मुम्बई कि लोकल ट्रैन
मुम्बई कि लोकल ट्रैन को देख कर हवा से भरे हुवे उस ग़ुबारे का तसुव्वर होता है जो फटने कि हद तक फूँक दिया गया हो। ट्रैन कम्पार्टमेंट में तो लोग खचा खच भरे भरे होतें हें ,दरवाज़ों खिड़कियों पर भी लटके होतें हें। और बचे कूचे लोग छत पर भी चढ़ जातें हैं। थोड़ी जगह दो बोगियों के बीच होती हें वहाँ भी कुछ लोग सुकड़ कर बैठ जातें हें। अगर per square feet लोगों कि तादाद निकली जाये तो हवा का गुज़र भी ट्रैन कि बोगी से मुश्किल नज़र आता हे। ट्रैन में लगे पंखें कभी कभी स्विच बंद करने पर चल पड़तें हें। लेकिन हवा फेकने कि बजाये Exhaust fan का काम करते हैं. ट्रैन में ज़रूरियात ज़न्दगी का सब सामन मिल जाता हे जैसे फल फ्रूट ,nail cutter ,सब्ज़ियाँ ,ready made कपड़ें ,make up का सामन वग़ैरा।दिल बहलाने के कयी सामन जैसे तरह तरह के ढोल harmonium गले में लटकाएं हातों में मंजीरे लिए, और बुलंद आवाज़ में गाते फ़क़ीर ,साधू,बचें ,औरतें। बची कूची कमी भजन गातें मुसाफरी पूरी कर देतें हैं।लोकल ट्रैन में लगे ईशतेहारों (विज्ञापन) में आप कि तमाम परेशानियों का हल मिल जायेगां , जैसे नौकरी ,पसंद कि औलाद ,परेशानी ,धंदे में नुकसान ,मुश्किल कूशा बंगाली बाबा के पास इन तमाम परेशानियों का शर्तिया इलाज है। नाउम्मीद होने की ज़रुरत नहीं आपको नामर्दी,कैंसर ,और ऐड्स का इलाज जो अब तक किसी scientist के पास नहीं ,बग़ैर ऑपरेशन इलाज ,और तो और रूठी हुई महबूबा को मनाने का इलाज इन इश्तेहारों में मिल जाएंग। लोकल ट्रैन के सफ़र के दौरान आप का बटवा पाकिट मारों के हातों चोरी होना लाज़मी हैं। जो एक टोली कि शकल में हर डब्बे में मौजूद होते हैं . अगर आप ने उन्हें रोकने कि कोशिस कि ,तो आप की पिटाई भी हो सकती है। शराफत इसी में हैं के बटवे का ग़म न किया जाये ,वैसे भी आज कल लोग बटवे में पैसे कम और love letters या मेहबूबा की तस्वीर से ज़ियादा , कुछ रखते ही नहीं।
लोकल ट्रेन कि रफ़्तार चीटीं (ant ) से कम व बेश थड़ी ज़ियादा होती हें। रेलवे कि ज़मीन घर पर बनाने कि खुली इजाज़त हे। पटरी के साथों साथ झोपड़े बने होते हें। इस में ये सहूलत होती हे के प्लेट फार्म पर उतरते ही घर में दाखिल हो जाईयें। घर साफ़ कर, कूड़ा कचरा पटरियों पर फेकने में आसानी। टॉयलेट कि आसानी। किराया अदा करने कि ज़रूरत नहीं।लाईट पानी मुफ्त। पटरियों पर क्रिकेट खेला जाता है। टूर्नामेंट होतें हें motor man कि ग़लती (क्युके खिलाडियों से ग़लती नहीं होती )कोई हादसे का शिकार हो जाता हे तो motor man को भाग कर जान बचानी पड़ती है। और मुसाफिरों पर पथरों कि बारिश। अक्सर व बेश्तर बच्चों कि ट्रैन पर निशाने बाज़ी कि मश्क़ में मुसाफिर अपनी आँखें खो बैठतें हें। अब पटरियों के किनारे रहने वालों बासियों कि मांग है के ट्रैन कि frequency कम कर दी जाए ताकि उनके सोने ,खेलने ,बच्चों कि पढ़ाई में खलल (distarbance )न पड़े। सरकार इस मामले पर संजीदगी (seriously )से सोच
रही हें।
बरसात के मौसम में लोकल कि रफ़्तार बढ़ जाती हे क्युकि पटरियां पानी में डूबने कि बिना पर ट्रेने पानी में तैरने लगती हें लेकिन सामने आने वाली ट्रैन से टकराने का डर होता है ,इस लिए ट्रेने रोक दी जाती हें और लोग पैदल जल्दी घर पहुँच जातें हें।
किसी ज़माने में नए पुल बनाते वक़्त इंसानों कि बली दी जाती थी। रोजाना ५० लाख लोगों को लेजानेवाली ये ट्रेने भी रोज़ाना कई लोगों कि बली ले लेती हें। लेकिन जिस तरह मुम्बई के शहरियों को खाना पीना सोना ज़रूरी है ६
बजकर २ मिनट कि ट्रैन का सफ़र भी लाज़मी है।
