बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

maut insaniyat ki

                                                               मौत इंसानियत की
शहर में हिन्दू मुस्लिम बलवे  ज़ोर व शोर से हो रहे थे। नूर प्रकाश अपने आप को खुश  नसीब मानता था। वो मुस्लिम बाप और हिन्दू माँ की औलाद था। आज ऑफिस से लौटते हुवे उस का गुज़र मुस्लिम मोहल्ले से हुवा। उस बलवाइयों ने "पूछा तुम कौन हो तुम्हारा नाम क्या है। " उस ने कहा में एक इंसान हूँ। चारोँ  तरफ से बलवाई उस पर टूट पड़े "ये हिन्दू है इस ने जानीव पहन रखा है , जाने न पाये " उसे मार मार कर अधमरा कर दिया। होश आने पर गिरते पड़ते अपने मोहल्ले की तरफ जाते हुये उसे कुछ हिन्दू बलवाई मिल गए। उस से फिर वही सवाल किया गया "तुम कौन हो तुम्हारा नाम क्या है।" मैं एक इंसांन हु  "उस ने जवाब दिया। जाने न पाए इस की जेब में टोपी है।, उसे दोबारा पीटा गया। जान निकलने से पहले उसे  अपने अब्बू  की याद आयी जिनोह् ने कहा था " बेटा मैं तुम्हारा  नाम नूर रखना चाहता  था ,ये  अल्लाह का नाम है जिस का मतलब होता है रौशनी" ,तब तुम्हारी माँ ने कहा" क्यों न नूर के साथ साथ प्रकाश जोड़ दिया जाये" मैं ने कहा "नूरन अला नूर " ये तो क़ुरान की आयात है। उस के बाद उस का ज़हन अँधेरे  में डूब गया।
जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है
जिस्म मिट जाने से इंसान नहीं मिट