रविवार, 15 अप्रैल 2018

वादी में गूंजती हुवी खामोशियाँ सुने

काश्मीर देखने का ख्वाब हर किसी का होता है। आज इस ख्वाब ने हक़ीक़ात का रूप धार लिया। ४ अप्रैल २०१८ हमारी मुसाफिरों से भरी indigo flight ने ४-३० बजे शाम श्रीनगर airport पर लैंडिंग की। आसमान से बर्फ़ की चोटियां नज़र आगयी थी। हमारा पहला पड़ाव श्रीनगर से २ घंटे दूरी पर पहलगाम था। पुरे रस्ते में रवानी से बहती नदियां ,झरने ,सरसू के खेत मानो किसी ने मैदानों में पीली पीली चादरें बिछा दी हो। सेब के पेड़ों पर फूलों की बहार थी। जगह जगह अखरोट ,खूबानी,चीड़ ,देवदार ,चिनार के दरख्त हाथ उठाये दुआओं में मसरूफ। ज़ाफ़रान के खेत। कुदरत अपनी पूरे हुस्न को लुटाते दिखाई पड़ी।
      पहलगाम के खूबसूरत hotel heevan  में दो दिन क़याम रहा ,होटल क्या थी जन्नत मक़ाम था ,लकड़ियों से बनी ३ मंज़िला इमारत १५० कमरे। इमारत की खिड़की से साफ़ शफ़ाफ़ पड़ोस में बहती नदी ,बर्फ से ढके पहाड़ों की चोटियां नज़र आती थी।
 ख्वाब के मंज़र ने हकीकत का रूप ले लिया था। हर दम बैरे खानसमं खिदमत में हाज़िर मानो जन्नत का trailer था। ख्याल आया जन्नत कैसी होंगी ?
   दुसरे दिन घोड़ों की पीट पर सवार होकर ३ घंटे तक baisan valley ,कश्मीर valley ,water fall की सैर की। घोड़ों की बाग़ थामे साथ साथ कश्मीरी जवान भी ऊबड़ खाबड़ रास्तों ,पहाड़ ,नदी ,कीचड भरे रास्तों पर पैदल साथ चलता रहा।
  baisan vally  बर्फ से घिरे पहाड़ों के बीच हरी हरी घास कई किलो मीटर के एरिया में फैली हुवी है। ठंडी ठंडी शफाफ हवा रोम रोम को एक ताज़गी बखश्ती है।
baisan valley 
 बेताब vally की खूबसूरती भी देखने के क़ाबिल है। बेताब फिल्म की शूटिंग इस जगह हुवी थी।  सनी देवल अमृता सिंह की ख़ूबसूरती मांद  पड़ गयी , लेकिन betab vally  की खूसूरती में और निखार आ गया है। नरम नरम फैली घास ,पड़ोस में बहती शफाफ नदी ,वादी  में गूंजती खामोशियाँ तक आप यहाँ सुन सकते है।
   पहलगाम में एक जगह है चन्दन वाड़ी जहाँ से अनंत नाग यात्रा शुरू होती है। यात्रियों के कैंप सुने सुने पड़े हैं , यात्रा के दौरान जिंदिगी से भर जाते हैं। पहाड़ अप्रैल  के महीने में भी बर्फ से ढके थे।

   ६ अप्रैल जुम्मे का दिन था सुबह ९ बजे गुलमर्ग के लिए रवाना हुवे। रस्ते में फिर वही खूबसूरत नज़ारे नदिया झरने ,वादियां और सरसु के खेत
रस्ते में रुक कर dry fruit ,ज़ाफ़रान  (केसर ) खरीदी।
         गुलमर्ग पहड़ों के दरमियान बसी ख़ूबसूरत बस्ती है। १२-३० बजे hotel khaleel में पहुंचे। ०१-३० बजे नदी के किनारे बनी खूबसूरत मस्जिद में lawn पर जुमे की नमाज़ पड़ी। रूह को सुरूर आगया।
  दोपहर गंडोला (rope way )से बर्फ की चोटी  पर पहुँच कर पहाड़ों का का नज़ारा किया। पहाड़ की दूसरी ओर  पाकिस्तान की सरहद है।
 
