टीपू सुल्तान समर पैलेस (बैंगलुरू )
मुस्लिम रूलर्स ने हिंदुस्तान पर जिस शान से हुकूमत की ,सदियों साल बाद भी उनके नुकूश मिटने से नहीं मिट पाते। शेरे मैसूर टीपू सुल्तान के महल श्रीनागापटनम में अंग्रेजों ने १७९९ में , टीपू को शहीद कर अपनी नफरत का सुबत पेश कर के उन के महलात नेस्त नाबूद ,तबाह बर्बाद कर दिए थे। उन के महल आज भी श्रीनागापटनम में टूटी फूटी शक्ल में मौजूद हैं। उन की बनायीं आलिशान मस्जिद ,उन का मज़ार आज हज़ारोँ सैलानियों का मंज़ूरे नज़र बना हुवा है।
बेंगलुरु में समर पैलेस बनाने की शुरवात टीपू के वालिद हैदर ने ,१७८१ में की थी। १७८२ में उनके वालिद की मौत के बाद टीपू ने इस पैलेस को १७९२ में कम्पलीट किया। ये एक मंज़िल इमारत चालीसों लकड़ी के सुतूनों पर खड़ी है। आर्चिओलॉजिकल सर्वे की मालूमात से पता चलता है के इन सुतूनों (सत्मभ ) को इमारत में लगाने से पहले कावेरी नदी में एक साल तक डुबों कर रख्खा गया था। इसी वजह से आज २२४ साल बाद भी यह सत्मभ अपनी ओरिजिनल शक्ल में मौजूद हैं। इमारत का नक़्श (आर्किटेक्ट ) फ्रांस में बनवाया गया था। इस पैलेस में टीपू अपना दरबार लगा ,जनता के फैसलें किया करते थें। टीपू ने इस पैलेस का इस्तेमाल बदकिस्मती से सिर्फ ७ साल की छोटे से पीरियड के लिए किया था। बदबख्त अँगरेज़ खुशकिस्मत रहे के १७९९ से १९५७ तक १५० साल इस पैलेस का इस्तेमाल फौजी छावनी की सूरत में करते रहे। पैलेस में टीपू की ओरिजिनल पेंट की हुवी तस्वीरें लगी हैं। टीपू के वॉर में इस्तेमाल किये मिसाईल/रॉकेट भी रखें हुवे हैं जिन की रेंज २ किलो मीटर बतायी जाती हैं। डॉ ऐ पी जे अब्दुल कलाम आज़ाद ने भी इस बात की तस्दीक (authenticity) की है के टीपू सुलतान राकेट/मिसाइल को इंवेंट करने वाला पहला आदमी था।
शायद हम इन् यादगारों उतनी कद्र नहीं करते ,फॉरेन टूरिस्ट हज़ारों मील का सफर कर इन यादगारों को देखने पहुँचते हैं यादगार के लिए तस्वीरें खींचतें हैं।
मुस्लिम रूलर्स ने हिंदुस्तान पर जिस शान से हुकूमत की ,सदियों साल बाद भी उनके नुकूश मिटने से नहीं मिट पाते। शेरे मैसूर टीपू सुल्तान के महल श्रीनागापटनम में अंग्रेजों ने १७९९ में , टीपू को शहीद कर अपनी नफरत का सुबत पेश कर के उन के महलात नेस्त नाबूद ,तबाह बर्बाद कर दिए थे। उन के महल आज भी श्रीनागापटनम में टूटी फूटी शक्ल में मौजूद हैं। उन की बनायीं आलिशान मस्जिद ,उन का मज़ार आज हज़ारोँ सैलानियों का मंज़ूरे नज़र बना हुवा है।
बेंगलुरु में समर पैलेस बनाने की शुरवात टीपू के वालिद हैदर ने ,१७८१ में की थी। १७८२ में उनके वालिद की मौत के बाद टीपू ने इस पैलेस को १७९२ में कम्पलीट किया। ये एक मंज़िल इमारत चालीसों लकड़ी के सुतूनों पर खड़ी है। आर्चिओलॉजिकल सर्वे की मालूमात से पता चलता है के इन सुतूनों (सत्मभ ) को इमारत में लगाने से पहले कावेरी नदी में एक साल तक डुबों कर रख्खा गया था। इसी वजह से आज २२४ साल बाद भी यह सत्मभ अपनी ओरिजिनल शक्ल में मौजूद हैं। इमारत का नक़्श (आर्किटेक्ट ) फ्रांस में बनवाया गया था। इस पैलेस में टीपू अपना दरबार लगा ,जनता के फैसलें किया करते थें। टीपू ने इस पैलेस का इस्तेमाल बदकिस्मती से सिर्फ ७ साल की छोटे से पीरियड के लिए किया था। बदबख्त अँगरेज़ खुशकिस्मत रहे के १७९९ से १९५७ तक १५० साल इस पैलेस का इस्तेमाल फौजी छावनी की सूरत में करते रहे। पैलेस में टीपू की ओरिजिनल पेंट की हुवी तस्वीरें लगी हैं। टीपू के वॉर में इस्तेमाल किये मिसाईल/रॉकेट भी रखें हुवे हैं जिन की रेंज २ किलो मीटर बतायी जाती हैं। डॉ ऐ पी जे अब्दुल कलाम आज़ाद ने भी इस बात की तस्दीक (authenticity) की है के टीपू सुलतान राकेट/मिसाइल को इंवेंट करने वाला पहला आदमी था।
शायद हम इन् यादगारों उतनी कद्र नहीं करते ,फॉरेन टूरिस्ट हज़ारों मील का सफर कर इन यादगारों को देखने पहुँचते हैं यादगार के लिए तस्वीरें खींचतें हैं।