Masjid kuhna purana kila
Hammam purana kila
Member Masjid kuhna
Isa khan tomb
मौत से किस को रस्तगारी है
औलिया हमेशा ज़िन्दगी में सादा ज़िन्दगी गुज़ारते रहे। बादशाहे वक़्त से दूरी क़ायम रखी। मौत के बाद बादशाहे वक़्त की ख्वाहिश होती थी के उनेह औलिया के पहलु में दफन किया जाये, शायद उनकी नजात का ज़रिया बन जाये। हुमायूँ का मक़बरा भी हज़रात निजामुद्दीन औलिया के करीब ही में हैं। बड़ी अजीब बात है के मोगलिया दौर में औरतों को एक मक़ाम हासिल था। गुलबदन बानू ,हमीदा बेगम ,जहां आरा चंद गिनी चुनी शख्सियतों के नाम हम तक पहुँच पाए हैं। हमीदा बेगम जो हुमायूँ की बीवी थी अकबर को अकबर आज़म उसी ने बनाया। कहा जाता है हुमायूँ के मक़बरे की तामीर भी उसी ने हुमायूँ के इंतेक़ाल के ४ साल बाद पूरी कर ली। मक़बरे को देख केर बनाने वाले की दूर अंदेशी ,design ,architecture की दाद देनी पड़ती है। ४५० साल बाद भी मक़बरे की रौनक जो की तूं बरकरार है। एक्कीस्वी सदी में मक़बरे को restore करते करते कई साल लग गए।
मक़बरे के एंट्री पर बड़ा दरवाज़ा है। उस से लग कर इसा खान जो शेर शाह सूरी का वज़ीर था उस का मज़ार है। मज़ार के सामने खबसूरत मस्जिद है जहाँ अब नमाज़ नहीं पढ़ सकते। हुमायूँ के मक़बरे की बायीं जानिब हमाम बना है। दायीं जानिब नाई का मक़बरा है। मक़बरे में हुमायूँ के अलावा कई कब्रें हैं। ईसी मक़बरे से १८५७ की जंगे आज़ादी के बाद बहदुर शाह ,आखरी मोघल को अंग्रेज़ों ने गिरफ्तार किया था।
आ तुझ को बताता हूँ तक़्दीरे उमम क्या है
शमसीर व सना अव्वल चंगेज़ व रुबाब आखर
शायरे मशरिक़ डॉक्टर इक़बाल बताना चाहते है के क़ौमों की तक़दीर मुसलसल जद्दो जहद से बनती ही ,और क़ौमों की मौत ऐशो इशरत और राहत तलबी से होती है। तारीख़ भी हमें यही सबक देती है।
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Humain darwaza purana kila
23 नवंबर से २७ नवंबर २०१८ के बीच दिल्ली शहर की खाक छानने का मौक़ा मिला। दिल्ली मेट्रो से सफर आराम दे भी होगया और आप कम टाइम में लम्बा डिस्टेंस कवर कर सकते हैं। इस बार पुराना क़िला विजिट करने का चांस मिला। मुग़लियाँ सल्तनत का दूसरा बादशाह हुमायूँ ,ने पुराने किले से हकूमत की थी। उस ने लिखा है जहाँबादल, बरसात हो वहीसे बादशह ने हकूमत करनी चाहिए। public private participation के ज़रिये ASI और आग़ा खान foundation की कोशिशों से दिल्ली के तमाम पुराने monuments को नयी ज़िन्दगी बख्शी जा रही है। पुराना किला ,भी उन में से एक है। इसी पुराने किले से हुमायूँ ने १५३२ से १५४० तक हुकूमत की। शेर शाह सूरी ने हुमायूँ को १५४० में शिकस्त दी और इस किले पर कब्ज़ा किया यहाँ एक ख़ूबसूरत मस्जिद (कोहना ) बनायीं। इस किले को उस ज़माने में शेर मंडल कहा जाने लगा।
यूँ वक़्त के पहिये से बंधा हूँ यारब
चाहूँ के न चाहूँ गर्दिश में हूँ यारब
