सोमवार, 26 दिसंबर 2016

नवीद मेरी नज़र से

९ फ़रवरी २००९  नवीद क़े  वलीमे पर पढ़ी गयी एक तहरीर
पुराने ज़माने में शादी में सेहरा पढ़ने का रिवाज होता था। शायरों को दूल्हे और बारातियों की जानिब से इनाम व इकराम से नवाज़ा जाता। ज़माना बदल गया साथ साथ लोगों के मिज़ाज भी बदल गएँ हैं। एक ज़माना था दूल्हा  सहारे से लदा फदा होता शायर इस किस्म के शेर पढ़ते।
कोन कहता है दूल्हे के सर पे सेहरा है
सर पे मखना है मखने पे सेहरा है
     आज नवीद की शादी के मौके पर सेहरा तो नहीं पढ़ सकता  क्यूंकि में शाइर नहीं ,एक मुख़्तसर सा खाक़ा पेश कर रहा हूँ।
      नवीद की पैदाइश पर एरंडोल से रवाना किया टेलीग्राम में ने ही receive किया था और हमारे वालिद मोहतरम (नवीद के दादा ) को पढ़ कर सुनाया था। पोते की पैदाइश की खबर सुन कर बहुत ख़ुश हुवे थे ढेरों दुवाएँ दी थी। टेलीग्राम पर याद आया जलगांव शहर में  किसी ज़माने में हमारे मोहल्ले में पड़े लिखे लोग काम थे। उस वक़्त किसी के घर मौत या किसी की बीमारी की खबर देने के लिए टेलीग्राम रवाना किया जाता था। मोहल्ले में किसी के घर भी टेलीग्राम आता तो हमारे वालिद से पढ़वाया जाता। एक दिन मोहल्ले में किसी के घर टेलीग्राम आया, सारा खानदान रोतें पीटतें वालिद साहेब के पास पुहंचा ,टेलीग्राम पढ़ कर पता चला अहमदाबाद में ज़लज़ले के हल्क़े झटकें लगे थे। वह  earthquake का मतलब नहीं समझ सके थे। मतलब जान कर वे हँसते ,अब्बा को दुवाएं देते घऱ लौटें।
     मेरी शादी के वक़्त नवीद २ साल के थे। उस की शगुफ्ता ऑंटी को अनि कहा करता था। उन के वालिद हमारे अब्बा को ख़त लिखा करते थे ,उन में नवीद अंजुम भी आड़ी तिरछी लकीरें खेंच दिया करता। इस लिखावट को अब्बा decode कर लिया करते छूपे पैग़ाम का मतलब समझ कर हमें बताते।
   नवीद के बच्पन का एक और किस्सा याद आगया ,  डॉ. वासिफ की कर्जन PHC में पोस्टिंग थी उन का स्टाफ ग़ैर मुस्लिम था। एक दिन नवीद अपने पापा को हनुमान की तस्वीर दिखा कर कहने लगा "ये अल्लाह मियां है ".अब्बा सुन कर बहुत महज़ूज़ हुवे।
    नवीद अंजुम के निकाह में जलगांव में ड्यूटी की बिना पर शरीक न होने पर ज़िन्दगी भर अफ़सोस रहेगा। सोच रहा हूँ
निकाह में उनोह ने कलमे ठीक से अदा किये या नही। इस पर मुझे बचपन का एक वाक़या याद आगया किसी करीबी
रिश्तेदार  के बच्चे की शादी थी अब्बा के पास आकर कहने लगा " खालू ज़बान नहीं उलटती कालमे याद करा दो ता के निकाह के दौरान कोई ग़लती न होजाये। अब्बा कहने लगे "बहुत जल्दी आये हो मियां ,पर थूक से कागज़ नहीं चिटकता।
      अभी में ने निकाह की तफ्सील भी नहीं सुनी है। नवीद तुम ने सेहरा बान्धा था। घोड़े पर बरात के साथ घूमे थे। घोड़े के पैर के नीचे अंडा रखा गया था या नहीं। सास ससुर ने १००० की बेल डाली थी या नहीं। इस्लाम पुरे का ब्रॉस बंड़ ,नाचते बारातियों ने जावीद अंकल की कमी ज़रूर महसूस की होंगी।
      नवीद अंजुम हमारे खानदान का इकुलता वारिस ,११ बहनों का एक भाई ,माँ बाप की आँखों का तारा ,चाची चाचाओं
का दुलारा , खाला नानी नाना का प्यारा ।  मशालाह हुलिया क्या
बयान करू ,निकलता कद , खड़ी नाक , बड़ी बड़ी आँखेँ  जो किसी हैरत नाक वाक़ये को सुन कर और भी फैल जाती है।
        नवीद अंजुम ने मुम्बई यूनिवर्सिटी की मशहूर रिज़वी कॉलेज से MBA करने के बाद तेज़ी से तर्रकि की है। में ने उसे
उस दौरान भी देखा था जब वो अंजुमने इस्लाम सुब्हानी हॉस्टल में  रहते थे। नाज़ व नाम में पला नवीद हॉस्टल के टूटे फूटे रूम में खटमलों मछरों के दरमियान खुश व खुर्रम रहा करते। उन की इस जद्दो जहद पर ये शेर सादिक़ आतें हैं
मनजिल कि हो तलाश तो दामन जनून का थाम
राहों के रंग देख न तलवों के खार देख
या
दुआ देती हैं रहें आज तक मुझ आबला प् को
मेरी पैरों की गुलकारी बियाबान से चमन तक है
       फिर थोड़ा अर्सा नवीद नें मुंम्बई में जॉब किया। इस के बाद जो रस्सी टुडवा के भागे तो दुबई में क़ियाम लिया। आजकल दुबई की मशह्हूर कंपनी यूनिलीवर में जॉब करते हैं और रहते हैं शारजाह में , में इतने वसूक़ से इस लिए कह सकता हूँ वहां भी में ने उन का पीछा नहीं छोड़ा वहां भी उन से मिल आया हूँ। उनके अब्बा हुज़ूर डॉ वासिफ अहमद तो गुजरात हुकूमत के खूंटें से ऐसे बंधे के रिटायर होकर छुटे। अल्हमदोलीलाः नवीद अंजुम तररकी के जीने पर तेज़ी से रवां दवान हैं अल्लाह उन्ह मज़ीद तररकी दें आमीन सुम्मा आमीन। मेरी दुआ है के नवीद अंजुम बेहद तररकी करे फुले फले बहुत जल्द क्रिकेट की टीम तैयार करें। मेरी आखरी नसीहत बाप  की हर बात पर अमल करें लेकिन "हम दो हमारे दो पर बिलकुल नहीं।
PS:  मोहतरिम खालू जान (रज़ीउद्दीन शैख़) ने भी नवीद अंजुम के के वलीमे पर "घर की मिटटी घर में" टॉपिक  पर एक तक़रीर की थी वह हमारे दरमियान नहीं रहें। इन ८ सालों में हरदिलअजीज सादिक़ अहमद (दादा भाई ),छोटी आपा (शरीफुन्निसा) भी हम से बिछड़ गयी।