूफ़ को सेहत के साथ तवील उम्र आता करे आमीन।