गुरुवार, 8 जुलाई 2021

राशिद अली युसूफ अली

                                               मौत तो वो है जिस पे ज़माना करे अफ़सोस                     

                                                                 



तारीखे पैदाइश : ०१/०४/१९६४  मुक़ाम :जलगांव  इंतेक़ाल : ३ जून २०२१ ,२२  ज़ूल क़दा १४४२  रात ११:३० बजे , तद्फीन :४ जून  इतवार  जलगांव (बड़ा क़ब्रस्तान ) सुबह ११:३० बजे 

                                                       तुम से बिछड़ा हूँ  तो सीने में उतर आया है 

                                                       ऐसा सन्नाटा किसी पेड़ का पत्ता न हिले 

किसी शहर की अहमियत वहां मुक़ीम लोगों से होती है। फिर ये होता है शहर अपनों से खाली ख़ाली होने लगता है। हर मानूस (जाने पहचाने ) शख्स की जुदायी से एक ख़ला पैदा होजाता है। जलगाँव  मेरा आबाई वतन है कल राशीद अली की मौत की खबर सुन कर यूँ लगा मानो जलगांव मेरे लिए अजनबी होगया हो। जलगांव की दिलकशी मेरे लिए काम होगयी हो।  

                                                     तुम याद आये साथ तुम्हारे, गुज़रे ज़माने याद आये  

   १९७७ /१९७८  में राशिद अली  ७th या ८th  क्लास में था। अब्बा ने उसे बॉम्बे हमारे पास बुलवा लिया। अंजुमने  खैरुल इस्लाम कुर्ला में उसका दाखला करवा दिया। गया। उस् समय हम लोगों का क़याम तिलक नगर चेम्बूर की ८४ नंबर  बिल्डिंग में था। पड़ोस की बिल्डिंग में उसका क्लासमेट शाहिद इरफ़ान रहता था जो अब कुर्ला का मशहूर advocate है,अच्छा शायर और अदीब है । आखरी उम्र तक दोनों की दांत कांटे की दोस्ती रही। राशिद अली की मौत  की खबर उसे सुनाई तो मुझे मैसेज भेजा "अफसोसनाक खबर एक अच्छा दोस्त मुझ से रुखसत हुवा अल्लाह राशिद अली को अपने हबीब के सदके में जन्नत में आला मक़ाम अता करे ,आमीन " 

 फिर हम लोग वाशी रो हाउस में शिफ्ट हो गए। जलगांव में आपा की ग़ुरबत की बिना पर राशिद अली की सही तालीम तरबियत नहीं हो पायी थी। सही तरह से उर्दू में अपना नाम भी नहीं लिख पाता  था। अब्बा के क़दमों में बैठ कर राशिद ने इल्म भी हासिल किया और अब्बा की  टूट कर खिदमत भी की। अब्बा से दुनयावी ,दीनी ,अख़लाक़ी तालीम हासिल की। मुक़ामिल इंसान बन गया। शगुफ्ता मुमानी को भी घरेलु कामो में बेहद मदद करता। वाशी में उसे सब लोग हमारा छोटा भाई समझते। उसने भी हमें उतनी ही इज़्ज़त दी और हमने भी उसे इतना ही प्यार दिया। 

                                                             मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़सूस क्यों होंगे ?

पड़ोस में सामंत ब्राह्मण ख़ानदान मुक़ीम था। दीपक सामंत मशहूर architect ईरान से कई साल जॉब करके इंडिया लौटे थे CIDCO में काम करने लगे थे। उनकी अहलिया Sacred Heart स्कूल में टीचर थी। घर पर दो छोटे बच्चें  ओंकर और केदार थे। उन दोनों की राशिदअली निगहदाश्त करता ,दीपक साहेब को नॉन वेज खाने बना  कर खिलता। रशीद अली अपने खुलूस अपनी मोहबत से  उनकी फॅमिली का हिस्सा बन गया। कहा जाता है मोहबत तो वो बेल है जो खुलूस के सहारे परवान चढ़ती है। दीपक  सामंत हर छोटे बड़े कामो में राशीद अली से मश्वरा लिया करते थे, मानो वो उनका क़रीबी दोस्त हो । कल फ़ोन करके दीपक सामंत को राशिद अली की मौत की खबर सुनाई तो उनेह यक़ीन ही नहीं आया , दोनों मिया बीवी बहुत मलूल हुवे। 

                                                             हम  हुवे तुम हुवे के मीर हुवे 

                                                            उसकी जुल्फों के सब असीर हुवे  

बहुत मिकनातीसी  (Magnetic )शख्सियत थी राशीद अली की। लोगो को मोहब्बत के जाल में बांध लेता था। मुश्ताक़ सय्यद मुंबई पासपोर्ट ऑफिस में PRO थे। वो और उनकी अहलिया राशिदअली के गरवीदा थे। वाशी ही में रहते थे। भांजे से ज़ियादा राशिद से मोहब्बत थी। मुश्ताक़ को कही जाना होता राशिद उनके घर जा कर सोता। बाज़ार से सौदा लाता उनके बच्चों को स्कूल छोड़ता। राशिद अली को कुवैत जाने का ऑफर मिला तो पासपोर्ट मुश्ताक़ सय्यद ने ही बनवा के दिया था। जिस दिन राशिद अली की कुवैत रवानगी थी, मुझे याद है  मुश्ताक़ मसरूफियत के बावजूद सहार एयरपोर्ट तक छोड़ने पुहंचा था उस ज़माने में immigration clearance में बड़ी दिक्कत होती थी  ,राशिद को अपने पासपोर्ट ऑफिस के ID पर फ्लाइट तक सवार कर आया था। मुश्ताक़ अहमदनगर शिफ्ट होगया था ,उसकी दावत पर राशिद अली उसकी लड़कियों की शादी  में अहमदनगर जाकर शरीक हुवा था। रशीद अली मौत की खबर सुन कर मुश्ताक़ को बड़ा शॉक लगा। 

