शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

शादी खाना आबादी

समिर व तहसीन 

नसरीन ,शगुफ्ता ,रागिब अहमद ,बशीर सय्यद ,इरफ़ान सैयद 

 
रागिब अहमद ,समीर ,तहसीन ,शगुफ्ता 
१४ फरवरी (१ रज्जब ) को समीर और तहसीन का निकाह जलगांव में मुनअक़िद हुवा। मोहर्रम ,रजब ,ज़िलक़दह व ज़िल्हज्ज इस्लाम में हुरमत वाले महीने क़रार दिए गए हैं। रज्जब में अल्लाह के रसूल लगातार रोज़े रखते थे। इस महीने में हुवी शादी भी खैर व बरकत वाली इंशाअल्लाह साबित होगी। 
शकर को पानी में मिला दो या पानी को शकर में नतीजा एक ही निकलेगा , यानि मिठास इसी तरह सय्यदों की लड़की सय्यद के घर बियही गयी। 
समीर : फायदा देने वाला अपने नुकसान पर भी वो फायदा बख्श रहेगा 
तहसीन :तारीफ के लायक। अल्हम्दोलीलाह तहसीन है भी मुख्लिस ,संजीदा और तारीफ के लायक। 
ज़ाहिद : नेक ,तक़वे वाला  आबिदा : इबादत गुज़र की लड़की बशीर : खुश खबरि सुनाने वाला नसरीन : सफ़ेद फूल के घर जारही है अल्लाह दोनों खानदानो के इस खशगवार मिलन को कामयाबी बख्शे। मिया बीवी में ता उम्र तालुलूक़ात खुश गवार रहे। अल्लाह इन्हें ईमान वाली ,खूबसूरत ,तंदुरुस्त अवलाद से नवाज़े। आमीन सुम्मा आमीन 

बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

खुश्बू जैसे लोग मिले


Dr Wasif Ahmef

डॉ  वासिफ़ अहमद ; तारीख़े पैदाइश :१९५० 
कहानी मेरी रउदादे जहाँ मालूम होती है 
जो सुनता है उसी की दास्ताँ मालूम होती है 
हिंदुस्तान की  आज़ादी मिलने के ३ साल बाद वासिफ अहमद ने मरहूम हाजी क़मरुद्दीन और मरहूमा बिस्मिल्ला शैख़ के घर नवापुर में जनम लिया। वालिद कोर्ट में सीनियर क्लर्क (कारकुन ) थे। हुकूमत के फैसले पर हमेशा बोरिया बिस्तर बांधे रहते। वालिद का यावल में तबादला था काज़ी पूरा में क़याम था वासिफ अहमद की पढ़ाई की शुरुवात यवाल प्राइमरी स्कूल से हुवी। वालिद का तबादला चोपड़ा मुस्तफाबाद होगया मुस्तफा मिया के रोज़े के करीब की स्कूल में वासीफ साहब का दाखला कराया गया। वासिफ मिया स्कूल के वक्फे में अपने साथियों के साथ रोज़े के सहन में खेला करते। कच्चा ज़हन था कितनी दुवायें कितनी उमीदें कितने ख्वाब इस सहन में देखे होंगे अपने ख्वाब अपनी आरज़ूओं उमंगों को हकीकत में बदलने के लिए बे तहाशा मेंहनत की। माशाल्लाह ज़हीन तो थे ही फाइनल ने एग्जाम में टॉप किया। वालिद के रिटायरमेंट के बाद बच्चों के सुनहरी मुस्तकबिल के लिए पुरे ख़ानदान  ने जलगांव में रिहाइश इख़्तियार कर ली। एंग्लो उर्दू स्कूल जलगाव में वासिफ साहेब का दाखला हुवा। रौशन मुस्तकबिल की तरफ उठा ये पहला क़दम था। इस दौरान मुश्फ़िक़ वालिदा का इन्तिक़ाल भी हुवा। स्कूल में क़ाबिल उस्तादों ,जिया सर ,शैख़ सर ,इस्माइल सर ,मुन्नवर सर ,फ़ारुक़ सर की सरपरस्ती मिली जिनोह ने इस हिरे को तराशा। १९६७ में वासिफ अहमद ने एंग्लो उर्दू स्कूल में टॉप किया। कई अरसे तक प्रिंसिपल के कमरे में टोपर की लिस्ट में इनका नाम नुमायां हुरूफ़ में बोर्ड पर डिस्प्ले रहा। 
If you want to shine like a sun first burn like sun (Abdul Kalam Azad )
वासिफ अहमद ने जलगांव के एम् जे कॉलेज में सायेंस स्ट्रीम में दाखला लिया। १०*११ के कटियाफाईल के छोटे से मकान में पढ़ाई करना लोहे के चने चबाने जैसे था। घर में बच्चों का शोर ,मोहल्ले में औरतों के झगडे ,फेरी वालों की चक चक। लेकिन वासिफ अहमद लोहे के पलंग के गिर्द चादर लटका के किताबों ,कापियों और कंदील ले कर घुस पड़ते ,घंटों पढ़ाई में मसरूफ रहते ,फिर न उनेह बच्चों का शोर सुनाई  पड़ता न मोहल्ले की औरतों  के झगडे न फेरी वालों की चक चक। न सर्दी का एहसास  न गर्मी का। न ट्यूशन  थी न किसी की  रहबरी। ज़हानत ,कड़ी महनत 
के बल बूते पर मेरिट लिस्ट में नाम आया। सेवाग्राम मेडिकल कॉलेज में १९६९ दाखला मिला। मालदार बच्चों के बीच ग़रीब घर का लड़का। कड़ी मेहनत ,ज़हानत के बल बूते पर राहें आसान होगयी। डॉक्टरी की पढ़ाई इस्कोलरशिप हासिल कर के की। १९७३/१९७४ में वो घडी आही गयी। 
अगर हो तिशनगी कामिल तो पैमाने भी आएंगे 
MBBS की डिग्री मिलने पर वासिफ अहमद डॉ वासिफ अहमद कहलाये जाने लगे। कुछ ऐजाज़ात ,डिग्री इंसान से जुदा नहीं कर सकते जैसे डॉ। 
मेहनत से वो तक़दीर बना लेते है अपनी। 
वर्से में जिन्हे कोई खज़ाना नहीं मिलता 
गुजरात गवर्नमेंट में मेडिकल अफसर का अप्पोइंटमेन्ट लेप्रसी हॉस्पिटल बालपुर में हुवा। डॉ साहेब ने बड़ी मेहनत और मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभाई 
अलग बैठे थे साक़ी  निगाह पड़ी हम पर 
१९७५/१९७६ में बिहार में चेचक (small pox ) ने कोहराम मचा रखा था। ये बीमारी महामारी /वबा की शक्ल इख़्तियार कर चुकी थी। लोग कीड़े मकोड़ो की तरह मर रहे थे। UNO की निगाह छोटे से देहात में बैठे होनहार  मेडिकल अफसर पर  पड़ी। उनेह एयर टिकट देकर बिहार बुलाया गया। ब्रिटिश ,अमेरिकन डॉक्टर्स की टीम के साथ के साथ मिल कर इस बीमारी को दुनिया से नेस्त नाबूद करने का शरफ़ उनेह हासिल  हुवा। वाह वाह शाबाशी मिली। उस ज़माने में वारियर का ख़िताब मिला ,कईं सर्टिफिकेट्स भी  मिले।  वापसी गुजरात में हुयी व्यारा ,कर्जन ,गुजरात के कोने कोने में मेडिकल ऑफ़िसर की ड्यूटी निभाई। 
अगर हो आसानिया जीना दूश्वार होजाये 
गुना मध्य प्रदेश में जब पोलियो की बीमारी खतरनाक शक्ल इख़्तियार कर गयी। फिर से UNO को डॉ वासिफ की याद आयी। अल्हम्दोलीलाह अपनी और अपनी टीम की कोशिशों से इस वबा का ख़ात्मा दुनिया से करने का ऐज़ाज़ डॉ  साहेब को मिला। 
गुजरात लौटने पर हुकूमत ने जब ये देखा के इतना क़ाबिल डॉ बार बार WHO की खिदमात  के लिए बुलाया जा रहा है। उनेह उनका दूसरा ख्वाब पब्लिक हेल्थ  सर्विस में पोस्ट ग्रेजुएशन करने का मौक़ा मिला गुजरात  गवर्नमेंटकी तरफ से उनेह कलकत्ता डेपुटेशन पर रवाना किया।गया। वापसी पर DHO का प्रमोशन डॉ वासिफ को ऑफर किया गया। कई PHCS डॉ  मातेहत रही। कहा जाता है 
If you salute your work you do not have to salute anybody .If you pollute your work you have to salute everybody 
डॉ वासिफ ने  मेहनत, लगन ,ईमानदारी से काम किया।  २००९ में सुर्ख़ रु होकर रिटायर हुवे। रिटायरमेंट के बाद कुछ अरसा मेडिकल कॉलेज में टीचिंग का शौक़ भी पूरा किया।
डॉ वासिफ अब ज़ियादा समय दुबई में अपने बेटे ,बहु ,अपनी बेगम और पोतों  के साथ  गुज़ारते है। अपनी चहेती बेटी  के पास अमेरिका भी हो आये है। वक़्फ़े वक़्फ़े से हिंदुस्तान आकर गुजरात गवर्नमेंट को अपनी हयाती का सबूत भी पेश कर देते है ।  अपनी knowledge  polish करने के लिए  medical conferences  ,seminars भी attend कर लेते है। रिश्तेदारों की इमदाद में ख़ामोशी से पेश पेश रहते है। 
अल्लाह हम  सब के सर पर उनका साया सलामत रखे। उम्र दराज़ अता करे। आमीन सुम्मा आमीन।