गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

यादें जलगाओं की -part1

लोग हमराह लिए फ़िरते हैं यादों के हुजूम
ढूंढ़ने पर भी कोई शख्स न तन्हा निकला
एक age के बाद आदमी ताज़ा ताज़ा बातें भूलने लगता है। शाम तक ये याद नहीं आता लंच में क्या खाया था। लेकिन गुज़रें कल की यादें दीमग़ से ऐसी चिमटी होती है जैसे mobile को छूते ही video message स्क्रीन पर दौड़ने लगता है।
यादे माज़ी अज़ाब है यारब
१९६७ /१९७० जलगाओं  की कुल आबादी १ लाख थी। पश्चिम में एंग्लो उर्दू स्कूल थोड़ी दूरी पर ख्वाजा का मज़ार ,उसके आगे हरे भरे खेतों का सिलसिला ,पूरब में जूना जलगांव ,आगे की सड़क नसीरबाद तक जाती। दक्षिण में पूना फ़ैल ,उत्तर की दिशा में मेहरून का तालाब चारो तरफ से मशहूर बेरों और अमरुद के बाग़ात से घिरा। उस ज़माने में शहर में इमारतें छोटी छोटी थी।  जलगाव् म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन को क्या सूझी शहर के बीचों बीच १५/१६ floor  का पतला सा टावर खड़ा कर दिया। हम लोगों के लिए एक अजूबा टावर की आखरी मंज़िल से सारे शहर का नज़ारा होता ,तेज़ हवा के झोकों से तबियत घबरा जाती। मेहरून तालाब में किश्ती उलटंने से तीन लोगों की मौत होगयी थी,कुछ समय तक तालाब सूना रहा ,फिर रौनक लौट आयी ,सैर के लिए और कोई मुनासिब जगह थी भी नहीं।  कभी कभी तालाब सूख भी जाता। मेहरून के बेर  अमरूदों का स्वाद फिर कहीं न पाया । सीरिया ,सूडान ,सऊदी अरबिया ,मिडिल ईस्ट घूमा लेकिन कहीं भी वह बात न पायी।
रात की झील में कंकर सा कोई फ़ेंक गया
दायरें दर्द के बनने लगे तन्हाई में
चार  सिंगल स्क्रीन theaters अशोक,राजकमल ,नटराज ,नटवर लोगों के फिल्म  का शौक पूरा करने के लिए हुवा करते। एक open air theater जहाँ मराठी ड्रामे के शौक़ीन ड्रामे देखा करते। इसी ओपन थिएटर में कुशतियों के मुक़ाबले होते। कई दिन पहले cycle rickshaw पर hoarding लगा कर लाउडीस्पीकर पर महोल्लो में घुम घूम कर लोगों का उत्साह बढ़ाया जाता। पहलवानो पर शर्ते लगती। मुक़ाबले के दिन थिएटर खचा खच भर जाता। लोग थिएटर के चरों तरफ बिल्डिगों , पेड़ों पर चढ़ कर मज़ा  लेते ,कान पड़े आवाज़ सुनाई न पड़ती।मुक़ाबले के रिजल्ट सुनने पर तूतु में में होती
बहस होती ,इलज़ाम तराशियाँ होती ,कभी कभी बात झगडे तक भी पहुँच जाती।
तहवारों की धूम हुवा करती। ईद ,बकरीद में ढोल ताशों के साथ ईद गाह तक लोग पहुंचते खुले मैदान में ईद की बाजमाअत नमाज़ अदा करने के बाद साथ लगे कब्रस्तान में दुआ करते  एक दूसरे से गले मिलते ,मुबारकबाद का
सिलसिला चलता।


शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

Social media कितना सच कितना झूठ

                                              Social media कितना सच  कितना झूठ
SMS ,internet ,whatsup ,google ,facebook ने एक सैलाब की तरह नयी generation को बहा ले गयी। अब ये ज़रूरी नहीं इन medium से जो messages हम तक पहुँच रहे हो सब के सब सही हो। islamic sites पर जो मालूमात शेयर की जाती हैं वह islamic sites हैं भी या नहीं ? हो सकता है ये इस्लाम के नाम पर एक ग़लत propoganda हो। कुछ  महीने पहले उर्दू पेपर इन्कलाब में ऐसे कई इस्लामिक साइट्स की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षक कराने की कोशिश की गयी थी जो इस्लाम के नाम पर लोगों को गुमराह करने की साज़िश है।  इसी article में कई ऑथेंटिक इस्लामिक sites की लिस्ट भी प्रोवाइड की गयी थी।
   WHATSUP पर हर दिन अल्लाह के  रसूल के नाम से झूटी हदीसे भेजी जाती हैं और साथ साथ यह मैसेज भी ATTACHED होता है के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में फैलाएं। कहीं कोई हदीस की किताब का refrence तक नहीं दिया जाता। में  ने कई बार मुफ़्ती साहब से WHATSUP पर मिली हदीसों के बारे में सच्चाई जननी चाही लेकिन उनोह ने भी वह हदीस कभी नहीं सुनी न पढ़ी।  लोगों के दिलों से अल्लाह का डर निकल गया है। कुछ दिन पहले whatsup पर एक मैसेज मिला था। अगर ४ रकअत नफिल नमाज़ कायदे में बैठे बग़ैर अदा कर दी जाये तो ज़िन्दगी भर के गुनाह मॉफ होजायेंगे नौज़बिल्ला।और मुझे सवाब की निय्यत से forward करने की सलाह भी मिली। इस तरह से न कोई हदीस है न कोई रिवायत कहाँ से ऐसे मैसेज घड़े जातें हैं। मेरे एक करीबी बुज़ूर्ग ने whatsup पे मैसेज रवाना किया के सफर का महीना बड़ा मनहूस होता है अल्लाह के रसूल इस महीने बीमार और उदास रहा करते थे। में ने उन बुज़र्ग से शिकायत की क्यों ऐसा ग़लत मैसेज रवाना किया। फरमाने लगे तुम आगे फॉरवर्ड करने पहले check कर लिया करो। क्या ये बिदअत फैलाने का तरीक़ा नहीं है ? इस मौके के लिए किसी शायर ने खूब कहा है।
बड़े वसूक़ (CONFIDENCE ) से दुनिया फरेब देती है
बड़े खलुस से हम ऐतेबार करते है