गुरुवार, 21 नवंबर 2013

LOCAL TRAIN

                                                         मुम्बई कि  लोकल ट्रैन
मुम्बई कि लोकल ट्रैन  को देख कर हवा से भरे हुवे उस ग़ुबारे का तसुव्वर होता है जो फटने कि हद तक फूँक दिया गया हो। ट्रैन कम्पार्टमेंट में तो लोग खचा  खच भरे भरे होतें हें ,दरवाज़ों खिड़कियों पर भी लटके होतें हें। और बचे कूचे लोग छत पर भी चढ़ जातें हैं। थोड़ी जगह दो बोगियों के बीच होती हें वहाँ भी कुछ लोग सुकड़ कर बैठ जातें हें। अगर per square feet लोगों कि तादाद निकली जाये तो हवा का गुज़र भी ट्रैन कि बोगी से मुश्किल नज़र आता हे। ट्रैन में लगे पंखें कभी कभी स्विच बंद करने पर चल पड़तें हें। लेकिन हवा फेकने कि बजाये Exhaust  fan का काम करते हैं. ट्रैन में ज़रूरियात ज़न्दगी का सब सामन मिल जाता हे जैसे  फल फ्रूट ,nail cutter ,सब्ज़ियाँ ,ready made कपड़ें ,make up का सामन वग़ैरा।दिल बहलाने के कयी  सामन जैसे तरह तरह के ढोल harmonium गले में लटकाएं हातों में मंजीरे  लिए, और बुलंद आवाज़ में गाते फ़क़ीर ,साधू,बचें ,औरतें। बची कूची कमी भजन गातें मुसाफरी पूरी कर देतें हैं।लोकल ट्रैन में लगे ईशतेहारों  (विज्ञापन) में आप कि तमाम  परेशानियों का हल मिल जायेगां , जैसे नौकरी ,पसंद कि औलाद ,परेशानी ,धंदे में नुकसान ,मुश्किल कूशा बंगाली  बाबा के पास इन तमाम परेशानियों का शर्तिया इलाज है। नाउम्मीद होने की ज़रुरत नहीं आपको नामर्दी,कैंसर ,और ऐड्स का इलाज जो अब तक किसी scientist के पास नहीं ,बग़ैर ऑपरेशन इलाज ,और तो और रूठी हुई महबूबा को मनाने का इलाज इन इश्तेहारों में मिल जाएंग। लोकल  ट्रैन के सफ़र के दौरान आप का बटवा पाकिट मारों के हातों चोरी होना लाज़मी हैं। जो एक टोली कि शकल में हर डब्बे में मौजूद होते हैं  . अगर आप ने उन्हें  रोकने कि कोशिस कि ,तो आप की पिटाई भी हो सकती है। शराफत इसी में हैं के बटवे का  ग़म न किया जाये ,वैसे भी आज कल लोग बटवे में पैसे कम और love letters  या मेहबूबा की तस्वीर  से ज़ियादा , कुछ रखते ही नहीं।
            लोकल ट्रेन कि रफ़्तार चीटीं  (ant ) से कम व बेश थड़ी  ज़ियादा  होती हें। रेलवे कि ज़मीन घर  पर बनाने कि खुली इजाज़त हे। पटरी के साथों साथ झोपड़े बने होते हें। इस में ये सहूलत होती हे के प्लेट फार्म पर  उतरते ही घर में दाखिल हो जाईयें। घर साफ़ कर, कूड़ा कचरा पटरियों पर फेकने में आसानी। टॉयलेट कि आसानी। किराया अदा करने कि ज़रूरत नहीं।लाईट पानी मुफ्त। पटरियों पर क्रिकेट खेला जाता है। टूर्नामेंट होतें हें motor man कि ग़लती (क्युके खिलाडियों से ग़लती नहीं होती )कोई हादसे का शिकार हो जाता हे तो motor man को भाग कर जान बचानी पड़ती है। और मुसाफिरों पर पथरों कि बारिश। अक्सर व बेश्तर बच्चों कि ट्रैन पर निशाने बाज़ी कि मश्क़ में मुसाफिर अपनी आँखें खो बैठतें हें। अब पटरियों के किनारे रहने वालों बासियों कि मांग है के ट्रैन कि frequency कम कर दी जाए ताकि  उनके सोने ,खेलने ,बच्चों कि पढ़ाई में खलल (distarbance )न पड़े। सरकार इस मामले पर संजीदगी (seriously )से सोच
रही हें।
                   बरसात के मौसम में लोकल कि रफ़्तार बढ़ जाती हे क्युकि पटरियां पानी में डूबने कि बिना पर ट्रेने पानी में तैरने लगती हें लेकिन सामने आने वाली ट्रैन से टकराने का डर  होता है ,इस लिए ट्रेने रोक दी जाती हें और लोग पैदल जल्दी घर पहुँच जातें हें।
                  किसी ज़माने में नए पुल बनाते वक़्त इंसानों कि बली दी जाती थी। रोजाना ५० लाख लोगों को लेजानेवाली ये ट्रेने भी रोज़ाना कई लोगों कि बली ले लेती हें। लेकिन जिस तरह मुम्बई के शहरियों को खाना पीना सोना ज़रूरी है ६
बजकर २ मिनट कि ट्रैन का सफ़र भी लाज़मी है। 