हिमायूं नामाँ हिमायूं की जिंदिगी के हालात पर लिखी किताब है। गुलबदन बेगम जो हिमायूं की बहन थी हिमायूं की मौत के बाद अकबर बादशाह ने अपनी सगी फूफी से हिमायूं के हालत ज़िन्दगी बयां करने की दरख्वास्त पर ये किताब लिखी गयी।गुलबदन बेगम के बारे में कहा जाता है की वह बहुत पढ़ी लिखी ,शायरा ,सियासत दान थी। बड़ी तफ्सील से उस ने हुमायूँ के हालत बयान किये हैं। हिमायूं जिंदिगी भर सख्त हालत से झूंझता रहा। बाबर ने इब्राहिम लोधी को पानीपत में शिकस्त दी और दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया। उस वक़्क़त हुमायूँ बदख्शां (अफ़ग़ानिस्तान) का गवर्नर था। बाबर की बीमारी की खबर सुन कर बग़ैर बाबर की इजाज़त के वह दिल्ली आगया। बाबर बहुत बिगड़ा भी लेकिन बाप की मोहब्बत ग़ालिब आगयी। बाबर किसि वजह से दिल्ली की हुकूमत हुमायूँ के सुपर्द नहीं करना चाहता था। एक ऐसा वक़्त आया के २२ साल की उम्र में ,हुमायूँ सख्त बीमार होंगया ,बाबर ने बीमार हुमायूँ के बिस्तर के गिर्द घूम कर कर दुआ की के हुमायूँ सेहतयाब होजाये और उसे मौत आजाये। जो दुआ दिल से निकलती है असर रखती है हुमायूँ सेहतयाब होगया और बाबर की ३८ साल की उम्र में मौत होंगयी।
१५४० में शेर शाह सूरी ने हुमायूँ को शिकस्त दी। हुमायूँ अपनी बीवी हमीदा बानो ,चंद जांबाज़ सिपाहियों के साथ काबुल में पनाह लेना चाहता था । उस का भाई कामरान मिर्ज़ा इजाज़त नहीं देता है । पता नहीं हुमांयू किस मिटटी का बना था। किसी तरह बचता बचाता ईरान पहूँश्चाता है बड़ी फ़ौज लेकर लौटता है । इसी दौरान अकबर की पैदाइश होती है। १५ साल की जद्दो जहद के बाद पहले अपने भाई कामरान मिर्ज़ा को शिकस्त दे कर उसे अँधा कर हज के लिए रावाना कर, दिल्ली पर १५५५ में हमला करता है और शेर शाह सूरी जिस की हुकूमत के पंजे हिंदुस्तान में गड चुके थे उखाड़ फेंकता है ,पुराना किला (शहरे पनाह ) से अपने फरमान जारी करता है।
किस्मत तो देखिये टूटी कहाँ कमांड
एक साल हिंदुस्तान में हुकूमत करने के बाद २७ जनवरी १५५६ जुमे के दिन अपनी एक मंज़िला library से कुछ किताबें बग़ल में दाबे, उतर रहा था। असर की अज़ान सुनाई दी ,हुमायूँ की आदत थी अज़ान सुन कर एह्त्रामन बैठ जाने की , सब से ऊँची सीडी पर बैठ गया। अज़ान ख़त्म होने पर ,उठते वक़्त अपना balance न संभाल सका ,सर के बल गिर कर मौत होगयी,कहा जाता है उस वक़्त हुमायूँ की उम्र ४७ या ५१ साल थी । अकबर १३ साल का था और उस समय काबुल में था। किसी तरह मौत की खबर को कुछ रोज़ के लिए छुपाया गया। अकबर को काबुल से बुला कर गद्दी सोपि गयी।
आज पुराने किले को नयी ज़िन्दगी तो बख्श दी गयी है लेकिन वो lovers paradise बन गया है। Holy wood की फिल्मों से ज़्याद खतरनाक scene देखने को मिलते हैं। शायद हुमायूँ शेर शाह सूरी की रूह क़ब्र में तड़प उठती होंगी। नए ज़माने की नयी फसल को कौन रोक सकता है ?
Bada darwaza
isa khan masjid
Humayun Tomb
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