शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

Social media कितना सच कितना झूठ

                                              Social media कितना सच  कितना झूठ
SMS ,internet ,whatsup ,google ,facebook ने एक सैलाब की तरह नयी generation को बहा ले गयी। अब ये ज़रूरी नहीं इन medium से जो messages हम तक पहुँच रहे हो सब के सब सही हो। islamic sites पर जो मालूमात शेयर की जाती हैं वह islamic sites हैं भी या नहीं ? हो सकता है ये इस्लाम के नाम पर एक ग़लत propoganda हो। कुछ  महीने पहले उर्दू पेपर इन्कलाब में ऐसे कई इस्लामिक साइट्स की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षक कराने की कोशिश की गयी थी जो इस्लाम के नाम पर लोगों को गुमराह करने की साज़िश है।  इसी article में कई ऑथेंटिक इस्लामिक sites की लिस्ट भी प्रोवाइड की गयी थी।
   WHATSUP पर हर दिन अल्लाह के  रसूल के नाम से झूटी हदीसे भेजी जाती हैं और साथ साथ यह मैसेज भी ATTACHED होता है के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में फैलाएं। कहीं कोई हदीस की किताब का refrence तक नहीं दिया जाता। में  ने कई बार मुफ़्ती साहब से WHATSUP पर मिली हदीसों के बारे में सच्चाई जननी चाही लेकिन उनोह ने भी वह हदीस कभी नहीं सुनी न पढ़ी।  लोगों के दिलों से अल्लाह का डर निकल गया है। कुछ दिन पहले whatsup पर एक मैसेज मिला था। अगर ४ रकअत नफिल नमाज़ कायदे में बैठे बग़ैर अदा कर दी जाये तो ज़िन्दगी भर के गुनाह मॉफ होजायेंगे नौज़बिल्ला।और मुझे सवाब की निय्यत से forward करने की सलाह भी मिली। इस तरह से न कोई हदीस है न कोई रिवायत कहाँ से ऐसे मैसेज घड़े जातें हैं। मेरे एक करीबी बुज़ूर्ग ने whatsup पे मैसेज रवाना किया के सफर का महीना बड़ा मनहूस होता है अल्लाह के रसूल इस महीने बीमार और उदास रहा करते थे। में ने उन बुज़र्ग से शिकायत की क्यों ऐसा ग़लत मैसेज रवाना किया। फरमाने लगे तुम आगे फॉरवर्ड करने पहले check कर लिया करो। क्या ये बिदअत फैलाने का तरीक़ा नहीं है ? इस मौके के लिए किसी शायर ने खूब कहा है।
बड़े वसूक़ (CONFIDENCE ) से दुनिया फरेब देती है
बड़े खलुस से हम ऐतेबार करते है 

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