सदियों में ऐसी शख्सियात पैदा होती हैं जिन के कौल और अमल (कहने और करने में ) यकसानियत पायी जाती जाती हैँ। टीपू सुल्तान ने कहा था "१०० साल की गीदड की ज़िन्दगी से १ दिन की शेर की ज़िन्दगी बेहतर है", टीपू ने ज़िन्दगी में शेर से भी लड़ाई की और आखिर में वतन की ख़ातिर, अंग्रेज़ों से लड़ते लड़ते अपनी जांन न्यौछावर कर दी। अंग्रेज़ों ने उन की बनाई जामे मस्जिद और मज़ार के छतों पर बनायीं गयी शेर की धारियों को मिटाने की भरपूर कोशिश की लेकिन दिल पर बने उनमिट नक़ूश और टीपू की अज़्मतों को मादूम (हल्का) नहीं कर पायें। तारीख में सुल्तान टीपू का ज़िक्र हमेशा सुन्हरी हर्फों मौज़ूद रहेंगा। NASA (America ) ने टीपू सुल्तान को rocket का मौजीद (inventor )तस्लीम कर ,वहाँ लगी murals में जगा दी गयी है।
टीपू सुल्तान को इस दुनिया से गए २०० साल से ज़ियादा ज़माना बीत गया है १७९९ में उनेह शहीद किया गया था। श्रीरंगपटनम में शान व शौकत से दफ़न वह मक़ाम गुम्बज कहलाता है। बंगलुरु से १२० किलो मीटर की दूरी और मयसूर से १६ किलो मीटर की दूरी पर श्रीरंगापट्नम ,हज़ोरों की तादाद में सैलानी उस जगे ज़रूर जातें हैं जहाँ शेरे मयसूरे की लाश मिली थी ,अंग्रेज़ों से लड़ते लड़ते शहीद हुवे थे। आलिशान मस्जिद जहॉं आप ने नमाज़ अदा की थी।और वोह शानदार मक़बरा और मस्जिद कई एकर ज़मीन के घेरे में लम्बे चौड़े लॉन के बीच आज भी वही नज़ारा पेश करते हैं।
मज़ार जिसे टीपू सुलतान ने १७८२ में अपने वालिद के दफ़न के लिए बनाया था बाद में उनकी वालिदा को भी पड़ोस में दफ़न किया गया। मज़ार की खूबसूरत ईमारत ३६ काले मर मर के सूतोनोँ पर खड़ी हैँ सुल्तान ने ईरान से मंगवाएँ थे।उनेह क्या पता था के उनेह भी अपने माँ बाप के पड़ोस में दफ़न होना है।
सुल्तान की कब्र शेर की खाल के जैसे कपडे से ढकी है और उस पर चादर चढ़ी है।हर साल ज़िलक़ाद के महीने में टिपूसुल्तान का उर्स धूम धाम से मनाया जाता है। हज़ारों अकीदतमंद शरीक होकर ख़िराज अक़ीदत पेश करतें हैं।
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