६९ वे जश्ने आज़ादी के मौके पर
जंगे आज़ादी की १८५७ में बुनियाद पढ चुकी थी। झाँसी की रानी, ताँतिया टोपे ,मंगल पांडे ,बहादुर शाह ज़फर जंगे आज़ादी के पहले सिपाही थे। बहादुर शाह ज़फर को जंग हारने के बाद अंग्रेज़ों ने क़ैद कर रंगून में रखा था। इनेह ना क़लम दी गयी थी न काग़ज जेल की दीवारों पर अपने जज़्बात का इज़हार शेरोँ में कोयले से किया करते। वतन से दूर मौत से पहले उनोह ने कहा था
कितना है बदनसीब ज़फर दफन के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कूए यार में
राम प्रसाद बिस्मिल ,अशफाक उल्ला खान जंगे आज़ादी के पहले सिपाही थे जिनोः ने सर कटा कर कर शहादत हासिल की। राम प्रसाद बिस्मिल की दिल को गर्माने वाली शायरी जेल की दीवारें भी न रोक पायी। बकौल शाइर " हम तो आवाज़ है दीवारों से भी छन जातें हैं " इस ज़माने न टी वी था न इंटरनेट न सोशल मिडीया फिर भी बिस्मिल का देश प्रेम में डूब कर लिखा गया शेर जो फँसी पर चढ़ते चढ़ते वह कह गए थे
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए क़ातिल में हैं और इन्किलाब ज़िंदाबाद की गुँज हिन्दुस्तान के गली कूचों में सुनाई दी। ३० साल की नौखेज़ उम्र में बिस्मिल को फँसी दी गयी वह शहीद हो ,अमर होगायें।
गांधी ,अबुलकलाम आज़ाद ,नेहरू ,सुभाष चन्द्र बोसे , मौलाना हसरत मोहनी ,आंबेडकर ,वल्लभ भाई पटेल सब जंगे आज़ादी के सिपाही थे सब ने एक ही मक़सद के लिए क़ुरबानी दी , देश की आज़ादी। और आज़ादी १५ ऑगस्ट -१९४७ को हासिल करके रहे। ग़ुलामी की ज़ंजीरें टूटी मुल्क आज़ाद हुवा।
आज़ादी के बाद हर हुन्दुस्तानी ने एक ख्वाब देखा था मुल्क की तरक्की बकौल शायिर
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
६९ साल के लम्बे सफर के बाद हिन्दुस्तान सब सा बड़ा लोक तंत्र बन गया है। तरक्की की तेज़ रफ्तारी इस लिए भी है के यहां चाय बेचने वाला देश का प्रधान मंत्री बन सकता है तो पेपर बेचने वाला देश का प्रेसिडेन्ट । अब्दुल कलम आज़ाद साइंटिस्ट ,बेहतरीन दिमाग़, मिसाइल मेंन हमारी गर्दनें फखर से ऊँची होजाती हैं , इन की मौत पर अमेरिका ने पहली बार अपना फ्लैग झुका दिया।आक्कीसवी सदी हिन्दुस्तान की है तभी सुन्दर पिचई को गूगल का सीईओ बनाया जाता है , सत्य नादर माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ के ओहदे पर तनियत होतें हैं ,इंद्रा नुयि को पेप्सी का सीईओ बना कर इज़्ज़त बख्शी जाती है। इन पोजीशन तक पोहचना हिन्दुस्तान की अज़मत बड़ाई का एलान है। इस मंज़िल इस मक़ाम तक पहुचने में हर शहरी हर हिन्दुस्तानी की जद्दोजहद ,कोशिश शामिल है बकौल शायिर
कुछ इस तरह से तय की है हमने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे ,उठ के चले
में ने सीरिया में आठ साल गुज़ारें हैं वहां का इलेक्शन एक मज़ाक हुय्व करता वोटर्स को बैलेट पेपर खोल कर दिखाना पड़ता ,पुलिस वाले फोटोग्राफी करते इस के बाद वोट बॉक्स में डाला जाता। प्रेसीडेंट हाफ़िज़ उल असद ९९% वोटों से जीतता। किसे शौक था दूसरे को वोट देकर गर्दन कटवाने का। सूडान जहाँ में ने ज़िन्द्ज़गी के ११ साल गुज़ारे हैं आपसी खाना जंगी से परेशहन लोग आहें भर कर कहा कटे "काश हम हिन्दुस्तान में पैदा होते ".
