उनसे ज़रूर मिलना क़रीने के लोग हैं
सय्यद ज़ाकिर अली नजीबुतरफ़ाइन (अम्मी अब्बू दोनों सय्यद है )एरंडोल जैसे छोटे कसबे में जन्म लिया। इंजीनियरिंग की तालीम हासिल की। खुशकिस्मत रहे irrigation deparntment में job मिल गया। लोगों को सैराब करते करते ज़िन्दगी गुज़र गयी। अछे इंसान ,खुश इख़लाक़ ,खुश मिज़ाज तो है ही ,अपने खानदान की रिवायत कायम करते हुवे अच्छा लिख भी लेते है। उनकी छोटे छोटे अफ़सानो पर मुश्तमिल किताब “रास्ते बंद है ” नज़रों से गुज़री बहुत खूबसूरत छोटी छोटी stories लिखी है। मुबारकबाद के मुस्तहक़ है।
ढूंढ उजड़े हुवे लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तेजी शायद के खराबों (खँडरात ) में मिले
सय्यद ज़ाकिर को अपने बुज़र्गों से बेइंतिहा अक़ीदत है। लिखना उनेह अपने नाना काज़ी मुशाहिद अली (कलमी नाम फिरोज हाश्मी )से विरासत में मिला है। हाल ही में उनके दो articles एरंडोल की history और वहां के शायरों और मशहूर writers के बारे में पड़ने को मिले। बड़े ऑथेंटिक हवालों से सय्यद ज़ाकिर ने ये आर्टिकल्स लिखे हैं। अब्दुल रसूल कमतर (१८४६ से १९१९ )एरंडोल के मशहूर शायर की biography लिखते लिखते उनोहने एरंडोल की हिस्ट्री बयां कर दी। बक़ौल ज़ाकिर ,कहा जाता है है अलाउद्दीन खिलजी (१३१०-१३७० )और उनके सिपाह सालार मलिक काफूर ने देवगिरि पर हमले से पहले एरंडोल में कई दिन कायम किया यहाँ मस्जिद और फौजी छावनी भी बनायीं थी। इसी period में नामी बुज़ुर्ग खुरम खथॉल जो निज़ामुद्दीन औलिआ के मुरीद थे ,एरंडोल को अपना मस्कन बनाया और लोगों में इस्लाम की तालीम आम की। आज भी उनका आलिशान मज़ार अपनी शान शान शौकत के साथ एरंडोल में क़ायम है। इस सिलसिले को हज़रात शाह वाजिहुद्दीन गुजरती के पोते सय्यद शरीफुल्ला साहेब ने आगे बढ़ाया। १३७० के बाद २०० साल खानदेश पर फ़ारूक़ी ख़ानदान हुकूमत करता रहा। सय्यद ज़ाकिर के शुक्र गुज़ार है की उनोहने तारीख के पन्नों पर पड़ी गर्द को साफ़ कर एरंडोल के रौशन माज़ी को हमारे रूबरू कराया। बचपन से हम कई मर्तबा जामे मस्जिद एरंडोल और खुरम खत्ताल मिया की दरगाह देखते आये है।लेकिन उसके बैकग्राउंड से अँधेरे में थें।
सय्यद ज़ाकिर अली नजीबुतरफ़ाइन (अम्मी अब्बू दोनों सय्यद है )एरंडोल जैसे छोटे कसबे में जन्म लिया। इंजीनियरिंग की तालीम हासिल की। खुशकिस्मत रहे irrigation deparntment में job मिल गया। लोगों को सैराब करते करते ज़िन्दगी गुज़र गयी। अछे इंसान ,खुश इख़लाक़ ,खुश मिज़ाज तो है ही ,अपने खानदान की रिवायत कायम करते हुवे अच्छा लिख भी लेते है। उनकी छोटे छोटे अफ़सानो पर मुश्तमिल किताब “रास्ते बंद है ” नज़रों से गुज़री बहुत खूबसूरत छोटी छोटी stories लिखी है। मुबारकबाद के मुस्तहक़ है।
ढूंढ उजड़े हुवे लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तेजी शायद के खराबों (खँडरात ) में मिले
सय्यद ज़ाकिर को अपने बुज़र्गों से बेइंतिहा अक़ीदत है। लिखना उनेह अपने नाना काज़ी मुशाहिद अली (कलमी नाम फिरोज हाश्मी )से विरासत में मिला है। हाल ही में उनके दो articles एरंडोल की history और वहां के शायरों और मशहूर writers के बारे में पड़ने को मिले। बड़े ऑथेंटिक हवालों से सय्यद ज़ाकिर ने ये आर्टिकल्स लिखे हैं। अब्दुल रसूल कमतर (१८४६ से १९१९ )एरंडोल के मशहूर शायर की biography लिखते लिखते उनोहने एरंडोल की हिस्ट्री बयां कर दी। बक़ौल ज़ाकिर ,कहा जाता है है अलाउद्दीन खिलजी (१३१०-१३७० )और उनके सिपाह सालार मलिक काफूर ने देवगिरि पर हमले से पहले एरंडोल में कई दिन कायम किया यहाँ मस्जिद और फौजी छावनी भी बनायीं थी। इसी period में नामी बुज़ुर्ग खुरम खथॉल जो निज़ामुद्दीन औलिआ के मुरीद थे ,एरंडोल को अपना मस्कन बनाया और लोगों में इस्लाम की तालीम आम की। आज भी उनका आलिशान मज़ार अपनी शान शान शौकत के साथ एरंडोल में क़ायम है। इस सिलसिले को हज़रात शाह वाजिहुद्दीन गुजरती के पोते सय्यद शरीफुल्ला साहेब ने आगे बढ़ाया। १३७० के बाद २०० साल खानदेश पर फ़ारूक़ी ख़ानदान हुकूमत करता रहा। सय्यद ज़ाकिर के शुक्र गुज़ार है की उनोहने तारीख के पन्नों पर पड़ी गर्द को साफ़ कर एरंडोल के रौशन माज़ी को हमारे रूबरू कराया। बचपन से हम कई मर्तबा जामे मस्जिद एरंडोल और खुरम खत्ताल मिया की दरगाह देखते आये है।लेकिन उसके बैकग्राउंड से अँधेरे में थें।
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