Gulmarg
लगातार बारिश हो रही थी tempreture १ deg होगया था। inner ,glows ,jacket पहनने के बावजूद जिस्म की कपकपाहट रुकने का नाम नहीं लेती थी।
  ७ अप्रैल शनिवार को सुबह ९ बजे श्रीनार के लिए रवाना हुवे। रुकते ठहरते २ बजे श्रीनगर में हज़रात बल मस्जिद की खूबसूरत मस्जिद देखी । संग मर मर से बानी इस मस्जिद का गुम्बद सारे शहर से नज़र आता है। इसी मस्जिद में रसूल स.अ की दाढ़ी का बाल  (मूवे मुबारक ) हिफ़ज़ज़त से ,संदूक में सदियों से बंद करके रखा गया है। साल में दस बार इस की नुमाईश की जाती है।
हज़रात बल मस्जिद                 

 
























 इसी दिन शाम में Tulip गार्डन जिसे horticulture department ने ३५० लाख फूलों से सजाया है की सैर की। रंग बिरंगी फूल क़तार दर क़तार सजाये गयें हैं। कई हेक्टर ज़मीन में फैली वादि जन्नत का नज़ारा पेश करती है। सिर्फ एक महीना tulip garden नुमाईश के लिए खुला रखा जाता है। हम खुश नसीब रहे इस खूसूरत मनज़र को देख सके।
दुआ बहार की मांगी तो इतने फूल
Tulip Garden

वहां से निकल कर चश्मे शाही (शाही झरना ) सदियों से  बहते मीठे पानी के  झरने के इर्द गिर्द शाह जहाँ ने खूबसूरत बाग़ात लगा दिए थे। मीठा ठंडा पानी पी कर तबयत सैराब होजाती है ,प्यास बुझ जाती है। दुनिया के कितने फ़िल्टर लगाने बावजूद शायद ऐसा पानी दस्तयाब हो सके।

   श्रीनगर ही में निशात बाग़ ,शालीमार बाग़ मुग़लों के ज़माने के बने हुवे हैं। फव्वारे ,बहते हुवे चश्मे ,फूलों की क्यारियां ,बीच बीच में आबशार बने हैं, आज के इस मॉडर्न दौर में भी अपनी ताज़गी बरक़रार रखे है। देखने से दिल नहीं भरता।
Dal jheel पर House Boat में एक दिन गुज़ारना ज़िन्दगी का बहतरीन तजुर्बा रहा। छोटा सा hall ,double bed ,bath room में  छोटा सा tub भी लगा हुवा था। house boat के वरांडे में बैठ कर झील का नज़ारा आँखों को ठंडक बख्शता है। छोटे छोटे शिकारे house boat के सामने से गुज़रते है। ज़रुरत की तमाम चीज़ें सब्ज़ी,कबाब ,Deco pieces ,jewellery इत्यादि पसंद आने पर भाव ताव कर खरीद भी सकते हैं।
  मुझ से भी उड़ते हुवे लम्हे न पकडे जा सके
मुंबई लौटने का वक़्त आ गया। हम शहर वाले घरों में Bonsai के पौदे लगा कर अपने आप को जंगल में बैठा मेसूस करते हैं। miniature painting घर में लटका कर खुश होजाते हैं। कभी कश्मीर जा कर देखो
धुप में निकलों घटाओं में नाहा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों से निकल कर देखो
नदी की रवानी क्या कहती है, झरने का ठंडा मीठा पानी कैसा होता है, बर्फ से ढकी चोटियां ,वादियाँ ख़ामोशी की ज़बान में क्या कहती है। देवदार ,चीड़ ,चिनार के पेड़ किस तरह हाथ उठाये दुआओं  में मसरूफ है ,हम mobile ,internet ,whats up वक़्त बर्बाद करने वाले क्या जाने
   फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
कश्मीर से मुंबई लौटते दिल ग़म ज़दा था। लेकिन वहां की महेकती यादें ज़हन में महफूज़ रहेंगी। फिर कभी जब बर्फ बारी का मौसम होंगा ,अखरोट ,सेबों  से पेड़ लद जायेंगें। ज़ाफ़रान के खेत लेहलहां  रहे होंगे ,कश्मीर का हुस्न देखने को लौटेंगे।
अब तो जाते हैं मैकदे से मीर


 

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