रविवार, 10 नवंबर 2013

mahve hairat hoon ke duniya kya se kya hojayegi(shocked to see the world changing)

                                          महवे हैरत  हूं के दुनिया क्या से क्या हो जायेगी
लोगों कि मौत पर उमूमन मातम मनाया  है। पहली बार यूँ हुआ के १४ जुलाई-२०१३ रात १० बजे टेलीग्राम कि मौत का जश्न धूम धाम से मनाया गया। आखरी दिन तारीख का हिस्सा बन्ने के लिए हज़ारों लोगों ने टेलीग्राम रवाना किये। रात दस बजे नितिन रस्तोगी ने आखरी टेलीग्राम रवाना कर history में अपना नाम दर्ज  करा लिया। और १६३ साला तारीख का बाब बंद गया। हिंदुस्तान भर telegram कि मशीने खामोश हो गयीं।
            टेलीग्राम पर क्या मौक़ूफ़ ज़िन्दगी इतनी तेज़ी से रवां दवां हैं के कई चीज़ें जो हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुकी थी उनका वजूद ख़तम होता जा रहा है। हाल  ही में खबर आयी हैं के बस और रेलवे स्टेशन पर रखे वज़न के मशीन अपनी मौत  मर रहें हें। कौन उन पर खड़े होकर रूपये का सिक्का डाल कर वज़न करे। घर घर लोगों ने वें इंग मशीन खरीद लिये  हैं। एक ज़माना इन का था मशीन  खड़े होजाइये गोल चक्कर बंद हो जाने पर एक रूपये का सिक्का डालिये ख़ट  कर वज़न का टिकेट निकल आएगा जिस  पर आप का वज़न होंगा और उस टिकेट पर पीछे कि जानिब आप कि भविष  वाणी भी मुफ्त  मिलती थी। अक्सर ऐसा होता के मशीन पैसे भी हज़म कर जाता और टिकेट भी नहीं मिल पाता। फिर लोग ग़ुस्से में मशीन पर लातें घूंसे बरसाते खु श किस्मत लोगों को टिकट के मुक़ाम पर चिल्लर  कि बारीश हो जाती और कई लोगों को मायूसी। वही हाल ईद कार्ड्स का भी हुआ है। एक ज़माने में प्यार से ईद कार्ड्स ख़रीदे जाते थे।  रिश्तेदारों को भेजे जातें थे।
          किसी ज़माने में घर घर अलार्म क्लॉक होती थी ,कॅमेरे ,हात् में  पहनें कि swiss घड़ियाँ ,transistor radio ,जिन के बग़ैर ज़िन्दगी नमुक़मल हुवा करती। भला हो mobile phone का, इन तमाम सामान का वजूद ख़त्म होता जा रहा है। apple कंपनी के बानी stew job ने कई साल पहले पेशन गोई कि थी के दुनिया के हर आदमी कि मुठी में यह चीज़ें दे जाऊँगा। ५ ऑक्टोबर २०११ जिस वक़्त Cancer से उस कि मौत हुई दुनिया को Iphone ,ipad कि सूरत में अपने ख्वाब का हकीकत में रंग भर के दुनिया से रुखसत हुवा। आज mobile application में हर चीज़ अवेलेबल है। शायद जमशीद का गोला जिस में वोह दुनिया को देखा करता था इस से कई कदम पीछे छूट गया। आप mobile पर net access कर सकते हैं ,अपना blood pressure देख सकते हैं,TV  operate कर सकते हैं। video कॉल कर सामने वाले को देख
सकते हैं। body tempreture,दिल कि रफ़्तार कितने  कदम दिन भर चले ,calories बर्न ,कुछ भी डाउन लूद कर लो।
सिनेमा books
              आज इस दौर में तरककी कि रफतार इन्तहा को पहुँच चुकी  है। आज आप मोबाइल ख रीदें कल पुराना रोज़ बरोज़ कर के नए model launch होतें हैं। नए नये application के साथ frigde ,washing machines मार्किट में launch किये जातें हैं। auto car ,उड़ने वाली कार ,रोबोट से operation, चाँद, mars पर colony जाने क्या क्या
               हमारे उर्दू शायिर इस दौर में भी वही राग अलापें हुवें हैं। गुल बुल बुल ,जाम व मीना ,मेहबूब का सरू कद ,शबे फ़िराक़। ज़माना इतनी तरककी कर चूका है के आज का नौजवान चिलमन ,फ़िराक, आहें,किसी चीज़ पर यक़ीन नहीं रखता। लड़का हो या लड़की एक ही उसूल पर गामज़न है "तू नहीं और सही " क़ल एक नौजवान से बहस हो गयी कहने लगा " अंकल तुम्हारे शायरों ने जिस जान-फिशानी से इतने दीवान तैयार किये हैं इन को जमा कर के एक काम कि चीज़ भी बनायीं जा सकती है ? मैं लाजवाब होगया।