सोमवार, 11 दिसंबर 2017

AAj tum yaad be hisab aaye


१२ दिसंबर २०१३ बाद मग़रिब तुम  ने आखरी बार आँखें मुंद ली। तुम्हारे साथ गुज़ारे वो बेशुमार लम्हे ,यादें ,नसीहतें , डाँट फिटकार तुम्हारे साथ चली गयी ,हर इंसान के बिछड़ने पर उस से  जुड़े लोगों के वजूद का कुछ हिस्सा टूट  फूट जाता है बिखर जाता है
मनों मिटटी के निचे दब गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो

नेरुल क़ब्रस्तान में  बहुत सारी क़ब्रों के बीच तुम्हारी क़बर के सरहाने कभी गुलाब का पौदा लगा के ,कभी बांबू शूट लगा के तुम्हारी यादों को ज़िंदा रखने की कोशिश करता रहता हूँ।  हर हफ्ते एक दिन तुम से ग़ायबाना मुलाक़ातों का सिलसिला जारी रखने की कोशिश रहती है। कब्रस्तान में दुआ ,फातिहा पड़ने पहुँच जाता हूँ। कभी सफर की वजह से  क़ब्रस्तान की visit नहीं हो पाती तो एक बे कली ,बे करारी तबियत पे छा जाती है।
तुम्हारी याद के जब ज़ख्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
   आज भी तुम्हारे कायम किये मरकज़े फलाह ,दरसे क़ुरआन का सिलसिला बाकायदगी से जारी है। कई बार तुम्हारी याद भी की जाती है तुम्हारे हक़ में दुआ भी की जाती है। कभी कभी ख्वाबों में आजाते थे अब तो अर्से  से ख्वाब में भी मुझ से  रूठ गए हो।
बड़ा सकूंन बड़ा सुख था उस के साये में
वो एक शख्स जो बरगद की छाओं जैसा था
अल्हाज मरहूम सादिक़ अहमद अल्लाह आप की रूह के दरजात बुलंद करें। अल्लाह आप को जन्नत नसीब करें। आमीन सुम्मा आमीन