सोमवार, 25 दिसंबर 2023

                                                                 मेरी डायरी के एक पन्ना 


सिदरा आयी हुयी है। उसकी मासूम हरकते देख कर दिन ऐसा गुज़रता है पता नहीं चलता। ९ महीने की माशा,अल्लाह हो चुकी है। कायदे से बैठने लगी है ,बात बात में सर हिलती है और ताली भी बजाने लगी है। कभी कभी रोते रोते भी ताली बजाने लगती है। 

                                                               तुम आगये हो नूर आगया है 

लोग हसना भूल गए हैं वह इस लिए नहीं के उनेह हसना नहीं आता ,बल्कि इस लिए के वह हसना नहीं चाहते। सिदरा के साथ १० दिन गुज़ार कर हसने की आदत लौट आयी। शायद उसकी नानी जान ने इन दस दिनों में १ साल के हसने का कोटा पूरा कर लिया। हम दोनों नाना ,नानी का बचपना लौट आया। सिदरा के लिए हम दोनों ने गाया भी ,नाचा भी और ज़ोरदार क़हक़हे भी लगाए। उसकी मासूमियत देख कर दिल उसकी तरफ किछ जाता है। सिदरा अब खड़े रहने की कोशिश भी करती है। रेंगने भी लगी है। अल्लाह अल्लाह बोलने पर आगे पीछे झूमने लगती है।  बहुत काम वक़्फ़ा हम लोगों के साथ गुज़ार कर वह हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन गयी। जाते जाते वह एक खला (vacuum ) छोड़ गयी।  अल्लाह उसे सलामत रखे आमीन सुम्मा आमीन। 

       सिदरा के सुनने के लिए लगाए गए बच्चों के गीत लकड़ी की काठी ,नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए ,तीन मोठे हाती घूमने चले ,बन्दर ने खोली दूकान ,ग़ुब्बारे वाला हम को ज़बानी याद होगये। सिदरा के साथ हसींन  लम्हात गुज़ार कर हम अपने आप में नयी ताज़गी महसूस करने लगे हैं। जब वह हम से जुदा हुयी तो मझे  यूँ महसूस हुवा 

वक़्त खुश खुश काटने का मश्वरा देते हुए 

रो पड़ा वो आप ,मुझको हौसला देते हुए 

वो हमें जब तलक नज़र आता रहा ,तकते रहे 

गीली आँखों उखड़े लफ़्ज़ों से दुआ देते हुए 


 

मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

Late Haji Sadiq Ahmed

Late Haji Sadiq Ahmed
                                                    लोग अच्छे हैं दिल में उतर जाते हैं 
                                                    एक खराबी है के ,मर जाते हैं 
                                                                
 1946-13th December 2023
आयी किसी की याद तो आंसू निकल पड़े 
आंसू किसी की याद के कितने क़रीब थे 
आज हाजी सादिक़ अहमद (दादा भाई ) को इंतेक़ाल हुए ११ साल का लम्बा वक़्त गुज़र गया है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने पीछे ऐसे नक्श (foot prints)  छोड़ जाते हैं जो कोई मिटा नहीं सकता। 
        मरकज़े फलाह नेरुल माशाल्लाह दादाभाई ने क़ायम की थी। १२ साल इस organisation के सेक्रेटरी भी रहे। २९ दिसंबर २०२३ को अग्रि कोली हॉल नेरुल में मरकज़ की सिल्वर जुबली का प्रोग्राम रखा गया है। sovenier में  उनका ज़िकर किये बग़ैर मरकज़े फलाह की तारीख (history ) मुक़क़म्मिल नहीं होती । अल्हम्दोलीलाह आज भी उनकी लिखी AGM रिपोर्ट्स पढता हूँ ,दादाभाई के ड्राफ्ट किये लेटर्स पड़ता हूँ तो चौंक जाता हूँ। उनेह उर्दू ,अरबी और इंग्लिश ज़बान पर महारत (command ) हासिल थी। पिछले २५ सालों में १००० students मरकज़ से फीस लेकर ज़िन्दगी में सेट हो चुके हैं। अपने ख़ानदान ,मिल्लत और मुल्क का सरमाया (asset )बने हुए हैं। इंशाल्लाह इस कासवाब भी मरहूम सादिक़ अहमद को ज़रूर पहुँचता होगा। 
        २००७ से  क़ुरान की तफ़्सीर का प्रोग्राम, मरहूम सादिक़ अहमद ने किया था। १७  साल बाद भी ये प्रोग्राम  जारी है। दादा भाई के हक़ में सद्क़ये जरिया है। 
        अल्लाह मरहूम दादा भाई को जन्नते फिरदौस में आला मुक़ाम अता करे। 
आमीन सुम्मा आमीन। 
ये भी क्या काम है के उस शख्स ने जाते जाते 
ज़िन्दगी भर के लिए दर्द का रिश्ता छोड़ा 
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोये 
शजर गिरा तो परिंदे तमाम शब् रोये