मुम्बई कि लोकल ट्रैन को देख कर हवा से भरे हुवे उस ग़ुबारे का तसुव्वर होता है जो फटने कि हद तक फूँक दिया गया हो। ट्रैन कम्पार्टमेंट में तो लोग खचा खच भरे भरे होतें हें ,दरवाज़ों खिड़कियों पर भी लटके होतें हें। और बचे कूचे लोग छत पर भी चढ़ जातें हैं। थोड़ी जगह दो बोगियों के बीच होती हें वहाँ भी कुछ लोग सुकड़ कर बैठ जातें हें। अगर per square feet लोगों कि तादाद निकली जाये तो हवा का गुज़र भी ट्रैन कि बोगी से मुश्किल नज़र आता हे। ट्रैन में लगे पंखें कभी कभी स्विच बंद करने पर चल पड़तें हें। लेकिन हवा फेकने कि बजाये Exhaust fan का काम करते हैं. ट्रैन में ज़रूरियात ज़न्दगी का सब सामन मिल जाता हे जैसे फल फ्रूट ,nail cutter ,सब्ज़ियाँ ,ready made कपड़ें ,make up का सामन वग़ैरा।दिल बहलाने के कयी सामन जैसे तरह तरह के ढोल harmonium गले में लटकाएं हातों में मंजीरे लिए, और बुलंद आवाज़ में गाते फ़क़ीर ,साधू,बचें ,औरतें। बची कूची कमी भजन गातें मुसाफरी पूरी कर देतें हैं।लोकल ट्रैन में लगे ईशतेहारों (विज्ञापन) में आप कि तमाम परेशानियों का हल मिल जायेगां , जैसे नौकरी ,पसंद कि औलाद ,परेशानी ,धंदे में नुकसान ,मुश्किल कूशा बंगाली बाबा के पास इन तमाम परेशानियों का शर्तिया इलाज है। नाउम्मीद होने की ज़रुरत नहीं आपको नामर्दी,कैंसर ,और ऐड्स का इलाज जो अब तक किसी scientist के पास नहीं ,बग़ैर ऑपरेशन इलाज ,और तो और रूठी हुई महबूबा को मनाने का इलाज इन इश्तेहारों में मिल जाएंग। लोकल ट्रैन के सफ़र के दौरान आप का बटवा पाकिट मारों के हातों चोरी होना लाज़मी हैं। जो एक टोली कि शकल में हर डब्बे में मौजूद होते हैं . अगर आप ने उन्हें रोकने कि कोशिस कि ,तो आप की पिटाई भी हो सकती है। शराफत इसी में हैं के बटवे का ग़म न किया जाये ,वैसे भी आज कल लोग बटवे में पैसे कम और love letters या मेहबूबा की तस्वीर से ज़ियादा , कुछ रखते ही नहीं।
लोकल ट्रेन कि रफ़्तार चीटीं (ant ) से कम व बेश थड़ी ज़ियादा होती हें। रेलवे कि ज़मीन घर पर बनाने कि खुली इजाज़त हे। पटरी के साथों साथ झोपड़े बने होते हें। इस में ये सहूलत होती हे के प्लेट फार्म पर उतरते ही घर में दाखिल हो जाईयें। घर साफ़ कर, कूड़ा कचरा पटरियों पर फेकने में आसानी। टॉयलेट कि आसानी। किराया अदा करने कि ज़रूरत नहीं।लाईट पानी मुफ्त। पटरियों पर क्रिकेट खेला जाता है। टूर्नामेंट होतें हें motor man कि ग़लती (क्युके खिलाडियों से ग़लती नहीं होती )कोई हादसे का शिकार हो जाता हे तो motor man को भाग कर जान बचानी पड़ती है। और मुसाफिरों पर पथरों कि बारिश। अक्सर व बेश्तर बच्चों कि ट्रैन पर निशाने बाज़ी कि मश्क़ में मुसाफिर अपनी आँखें खो बैठतें हें। अब पटरियों के किनारे रहने वालों बासियों कि मांग है के ट्रैन कि frequency कम कर दी जाए ताकि उनके सोने ,खेलने ,बच्चों कि पढ़ाई में खलल (distarbance )न पड़े। सरकार इस मामले पर संजीदगी (seriously )से सोच
रही हें।
बरसात के मौसम में लोकल कि रफ़्तार बढ़ जाती हे क्युकि पटरियां पानी में डूबने कि बिना पर ट्रेने पानी में तैरने लगती हें लेकिन सामने आने वाली ट्रैन से टकराने का डर होता है ,इस लिए ट्रेने रोक दी जाती हें और लोग पैदल जल्दी घर पहुँच जातें हें।
किसी ज़माने में नए पुल बनाते वक़्त इंसानों कि बली दी जाती थी। रोजाना ५० लाख लोगों को लेजानेवाली ये ट्रेने भी रोज़ाना कई लोगों कि बली ले लेती हें। लेकिन जिस तरह मुम्बई के शहरियों को खाना पीना सोना ज़रूरी है ६
बजकर २ मिनट कि ट्रैन का सफ़र भी लाज़मी है।