दुवा है मुल्क इसी रफ़्तार से तरक्की करता रहे ,मालीक बुरी नज़र से बचाये। हम रैंकिंग में दुनिया में जल्द अज़ जल्द पहले मक़ाम पर पहुँच जाये और मुझे यक़ीन हैं
हम होंगे कामयाब मन में है विश्वास
जय हिन्द
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए क़ातिल में हैं और इन्किलाब ज़िंदाबाद की गुँज हिन्दुस्तान के गली कूचों में सुनाई दी। ३० साल की नौखेज़ उम्र में बिस्मिल को फँसी दी गयी वह शहीद हो ,अमर होगायें।
गांधी ,अबुलकलाम आज़ाद ,नेहरू ,सुभाष चन्द्र बोसे , मौलाना हसरत मोहनी ,आंबेडकर ,वल्लभ भाई पटेल सब जंगे आज़ादी के सिपाही थे सब ने एक ही मक़सद के लिए क़ुरबानी दी , देश की आज़ादी। और आज़ादी १५ ऑगस्ट -१९४७ को हासिल करके रहे। ग़ुलामी की ज़ंजीरें टूटी मुल्क आज़ाद हुवा।
आज़ादी के बाद हर हुन्दुस्तानी ने एक ख्वाब देखा था मुल्क की तरक्की बकौल शायिर
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
६९ साल के लम्बे सफर के बाद हिन्दुस्तान सब सा बड़ा लोक तंत्र बन गया है। तरक्की की तेज़ रफ्तारी इस लिए भी है के यहां चाय बेचने वाला देश का प्रधान मंत्री बन सकता है तो पेपर बेचने वाला देश का प्रेसिडेन्ट । अब्दुल कलम आज़ाद साइंटिस्ट ,बेहतरीन दिमाग़, मिसाइल मेंन हमारी गर्दनें फखर से ऊँची होजाती हैं , इन की मौत पर अमेरिका ने पहली बार अपना फ्लैग झुका दिया।आक्कीसवी सदी हिन्दुस्तान की है तभी सुन्दर पिचई को गूगल का सीईओ बनाया जाता है , सत्य नादर माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ के ओहदे पर तनियत होतें हैं ,इंद्रा नुयि को पेप्सी का सीईओ बना कर इज़्ज़त बख्शी जाती है। इन पोजीशन तक पोहचना हिन्दुस्तान की अज़मत बड़ाई का एलान है। इस मंज़िल इस मक़ाम तक पहुचने में हर शहरी हर हिन्दुस्तानी की जद्दोजहद ,कोशिश शामिल है बकौल शायिर
कुछ इस तरह से तय की है हमने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे ,उठ के चले
में ने सीरिया में आठ साल गुज़ारें हैं वहां का इलेक्शन एक मज़ाक हुय्व करता वोटर्स को बैलेट पेपर खोल कर दिखाना पड़ता ,पुलिस वाले फोटोग्राफी करते इस के बाद वोट बॉक्स में डाला जाता। प्रेसीडेंट हाफ़िज़ उल असद ९९% वोटों से जीतता। किसे शौक था दूसरे को वोट देकर गर्दन कटवाने का। सूडान जहाँ में ने ज़िन्द्ज़गी के ११ साल गुज़ारे हैं आपसी खाना जंगी से परेशहन लोग आहें भर कर कहा कटे "काश हम हिन्दुस्तान में पैदा होते ".
दुवा है मुल्क इसी रफ़्तार से तरक्की करता रहे ,मालीक बुरी नज़र से बचाये। हम रैंकिंग में दुनिया में जल्द अज़ जल्द पहले मक़ाम पर पहुँच जाये और मुझे यक़ीन हैं
हम होंगे कामयाब मन में है विश्वास
जय हिन्द