बुधवार, 18 मई 2016

Aur carvan banta gaya


                                                                    और कारवाँ  बनता गया
               पत्थर सुलग रहे थे कोई नक़्श पा न था
                हम जिस तरफ चले थे कोई रास्ता न था
१९९८/९९ की बात है नेरुल शहर तामीर के दौर से गुज़र रहा था। जगे जगे बुलंद इमारतों की तामीर का सिलसिला जारी था। मलेरिआ की बीमारी आम थी। नेरुल तक लोकल ट्रैन की आमद व रफ़्त भीं न थी। जमे मस्जिद अभी संग बुनियाद के मरहले में थी। इसी अस्ना में हम ख्याल लोगों का एक ग्रुप तैयार होता है। अली अम शम्सी की कयादत में बिस्मिल्लाह सर ,मरहूम सादिक़ अहमद ,मरहूम मोहियुद्दीन पाटणकर ,फ़ारूक़ उजजमान, सय्यद मुहम्मद अब्बास ,डॉ अबु जर  ,फ़िरोज़ चौगले के तउवूंन से "मरक ज़े फलह "के नाम से अदारे की बुनियाद डाली जाती है। ट्रस्ट रजिस्टर किया जाता है। खुले मैदान मैं एदैन की नमाज़ों का सिलसिला शुरू होता है। इज्तेमाई क़ुर्बानी ,ग़रीबों में गोश्त की तक़सीम,रमजान के मौके पर ग्रोसरी के पैकेट और ईद उल अज़हा पर ड्राई फ्रूट ,दूध ,गोश्त ,सिवैयां की identified families में तक़सीम का सिलसिला जारी होता। identifed families की फहरिस्त भी एक टीम जिस में मरहूम सादिक़ अहमद शेख ,फ़िरोज़ चौगले,सय्यद मुहम्मद अब्बास , फ़ारू ऊजजमं शामिल थे , बड़ी जाँ फिशानी  व अर्क़ रेज़ि से तैयार की गयी थी। टीम ने बजाते खुद नेरुल के हर ग़रीब मुसलमान उनके मकान ,झोपड़े में पहुँच कर ,दरवाज़ा खट खटा कर सर्वे किया था। फैमिली इन्कम ,घर के मेंम्बरों की तादाद ,स्कूल में पढ़ने वाले उन ख़ानदानों के बच्चों की फ़हरिस्त बनायीं गयी। उस ज़माने में लोगों ने तंज़ के तीर भी चलाएं थे के आगे आगे देखिए कुछ होता भी है या नहीं। अली ऎम शम्सी और उन की टीम के लोग ,सदर के ५० साला तजुर्बे की रौशनी में बच्चों की तालीम के उन्वान पर क्लास अव्वल से पोस्ट ग्रेजुएशन तक के स्टूडेंट्स कि फीस भरने का बेडा मरकज़ इ फलह नेरुल के ज़रिये उठाते हैं। सपना था ,के नेरुल शहर का कोईं बच्चा ग़रीबी की वजह से जाहिल न रह जाए ,अपनी स्टडी पूरी करने से महरूम न रह जाये।
Dream is not what you see while sleeping ;it is something that does not let you sleep before  fufilling it
   मंज़र बदलता है २०१६ में मरकज़ इ फलह को १८ साल पुरे होजाते हैं ,फिर से सर्वे किया जाता है।  identified
  families के बच्चें , जो lower middle class familes से belong करते थे , मेंहनत मज़दूरी कर अपने बच्चो की तालीम का खर्च उठा नहीं पा रहे थे ,मरकज़ इ फलह नेरुल ने उके सपनों को सच करने में एक पुल का काम किया। वही बच्चें आज Graduate ,Post Graduate ,Engineer ,MBA की ड़िग्री हासिल कर मरकज़ का नाम रौशन कर रहे हैं। सोने पे सुहागा ,उन्ही मदद लेने वालों खानदानों से ज़कात की भरी रकम भी मरकज़ को मिल रही है। हर साल मर्कज़ फलह नेरुल की मदद से ७ से ९ बच्चें graduate ,Post Graduate हो रहे हैं।
न जाने मेरे बाद उन पे क्या गुज़री
में ज़माने में चंद ख़्वाब छोड़ आया था
   सादिक़ शेख ,इसहाक़ हवलदार ,पाटणकर दुनिया में नहीं रहें अपने सपनों को हकीकत में बदलते नहीं देख सके , मगर अपनी खिदमात से आखिरत कमा गयें। मर्कज़ फलह के प्रेजिडेंट ८० साल उम्र के बावजुद उसी जज़्बे से काम में जुटे हैं।
मर्कज़ फलह के नए मेंबर्स यूसुफ़ निशांदर ,रफ़ी शेख ,डॉ शरीफ ,ज़फर शम्सी ,उस्मानी ,राग़िब शेख ,मंसूर जथाम नए जोश नये वलवले से मर्कज़ फलह से जुड़े हैं। इन सब का भी यही सपना है की क़ौम का हर गरीब बचा UPSC ,MPSC ,IIT का EXAM पास करें ,डॉक्टर बने ,इंजीनियर बने ,जज व वकील बने। ख्वाब देख कर इस को अमल में ढालने के लिए ये कोशिश क़बीले तारीफ़ है। क्यूँकि
All find shelter during rain ,but eagle avoid rain by flying above cloud