वक़्त गुज़रता रहा उस ने SSC पास कर जलगांव लौट कर इलेक्ट्रीशियन का काम सीखा। दादा भाई ने उसे कुवैत 

अपनी फैक्ट्री "Plastic and Packaging Industries " में इलेक्ट्रीशियन के काम के लिए बुलवा लिया। 

                                    यूँ वक़्त के पहिये से बंधा हु यारब 

                                    चाहूँ के न चाहूँ गर्दिश में हु यारब 

     मशीनो के बीच १८ घंटे की ड्यूटी , नाईट शिफ्ट ,२ या ३ साल तक छुट्टियों का इंतज़ार ,खानदान से दूरी। शायद अलग ही मिटटी से बने होते हैं ऐसे अफ़राद। राशिद भी इन में से एक था। कुवैत की कितनी  सख़्त सर्दिया ,गर्मिया बरसातें झेलीं जब कही वो अपने सपनो का घर गणेश कॉलोनी जलगांव में बना पाया। अपनी अम्मी शरीफुन्निसा को हज पर ले जा सका। हादी , उमैर ,सुमन और अपनी अहलिया शाहीन को  ज़िन्दगी की अनमोल खुशीयाँ दे सका। 

एक ऐसा वक़्त भी आया जब सद्दाम हुसैन के कुवैत के हमले के बाद राशिद अली को हिंदुस्तान लौटना पड़ा। फिर हालत मामूल पर आये। फिर वो कुवैत लोटा। १५ साल के लम्बे बनबास के बाद वो हिंदुस्तान लौटा। यहाँ भी उसने छोटी  मोटी इलेक्ट्रिक वर्कशॉप लगा कर अपनी जद्दो जहद जारी रखी। 

उम्र और वक़्त इंसान से उसकी जवानी उसकी ताक़त तो छीन सकते हैं उसके ख्वाब उसकी उमंगें उसकी चाहतें नहीं चीन छीन सकते। 

नाज़िम ने राशिद अली को  दुबई अपनी कंपनी में काम करने बुलाया। वहां कई प्रोजेक्ट उसके साथ मिलकर पुरे किये। मैं ने दुबई विजिट के दौरान उसके साइट पर जा कर मुलाक़ात की थी। लक लक सहराके दरमियान एक लम्बे चौड़े पोल्ट्री फार्म पर वो चंद अफ़राद के साथ इलेक्ट्रीशियन का काम कर रहा था। तब पता चला सहरा की ज़िंदगी कितनी बेलज़्ज़त  बोझल होती है। 

                                                             होशो हवास ताब व ताबां जा चुके हैं दाग़ 

लॉक डाउन से चंद रोज़ पहले राशिद दुबई से ३ साल लगातार काम करके छुट्टियां गुजरने हिंदुस्तान आया था। 

तहसीन की शादी में राशिद अली मुलाक़ात हुवी थी । नहीफ, कमज़ोर ,चेहरे की शादाबी ख़त्म होगयी थी। सेहरा और मशीनो ने उसकी तमाम तवानाई निचोड़ ली थी। जनवरी -२०२१ में उसे फिर से दुबई जाने का मौक़ा मिला था। लेकिन पहली बार ज़िन्दगी में उसे बेयक़ीनी का शिकार होते देखा था। एयर पोर्ट से वापिस अपने घर लौट आया। 

अच्छा हुवा मौत शनासावों के बीच वतन में वाक़े हुयी। आखिर के दो साल फुर्सत से अपने ख़ानदान के बीच तमानियत से गुज़ार कर मौत और तद्फीन के लिए ,दिन इतवार चुना लोगो को छुट्टी न लेना पड़े। 

३० जून बुध के रोज़ में सफर में था। हफ्ते में एक रोज़ ज़रूर मुझ से कॉल करके राशिद बात करता था। उस रोज़ भी मामूल के मुताबिक मुझ से बात की एक जुमला उछाल दिया आज तक कानो में वो जुमला सदाए बाज़ गश्त की तरह गूंज रहा है  "मामू कब जलगांव आरहे हो। "चुपके से मुझे अपनी मौत की खबर सुना दी। कहना चाहता हो "जल्दी से आकर मिल लो ,वक़्त कम बचा है"। अल्लाह राशिद अली को जन्नते फिरदौस में आराम सुकून की ज़िन्दगी आता करे। आमीन सुम्मा आमीन 

                                   रशीद की बचपन की तस्वीर लेफ्ट सुहैल सय्यद राईट रागिब अहमद