लोग हमराह लिए फ़िरते हैं यादों के हुजूम
ढूंढ़ने पर भी कोई शख्स न तन्हा निकला
एक age के बाद आदमी ताज़ा ताज़ा बातें भूलने लगता है। शाम तक ये याद नहीं आता लंच में क्या खाया था। लेकिन गुज़रें कल की यादें दीमग़ से ऐसी चिमटी होती है जैसे mobile को छूते ही video message स्क्रीन पर दौड़ने लगता है।
यादे माज़ी अज़ाब है यारब
१९६७ /१९७० जलगाओं की कुल आबादी १ लाख थी। पश्चिम में एंग्लो उर्दू स्कूल थोड़ी दूरी पर ख्वाजा का मज़ार ,उसके आगे हरे भरे खेतों का सिलसिला ,पूरब में जूना जलगांव ,आगे की सड़क नसीरबाद तक जाती। दक्षिण में पूना फ़ैल ,उत्तर की दिशा में मेहरून का तालाब चारो तरफ से मशहूर बेरों और अमरुद के बाग़ात से घिरा। उस ज़माने में शहर में इमारतें छोटी छोटी थी। जलगाव् म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन को क्या सूझी शहर के बीचों बीच १५/१६ floor का पतला सा टावर खड़ा कर दिया। हम लोगों के लिए एक अजूबा टावर की आखरी मंज़िल से सारे शहर का नज़ारा होता ,तेज़ हवा के झोकों से तबियत घबरा जाती। मेहरून तालाब में किश्ती उलटंने से तीन लोगों की मौत होगयी थी,कुछ समय तक तालाब सूना रहा ,फिर रौनक लौट आयी ,सैर के लिए और कोई मुनासिब जगह थी भी नहीं। कभी कभी तालाब सूख भी जाता। मेहरून के बेर अमरूदों का स्वाद फिर कहीं न पाया । सीरिया ,सूडान ,सऊदी अरबिया ,मिडिल ईस्ट घूमा लेकिन कहीं भी वह बात न पायी।
रात की झील में कंकर सा कोई फ़ेंक गया
दायरें दर्द के बनने लगे तन्हाई में
चार सिंगल स्क्रीन theaters अशोक,राजकमल ,नटराज ,नटवर लोगों के फिल्म का शौक पूरा करने के लिए हुवा करते। एक open air theater जहाँ मराठी ड्रामे के शौक़ीन ड्रामे देखा करते। इसी ओपन थिएटर में कुशतियों के मुक़ाबले होते। कई दिन पहले cycle rickshaw पर hoarding लगा कर लाउडीस्पीकर पर महोल्लो में घुम घूम कर लोगों का उत्साह बढ़ाया जाता। पहलवानो पर शर्ते लगती। मुक़ाबले के दिन थिएटर खचा खच भर जाता। लोग थिएटर के चरों तरफ बिल्डिगों , पेड़ों पर चढ़ कर मज़ा लेते ,कान पड़े आवाज़ सुनाई न पड़ती।मुक़ाबले के रिजल्ट सुनने पर तूतु में में होती
बहस होती ,इलज़ाम तराशियाँ होती ,कभी कभी बात झगडे तक भी पहुँच जाती।
तहवारों की धूम हुवा करती। ईद ,बकरीद में ढोल ताशों के साथ ईद गाह तक लोग पहुंचते खुले मैदान में ईद की बाजमाअत नमाज़ अदा करने के बाद साथ लगे कब्रस्तान में दुआ करते एक दूसरे से गले मिलते ,मुबारकबाद का
सिलसिला चलता।
ढूंढ़ने पर भी कोई शख्स न तन्हा निकला
एक age के बाद आदमी ताज़ा ताज़ा बातें भूलने लगता है। शाम तक ये याद नहीं आता लंच में क्या खाया था। लेकिन गुज़रें कल की यादें दीमग़ से ऐसी चिमटी होती है जैसे mobile को छूते ही video message स्क्रीन पर दौड़ने लगता है।
यादे माज़ी अज़ाब है यारब
१९६७ /१९७० जलगाओं की कुल आबादी १ लाख थी। पश्चिम में एंग्लो उर्दू स्कूल थोड़ी दूरी पर ख्वाजा का मज़ार ,उसके आगे हरे भरे खेतों का सिलसिला ,पूरब में जूना जलगांव ,आगे की सड़क नसीरबाद तक जाती। दक्षिण में पूना फ़ैल ,उत्तर की दिशा में मेहरून का तालाब चारो तरफ से मशहूर बेरों और अमरुद के बाग़ात से घिरा। उस ज़माने में शहर में इमारतें छोटी छोटी थी। जलगाव् म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन को क्या सूझी शहर के बीचों बीच १५/१६ floor का पतला सा टावर खड़ा कर दिया। हम लोगों के लिए एक अजूबा टावर की आखरी मंज़िल से सारे शहर का नज़ारा होता ,तेज़ हवा के झोकों से तबियत घबरा जाती। मेहरून तालाब में किश्ती उलटंने से तीन लोगों की मौत होगयी थी,कुछ समय तक तालाब सूना रहा ,फिर रौनक लौट आयी ,सैर के लिए और कोई मुनासिब जगह थी भी नहीं। कभी कभी तालाब सूख भी जाता। मेहरून के बेर अमरूदों का स्वाद फिर कहीं न पाया । सीरिया ,सूडान ,सऊदी अरबिया ,मिडिल ईस्ट घूमा लेकिन कहीं भी वह बात न पायी।
रात की झील में कंकर सा कोई फ़ेंक गया
दायरें दर्द के बनने लगे तन्हाई में
चार सिंगल स्क्रीन theaters अशोक,राजकमल ,नटराज ,नटवर लोगों के फिल्म का शौक पूरा करने के लिए हुवा करते। एक open air theater जहाँ मराठी ड्रामे के शौक़ीन ड्रामे देखा करते। इसी ओपन थिएटर में कुशतियों के मुक़ाबले होते। कई दिन पहले cycle rickshaw पर hoarding लगा कर लाउडीस्पीकर पर महोल्लो में घुम घूम कर लोगों का उत्साह बढ़ाया जाता। पहलवानो पर शर्ते लगती। मुक़ाबले के दिन थिएटर खचा खच भर जाता। लोग थिएटर के चरों तरफ बिल्डिगों , पेड़ों पर चढ़ कर मज़ा लेते ,कान पड़े आवाज़ सुनाई न पड़ती।मुक़ाबले के रिजल्ट सुनने पर तूतु में में होती
बहस होती ,इलज़ाम तराशियाँ होती ,कभी कभी बात झगडे तक भी पहुँच जाती।
तहवारों की धूम हुवा करती। ईद ,बकरीद में ढोल ताशों के साथ ईद गाह तक लोग पहुंचते खुले मैदान में ईद की बाजमाअत नमाज़ अदा करने के बाद साथ लगे कब्रस्तान में दुआ करते एक दूसरे से गले मिलते ,मुबारकबाद का
सिलसिला चलता।