रविवार, 20 फ़रवरी 2022

कुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिए है



 
(L to R)Khasim,Dr. Sharief,Yusuf,Sadaf,Sohail,Ragib,Faruq ul Zama 

सदफ़ का उर्दू में मतलब होता है मोती। 

१२ फ़रवरी २०२२  बरोज़ सनिचर सदफ़ का अक़्द सोहैल शेख़ से होगया। शाम ०७३० बजे होटल Royal Tulip खारगर में ६० लोगों की मौजूदगी में मुफ़्ती जमशेद ने निकाह पढ़ाया । सादा सी तक़रीब थी । मजमुआ भी संजीदा लोगों पर मुश्तमिल था। 

वक़्त रुकता नहीं कहीं टिक कर 

१३ साल पहले जब फ़ारुक़ उल ज़मा की अहलिया एक हादसे में जुदा होई थी, सदफ़ स्कूल की शुरुवात ही कर रही थी। उसने इस संगीन हादसे को पसे पुश्त डाल दिया और अपनी तालीम के अलावा  अपनी बहनों की ज़िम्मेदारी भी अपने सर लेली। ज़हींन इतनी थी के स्कूल कॉलेज में टॉप करती रही। खेल ,डिबेट ,बेहतरीन announcer .कॉलेज स्कूल में प्रोग्राम कंडक्ट करने के लिए उसे ही बुलाया जाता। पनवेल पिल्लई कॉलेज में annual college day जो बड़े पैमाने पर conduct किया जाता है ,बड़े बड़े corporate द्वारा sponsor किया जाता है। सदफ़ ही manage करती। वो ही प्रोग्राम की host /anchoring  करती  और सब हिजाब में रहते हुए। आफरीन !

माशाल्लाह उसकी कप्बोर्ड उसके medals से भरी पड़ी है। अपने नस्बुल ऐन (Target ) MBA (HR )करने के बाद वो ३ साल से जॉब भी कर रही है। 
फ़ारुक़ उल जमा भी अपने  ख़ूने  जिगर से अपनी अवलाद की परवरिश बेहतरीन तौर पर करते रहे। कभी न माज़ी पर नज़र की न मुस्तक़बिल के ख़ौफ़ से परेशांन हुवे। मक़सद हमेशा रहा बच्चियों की तालीम। चारो बच्चियों को तालीम से आरास्ता करते रहे। अपनी तन्हाई ,अपने ग़म ,अपने अकेले पन को कभी भी किसी पर ज़ाहिर नहीं किया। अपनी बेख्वाब करवट बदलती रातों का किसी से कभी ज़िक्र नहीं किया। आज् जब अपनी लखत जिगर से जुदा होने पर उनेह ज़रूर ख्याल आया होंगा
तुम चले जावोंगे तो सोचेंगे 
हम ने क्या खोया हम ने क्या पाया 
जुदाई इंसान का मुक़्क़दर लेकिन ऐसी जुदाई जिस में ज़हनी सुकून हासिल हो क्या कहने। सदफ़ अपने ख्वाबों के 
शहज़ादे  सोहैल के साथ नयी आरज़ूओं ,नयी उमंगों के साथ नयी ज़िन्दगी की शुरवात करेंगी ये सोच कर फ़ारुक़ उल जमा को क़रार आ गया होंगा। किसी ने सच कहा है अच्छे दामाद का मिलना ready made बेटा मिलने जैसा ही होता है। 
ज़िन्दगी नाम है यादों का तल्ख़ और शीरीं 
भला किसी ने कभी रंग व बू को पकड़ा है 
शफ़क़ को क़ैद में रखा हवा को बंद किया 
२४-२५ साल का वक़्फ़ा जो  फ़ारुक़ उल ज़मा ने सदाफ के साथ गुज़ारा  , उनेह ऐसा महसूस होंगा ,गोया हवा का झोंका था जो आकर गुज़र गया। कभी कभी उसकी cupboard खोल कर उसके पुराने लिबास ,किताबें ,मैडल देख उसकी यादों की की खुशबू उनेह महका देंगी। उनेह महसूस होंगा 

तेरी क़ुरबत के लम्हे फूल जैसे 
मगर फूलों की उम्रें मुख़्तसर हैं 
सदफ तुम जहाँ रहो खुश रहो। तुम्हरी ज़िन्दगी हमेशा खुशीओं से भरी रही, ग़म कभी तुमको छू कर भी न गुज़रे। 
आमीन सुम्मा आमीन। 
तुम्हारी ज़िन्दगी में भीड़ हो इतनी खुशीओं की 
के ग़म गुज़रना भी चाहे तो रास्ता न मिले